असामान्य मनोविज्ञान मनोविज्ञान की ही एक शाखा
है। जिसके अन्तर्गत असामान्य व्यवहार को विवेचित करते हैं।असामान्य का शाब्दिक
अर्थ सामान्यता से विचलन है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि इसे ही असामान्य व्यवहार
कहते है। असामान्य व्यवहार कि व्याख्या मनुष्य के अन्दर एक अवयव के रूप में नहीं कर
सकते है। यह विभिन्न जटिल विशेषताओं से आपस में जुड़ा होता है। आमतौर पर असामान्य एक समय में उपस्थिति अनेक विशेषताओं को निर्धारित करता है। असामान्य
व्यवहार में जिन लेखों की विशेषताओं को परिभाषित किया जाता है, वो हैं, विरल घटना,
आदर्श का उल्लंघन, व्यक्तिगत तनाव, विक्रिया और अप्रत्याशित व्यवहार।
असामान्य मनोविज्ञान की परिभाषा
एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार- ‘‘व्यवहार असामान्य
है। यह एक मानसिक विकार का द्योतक है, यदि यह दोनों विद्यमान तथा गम्भीर
स्तर तक होते है तो व्यक्ति की सामान्य स्थिति की निरन्तरता के विरूद्ध तथा
अथवा मानव समुदाय जिसका वह व्यक्ति सदस्य होता है के विपरित होता है। यह
भी विचारणीय है कि असामान्य की परिभाषा किसी सीमा तक संस्कृति पर
आधारित होती है।
उदाहरणार्थ- अपने आप से बात करना। एक आसान्य व्यवहार के रूप में माना जाता है। परन्तु कुछ निश्चित पोलीनेशियन देशों तथा परीक्षा अमेरिकी समाजों में इसे देवियों द्वारा प्रत्येक विशिष्ट स्तरीय उपहार माना जाता है।
2. बहिर्गत कारक- इन कारकों का संबंध मस्तिष्कीय आघात से था, जिसके अनेक कारण हो सकते थे। जैसे-शारीरिक रोग, विष अथवा दुर्घटना इत्यादि। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आस्ट्रिया में प्रसिद्ध तंत्रिका विज्ञानी एवं मनोरोग विज्ञानी सिगमण्ड फ्रायड द्वारा मनोरोगों के सन्दर्भ में उल्लेखनीय कार्य किया गया। इनका महत्वपूर्ण योगदान यह है कि सर्वप्रथम इन्होंने ही मनोरोगों की उत्पत्ति में जैविक कारकों की तुलना में मनोवैज्ञानिक कारकों को अधिक महत्वपूर्ण बताया। मनोरोग विज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड के योगदान में अचेतन, स्वप्न विश्लेषण, मुक्त साहचर्य विधि, मनोरचनायें तथा मनोलैंगिक सिद्धान्त विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
उदाहरणार्थ- अपने आप से बात करना। एक आसान्य व्यवहार के रूप में माना जाता है। परन्तु कुछ निश्चित पोलीनेशियन देशों तथा परीक्षा अमेरिकी समाजों में इसे देवियों द्वारा प्रत्येक विशिष्ट स्तरीय उपहार माना जाता है।
असामान्य मनोविज्ञान का इतिहास
आज का असामान्य मनोविज्ञान : सन् 1951 से अब तक
20वीं शताब्दी के पूवाद्ध्र तक केवल मानसिक अस्पतालों में ही मानसिक रोगियों का उपचार किया जाता था, किन्तु समय के साथ धीरे-धीरे इन मानसिक अस्पतालों की सच्चाई लोगों के समन समक्ष प्रकट होने लगी और इस बात का पता चला कि चिकित्सा के नाम पर इन अस्पतालों में रोगियों के साथ कितना अमानवीय व्यवहार किया जाता है। जिनको स्नेह और आत्मीयता की आवश्यकता है, उनके साथ अत्यन्त घृणित और क्रूर बर्ताव किया जाता है।
