राजनीति विज्ञान का परंपरागत दृष्टिकोण
’’राजनीति’’ के अंग्रेजी पर्याय 'Politics' शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ’’पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है - नगर राज्य। अर्थात् नगर राज्य तथा उससे संबंधित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारों एवं समस्याओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है। अरस्तू ने राजनीति शब्द का प्रयोग इन्हीं अर्थाें में किया है। आधुनिक अर्थों में राजनीति शब्द को इन व्यापक अर्थों में प्रयुक्त नहीं किया जाता। आधुनिक समय में इसका सम्बन्ध राज्य, सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के अंतर्गत समाज के विविध संदर्भों व संबंधों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान एवं अध्ययन से है।
परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को चार अर्थों में परिभाषित किया जाता है-- राज्य के अध्ययन के रुप में
- सरकार के अध्ययन के रुप में
- राज्य और सरकार के अध्ययन के रुप् में
- राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रुप में
(1) ब्लंटशली के शब्दों में ‘‘राजनीति शास्त्र वह शास्त्र है जिसका संबंध राज्य से है, जो राज्य की आधारभूत स्थितियों, उसकी प्रकृति तथा विविध स्वरूपों एवं विकास को समझने का प्रयत्न करता है।’’
(2) गैरिस के शब्दों में ‘‘राजनीति शास्त्र राज्य को एक शक्ति संस्था के रुप में मानता है जो राज्य के समस्त संबंधों, उसकी उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य उसके नैतिक महत्त्व, उसकी आर्थिक समस्याओं, उसके वित्तीय पहलू आदि का विवेचन करता है।’’
(3) गार्नर के अनुसार ‘‘राजनीति शास्त्र का आरम्भ और अन्त राज्य के साथ होता है।’’
(4) गैटेल के अनुसार ‘‘राजनीति शास्त्र राज्य के भूत, वर्तमान और भविष्य का, राजनीतिक संगठन तथा राजनीतिक कार्यों का, राजनीतिक संस्थाओं का तथा राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।
2 . सरकार के अध्ययन के रूप में - पाॅलजैनेट, लिकाॅक और सीले जैसे विद्वानों ने राजनीति शास्त्र को सरकार के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है।
(1) पाॅलजैनेट के शब्दों में, ‘‘‘‘राजनीति शास्त्र सामाजिक शास्त्र का वह भााग है जिसमें राज्य के आधार तथा शासन के सिद्धान्तों पर विचार किया जाता है।’’
(2) लीकाॅक के शब्दों में, ‘‘राजनीति शास्त्र सरकार से संबंधित अध्ययन है।’’
(3) सीले के शब्दों में ‘‘राजनीति शास्त्र उसी प्रकार शासन के तŸवों की खोज करता है जैसे सम्पत्ति शास्त्र सम्पत्ति का, जीव शास्त्र जीव का, बीज गणित अंकों का तथा ज्याॅमितीय शास्त्र स्थान और ऊँचाई का करता है।’’
3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रुप में - राज्य और सरकार के अध्ययन के रुप में कुछ विद्वानों का मत हैं कि राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का ही अध्ययन करता है। यह पूर्व दृष्टिकोणों की अपेक्षा अधिक व्यापक है। केवल राज्य और केवल सरकार के अध्ययन पर आधारित परिभाषाँं एकांगी है। राज्य और सरकार दोनों एक दूसरे के पूरक है और घनिष्ठ रुप से अन्तर्सम्बन्धित हैं। इन दोनों का पृथक-पृथक अध्ययन करना न तो सम्भव है और न वांछनीय है।
आर.एन. गिलक्राइस्ट ने कहा है कि राजनीति विज्ञान का राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से सम्बंध होता है।
पाॅल जैनेट के अनुसार राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है।
डिमाॅक के अनुसार राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य तथा उसके यन्त्र सरकार से है।
4 . राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में - लाॅस्की तथा हर्मन हेलर आदि लेखकों ने राजनीति शास्त्र को राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है। व्यक्ति के अध्ययन के बिना राजनीति शास्त्र का अध्ययन अधूरा है, राजनीतिक संस्थायें व्यक्तिगत संबंधों के संदर्भ में कार्य करती हैं। यदि राजनीतिक संस्थायें व्यक्ति के जीवन, विचारों एवं लक्ष्यों को प्रभावित करती हैं, तो व्यक्ति की भावनाएँ, प्रेरणाएँ तथा समाज के रीति रिवाज एवं परम्पराएँ भी राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं।
(1) लाॅस्की के शब्दों में ‘‘राजनीति विज्ञान के अध्ययन का संबंध संगठित राज्यों से संबंधित मनुष्य के जीवन से है।’’
