हिन्दू धर्म

ईश्वर शब्द का अर्थ

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ईश्वर शब्द ईश धातु में वरच् प्रत्यय लगाकर बना है जिसका अर्थ है ऐश्वर्य युक्त, समर्थ, शक्तिशाली, स्वामी, प्रभु, मालिक, राजा, शासक आदि। हिन्दी संस्कृत कोश के अनुसार ईश्वर शब्द का प्रयोग परमेश्वर, जगदीश्वर, परमात्मन, परमेश, …

हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांत

हिन्दू धर्म भारत का सबसे प्राचीनतम धर्म है। प्रारम्भ में इसे आर्य धर्म भी कहा जाता था। वेदों की रचना के साथ इसे वैदिक धर्म और पुराणों एवं स्मृतियों की रचना के बाद इसे पौराणिक धर्म कहा गया। जब भारत को हिन्दुस्तान कहा जाने लगा तो यहां के निवासीयों द्वार…

हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय एवं मत

हिन्दू धर्म किसी सम्प्रदाय विशेष के विचारों को व्यक्त करने वाला अथवा केवल अलौकिक सत्ता के सम्बन्ध में विश्वासों को प्रकट करने वाला धर्म नही है। इसके सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, 'अन्य धर्मों के समान हिन्दू धर्म भिन्न-भिन्न प्रकार के मत-…

हिन्दू धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय कौन - कौन से हैं?

उपास्य देवों की उपासना पद्धतियों में आंतरिक भिन्नता होने के कारण प्रत्येक मत में कालक्रम से अनेक सम्प्रदायों का प्रवर्तन होना स्वभाविक है। मत की अपेक्षा सम्प्रदाय में वैचारिक संकीर्णता तथा एकदेशीयता की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। डा. राधकृष्णन के मत…

हिंदू सामाजिक जीवन में धर्म के महत्व की विवेचना

हिन्दू धर्म अगणित रूपों में हिन्दुओं के सामाजिक जीवन को अनुप्राणित करता रहा है। वह जन्म से लेकर मृत्यु तक सामान्यतः प्रत्येक हिन्दू के जीवन को अनेक धार्मिक विश्वासों, विधि- संस्कारों, आराधना विधियों और कर्तव्य पालन में दृढ़ आस्था आदि रूपों में प्रभावि…

ईश्वर किसे कहते हैं ईश्वर की परिभाषा क्या है?

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से ईश्वर शब्द ईश धातु में वरच् प्रत्यय लगाकर बना है जिसका अर्थ है ऐश्वर्य युक्त, समर्थ, शक्तिशाली, स्वामी, प्रभु, मालिक, राजा, शासक आदि। हिन्दी संस्कृत कोश के अनुसार ईश्वर शब्द का प्रयोग परमेश्वर, जगदीश्वर, परमात्मन, परमेश, …

उपनिषदों की संख्या प्रमुख उपनिषदों का परिचय

उपनिषद् शब्द ‘उप’ एवं ‘नि’ उपसर्ग पूर्वक सद् (सदृलृ) धातु में ‘क्विप्’ प्रत्यय लगकर बनता है, जिसका अर्थ होता है ‘समीप में बैठना’ अर्थात् गुरु के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त करना। धातुपाठ में सद् (सद्लृ) धातु के तीन अर्थ निर्दिष्ट हैं - विशरण, (विनाश होन…

अथर्ववेद का अर्थ, स्वरूप, शाखाएं

‘अथर्व’ शब्द का अर्थ है अकुटिलता तथा अंहिसा वृत्ति से मन की स्थिरता प्राप्त करने वाला व्यक्ति। इस व्युत्पत्ति की पुष्टि में योग के प्रतिपादक अनेक प्रसंग स्वयं इस वेद में मिलते है। होता वेद आदि नामों की तुलना पर ब्रह्मकर्म के प्रतिपादक होने से अथर्ववेद…

यजुर्वेद की शाखाएं एवं भेद

यजुर्वेद की शाखाएं काण्यसंहिता कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता  मैत्रात्रणी संहिता  1. काण्यसंहिता-  शुक्ल यजुर्वेद की प्रधान शाखायें माध्यन्दिन तथा काण्व है। काण्व शाखा का प्रचार आज कल महाराष्ट्र प्रान् तमें ही है और माध्यन्दिन शाखा का उतर भारत म…

गीता का दार्शनिक तत्वविवेचन की दृष्टि से महत्व

श्रीमदभगवदगीता विश्व के सबसे बडे महाकाव्य महाभारत के “भीष्मपर्व” का एक अंश है। भगवदगीता भगवान कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र युद्ध में दिया गया दिव्य उपदेश है जब अर्जुन मोहग्रस्त होकर किंकर्तव्यविमूढ़ कि स्थिति में पहुंच चुके थे। इस प्रकार अर्जुन को केन्द्र…

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