इसके परिणामस्वरूप रोग ठीक होने की बजाय और बढ़ जाता है और कभी-कभी तो रोगी की मृत्यु तक हो जाती थी।
प्रसिद्ध विद्वान् किश्कर (Kisker, 1985) ने ऐसे मानसिक अस्पतालों की स्थिति का वर्णन करते हुये कहा है कि ‘‘मानसिक रोगियों को इन अस्पतालों में एक छोटे से कमरे में झुण्ड बनाकर रखा जाना, ऐसे कमरों में शौचालय भी नहीं होना, धूप और हवा भी लगभग न के बराबर मिलना, आधा पेट खाना दिया जाना, कमसिन लड़कियों को अस्पताल से बाहर भेजकर शारीरिक व्यापार कराया जाना, अस्पताल अधिकारियों द्वारा गाली-गलौज करना आदि काफी सामान्य था।’’
इसके परिणामस्वरूप मानसिक अस्पतालों में रोगियों को रखने और उनका इलाज करवाने के प्रति लोगों की मनोवृत्ति में बदलाव आया और इन मानसिक अस्पतालों स्थान सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र (Community mental health centres) ने ले लिया। इन स्वास्थ्य केन्द्रों का प्रमुख उद्देश्य मानसिक रोगियों की मानवीय तरीके से चिकित्सा करना है। मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा मुख्यत: कार्य किये जाते हैं-
इसके परिणामस्वरूप मानसिक अस्पतालों में रोगियों को रखने और उनका इलाज करवाने के प्रति लोगों की मनोवृत्ति में बदलाव आया और इन मानसिक अस्पतालों स्थान सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र (Community mental health centres) ने ले लिया। इन स्वास्थ्य केन्द्रों का प्रमुख उद्देश्य मानसिक रोगियों की मानवीय तरीके से चिकित्सा करना है। मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा मुख्यत: कार्य किये जाते हैं-
- चौबीस घंटा आपातकालीन देखभाल
- अल्पकालीन अस्पताली सेवा
- आंशिक अस्पताली सेवा
- बाह्य रोगियों की देखभाल
- प्रशिक्षण एवं परामर्थ कार्यक्रम आदि।
वर्तमान समय में संकटकाल हस्तक्षेप केन्द्र का भी एक नया रूप ‘‘हॉटलाइन दूरभाष केन्द्र’’ (Hatlinetelephone centre) के रूप में विकसित हुआ है। इन केन्द्रों में चिकित्सक दिन या रात में किसी समय केवल टेलीफोन से सूचना प्राप्त करके भी सहायता करने हेतु तैयार रहते हैं। इनका प्रमुख उद्देश्य मनोरोगियों की अधिकाधिक देखभाल एवं सेवा करना होता है। इस तरह का पहला दूरभाष केन्द्र सर्वप्रथम लोस एन्जिल्स के चिल्ड्रेन अस्पताल में खोला गया, जिसकी सफलता से प्रभावित होकर विश्व के विभिन्न देशों में ऐसे केन्द्र तेजी से खुल रहे हैं।
असामान्य मनोविज्ञान का आधुनिक उद्भव
(Moderna cenging of Abnormal psychology) (सन् 1801- सन् 1950) असामान्य मनोविज्ञान के इतिहास में इस काल का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस युग में मनोरोगों के कारणों एवं उपचार के संबंध में अनेक महत्त्वपूर्ण विचारों का प्रतिपादन किया गया और उनके प्रयोग भी किये गये।