(2) हर्मन हेलर के शब्दों में ‘‘राजनीति शास्त्र के सर्वांगीण स्वरूप का निर्धारण व्यक्ति संबंधी मूलभूत पूर्व मान्यताओं द्वारा होता है।’’
संक्षेप में परम्परावादी विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य सरकार और व्यक्ति का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं। राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि सरकार राज्य प्रदत्त शक्ति का ही प्रयोग करती है, सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है और व्यक्ति राज्य की प्राथमिक इकाई है। अतः परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत राज्य, सरकार एवं व्यक्ति के अन्तः संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी जगत में राजनीति विज्ञान की धारणा मंे एक क्रान्तिकारी परिवर्तन आया जिसका प्रेरणा स्रोत शिकागो विश्वविद्यालय था। जिसके विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को अधिक से अधिक विज्ञान सम्मत बनाने के लिए प्रयत्न किये। चाल्र्स मेरियम के नेतृत्व में मनोविज्ञान, दर्शन, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र एवं मानव शास्त्र जैसे समाज विज्ञानों को निकट लाने का हर संभव प्रयत्न किया गया। परिणामस्वरूप राजनीति विज्ञान में तार्किक प्रत्यक्षवाद, तथ्यात्मकता, व्यवहारवाद तथा समाजशास्त्रीय पद्धतियों का प्रयोग हुआ। आधुनिक राजनीति विज्ञान का दूसरा प्रेरणा स्रोत मनोविज्ञान है। प्रो. रेनसिस लिकर्ट, कुर्त लेविन तथा प्रो. लजार्स फेल्ड के प्रयासों के फलस्वरूप नवीन राजनीति शास्त्र में मनोविज्ञान की शोध तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग होने लगा है।
ऐसा माना जाता है कि 1903 में अमेरिकन पाॅलिटिकल साईंस एसोसियेशन की स्थापना के साथ और उसके द्वारा राजनीतिक संस्थाओं के संबंध में तथ्यों के संग्रह, संयोजन और वर्गीकरण को दी जाने वाली प्रेरणा के परिणामस्वरूप राजनीति विज्ञान ने अपने विकास के आधुनिक युग में प्रवेश किया। द्वितीय महायुद्ध के बाद से लेकर आज तक राजनीति विज्ञान के विकास को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला भाग 1945 से 1970 तक राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में व्यवहारवाद की प्रमुखता का युग है जिसमें राजनीतिक सिद्धान्तों के मूल्यों और मानकों के साथ राजनीति विज्ञान को जोड़ने के परम्परागत तरीके को तिलांजलि दे दी गई। दूसरा युग 1970 से प्रारम्भ होता है जिसमें राजनीतिशास्त्रियों ने व्यवहारवादी राजनीति सिद्धान्त की अपर्याप्तता का आभास कर लिया और कुछ सीमा तक मानकों और मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा के विचार को स्वीकार कर लिया। इन दोनों युगों को व्यवहारवाद और उत्तर व्यवहारवाद के नाम से जाना जाता है। जिसकी व्याख्या अगले अध्याय में की गयी है। राजनीति शास्त्र की नवीन परिभाषाओं के संदर्भ में इसका अध्ययन निम्न रूपों में किया जाता है -
- राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है।
- राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है।
- राजनीति शास्त्र राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है।
- राजनीति शास्त्र निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है।
डेविड ईस्टन और आमण्ड जैसे आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिकों के अनुसार राजनीति विज्ञान सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है। राज्य और शासन शब्दों में जहाँ राजनीतिक जीवन के औपचारिक एवं वैधानिक अध्ययन पर बल दिया जाता है वहीं राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा के अन्तर्गत इस औपचारिक, वैधानिक अध्ययन के मूल में जाकर राजनीतिक यथार्थ का ज्ञान प्राप्त करने की चेष्टा की जाती है।
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान की एक सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन है। अधिकांश विचारक यह मानते हैं कि राजनीति विज्ञान में राजनीतिक समाज के अतिरिक्त राजनीतिक प्रक्रियाओं और उनके परिणामों का भी समुचित अध्ययन करना चाहिए।
आधुनिक राजनीति विज्ञान के क्षेत्र
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में जिस नवीन दृष्टिकोण का उदय हुआ वह अधिक व्यापक और यथार्थवादी है। वैसे तो इसका प्रारम्भ अरस्तू के काल में हो चुका था जब उसने अनेक संविधानों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर विभिन्न प्रकार की सरकारों के कार्यों का वर्णन किया।
