मार्क्स के अनुसार, समाज कोई अस्थायी ढांचा नहीं बल्कि गतिशील परिपूर्णता है। इस परिपूर्णता को आर्थिक कारक ही गति प्रदान करता है। आर्थिक कारक पर अपने सम्पूर्ण सामाजिक परिवर्तन के सिद्धांत को आधारित करते हुए मार्क्स ने लिखा है, राजनीतिक, न्यायिक, दार्शनिक…