मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। विधान सभा में बहुमत
प्राप्त दल के नेता को राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है। मुख्यमंत्री
की सिफारिश पर बाकी मंत्रियों की नियुक्ति की जाती है। मंत्रिपरिषद् में शामिल
किए जाने वाले मंत्रियों के लिए राज्य विधायिका के किसी एक सदन का सदस्य
होना आवश्यक है। को व्यक्ति जो राज्य विधायिका का सदस्य नहीं है उसे मंत्री
नियुक्ति किया जा सकता है परन्तु उसे छह महीने के अंदर राज्य विधायिका का
सदस्य निर्वाचित होना अनिवार्य है अन्यथा उसका मंत्री पद समाप्त हो जाता है।
मंत्रियों में विभागों का विभाजन, मुंख्यमंत्री की सलाह से राज्य पाल द्वारा किया
जाता है।
मुख्यमंत्री के कार्य और शक्तियां
मुख्यमंत्री राज्य की मंत्रिपरिषद् का मुखिया होता है। मुख्यमंत्री की संवैधानिक स्थिति लगभग प्रधानमंत्री जैसी होती है। राज्य के प्रशासन में मुख्यमंत्री की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री के कार्य और शक्तियां की चर्चा हम इस प्रकार कर सकते है :- मुख्यमंत्री राज्य सरकार का वास्तविक मुखिया है। उसी की सिफारिश पर मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। राज्यपाल मंत्रियों के विभागों का विभाजन भी मुख्यमंत्री की सलाह पर ही करता है।
- मुख्यमंत्री मंत्रीमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है। वह विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय बनाता है तथा मंत्रिपरिषद् का मार्ग दर्शन करता है।
- राज्य सरकार के काननू तथा नीतियां बनाने में मुख्यमंत्री की भूमिका प्रमुख होती है। उसकी स्वीकश्ति से ही को मंत्री सदन में विधेयक प्रस्वावित करता है। वह विधान सभा के अंदर तथा बाहर, दोनों जगह सरकार की नीतियों का मुख्य प्रवक्ता है।
- संविधान के अनुसार प्रशासन, राजकीय मामले तथा प्रस्तावित विधेयकों के बारे में राज्यपाल को जानकारी देने का दायित्व मुख्यमंत्री का है।
- जब को राज्यपाल चाहता है तो मुख्यमंत्री को उपरोक्त विषयों के बारे राज्यपाल को जानकारी देनी होती हैं।
- ऐसा को विषय या मामला जिस पर किसी मंत्री ने निर्णय लिया हो परन्तु उस पर मंत्रिपरिषद् ने विचार नहीं किया हो, राज्यपाल की इच्छा पर मुख्यमंत्री द्वारा मंत्रिपरिषद् मे विचाराथर्ं रखा जाता है।
- राज्यपाल और मंत्रिमण्डल के बीच संचार का एक मा़त्र सेतु मुख्यमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद् द्वारा लिए गए सभी निर्णयों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार राज्यपाल को है।
मुख्यमंत्री की स्थिति
मुख्यमंत्री की शक्तियों व कार्यो को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि उसको राज्य के प्रशासन में बहुत महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त है। वह मंत्रिपरिषद का निमार्ण करता है तथा अपनी इच्छानुसार जिस मंत्री को चाहे, पद से हटा सकता है। वह राज्यपाल का मुख्य सलाहकार है। वह राज्यपाल और मंत्रिमण्डल के बीच कड़ी का काम करता है। मुख्यमंत्री के त्यागपत्र देने का अर्थ समस्त मंत्रिपरिषद का त्यागपत्र होता है। वह राज्य विधानमण्डल का भी नेता है तथा विधानसभा को जब चाहें भंग करवा सकता है। परन्तु इतना होते हुए भी उसकी वास्तविक स्थिति काफी हद तक परिस्थितियों तथा उसके व्यक्तित्व पर निर्भर करती है। राज्य विधानसभा में यदि उसके दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है तो उसकी स्थिति दृढ़ होती है क्योंकि वह कोई भी बिल पास करवा सकता है। इसके विपरीत यदि उसने अन्य दलों के साथ मिलकर अर्थात संयुक्त मोर्चा बनाकर एवं मिली-जुली सरकार (Coalition Government) की स्थापना की है, तो उसकी स्थिति कमजोर होगी और उसे अन्य मंत्रियों (विशेष रूप से अनय दलों के मंत्रियों) को भी साथ लेकर चलना पड़ेगा। उसकी स्थिति असके अपने दल के सदस्यों द्वारा किए जाने वाले सहयोग पर भी निर्भर करती है।मुख्यमंत्री की स्थिति उसके दल के हाई कमांड (High Command) तथा प्रधानमंत्री
के समर्थन पर भी निर्भर करती है। अन्त में मुख्यमंत्री की स्थिति उसके अपने व्यक्तित्व तथा उस राज्य के व्यक्तित्व पर भी
निर्भर करती है। यदि राज्यपाल का व्यक्तित्व कमजोर है तो मुख्यमंत्री की स्थिति अधिक मजबूत होगी। परन्तु यदि राज्यपाल
महान व्यक्तित्व का स्वामी है, तो वह मुख्यमंत्री पर अपना प्रभाव डाल सकता है और कई परिस्थितियों में उसे कठिनाई में
डाल सकता है। इस प्रकार यद्यपि मुख्यमंत्री को महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हैं, परन्तु उसकी वास्तविक स्थिति मुख्यत: राज्य
के विरोधी दल, राज्य विधानमण्डल, राज्यपाल तथा उसके दल के हई धमांड आदि से सम्बन्धों परिस्थितियों तथा उसके
व्यक्तित्व पर निर्भर करती है तथा इस स्थिति में परिस्थितियों और उसके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