चाल्र्स आईनेमन के शब्दों में ‘‘राजनीति शास्त्र का क्षेत्र अब इतना व्यापक हो गया है कि उसमें संस्थात्मक, संगठन, निर्णय निर्माण और क्रियाशीलता की प्रक्रियाओं, नियत्रंण की राजनीति, नीतियों और कार्यों तथा विधिबद्ध प्रशासन के मानवीय वातावरण को भी सम्मिलित किया जाने लगा है।’’आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक हैं, केटलिन, लासवेल, राबर्ट डहल तथा फ्रोमेन आदि। आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषयवस्तुओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए -
(2) विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन - आधुनिक दृष्टिकोण मुख्य रूप से शक्ति, सत्ता, प्रभाव, नियंत्रण तथा निर्णय प्रक्रिया आदि से संबंधित विज्ञान है। अतः इसके अध्ययन क्षेत्र में इन अवधारणाओं का वैज्ञानिक अध्ययन भी सम्मिलित है। आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों का मत है कि ऐसी आधारभूत अवधारणायें हैं जिनकी पृष्ठभूमि में ही राजनीतिक संस्थायें कार्य करती है। वे इन अवधारणाओं के संदर्भ में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करते हैं।
(3) सार्वजनिक समस्याओं के संदर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन - सार्वजनिक समस्याओं का अर्थ उन समस्याओं से है जो सम्पूर्ण समाज अथवा उसके बड़े भाग को प्रभावित करती हैं। इसी कारण इन समस्याओं को राजनीति का अंग माना जाता है और उनका अध्ययन राजनीति विज्ञान का अध्ययन विषय बन जाता है। मेरान व बेनफील्ड के अनुसार ‘‘किसी समस्या को संघर्षपूर्ण बनाने वाली अथवा उसका समाधान खोजने वाली सभी गतिविधियाँ राजनीति हैं।’’ इस प्रकार आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक महत्व की सार्वजनिक समस्याओं पर पाई जाने वाली संघर्ष एवं सहमति की प्रवृत्ति का अध्ययन राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान के अध्ययन के क्षेत्र के बारे में आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थकों में मतभेद है किन्तु वे सभी मानते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र यथार्थवादी होना चाहिए तथा इसके अध्ययन में अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण एवं वैज्ञानिक उपागमों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
👉 अध्ययन क्षेत्र के विषय में परम्परागत व आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र संबंधी परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोणों के अन्तर को निम्नलिखित रूप में प्रकट किया जा सकता है -
(2) स्वरूप में अन्तर - परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान में राज्य, सरकार एवं राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यों का तथा व्यक्ति व राज्य के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन भी वैधानिक पद्धति से किया जाना चाहिए। आधुनिक दृष्टिकोण का मत है कि राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किया जाना चाहिए और समस्त राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन भी व्यवहारवादी दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।
(3) विषय वस्तु में अन्तर - परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को पूर्ण विज्ञान मानते हुए राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु का अध्ययन मुख्यतः राजनीतिक दृष्टि से करना चाहता है और अन्य सामाजिक विज्ञानों की मदद लेना आवश्यक और उचित नहीं मानता। आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में मुख्यतः मानव के राजनीतिक व्यवहार को सम्मिलित करता है। किन्तु उसका मत है कि मानव के राजनीतिक व्यवहार को अनेक गैर राजनैतिक भावनायें व शक्तियाँ भी प्रभावित करती है, जिनका संबंध मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञानों से है। अतः मानव के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन के लिए अन्य सामाजिक विज्ञानों की भी मदद ली जानी चाहिए। इस प्रकार परम्परागत दृष्टिकोण ‘एक अनुशासनात्मक दृष्टिकोण’ है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण ‘अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण’ है।
