समाचार का अर्थ, परिभाषा, प्रमुख तत्व

समाचार का अर्थ

समाचार को अंग्रेजी में न्यूज (NEWS) कहते हैं। विभिन्न समाचार माध्यमों के जरिए दुनिया भर के समाचार हमारे घरों तक पहुंचते हैं चाहे वह समाचार पत्र हो या टेलीविजन और रेडियो या इंटरनेट या सोशल मीडिया। समाचार संगठनों में काम करने वाले  पत्रकार देश-दुनिया मे घटने वाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित कर हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें ं समाचार के प्रारूप मे ढालकर पेश करते हैं। या यो कहें कि व्यक्ति को, समाज को, देश-दुनिया को प्रभावित करनेवाली हर सूचना समाचार है। यानी कि किसी घटना की रिपोर्ट ही समाचार है।

समाचार का अर्थ 

समाचार को अंग्रेजी में न्यूज कहते हैं। इस शब्द की व्याख्या करने पर दो बातें प्रमुख रूप से उभरती है। पहली बात, न्यूज अंग्रेजी के न्यू शब्द का बहुवचन है। न्यू का अर्थ नया है। इसलिए समाचार की पहली शर्त नयेपन से जुड़ी है। दूसरी बात, न्यूज शब्द के चार शुरुआती अक्षरों एन, ई, डब्ल्यू और एस से संबंधित है। ये चार शुरुआती अक्षर चार दिशाओं का बोध कराते हैं। एन से नार्थ यानी उत्तर, ई से ईस्ट यानी पूरब, डब्ल्यू से वेस्ट यानी पश्चिम और एस से साउथ यानी दक्षिण। कहा जा सकता है कि चारों दिशाओं की घटनाएं, सूचनाएं समाचार हैं।

समाचार की परिभाषा

समाचार को विभिन्न विद्वानों ने अलग - अलग तरह से परिभाषित किया है।

प्रो. विलियम जी ब्लेयर के अनुसार- अनेक व्यक्तियों की अभिरूचि जिन बात में होती है वह समाचार है। सर्वश्रेष्ठ समाचार वह है, जिसमें बहुसंख्यक लोगों की अधिकतम रूचि हो।

जार्ज एच. मैरिस के अनुसार- समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है। बूलस्ले और कैम्पवेल के अनुसार- समाचार किसी वर्तमान विचार, घटना या विवाद का ऐसा विवरण है, जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करे।

जार्ज एच मोरिस मानते हैं कि समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास है; एम चेलापति राव के अनुसार, परिवर्तन की जानकारी देने वाली कोई सूचना समाचार है।

लैदर वुड ने कहा है कि किसी घटना, स्थिति अवस्था अथवा मत का सही सही और समय समय पर प्रस्तुत किया गया विवरण समाचार है। समाचार हैं।

ए. लाइल स्पेंसर के अनुसार- वह सत्य घटना या विचार समाचार है जिसमें बहुसंख्यक पाठकों की रूचि हो।

न्यूयार्क टाइम्स के पूर्व प्रबन्ध सम्पादक के अनुसार- समाचार, जिसे आप अभी आज जान रहे हैं और जिसे आप पहले नहीं जानते थे।

डॉ. नन्दकिशोर के अनुसार- समाचार पत्र का मौलिक कच्चा माल न कागज है, न स्याही- वह है समाचार। फिर चाहे प्रकाशित सामग्री ठोस संवाद के रूप में हो या लेख के रूप में, सबके मूल में वही तत्व रहता है जिसे हम समाचार कहते हैं।

श्री खडिलकर के अनुसार- दुनिया में कहीं भी किसी समय कोई भी छोटी-मोटी घटना या परिवर्तन हो उसका शब्दों में जो वर्णन होगा, उसे समाचार या खबर कहते हैं।

मैंसफील्ड के अनुसार, घटना समाचार नहीं है, बल्कि घटना का विवरण है, जिसे उसके लिए लिखा जाता है, जिन्होंने उसे देखा नहीं है।

एस अग्रवाल के अनुसार, समाचार किसी अनोखी या असाधारण घटना की अविलंब सूचना को कहते हैं, जिसके बारे में लोग प्रायः पहले से कुछ न जानते हों, लेकिन जिसे तुरंत ही जानने की अधिक से अधिक लोगों में रूचि हो।