फ्रेंच चिकित्सक फिलिप पिनेल तथा इंग्लैण्ड में टर्क ने जिन मानवीय उपचार विधियों का प्रयोग किया, उनके परिणामों ने मनोरोगों के संबंध में पूरे विश्व में एक क्रांति सी ला दी। अमेरिका में बेंजामिन रश के कार्यों के माध्यम से इसके प्रभावों का पता चलता है। रश ने सन् 1783 में पेनसिलवानिया अस्पताल में कार्य करना प्रारंभ किया तथा सन् 1796 में मनोरोगों के उपचार हेतु एक अलग वार्ड बनवाया। इस वार्ड में मनोरोगियों के मनोरंजन के लिये विभिन्न प्रकार के साधन थे जिससे कि उनके सृजनात्मक क्षमताओं को विकसित किया जा सके। इसके बाद अपने कार्य को और आगे बढ़ाते हुये उन्होंने स्त्री एवं पुरूष रोगियों के लिये अलग-अलग वार्ड बनवाये उनके साथ अधिकाधिक मानवीय व्यवहार अपनाने पर बल दिया गया।
फ्रेंच चिकित्सक फिलिप पिनेल तथा इंग्लैण्ड में टर्क ने जिन मानवीय उपचार विधियों का प्रयोग किया, उनके परिणामों ने मनोरोगों के संबंध में पूरे विश्व में एक क्रांति सी ला दी। अमेरिका में बेंजामिन रश के कार्यों के माध्यम से इसके प्रभावों का पता चलता है। रश ने सन् 1783 में पेनसिलवानिया अस्पताल में कार्य करना प्रारंभ किया तथा सन् 1796 में मनोरोगों के उपचार हेतु एक अलग वार्ड बनवाया। इस वार्ड में मनोरोगियों के मनोरंजन के लिये विभिन्न प्रकार के साधन थे जिससे कि उनके सृजनात्मक क्षमताओं को विकसित किया जा सके। इसके बाद अपने कार्य को और आगे बढ़ाते हुये उन्होंने स्त्री एवं पुरूष रोगियों के लिये अलग-अलग वार्ड बनवाये उनके साथ अधिकाधिक मानवीय व्यवहार अपनाने पर बल दिया गया।
सन् 1812 में मनोरोग विज्ञान पर उनकी पुस्तक भी प्रकाशित हुयी, जिसमें मनोरोगों के उपचार के लिये रक्तमोचन विधि (Blood leting method) एवं विभिन्न प्रकार के शोधक अपनाने पर जोर दिया जो किसी भी प्रकार से मानवीय नहीं था।
19वीं सदी के प्रारंभ में अमेरिका में मनोरोगों के संबंध में एक विशेष आन्दोलन की शुरूआत हुयी, जिसका नेतृत्व एक महिला स्थूल शिक्षिका डोराथियाडिक्स द्वारा किया गया। यह आन्दोलन मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान आन्दोलन के नाम से लोकप्रिय हुआ। इस आन्दोलन का प्रमुख लक्ष्य था-’’मनोरोगियों के साथ हर संभव मानवीय व्यवहार करना।’’ यूरोप में तो 18वीं सदी के कुछ अन्तिम वर्षों में ही इस प्रकार के मानवीय दृष्टिकोण का उद्भव हो गया था, किन्तु अमेरिका में इसका प्रादुर्भाव 19वीं सदी के प्रारंभ में हुआ। इस आन्दोलन के परिणाम स्वरूप मनोरोगी जंजीरों से मुक्त हो गये और उन्हें हवा एवं रोशनी से युक्त कक्षों में रखा गया। इसके साथ-साथ उन्हें खेती एवं बढ़ईगिरी इत्यादि के कार्यों में भी लगाया गया, जिससे कि उनका शरीर एवं मन कुछ सर्जनात्मक कार्यों में व्यस्त रहे। डिक्स के सर्जनात्मक कार्योंम में व्यस्त रहे।
डिक्स के इस आन्दोलन का प्रभाव केवल अमेरिका में ही नहीं वरन स्कॉटलैण्ड एवं कनाडा आदि देशों में भी पड़ा और वहाँ के मानसिक अस्पतालों की स्थिति में भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुये। डिक्स ने अपने जीवनकाल में लगभग 32 मानसिक अस्पताल खुलवाये। मानसिक रोगियों के कल्याण हेतु अत्यन्त सराहनीय एवं प्रेरणास्पद कार्य करने वाली इस महिला सुधारक को अमेरिकी सरकार द्वारा सन् 1901 में ‘‘पूरे इतिहास में मानवता का सबसे उप्तम उदाहरण’’ बताया गया।