(4) औपचारिक एवं अनौपचारिक अध्ययन ‘ परम्परागत दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन मुख्यतः वैधानिक एवं राजनैतिक दृष्टि से करता है जो कि औपचारिक अध्ययन कहा जाता है किन्तु आधुनिक दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन उन प्रक्रियाओं एवं प्रभावों के प्रसंग में करता है जो इन राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती है और जो अपनी प्रकृति से गैर राजनीतिक भी हो सकती हैं। इस प्रकार आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान का अनौपचारिक अध्ययन करता है।
(5) अध्ययन पद्धति में अन्तर - परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए प्रमुख रूप से ऐतिहासिक, दार्शनिक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग करता है। अतः उसका अध्ययन आदर्शवादी एवं वस्तुनिष्ठ हो जाता है जो कि उसकी अध्ययन पद्धति को अवैज्ञानिक बना देते हैं। आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए समाज विज्ञानों की वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करता है जैसे-सांख्यकीय, गणितीय, सर्वेक्षणात्मक पद्धतियाँ आदि। यह पद्धतियाँ यथार्थवादी हैं जो कि अध्ययन के लिए यथार्थवादी मूल्य निरपेक्ष एवं वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण का प्रयोग करती हैं। अतः आधुनिक दृष्टिकोण को वैज्ञानिक पद्धति वाला माना जाता है।
राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र
परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र संबंधी पक्ष को यूनेस्को के एक राजनैतिक सम्मेलन द्वारा भली भाँति प्रस्तुत किया गया है। इस सम्मेलन के अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में निम्नलिखित सामग्री को स्थान दिया जाना चाहिए -- राजनीति के सिद्धान्त - अतीत एवं वर्तमान के राजनीतिक सिद्धान्तों एवं विचारों का अध्ययन।
- राजनीतिक संस्थायें - संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक एवं स्थानीय शासन का तुलनात्मक अध्ययन।
- राजनीतिक दल, समूह एवं लोकमत - राजनीतिक दल एवं समूह (दबाव समूह आदि) का राजनीतिक व्यवहार एवं लोकमत तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन।
- अन्तर्राष्ट्रीय संबंध - अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठत तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रशासन का अध्ययन। विभिन्न परम्परागत राजनीतिशास्त्रियों तथा यूनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परम्परागत राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषय वस्तु को सम्मिलित किया जा सकता है -
(1) मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन
(2) राज्य का अध्ययन -
राज्य के अतीत के अध्ययन द्वारा राजनीतिक संस्थाओं के प्रारम्भिक स्वरूपों तथा उनके विकास के विभिन्न चरणों को समझा जा सकता है। राज्य के वर्तमान के अध्ययन द्वारा उन प्रक्रियाओं को समझा जा सकता है जो व्यक्ति और सामाजिक मूल्यों जैसे शान्ति व्यवस्था, सुरक्षा, सुख आदि के मार्ग में बाधा डालती हंै, इनके ज्ञान से वर्तमान चुनौतियों को समझा जा सकता है। राज्य के भविष्य के अध्ययन से तात्पर्य यह है कि भूत और वर्तमान के अध्ययन के आधार पर भविष्य की राजनीतिक संस्थाओं के स्वरूप एवं संगठन को इस प्रकार निर्धारित किया जाये कि वे व्यक्ति और समाज के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें।
(3) सरकार का अध्ययन
(4) स्थानीय एवं राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन
(5) राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन
(6) अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष का अध्ययन
(7) राजनीतिक दलों व दबाव समूहों का अध्ययन
(8) राजनय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विधि का अध्ययन
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। इसके क्षेत्र में राज्य एवं सरकार के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य का अध्ययन किया जाता है। इसमें राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं, राज्य और व्यक्ति के सम्बन्धों, अन्तर्राष्ट्रीय विधि तथा राजनय आदि का अध्ययन किया जाता है। मानव एक परिवर्तनशील प्राणी है। अतः राजनीति शास्त्र को समयानुकूल बनाने के लिए परिवर्तन, चुनौतियों एवं समस्याओं का भी अध्ययन करना पड़ता है।
राजनीति विज्ञान तथा राजनीति में अंतर