प्रोफ्रेसर शिल्टन बुश के अनुसार, समाचार सामान्यतः वे उत्तेजक सूचनाएं हैं, जिनसे कोई व्यक्ति संतोष अथवा उत्तेजना प्राप्त करता है।  

समाचार के स्रोत

पत्रकार/संवाददाता की सफलता के लिए आवश्यक है कि उसके सम्पर्क सूत्र विश्वसनीय और उच्चस्तरीय हो जिनके द्वारा प्राप्त सूचना उपयोगी और विश्वसनीय हो। समाचार में प्रयुक्त कुछ ऐसे स्रोत सर्वसुलभ भी होते हैं जैसे जनसभा, रेडियो, टी0वी0 कार्यक्रम, प्रेस कान्फ्रेंस, गोष्ठियाँ आदि। पर रिपोर्टर जब आम लीक से हटकर कोई खबर अपने विश्वसनीय संम्पर्क स्रोत की मदद से सामने रखता है तो उसका प्रभाव विशिष्ट हो जाता है।

ऐसा सम्पर्क स्रोत कहीं भी और कोई भी हो सकता है। 

सरकारी तन्त्र में निजी अथवा सार्वजनिक क्षेत्र में या व्यापार में कभी-कभी मन्त्री या किसी विशिष्ट अतिथि के ड्राइवर या किसी स्थान के चौकीदार आदि से मिली सूचनाएं भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। 

समाचार प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं - 
  1. सरकारी स्रोत (Government sources)
  2. पुलिस विभाग एवं अदालत (Police Department and Court)
  3. व्यक्तिगत स्रोत (Personal source)
  4. अस्पताल (Hospital)
  5. साक्षात्कार (Interview)
1. सरकारी स्रोत (Government sources) - संवाददाता के लिए सूचनाएँ प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन सरकारी स्रोत हैं। राजधानी दिल्ली के अलावा विभिन्न राज्यों की राजधानियाँ और महत्वपूर्ण जिला मुख्यालयों पर सराकरी सूचना विभाग के कार्यालय कार्य करते हैं। इन कार्यालयों से सरकारी गतिविधियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सरकारी विभागों से भी समय-समय पर सूचनाएं और समाचार जारी किए जाते हैं। विभिन्न सरकारी विभागों से भी समय-समय पर सूचनाएं और समाचार जारी किए जाते हैं। 

इन सूचनाओं और आंकड़ों की छानबीन कर पत्रकार एक अलग और जनोपयोगी खबरें बना सकता है। 

2. पुलिस विभाग एवं अदालत (Police Department and Court) - संवाददाताओं के लिए खबरों का सबसे बड़ा भण्डार होता है पुलिस विभाग। किसी भी आपराधिक घटना हत्या अथवा मारपीट के मामले, नशाबंदी और यातायात के उल्लंघन आदि के मामलों की जानकारी पुलिस विभाग के सम्पर्क में रहकर ही मिल सकती है। पुलिस के उच्चाधिकारियों से व्यक्तिगत सम्पर्क बना कर विश्वसनीय जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती है। 

पुलिस थानों में दर्ज मामले चलते-चलते अदालतों में पहुँच जाते हैं। संवाददाता को इन मामलों में गहरी जानकारी प्राप्त करने के लिए अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं। सामान्य रूप से तो अदालतों में कई छोटे-छोटे दीवानी और फौजदारी मुकदमे चलते ही रहते हैं लेकिन ये सभी मुकदमे अखबार की खबर बनने की योग्यता नहीं रखते हैं। 

इनमें से जनसामान्य की अभिरूचि के मामले कौन से हो सकते हैं इसका निर्णय संवाददाता को अपनी चतुराई से करना चाहिए। 

3. व्यक्तिगत स्रोत (Personal source) - व्यक्तिगत सम्पर्क भी समाचार प्राप्त करने का प्रमुख साधन होता है। सांसद, मन्त्री, सचिव और निजी सहायकों से अच्छे सम्बन्ध बनाने वाला संवाददाता कई बार गोपनीय और महत्वपूर्ण समाचार दूसरों से पहले ही ले आता है और लोगों को चौंका देता है। 