अमेरिका के साथ-साथ दूसरे देशों में भी जैसे कि जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रिया आदि में भी असमान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। फ्रांस में ऐसे कार्यों का श्रेय सर्वप्रथम एनटोन मेसमर को जाता है। उन्होंने पशु चुम्बकत्व पर महत्वपूर्ण कार्य किया। मेसमर इलाज के लिये रोगियों में बेहोशी के समान मानसिक स्थिति उत्पन्न कर दे देते थे। इस विधि को मेस्मरिज्म के नाम से जाना गया। बाद में यही विधि सम्मोहन (Hypnosis) के नाम से प्रसिद्ध हुयी। बाद में नैन्सी शहर के चिकित्सकों जैसे लिबाल्ट एवं उनके शिष्य बर्नहिम ने मानसिक रोगों के उपचार में सम्मोहन विधि का अत्यन्त सफलतापूर्वक प्रयोग किया, जिसके कारण यह विधि उस समय मनोरोगों के उपचार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली विधि बन गयी। इसके बाद प्रसिद्ध तंत्रिकाविज्ञानी शार्कों ने पेरिस में हिस्टीरिया के उपचार में सम्मोहन विधि का सफलतापूर्व प्रयोग किया।
अमेरिका के साथ-साथ दूसरे देशों में भी जैसे कि जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रिया आदि में भी असमान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। फ्रांस में ऐसे कार्यों का श्रेय सर्वप्रथम एनटोन मेसमर को जाता है। उन्होंने पशु चुम्बकत्व पर महत्वपूर्ण कार्य किया। मेसमर इलाज के लिये रोगियों में बेहोशी के समान मानसिक स्थिति उत्पन्न कर दे देते थे। इस विधि को मेस्मरिज्म के नाम से जाना गया। बाद में यही विधि सम्मोहन (Hypnosis) के नाम से प्रसिद्ध हुयी। बाद में नैन्सी शहर के चिकित्सकों जैसे लिबाल्ट एवं उनके शिष्य बर्नहिम ने मानसिक रोगों के उपचार में सम्मोहन विधि का अत्यन्त सफलतापूर्वक प्रयोग किया, जिसके कारण यह विधि उस समय मनोरोगों के उपचार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली विधि बन गयी। इसके बाद प्रसिद्ध तंत्रिकाविज्ञानी शार्कों ने पेरिस में हिस्टीरिया के उपचार में सम्मोहन विधि का सफलतापूर्व प्रयोग किया।
यदि असामान्य मनोविज्ञान के इतिहास में शार्कों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान देखा जाये तो वह पेरिस के एक अत्यन्त लोकप्रिय शिक्षक के रूप में है, जिनका कार्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में कुछ छात्रों को प्रशिक्षित करना था। आगे चलकर ये छात्र मनोविज्ञान के क्षेत्र में अत्यन्त लोकप्रिय हुये। शार्कों के विद्यार्थियों में से दो छात्र ऐसे है, जिनके कार्यों के लिये इतिहास उनका आभारी है। इनमें से एक है- सिगमण्ड क्रायड (सन् 1856 - सन् 1939)। ये सन् 1885 में वियाना से शार्कों से शिक्षाग्रहण करने आये थे तथा दूसरे हैं, पाइरे जेनेट जो पेरिस के ही रहने वाले थे। शार्कों ने अपनी मृत्यु के 3 साल पूर्व जेनेट को अस्पताल का निदेशक नियुक्त किया। जेनेट ने सफलतापूर्वक अपने गुरू शार्कों के कार्यों को आगे बढ़ाया। मनोरोगों के क्षेत्र में जेनेट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है-मनोस्नायुविकृति (Psychoneurosis) में मनोविच्छेद (Dissociation) के महत्त्व को अलग से बताना।
