भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य

राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य

राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है जिसमें संसद के दोनेां सदनों के चयनित सदस्य समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार राज्यों में विधान सभा के सदस्यों के द्वारा एकल अंतरणीय मत के द्वारा होता है । राज्यो के बीच परस्पर एकरूपता लाने के लिए तथा सम्पूर्ण रूप से राज्यों और केंद्र के बीच संगतता लाने के लिए प्रत्येक मत को उचित महत्व दिया जाता है । 

राष्ट्रपति को भारत का नागरिक होना आवश्यक है, उनकी आयु 35 वर्ष के कम न हो, और वह लोक सभा के सदस्य के रूप में चुने जाने के योग्य हो । उनके कार्य की अवधि पांच वर्ष की होती है और वह पुनर्निवाचन के लिए पात्र होता है । उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान की धरा 61 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होती है । वह अपने हाथ से उप-राष्ट्रपति को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए संबोधन करते हुए पत्र लिख सकते हैं ।

भारत के राष्ट्रपति के पद लिए योग्यताएं

अनुच्छेद ‘58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह-
  1. वह भारत का नागरिक हो। 
  2. कम से कम 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो । 
  3. वह लोक सभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो। 
  4. वह किसी सरकारी लाभकारी पद पर कार्यरत न हो। 
  5. राष्ट्रपति के पद पर आसीन व्याप्ति संसद का सदस्य या राज्यों में विधायक नहीं हो सकता । 
परन्तु अनुच्छेद 58(2) के अनुसार कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियन्त्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा। 

इसके स्पष्टीकरण में यह कहा गया है कि इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मन्त्री है।

भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल

राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया है। यदि मृत्यु, त्यागपत्र अथवा महाभियागे द्वारा पदच्युति के कारण राष्ट्रपति का पद इस अवधि के भीतर रिक्त हो जाए तो इस स्थिति में नए राष्ट्रपति का चुनाव पुनः 5 वर्ष के लिए ही होगा। राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की तिथि से किसी भी दशा में छः माह पूरे होने से पहले भरा जाना चाहिए। पदावधि समाप्त हो जाने के उपरान्त भी राष्ट्रपति अपने उत्तराधिकारी के पदारूढ़ होने तक पदासीन रहेंगे।

भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य

राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रमुख होता है। केन्द्र सरकार की सभी शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से राष्ट्रपति (प्रधानमंत्री एवं मंत्री परिषद के द्वारा) करता है । भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य है -
  1. कार्यपालिका संबंधी शक्तियां
  2. व्यवस्थापिका संबंधी शक्तियां
  3. वित्तीय संबंधी शक्तियां
  4. न्याय संबंधी शक्तियां
  5. संकट कालीन शक्तियां

1. कार्यपालिका संबंधी शक्तियां

भारत सरकार के समस्त कार्यपालिका संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते है।। शक्तियां निम्न हैं :-

1. नियुक्ति एवं पदच्युति सम्बन्धी शक्तियां- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा उसके सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति, राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के राजदूत ,भारत का महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, योजना आयोग आदि के सदस्यों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति उक्त पदाधिकारियों को विशेष प्रक्रिया का पालन करते हुए पद से हटा भी सकता है। 

2. शासन संचालन सम्बन्धी शक्तियां - शासन के सुचारू रूप से संचालन हेतु राष्ट्रपति, विभिन्न प्रकार के नियम बना सकता है। इसके अतिरिक्त संधीय क्षेत्रों के प्रशासन का दायित्व भी राष्ट्रपति का ही हैं। 

3. वैदेशिक मामलों से सम्बन्धित शक्तियां- राष्ट्रपति राजदूतों की नियुक्ति व विदेशी राजदूतों को मान्यता देते हैं। समस्त अन्तार्राष्ट्रीय संधियॉं व समझौते व वैदेशिक कार्य राष्ट्रपति के नाम किये जातें है। \

4. सेना सम्बन्धी शक्तियां - राष्ट्रपति तीनों सेनाओं ( जल,थल वायु ) का सर्वोच्च सेनापति होता है। तीनों सेनाओं के सेनापतियों की नियुक्ति, यद्धु पा्ररम्भ व बंद करने की घोषणा करता है। 

2. व्यवस्थापिका संबंधी शक्तियां

विधायी या व्यवस्थापिका सम्बन्धी शक्तियां है -

1. संसद संगठन सम्बन्धी शक्तियां- राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों के लिये सदस्यों को मनोनीत करने करने का अधिकार है। लोक सभा के लिये आंग्ल - भारतीय 2 सदस्य, राज्य सभा के लिये 12 सदस्यों को मनोनीत करता है । 

2. संसद के सत्रों से सम्बन्धित शक्तियॉ - संसद के दाने ों सदनों के सत्रों की, किसी भी समय बैठक आमंत्रित कर सकता है। किसी भी एक सदन या संयुक्त अधिवेशन में भाषण दे सकता है, संदेश भेज सकता है। सदन की बैठक स्थगित करा सकता है। एक वर्ष में संसद के दो सत्रों (अधिवेशन) का होना अनिवार्य है। 

3. विधेयकों की स्वीकृति या अस्वीकृति सम्बन्धी शक्तियाँ - संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए बिना कानून नहीं बन सकता तथा कुछ विधेयक ऐसे होते है जिन्हें सदन में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति लेनी पडती है जैसे - वित्त विधेयक या कोई नया राज्य बनाने सम्बन्धी विधेयक।