4. अस्पताल व अन्य सार्वजनिक स्थान (Hospital) - संवाददाताओं को प्रतिदिन के समाचारों को एकत्रित करने के लिए कुछ खास स्थानों की कवरेज करनी पड़ती है। अस्पताल भी ऐसा ही एक क्षेत्र है। शहर में जितनी भी हत्याएं, दंगे, दुर्घटनाएं या आत्महत्या आदि होती हैं उन सब की जानकारी अस्पताल से मिल सकती है। इसी तरह नगर निगम कार्यालय, आवास विभाग, प्रमुख बाजार, घटना स्थल, स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय, प्रमुख क्षेत्रीय संस्थान आदि इस तरह के अन्य स्थान हैं जहां से नियमित रूप से महत्वपूर्ण समाचार खोजे जा सकते हैं।

5. साक्षात्कार (Interview) - साक्षात्कार समाचार संकलन का ही एक माध्यम है। कभी-कभी भेंटवार्ता से नये समाचार निकल आते हैं। उदाहरणार्थ जब किसी महत्वपूर्ण नेता का साक्षात्कार लिया जाता है और वह अपनी भविष्य की कार्य योजना को बताता है तो ऐसे साक्षात्कार महत्वपूर्ण हो जाते हैं। 

कभी-कभी सम्पर्क स्रोत स्वयं को आगे रखना चाहता है और कई बार सम्पर्क स्रोत मुसीबत में भी पड़ जाता है ऐसे में पत्रकार के लिए उसका ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है। कभी-कभी स्रोत अपनी बात से पलट भी जाता है। इसलिए समाचार की विश्वसनीयता के लिए संवाददाता के पास स्रोत द्वारा कही या बताई गई बात के सबूत जरूर होने चाहिए। जिससे आवश्यकता पड़ने पर समाचार की सत्यता को िसेद्ध किया जा सके। 

समाचार एकत्र करने में विशेषतया खोजी पत्रकारिता के दौरान सरकार/शासन से टकराव की स्थिति बनी रहती है। कोई भी राजनेता अपने जिन कायोर्ं को सही समझता है एक पत्रकार जब उसकी असलियत जनता के समक्ष रख देता है और जनता राजनेता की नीतियों व कायोर्ं की आलोचना करने लगती है और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देती है। तो पत्रकार के लिए ऐसे राजनेता से सीधे टकराव की स्थिति आ जाती है। पत्रकार को ऐसी स्थिति में विवेक से काम करना चाहिए और खबर की सत्यता पर दृढ़ रहकर स्थिति का मुकाबला करना चाहिए। 

प्राय: पत्रकार के लिए अपने सूचना स्रोत को बचाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। कई बार न्यायपालिका और कार्यपालिका ऐसे स्रोत का खुलासा चाहते हैं। लेकिन अपने स्रोतों की सुरक्षा पत्रकारिता के मूल्य में शमिल है इसलिए पत्रकार को स्त्रोत की सुरक्षा का खास ध्यान रखना चाहिए।

समाचार के प्रमुख तत्व

1. सामयिकता- किसी भी समाचार अथवा खबर को एकदम नवीन होने के साथ-साथ सही समय से जनसामान्य तक पहुँचना चाहिए। 

2. स्थानीयता/निकटता- सामान्यतया पाठक वर्ग अपने आस-पास गाँव, कस्बे या देश की खबरों में रूचि रखता है, बजाय इसके कि खबर दूर की हो। साथ ही वह उन खबरों में ज्यादा रूचि लेता है जिसका उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है और जिन खबरों से वह अपना तारतम्य कर सकता है। उदाहरणार्थ- पाठक वर्ग वर्ग को महंगाई का मुद्दा, रुपये के अवमूल्यन अथवा बैंक के राष्ट्रीयकरण की अपेक्षा ज्यादा प्रभावित करता है। 

3. वैशिष्ट्य- विशिष्ट लोगों के साथ जब कुछ घटित होता है तो वह भी समाचार का अहम् हिस्सा बन जाता है। लोग इस तरह की घटनाओं के बारे में अधिक से अधिक जानने को आतुर हो जाते हैं। 

4. विवाद, हिंसा अथवा संघर्ष- जब कभी गली मुहल्लों अथवा विभिन्न सम्प्रदायों में विवाद होता है तो जनसामान्य स्वत: ही इन विवादों से जुड़ जाता है। अत: सभी प्रकार के विवाद, हिंसा या संघर्ष भी खबर बन जाते हैं। 