अनेकों राजनीतिक वैज्ञानिकों के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन के अंतर्गत राज्य के सिद्धांत, संप्रभुता, शक्ति की अवधारणा, सरकारों का स्वरूप तथा कार्यप्रणाली, कानूनों के निर्माण तथा लागू करने की प्रक्रिया, चुनाव, राजनीतिक दल, नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य, पुलिस की कार्यप्रणाली तथा राज्य एवं सरकार की कल्याणकारी गतिविधियाँ भी समाहित होती हैं। राजनीति का एक दूसरा पहलू भी है जिसे समझने की जरूरत है। कई बार राजनीति का अर्थ प्रायोगिक राजनीति से लगाया जाता है। राजनीति का प्रयोग राजनीति के अध्ययन से भिन्न है। व्यावहारिक राजनीति के अंतर्गत सरकार का गठन, सरकार की कार्यप्रणाली, प्रशासन, कानून एवं विधायी कार्य आते हैं। इसके अलावा राजनीति के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय राजनीति जिसमें युद्ध एवं शांति, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, आर्थिक व्यवस्था तथा मानव अधिकारों की रक्षा आदि आते हैं।
परंतु हम जानते हैं कि शायद ही ऐसे मानव समूह अथवा समाज हों जो राजनीति से बचे हुए हों और शायद ही ऐसे व्यक्ति हों जो राजनीति के खेल की उलझनों या प्रभावों को न जानते हों। व्यवहारवादी राजनीति के कई सकारात्मक पक्ष भी हैं। आज के कल्याणकारी युग में इसके अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे अस्पृश्यता-निवारण, भूमि-सुधर, बंधुआ मजदूरों की मुक्ति, मानव-श्रम के विक्रय पर प्रतिबंध, बेगार रोकना, न्यूनतम मजदूरी निर्धारण, रोजगार के अवसर प्रदान करने वाले कार्यक्रम, अन्य पिछड़ी जातियों का सशक्तीकरण, आदि। राजनीति, समाज तथा संस्थाओं में होने वाली वास्तविक घटनाओं की प्रक्रिया से संबंधित है जिसे राजनीति विज्ञान एक क्रमबद्ध तरीके से समझने का प्रयास करता है।
परम्परागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान में अन्तर
आधुनिक युग में अध्ययन के लिए सम्पूर्ण राजनीति विज्ञान को दो भागों में बाँटा गया है, परम्परागत राजनीति विज्ञान तथा आधुनिक राजनीति विज्ञान। जब हम राजनीति विज्ञान का अध्ययन परम्परागत मान्यताओं के संदर्भ में करते हैं, तो इसे परम्परागत राजनीति विज्ञान कहा जाता है किन्तु जब हम राजनीति विज्ञान का अध्ययन आधुनिक मान्यताओं के संदर्भ में करते हैं तो इसे आधुनिक राजनीति विज्ञान कहा जाता है। इस सम्पूर्ण राजनीति विज्ञान के अध्ययन की दो दृष्टियाँ हैं, परम्परागत एवं आधुनिक। परम्परागत राजनीति विज्ञान कल्पनात्मक है और इस कारण मानपरक है। आधुनिक राजनीति विज्ञान व्यवहारपरक है और इस नाते वैज्ञानिक है।संक्षेप में परम्परागत राजनीति विज्ञान एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान में मुख्य रूप से निम्नलिखित अंतर हैं -
(1) परिभाषा संबंधी अन्तर: परम्परावादी विचारक राजनीति विज्ञान को राज्य एवं सरकार के अध्ययन का विज्ञान मानते हैं। गार्नर के अनुसार ‘‘राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य से होता है। ’’ इसके विपरीत आधुनिक व्यवहारवादी विचारक राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु राज्य के बजाय मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को मानते हैं। वे राजनीति विज्ञान को शक्ति और सत्ता का विज्ञान मानते हैं।
लासवेल और केपलन के शब्दों में, ‘‘राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को सँवारने तथा मिल बाँट कर प्रयोग करने का अध्ययन है।’’ विलियम राॅक्सन लिखते हैं कि ‘‘राजनीति की मुख्य दिलचस्पी का विषय बहुत ही स्पष्ट है, यह शक्ति प्राप्त करने, उसे बनाये रखने, उसका प्रयोग करने, उससे दूसरों को प्रभावित करने, अथवा दूसरे के प्रभाव को रोकने के संघर्षों पर केन्द्रित रहती है।’’
(2) विषय क्षेत्र संबंधी अन्तर - परम्परावादी तथा आधुनिक राजनीति विज्ञान के क्षेत्रों के संबंध में भी अन्तर है। परम्परावादी राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का, शासन के अंग, शासन के रूप तथा शासन के कार्यों का अध्ययन किया जाता है। परम्परावादी इन सबका संस्थागत अध्ययन करते हैं। दूसरी ओर आधुनिक व्यवहारवादी राजनीतिशास्त्री संस्थाओं का नहीं बल्कि प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं और ऐसे अध्ययन में वे विधायिका या संसद के ढांचे का अध्ययन करने की अपेक्षा इस बात का अध्ययन करना अधिक पसन्द करते हैं कि विधि कौन बनाता है ?विधि निर्माण का निर्णय कौन लेता है तथा विधि निर्माण की वास्तविक प्रक्रिया क्या है ?
