
कुपोषण के लक्षण
1. वजन का कम या अधिक होना - आहार की मात्रा आवश्यकता से कम होने पर बालक का वजन कम हो जाता है तथा आवश्यकता से अधिक होने पर वजन अधिक हो जाता है। बालक मोटा दिखाई देता है।2. शारीरिक मानसिक वृद्धि में कमी - भोजन में प्रोटीन की कमी हाने से शारीरिक व मानसिक वृद्धि में कमी दिखती है। जिससे बालक की लंबाई कम हो जाती है। वह मंद बुद्धि वाला हो सकता है।
3. त्वचा में परिवर्तन - प्रोटीन और ऊर्जा दोनों कम होने से त्वचा खुरदुरी तथा धब्बेदार व झुर्रीदार हो जाती है, क्योंकि त्वचा को रंग एमीनो एसिड द्वारा प्रदान किया जाता है और एमीनों अम्ल प्रोटीन से प्राप्त होते हैं।
4. बालो में परिवर्तन - प्रोटीन की कमी बालों का निर्माण किरैटीन प्रोटीन द्वारा होता है। प्रोटीन की कमी के कारण बाल भूरे व रूखे हो सकते हैं।
5. भावहीन चेहरा - प्रोटीन की कमी के कारण बालक के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नहीं देखे जा सकते।
6. रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी - विटामिन, खनिज लवण तथा प्रोटीन की कमी से रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। जिससे वह आसानी से संक्रामक रोगों का शिकार हो जाता है।
7. दृष्टि दोष उत्पन्न होना - विटामिन 'A' की कमी होने के कारण रतौंधी नामक रोग देखा गया है।
8. पाचन शक्ति कमजोर होना - प्रोटीन की कमी के कारण एन्जाइम और हार्मोन का निर्माण कम होने लगता है, जिससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है।
कुपोषण के कारण
आजादी के 60 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी हम देश के प्रत्येक नागरिक को पेट पर भोजन उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। 2007 में किये गये सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं। हमारे यहाँ अभी भी 20-23 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। जिनमें से 20 प्रतिशत निम्नवर्ग से है। 2-3 प्रतिशत केवल धनी वर्ग से है। वर्तमान में कुपोषण के कारण हैं2. खाद्य उत्पादन में कमी - जैसे जनसंख्या वृद्धि का ग्राफ बढ़ रहा है। उस अनुपात में खाद्य
उत्पादन नहीं हो रहा है। खेत उद्योग और मकानों में तबदील होते जा रहे
हैं। जिससे खेती योग्य भूमि दिन-प्रतिदिन कम हो रही है। खाद्य पदार्थ की
मात्रा कम होने से बाजार मूल्य बढ़ जाता है। जिससे वह गरीब व्यक्ति की
पहुँच से बाहर रहता है। वे बेचारे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
3. अस्वच्छ वातावरण - हमारे देश की 1/4 जनता झुग्गी झोपड़ियों में रहती है। जहाँ न तो
पानी निकास के लिये पक्की नालियाँ हैं और न ही सुलभ शौचालय है। न
ही संवाहन का कोई साधन है। बस्तियों में कचरे का निस्तारण होता है।
परिवारों में सदस्यों की संख्या भी अधिक होती है। जिससे बच्चे संक्रामक
रोग से पीड़ित हो जाते हैं।
दस्त का रोग इनमें सामान्यत: पाया जाता है। जिससे पोषक तत्वों
का अवशोषण नहीं हो पाता और वे कुपोषित हो जाते हैं।
4. अशिक्षा - माता-पिता अशिक्षित होने के
कारण शिक्षा के महत्व को नहीं समझते। वे स्वस्थ वातावरण के महत्व को
नहीं समझते। अशिक्षित होने के कारण सरकार द्वारा दी जाने वाली
सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाते। अशिक्षित होने से सही गुणवत्ता वाली
वस्तुओं (एगमार्क, आई.एस.आई) का उपयोग नहीं कर पाते।
5. आहार एवं पोषण की जानकारी न होना - गरीब अशिक्षित व्यक्ति भोजन से तात्पर्य केवल पेट भरने से लेते हैं।
वे इस बात को नहीं जानते कि अच्छा भोजन हमारे शरीर की सुरक्षा भी