5. सरकारी एवं राजनैतिक गतिविधियाँ- समय-समय पर सरकारी गजट, कानून, बिल, एक्ट अध्यादेश नियमन आदि जिनसे आम जन प्रभावित होते हैं। अच्छी खबर बनते हैं। क्योंकि इन खबरों का सीधा असर लोगों के जीवन पर होता है और उनके निजी हानि-लाभ भी इससे जुड़े होते हैं। 

6. विकासशील परियोजनाएं एवं मुद्दे- विज्ञान के क्षेत्र में किसी अन्वेषण का समाचार जिनसे किसी समुदाय या समाज के किसी हिस्से की जीवनशैली में बदलाव आता हो अथवा किसी असाध्य रोग की कारगर दवा की खोज का समाचार भी समाचार का महत्वपूर्ण तत्व है। 

7. मानवीय अभिरुचि- ऐसी घटना जो साहस, शौर्य, हास्य, विजय, मनोरंजन, कौतूहल अथवा जिज्ञासा से भरपूर हो एवं ऐसा समाचार जो मानव-हित में हो और अनुकरणीय हो, अच्छा समाचार बन जाता है। पाठक ऐसी घटना अथवा सूचना को कौतूहल से पढ़ते हैं जो अन्य लोगों पर घटित हो रहा हो जैसे- खाप पंचायतों ने एक ही गोत्र में शादी करने पर पति-पत्नी को सजा देने का फैसला किया। 

8. मौसम एवं खेल- चक्रवात, मानसून की पूर्व सूचना एवं खेल आदि भी समाचार के महत्वपूर्ण तत्व हैं।

9. प्रतिक्रियात्मकता- किसी घटना का समाचार के तौर पर आना फिर सिलसिलेवार उसकी ताजगी बनाए रखते हुए समाचार को सामयिक रखना समाचार की विशेषता बनता है। 

समाचार लेखन की शैली

1. विलोम पिरामिड

पिरामिड दरअसल प्राचीन मिस्र के वे स्मारक हैं जो वहाँ के तत्कालीन राजाओं को दफनाने के लिए बनाए जाते थे। इन पिरामिडों की चोटी पतली होती है और ज्यों-ज्यों नीचे आते जाते हैं ये पिरामिड अपना आकार बढ़ाते जाते हैं। यदि हम इस पिरामिड को उल्टा कर दें अर्थात इसकी चोटी नीचे और आधार ऊपर तो यह एक विलोम पिरोमिड टाइप समाचार लिखने की शैली बन जायेगी। 

इस शैली के अन्तर्गत संवाददाता प्रमुख घटना का सारांश पहली पंक्तियों में देगा और शेष विस्तृत जानकारी तए पैराग्राफ से आरम्भ कर नीचे तक देता चला जाएगा। इस शैली के अन्तर्गत पाठक प्रथम दृष्टि में मुख्य घटना का सारांश पहले जान लेता है और बाद में वह पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिया गया ब्यौरा पढ़ता है। अधिकतर घटनाओं के समाचार इसी विलोम पिरामिड प्रणाली के अन्तर्गत दिए जाते हैं। 

विलोम पिरामिड शैली का प्रचलन उस समय शुरू हुआ जब संवाददाताओं को प्रमुख घटनाओं का समाचार टेलीग्राम द्वारा भेजने का मार्ग अपनाना पड़ा। टेलीग्राम के माध्यम से भेजे जाने वाले समाचारों के लिए यह आवश्यक था कि घटना का प्रमुख सारांश सबसे पहले दर्ज किया जाए, ताकि यदि तार की लाइन खराब भी है तब मुख्य कार्यालय तक घटना का प्रमुख सारांश पहुँच जाए। 

समाचार लेखन की शैली
विलोम पिरामिड

2. सीधे पिरामिड

समाचारों की यह शैली सीधे पिरामिड की तरह अपनाई जाती है जो विलोम पिरामिड की शैली से बिल्कुल उलट है। इसमें समाचार के सबसे महत्वपूर्ण तत्व को सबसे पहले न देकर मध्य या अन्त में दिया जाता है। समाचार के प्रारम्भ में कम महत्व के ऐसे तत्व दिए जाते हैं, जो पाठक की अभिरूचि जागृत कर सकते हैं। 

यह शैली अधिकता फीचर समाचारों, रिपोटोर्ं तथा मानवीय संवेदना से सम्बन्धित समाचारों में प्रयोग में लाई जाती है। 

समाचार लेखन की शैली
सीधे पिरामिड

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