फ्रांस के साथ-साथ जर्मनी में भी इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य हुये, जिनमें विलिहेल्म ग्रिसिंगर (1817-1868) और ऐमिल क्रेपलिन के कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इन दोनों चिकित्सकों ने मनोरोगों का एक दैहिक आधार (Somatic basis) माना और इस विचारी का प्रतिपादन किया कि जिस प्रकार शरीर के किसी अंग में कोई विकार आने पर शारीरिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मनोरोगों के उत्पन्न होने का कारण भी अंगविशेष में विकृति ही है। इसे ‘‘असामान्य का अवयवी दृष्टिकोण’’ (arganic viewpoint of abnormality) कहा गया।
फ्रांस के साथ-साथ जर्मनी में भी इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य हुये, जिनमें विलिहेल्म ग्रिसिंगर (1817-1868) और ऐमिल क्रेपलिन के कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इन दोनों चिकित्सकों ने मनोरोगों का एक दैहिक आधार (Somatic basis) माना और इस विचारी का प्रतिपादन किया कि जिस प्रकार शरीर के किसी अंग में कोई विकार आने पर शारीरिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मनोरोगों के उत्पन्न होने का कारण भी अंगविशेष में विकृति ही है। इसे ‘‘असामान्य का अवयवी दृष्टिकोण’’ (arganic viewpoint of abnormality) कहा गया।
सन् 1845 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में ग्रिंसिगर ने अत्यन्तदृढ़तापूर्वक इस मत का प्रतिपादन किया कि मनोरोगों का कारण दैहिक होता है। ग्रिसिंगर की तुलना में ऐमिल क्रेपलिन का योगदान ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि भिन्न-भिन्न लक्षणों के आधार पर इन्होंने मनोरोगों को अनेक श्रेणियों में बाँटा और उनकी उत्पत्ति के अलग-अलग कारण भी बताये।
सर्वप्रथम क्रेपलिन ने ही उन्माद-विषाद मनोविकृति नामक मानसिक रोग का नामकरण किया और आज भी यह रोग इसी नाम से जाना जाता है। उन्होंने जो दूसरा महत्वपूर्ण मनोरोग बताया, उसका नाम था डिमेंशिया प्राक्रोवस इसका नाम बदलकर वर्तमान समय में मनोविदालिता या सिजोफ्रेनिया कर दिया गया है। क्रेपलिन ने मनोरोगों का कारण शारीरिक या दैहिक मानते हुये इसे निम्न दो वर्गों में विभक्त किया-
- अन्तर्गत कारक (Endogenous factors)
- एवं बहिर्गत कारक (Exogenous factors)
2. बहिर्गत कारक- इन कारकों का संबंध मस्तिष्कीय आघात से था, जिसके अनेक कारण हो सकते थे। जैसे-शारीरिक रोग, विष अथवा दुर्घटना इत्यादि। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आस्ट्रिया में प्रसिद्ध तंत्रिका विज्ञानी एवं मनोरोग विज्ञानी सिगमण्ड फ्रायड द्वारा मनोरोगों के सन्दर्भ में उल्लेखनीय कार्य किया गया। इनका महत्वपूर्ण योगदान यह है कि सर्वप्रथम इन्होंने ही मनोरोगों की उत्पत्ति में जैविक कारकों की तुलना में मनोवैज्ञानिक कारकों को अधिक महत्वपूर्ण बताया। मनोरोग विज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड के योगदान में अचेतन, स्वप्न विश्लेषण, मुक्त साहचर्य विधि, मनोरचनायें तथा मनोलैंगिक सिद्धान्त विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