4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति - जब संसद का सत्र नहीं चल नहीं चल रहा हो और कानून की आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करके कानून की पूर्ति कर सकता हैं। 

3. राष्ट्रपति की वित्तीय संबंधी शक्तियां

  1. बजट प्रस्तुत करने की शक्तियां - प्रत्येक वर्ष के प्रारंभ में ससंद की स्वीकृति हेतु वाषिंर्क बजट राष्ट्रपति की ओर से पहले लोकसभा में और बाद में राज्य सभा में प्रस्तुत किया जाता है । 
  2. कोई भी वित्त विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति लिये बिना लोक सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
  3. आकस्मिकता निधि के नियंत्रण सम्बन्धी शाक्तियॉं- राष्ट्रपति संसद की पूर्व स्वीकृति के बिना इस निधि से धन व्यय की स्वीकृति प्रदान कर सकता है । 
  4. वित्त आयोग की नियुक्ति सम्बन्धी शक्तियां- वित्तीयं मामलों में परामर्श लेने के लिए वित्त आयोग की नियुक्ति करता है । 
  5. संसद द्वारा नियम न बनाये जाने की स्थिति में, राष्ट्रपति भारत की संचित - निधि सें धन निकालनें या जमा करने से सम्बन्धित नियम बना सकता है । 

4. राष्ट्रपति की न्याय संबंधी शक्तियां

किसी अपराध के लिए दण्डित किये गये व्यक्ति को राष्ट्रपति चाहे तो क्षमा दान कर सकता है। किसी दण्ड को कम कर सकता है। उसकी सजा को परिवर्तन कर सकता है-मृत्यु दण्ड को आजीवन कारावास कर सकता है। ऐसा सब विधि मंत्रालय की सलाह पर किया जा सकता है। राष्ट्रपति पर फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। 

5. राष्ट्रपति की संकट कालीन शक्तियां

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को प्राप्त समस्त शक्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं व्यापक शक्ति संकट कालीन शक्तियॉें है । इस शक्ति के आधार पर संकटकाल (आपातकाल) की घोषणा करके देश के संविधान को लगभग एकात्मक स्वस्प प्रदान कर सकता है। निम्न लिखित तीन परिस्थितियों में संकट काल को घोषणा कर सकता है - 

1. वाह्य संकट - युद्ध बाहरी आक्रमण की स्थितियां शंका उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति संकट काल की घोषणा कर सकता है । 

2. आंतरिक संकट -  (i) देश के आंतरिक भाग में सशस्त्र विद्रोह की स्थिति अथवा राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर संकट काल की घोषणा कर सकता है । (ii) राष्ट्र में वित्तीय संकट उत्पन्न हो जाने पर राष्ट्रपति संकट काल की घोषणा कर सकता है। 
44वें संविधान संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति ऐसी संकटकालीन घोषणा केवल मंत्रीमण्डल की लिखित सिफारिश पर ही कर सकता है । ऐसी संकटकालीन घोषणा की पुष्टि संसद के दोनों के द्वारा एक मास के अंदर होना अनिवार्य है, नहीं तो वह घोषणा स्वंय समाप्त हो जाती है । संकटकालीन घोषणा के समय यदि लोकसभा भंग है अथवा उसका अधिवेशन नहीं चल रहा है तो इसकी पुष्टि राज्य सभा द्वारा एक महीने के अंदर होनी होती हैं तथा बाद मे लाके सभा द्वारा अधिवेशन शुरू होने के एक मास के अंदर हो जानी चाहिए। 

संसद द्वारा एक बार पुष्टि हो जाने पर आपातकाल का प्रभाव घोषणा की तिथी से छह महीनें तक रहता है। यदि इसको छह महीने से आगे बढाना है तो संसद द्वारा दूसरा प्रस्ताव पास किया जाना आवश्यक होता है। इस प्रकार आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है। परन्तु स्थिति में सुधार होने पर राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल समाप्त हो सकता है। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार लोकसभा के 10 प्रतिशत या अधिक सदस्य लोकसभा के अधिवेशन की मांग कर सकते हैं तथा उस अधिवेशन में साधारण बहुमत द्वारा आपातकाल को रद्द अथवा समाप्त किया जा सकता है । 

भारत में तीन बार राष्ट्रीय आपात काल की घोषणा की जा चूकी है। पहली 26-10-1962 को चीनी आक्रमण के समय । दसू री 03-12-1977 को भारत - पाक युद्ध के समय। तीसरी 21 मार्च 1975 को की गई । तीसरी घोषणा आंतरिक गडबडी को आधार मान कर की गई जिसको लागू करने का कोई औचित्य नहीं था । 

राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया

अनुच्छेद 56 और 61 के अंतर्गत राष्ट्रपति के विरूद्ध महाभियोग की प्रक्रिया का प्रावधान है। इस संबंध में, संविधान के अंतर्गत यह प्रावधान है कि यदि राष्ट्रपति ‘‘संविधान की अवहेलना’’ करता है तो यह प्रमुख कारण होगा उसके खिलाफ महाभियोग लाने का। महाभियोग की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन में शुरू की जा सकती है लेकिन इसे सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। यदि दूसरा सदन भी दो-तिहाई के बहुमत से इसे पास कर दे तो राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लगाया जाता है तथा उन्हें तुरंत अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है। इस प्रकार राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया काफी जटिल है और संसद इसका दुरूपयोग भी नहीं कर सकती। अभी तक किसी भी राष्ट्रपति के विरूद्ध महाभियोग नहीं लाया गया है।

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