करता है। वे गलत भोजन बनाने की विधियों द्वारा पोषक तत्वों को नष्ट कर
देते हैं। जैसे भाजियों को काटकर धोना, चावल का माड़ निकालकर उपयोग
करना, अधिक पालिश वाले सफेद चावल को अच्छा मानना। प्रेशर कुकर का
उपयोग न करना आदि। जिससे उपलब्ध भोज्य पदाथोर्ं में से पूरे पोषक तत्व
ग्रहण नहीं कर पाते और कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।
6. पोषण सम्बन्धी प्रशिक्षण का अभाव - वर्तमान समय में अनेक संस्थाओं जैसे CARE, ICDS के द्वारा
पोषण सम्बन्धी प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं, किन्तु यह प्रयास बहुत कम है।
जिससे पोषण के महत्व से, अच्छा पोषण कैसे प्राप्त करें, कम आय में कैसे
स्वस्थ रहें आदि का ज्ञान नहीं हो पाता है और वे कुपोषण के शिकार होते
रहते हैं। उन्हें यह भी बताया जा सकता है। भोजन आयु, लिंग जलवायु,
व्यवसाय के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं।
6. सामाजिक कुरीतियाँ एवं अंधविश्वास - हमारे यहाँ अनेक अंधविश्वास अपनी जड़ें मजबूत बनाकर रखे हैं।
जैसे गर्भवती स्त्री को पपीता नहीं देना प्रसव के पश्चात 6-7 दिन तक
आहार न देना, बच्चों को केला देने से सर्दी का प्रभाव, सर्दियों में संतरा,
अमरूद आदि फल न देना, स्तनपान कराने वाली स्त्री को पत्तेदार सब्जियाँ
तथा लौकी, तोरई आदि न देना (क्योंकि बच्चे को हरे दस्त होते हैं) आदि
अनेक ऐसी गलत धारणायें परिवारों में पायी जाती है। जो पूर्ण पोषक तत्व
नहीं लेने देती। कई परिवारों में गर्भवती स्त्री को अधिक पौष्टिक भोजन
इसलिये नहीं दिया जाता कि बालक यदि अधिक स्वस्थ होगा तो प्रसव में
माता को परेशानी होगी। कई परिवारों में मान्यता है कि स्त्री सबसे अन्त मे
खाना खायेगी जिससे बचे हुये खाने से ही संतोष करना पड़ता है। जिससे
गर्भस्थ शिशु कमजोर हो जाता है। अत: अंधविश्वास और परम्परायें भी
कुपोषण को बढ़ाने में सहायक होती है।
7. भोज्य पदार्थों में मिलावट - वर्तमान समय में बेईमानी और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। व्यक्ति
धन व्यय करके भी शुद्ध खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं कर पाता है। दूध में पानी
मिलाना, मसालों में मिलावट, सब्जियों पर रंगो का प्रयोग, कीटनाशक
दवाईयों का प्रयोग, अनाजों में रेत, कंकड़, सड़े अनाज का मिलाना आदि
भिन्न-भिन्न स्तर पर भिन्न-भिन्न तरीकों से मिलावट की जा रही है।
जिससे संतुलित भोजन लेने पर भी पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं।
गरीब तो बेचारा सस्ती वस्तुऐं खरीदना चाहता है। इसलिये उस पर अधिक
प्रभाव होता है। वे पेकबन्द वस्तुऐं मँहगी होने से उन्हें नहीं खरीद पाते। शिशु
को पानी युक्त दुध देने से वह प्रोटीन कैलोरी कुपोषण का शिकार हो जाता
है।
8. स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव - हमारे राज्य के अनेक पिछड़े इलाके ऐसे हैं। जहाँ या तो स्वास्थ केन्द्र
है ही नहीं और यदि है तो वहाँ कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं होता। आदिवासी
क्षेत्र तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कोई डॉक्टर नहीं जाना चाहता। जिससे
झोलाछाप डॉक्टर इलाज कर रहे है। इन क्षेत्रों में कुपोषण के समस्या सबसे
अधिक है। दस्त और वमन यहाँ कुपोषण का सबसे बड़ा कारण है।
कुपोषण के प्रभाव
- गर्भावस्था के दौरान आयरन की अत्यधिक कमी से (अनीमिया) नवजात शिशुओं के मानसिक विकास में कभी ठीक न हो सकने वाली क्षति की संभावना बढ़ जाती है।
- गर्भावस्था के दौरान विटामिन-ए की कमी से नवजात शिशु में विटामिन-ए के भंड़ार में कमी तथा इसकी कमी से ग्रस्त माताओं के दूघ में विटामिन-ए की मात्रा में भी कमी होती है।