फ्रायड ने जोसेफ ब्रियुअर से मनोस्नायुविकृति के रोगियों पर सम्मोहन विधि का सफलतापूर्वक प्रयोग करना सीखा। इस विधि के प्रयोग के दौरान उन्होंने देखा कि सम्मोहित स्थिति में रोगी बिना किसी संकोच एवं भय के अपने अचेतन में दमित विचारों, इच्छाओं, भावनाओं, संघर्षों, आदि को अभिव्यक्त करता है, जिनका संबंध स्प्ष्ट रूप से उस व्यक्ति के रोग से होता है। फ्रायड तथा ब्रियुअर ने इसे विरेचन विधि (Catthartic method) का नाम दिया। इसके बाद सन् 1885 में फ्रायड, प्रसिद्ध फ्रेंच चिकित्सक शार्कों से शिक्षा प्राप्त करने पेरिस गये। वहाँ उन्होंने सम्मोहन विधि से मनोस्नायुविकृति के रोगियों में चमत्कारी परिवर्तन देखे। वे इससे अत्यन्त प्रभावित हुये, किन्तु वियाना वापस आने के बाद उन्होंने सम्मोहन विधि द्वारा उपचार करना बन्द कर दिया क्योंकि उनका मत था कि इस विधि द्वारा रोग का केवल अस्थायी उपचार होता है, रोग पूरी तरह दूर नहीं होता है।
असामान्य व्यवहार के संबंध में जो एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विचार फ्रायड द्वारा दिया गया वह यह था कि उनके मतानुसार अधिकतर मनोरोगों का कारण अचेतन में दमित इच्छायें, विचार, भावनायें आदि हैं अर्थात मनोरोगों का मूल कारण अचेतन (Unconscious) है। जो विचार, भावनायें या इच्छायें दु:खद, अनैतिक, असामाजिक या अमानवीय होती हैं, उनको व्यक्ति अपने चेतन मन से हटाकर अचेतन में दबा देता है।
फ्रायड ने इसे दमन (Repression) कहा है। इस प्रकार से इच्छायें एवं विचार नष्ट नहीं होते वरन् दमित हो जाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। इस लिये किसी भी व्यक्ति के व्यवहार का ठीक प्रकार से अध्ययन करने के लिये उसके अचेतन में दमित संवेगों, विचारों को चेतन स्तर पर लाना अत्यन्त आवश्यक है। इस हेतु इन्होंने दो विधियों का प्रतिपादन किया-
फ्रायड ने इसे दमन (Repression) कहा है। इस प्रकार से इच्छायें एवं विचार नष्ट नहीं होते वरन् दमित हो जाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। इस लिये किसी भी व्यक्ति के व्यवहार का ठीक प्रकार से अध्ययन करने के लिये उसके अचेतन में दमित संवेगों, विचारों को चेतन स्तर पर लाना अत्यन्त आवश्यक है। इस हेतु इन्होंने दो विधियों का प्रतिपादन किया-
- मुक्त साहयर्च विधि (Free association method)
- स्वप्न-विश्लेषण विधि (Deream Analysis method)
फ्रायड के शिष्यों में कार्य युंग एवं एल्फ्रेडएडलर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। एडलर वियाना के ही थे। फ्रायड के कुछ विचारों से असहमत होने के कारण बाद में युग एवं एडलर ने उनसे अपना संबंध तोड़कर नयी अवधारणाओं को जन्म दिया। युग का मनोविज्ञान विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (Analytic psychology) तथा एडलर का मनोविज्ञान ‘‘वैयक्तिकमनोविज्ञान’’ (Individual psychology) के नाम से जाना जाता है।