(3) प्रकृति के सम्बंध में अन्तर - राजनीति विज्ञान की प्रकृति के संबंध में भी परम्परावादी और आधुनिक राजनीति विज्ञान में भेद है। परम्परावादी राजनीतिक विचारकों में कुछ विचारक ऐसे हैं जो राजनीति विज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखते।
बक्ल का विचार था, ‘‘ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर, वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है।’’ इसके विपरीत आधुनिक राजनीति वैज्ञानिक राजनीति विज्ञान को पूर्ण विज्ञान मानने के पक्ष में हैं। मेरियम ने अपनी रचनाओं में इस बात पर जोर दिया कि राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक तकनीक और प्रविधियों का विकास समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। कैटलिन तथा हेरल्ड लावेल जैसे विद्वान यह सिद्ध करने हेतु प्रयत्नशील रहे हैं कि राजनीति शास्त्र मूलतः एक विज्ञान है और इसका संबंध राजनीतिक संस्थाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण से है।
(4) अध्ययन पद्धतियों के संबंध में अन्तर - परम्परावादी राजनीति शास्त्रियों द्वारा प्रयुक्त अध्ययन पद्धतियाँ एकदम प्राचीन और अपरिष्कृत हैं। उन्होंने दार्शनिक पद्धति, ऐतिहासिक पद्धति तथा तुलनात्मक पद्धति का सहारा लिया है। जबकि आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों ने आधुनिक उपकरणों के माध्यम से राजनीति के अध्ययन पर अधिक बल दिया है। वे मनुष्य के राजनीतिक व्यवहारों तथा उनसे संबंधित आनुभविक सत्यों का विश्लेषण तथा निरूपण करते हैं। आधुनिक राजनीतिशास्त्री संाख्यकीय पद्धति, आनुभविक पद्धति, व्यवस्था विश्लेषण पद्धति तथा अन्तः अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धति के माध्यम से राजनीति को विज्ञान बनाने की ओर प्रयत्नशील हैं।
(5) मूल्यों के संबंध में अन्तर - परम्परावादी राजनीति शास्त्री मूल्यों में आस्था रखते हैं वे आदर्श और नैतिकता में विश्वास करते हैं जबकि आधुनिक अथवा व्यवहारवादी विचारक मूल्य निरपेक्षता का दावा करते हैं। उनके अनुसार राजवैज्ञानिक अपने आपको नैतिक भावनाओं, मूल्यों, आदर्शों तथा पक्षपातों से दूर रखकर वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान करे। एक राजवैज्ञानिक को मूल्य निरपेक्ष एवं तटस्थ रहना चाहिये।
(6) उद्देश्यों के संबंध में अन्तर - परम्परावादियों की यह धारणा है कि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन के मार्ग को प्रशस्त करना है। इसके विपरीत आधुनिक व्यवहारवादी विचारक यह मानते हैं कि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य ज्ञान के लिए ज्ञान प्राप्त करना है। वे प्रविधियों पर अधिक जोर देते हैं। उनके मत में राजनीति वैज्ञानिक को केवल मूक दर्शक ही नहीं बनना है, बल्कि समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रयास करना है।
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