- गर्भावस्था के दौरान आयोडीन की कमी से कम वजन के बच्चे का जन्म, मृत बच्चे का जन्म तथा बार-बार गर्भपात होना, गर्भ में पल रहे बच्चे में शारीरिक व मानसिक विकार, कम बुद्धि ( आई-क्यू ) वाले बच्चे का जन्म होने की संभावना बढ़ सकती है।
- अजन्मे शिशुओं में कुपोषण के कारण दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जैसे दिल की बीमारी एवं मधुमेह इत्यादि।
- कुपोषण के कारण संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है, जैसे बच्चे के अन्दर प्रोत्साहन एवं उत्सुक्ता की कमी, खेल-कूद एवं अन्य क्रियाओं में भाग न लेना, आस-पास के लोगों एवं वातावरण से दूर रहना
- 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में कुपोषण से मृत्यु होने की संभावना अधिक होती है। अधिकतर आम बीमारियों से मृत्यु होने का खतरा कम कुपोषित बच्चों में दुगुना होता है, मध्यम कुपोषित बच्चों में तिगुना होता है एवं अत्यधिक कुपोषित बच्चों में दस गुना होता है
कुपोषण से बचने के उपाय
1. पोषण शिक्षा- कई बार देखने में आता है, कि उच्च वर्ग के बच्चे भी कुपोषण के शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पोषण सम्बन्धी जानकारी नहीं होती। निम्न वर्ग को भी पोषण सम्बन्धी जानकारी न होने से (जैसे अंकुरण करना, दो अनाजों और दालों का मिश्रण) भी कुपोषण देखा जाता है। इसलिए पोषण सम्बन्धी शिक्षा देना सभी महिलाओं के लिए अत्यनत आवश्यक है। उन्हें यह भी बताया जाये कोई भोज्य पदार्थ ठण्डा या गर्म नहीं होता। सभी में कोई न कोई पोषक तत्व पाया जाता है।2. स्वस्थ वातावरण- स्वस्थ वातावरण होने से संक्रामक बीमारियों के प्रकोप से बचाव होगा। जिससे कुपोषण की स्थिति निर्मित नहीं होगी।
3. नियमित भोजन- नियमित भोजन रहने से भोजन का सही पाचन होगा जिससे व्यक्ति को सही पोषण मिलेगा।
4. टीकाकरण- संक्रामक बीमारियों से बचने के लिये समय-समय पर बच्चों का टीकाकरण करवाना चाहिए। जिससे कुपोषण की स्थिति निर्मित नहीं होगी। संक्रामक रोग होने पर बालक पर्याप्त आहार नहीं ले पाता।
5. सन्तुलित भोजन प्रदान करना- व्यक्ति की आयु, लिंग, व्यवसाय तथा मौसम के अनुसार आहार देने पर कुपोषण की स्थिति से बचा जा सकता है।
6. उचित पाक विधि- भोजन पकाने का सही तरीका जैसे चावल को मॉड़ सहित प्रयोग में लाना, सब्जियों को धोकर काटना, सब्जियों को ढँककर पकाना आदि का प्रयोग करके हम पोषक तत्वों को नष्ट होने से बचाकर सही पोषण प्रदान कर सकते हैं।
7. पर्याप्त विश्राम- कभी-कभी शारीरिक क्षमता से अधिक कार्य करने से माँसपोशियाँ क्षय होने लगती है, अत: कुपोषण से बचने के लिए उचित भोजन के साथ-साथ पर्याप्त विश्राम भी करना चाहिए।
8. सही उम्र में विवाह- सही उम्र में विवाह होने पर माँ का गर्भाशय पूर्ण विकसित होने पर वह स्वस्थ बच्चे को जन्म देगी तथा बच्चे की देखभाल भी सही ढंग से कर सकेगी।
9. गर्भावस्था में सही देखभाल- इस समय सही देखभाल होने पर माँ स्वस्थ होगी और वह स्वस्थ बच्चे को जन्म देगी। जिससे सुपोषित बालक जन्म लेगा।
👉 अच्छे पोषण के लिए ध्यान रखने योग्य बातें
- खमीरीकृत भोज्य पदार्थों का उपयोग करना।
- अंकुरित अनाजों व दालों को मिलाकर प्रयोग करना।
- अनाज और दालों को मिलाकर प्रयोग करना।
- चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग करना।
- सुलभ सस्ते परन्तु पोषक भोज्य पदार्थों का उपयोग करना।
- पाक विधियों द्वारा पौष्टिकता को बचाना।
- भोजन सम्बन्धी स्वच्छता को ध्यान रखना।
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