फ्रायड जब 80 साल के थे तो वे अत्यन्त गंभीर रूप से बीमार हो गये तथा उन्हें हिटलर के जर्मन सैनिकों ने पकड़ लिया क्योंकि हिटलर ने वियाना पर आक्रमण कर दिया था। अपने कुछ शिष्यों एवं दोस्तों की सहायता से उन्हें सैनिकों के कब्जे से छुड़ा लिया गया तथा इसके बाद वे लंदन चले गये और वहाँ 83 वर्ष की आयु में अर्थात सन् 1939 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया। असामान्य मनोविज्ञान के इतिहास में एडॉल्फमेयर का योगदान भी अविस्मरणीय है, जो स्विट्जरलैण्ड के थे किन्तु सन् 1892 में अमेरिका आकर वहीं पर बस गये तथा यहाँ पर इन्होंने मनोरोगों के क्षेत्र में अत्यन्त उल्लेखनीय कार्य किये। असामान्य के सन्दर्भ में मेयर द्वारा प्रतिपादित विचारधारा को ‘‘मनोजैविक दृष्टिकोण’’ के नाम से जाना जाता है। मेयर का मत था कि मनोरोगों का कारण केवल दैहिक ही नहीं वरन मानसिक भी होता है। इसलिये उपचार भी दोनों आधारों पर किया जना चाहिये।
फ्रायड जब 80 साल के थे तो वे अत्यन्त गंभीर रूप से बीमार हो गये तथा उन्हें हिटलर के जर्मन सैनिकों ने पकड़ लिया क्योंकि हिटलर ने वियाना पर आक्रमण कर दिया था। अपने कुछ शिष्यों एवं दोस्तों की सहायता से उन्हें सैनिकों के कब्जे से छुड़ा लिया गया तथा इसके बाद वे लंदन चले गये और वहाँ 83 वर्ष की आयु में अर्थात सन् 1939 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया। असामान्य मनोविज्ञान के इतिहास में एडॉल्फमेयर का योगदान भी अविस्मरणीय है, जो स्विट्जरलैण्ड के थे किन्तु सन् 1892 में अमेरिका आकर वहीं पर बस गये तथा यहाँ पर इन्होंने मनोरोगों के क्षेत्र में अत्यन्त उल्लेखनीय कार्य किये। असामान्य के सन्दर्भ में मेयर द्वारा प्रतिपादित विचारधारा को ‘‘मनोजैविक दृष्टिकोण’’ के नाम से जाना जाता है। मेयर का मत था कि मनोरोगों का कारण केवल दैहिक ही नहीं वरन मानसिक भी होता है। इसलिये उपचार भी दोनों आधारों पर किया जना चाहिये।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मनोरोगों के संबंध में मेयर ने एक मिश्रित विचारधारा को जन्म दिया, जो ज्यादा उपयुक्त प्रतीत होती है। इसके साथ-साथ मेयर ने मनोरोगों की उत्पत्ति में सामाजिक कारकों की भूिमा को भी स्वीकार किया। इसलिये रेनी ने इनके सिद्धान्त का नाम ‘‘मनोजैविक सामाजिक सिद्धान्त’’ भी रखा है। मेयर की मान्यता थी मनोरोगों की सफलतापूर्वक चिकित्सा तभी संभव है जब उसके दैहिक पदार्थों जैसे कि हार्मोन्स, विटामिन्स एवं शरीर के विभिन्न अंगों की क्रियाविधि को संतुलित एवं नियंत्रित करने के साथ-साथ रोगी के घर के वातावरण के अन्त:पारस्परिक संबंधों में भी सुधार किया जाये। वास्तव में देखा जाये तो मेयर के अनुसार मनोरोगियों का उपचार रोगी तथा चिकित्सक के मध्य एक प्रकार का पारस्परिक प्रशिक्षण हैं और इसकी सफलता इनके परस्पर सौहादर््रपूर्ण संबंधों पर निर्भर करती है। मनोरोगों के उपचार हेतु आज भी इस प्रकार की विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है।
इस प्रकार हम सकह सकते हैं कि मेयर के अनुसार मनोरोगों के अध्ययन हेतु एक समग्र दृष्टिकोण का होना अत्यावश्यक है।
इस प्रकार हम सकह सकते हैं कि मेयर के अनुसार मनोरोगों के अध्ययन हेतु एक समग्र दृष्टिकोण का होना अत्यावश्यक है।