संविधान के अनुसार राज्य का प्रशासन सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्यपाल के सहयोग तथा सहायता के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद की व्यवस्था होगी ताकि वह अपने दायित्व का वहन कर सके, सिवाय उस स्थिति के जब संविधान के अनुसार उसे स्वविवेक के आधार पर काम करना होता है। जब मुख्यमंत्री विधान सभा में विश्वास मत प्राप्त कर लेता है। जब राज्य पाल का विवेकाधिकार कम हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में मुख्यमंत्री राज्य का वास्तविक प्रमुख होता है। जबकि राज्यपाल केवल संवैधानिक प्रमुख रह जाता होता है।
इस प्रकार हम देखते है कि राज्यपाल की दोहरी भूमिका है। राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते वह मंत्रिपरिषद के परामर्श से कार्य करता है केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप मे भी वह कार्य करता है। सामान्यता राज्यपाल राज्य का नाममात्र का प्रमुख है परन्तु राष्ट्रपति शासन के समय वह केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि बन जाता है और राज्य प्रशासन का भार संभाल लेता है । संवैधानिक भावना को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल को एक प्रकार से केन्द्रीय सरकार की आंखें तथा कान भी कहा जा सकता है। चूकि उसकी नियुक्ति, पदच्युति केन्द्र सरकार द्वारा होता है। अत: वह केन्द्र सरकार तथा सत्ताधारी दल का आज्ञाकारी बना रहता है । एक बात ताे स्पष्ट है कि राज्यपाल का कार्य केवल एक अम्पायर जैसा ही नही है जो केवल यह देखे कि खेल संवैधानिक प्रावधानों तथा उसमें निहित भावनाओं के अनुसार खेला जा रहा है अथवा नहीं ।
राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के बीच संबंध
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख है । राज्य के सभी कार्य पालिका संबंधी कार्य उसी के नाम से होते हैं राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुि क्त करता है और फिर उसकी सिफारिश पर मंत्रियों की नियुक्ति करता है । राज्य प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी राज्यपाल की है। यह देखना भी उसी का दायित्व है कि राज्य प्रशासन संविधान के अनुसार चल रहा है कि नहीं । यदि वह यह अनुभव करें कि राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल हो चुका है अथवा प्रशासन संविधान के अनुसार बनाए नियमों का पालन नहीं कर रहा है तो वह केन्द्र सरकार को राज्य में संकट काल की घोषणा करने की सिफारिश कर सकता है। वह अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का परामर्श दे सकता है यदि राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाता है। तो वह अनुच्छेद 356 के अंतर्गत आपात काल की घोषणा कर देता है। जिसे सामान्यता राष्ट्रपति शासन कहते है। घोषणा के पश्चात, राज्य प्रशासन पर केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है और राज्यपाल केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। मंत्रिपरिषद को भंग कर दिया जाता है और विधान सभा या तो भंग अथवा स्थापित कर दी जाती है।संविधान के अनुसार राज्य का प्रशासन सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्यपाल के सहयोग तथा सहायता के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद की व्यवस्था होगी ताकि वह अपने दायित्व का वहन कर सके, सिवाय उस स्थिति के जब संविधान के अनुसार उसे स्वविवेक के आधार पर काम करना होता है। जब मुख्यमंत्री विधान सभा में विश्वास मत प्राप्त कर लेता है। जब राज्य पाल का विवेकाधिकार कम हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में मुख्यमंत्री राज्य का वास्तविक प्रमुख होता है। जबकि राज्यपाल केवल संवैधानिक प्रमुख रह जाता होता है।
इस प्रकार हम देखते है कि राज्यपाल की दोहरी भूमिका है। राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते वह मंत्रिपरिषद के परामर्श से कार्य करता है केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप मे भी वह कार्य करता है। सामान्यता राज्यपाल राज्य का नाममात्र का प्रमुख है परन्तु राष्ट्रपति शासन के समय वह केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि बन जाता है और राज्य प्रशासन का भार संभाल लेता है । संवैधानिक भावना को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल को एक प्रकार से केन्द्रीय सरकार की आंखें तथा कान भी कहा जा सकता है। चूकि उसकी नियुक्ति, पदच्युति केन्द्र सरकार द्वारा होता है। अत: वह केन्द्र सरकार तथा सत्ताधारी दल का आज्ञाकारी बना रहता है । एक बात ताे स्पष्ट है कि राज्यपाल का कार्य केवल एक अम्पायर जैसा ही नही है जो केवल यह देखे कि खेल संवैधानिक प्रावधानों तथा उसमें निहित भावनाओं के अनुसार खेला जा रहा है अथवा नहीं ।