संतुलित आहार किसे कहते हैं ?

संतुलित आहार वह भोजन होता है जिसमें भोजन के समस्त पौष्टिक तत्व व्यक्ति विशेष के शरीर की मांग के अनुसार उचित मात्रा तथा उचित साधनों से प्राप्त हो।

भोजन का कार्य सिर्फ शरीर को ऊर्जा प्रदान करना तथा निर्माण करना ही नहीं हैं,  शरीर में पाये जाने वाले कई  अंगों के कार्यों को सुचारु रुप से नियन्ति करना तथा उनको बीमारियों से बचाना भी है। शरीर की कार्यक्षमता, क्रियाशीलता बनाये रखने के लिये, उचित शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन का भोजन भूख शांत करने वाला नहीं अपितु संतुलित होना चाहिए। उसी आहार को हम संतुलित आहार कह सकते हैं। जो हमारे शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता, शरीर निर्माणक तत्वों की आवश्यकता, तथा सुरक्षात्मक तत्वों की आवश्यकता को पूरा कर सके। कई बार भोजन तृप्तिदायक होने के बावजूद संतुलित नहीं होता जैसे यदि को व्यक्ति मिठाइयों का बहुत शौकीन है। यदि हम उसे भरपेट मिठाई खिलाते हैं तो उसकी भूख शांत हो जायेगी और उसे तृप्ति भी मिल जायेगी। परन्तु मिठाई में अन्य सुरक्षात्मक पोषक तत्व अनुपस्थित होने से यह भोजन संतुलित आहार की श्रेणी में नहीं आयेगा।

इसी प्रकार एक मजदूर को एक बार के भोजन के लिये 7-8 रोटी व चावल की आवश्यकता होती है। यदि हम उसके आहार में 2-3 रोटी थोड़े चावल रख दें किन्तु दाल, सब्जी, फल आदि यदि पर्याप्त मात्रा रखे। तो भी यह भोजन मजदूर के लिये संतुलित आहार नहीं होगा। 

क्योंकि इस आहार की मात्रा मजदूर के आवश्यकता से कम है। हालांकि सभी पोषक तत्व उपस्थित है। किन्तु मात्रा तृप्तिदायक नहीं हैं। अत: वह भोजन संतुलित आहार श्रेणी में आ सकता है। जिसकी मात्रा और पोषक तत्व व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार होंगे। 

आहार छोटी-छोटी इकाइयों से मिलकर बनता है, जो हमारे शरीर को पोषण देता है। इनकी आवश्यकता अलग-अलग मात्रा में शरीर के विभिन्न अंगों को विशिष्ट कार्य सम्पन्न करने में होती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिये अच्छे पोषण की आवश्यकता होती है। यदि हमारे आहार में आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में न हो यानि आवश्यकता से अधिक हो या कम हो तो हमारे शरीर में पोषण तत्वों का असंतुलन हो जाता है। ऐसी अवस्था में कई बीमारी हो जाती हैं।

हम जो भोजन ग्रहण करते हैं। उसे दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं।
  1. पर्याप्त आहार 
  2. संतुलित आहार 
1. पर्याप्त आहार - इस आहार से तात्पर्य उस आहार से है, जो भूख तो शांत कर देता है। और व्यक्ति का जीवन चलता रहता है। उसे जीवन जीने लायक ऊर्जा मिलती रहती है। किन्तु इस आहार से न तो शरीर का वृद्धि विकास उचित प्रकार से होता है। और ने ही शरीर स्वस्थ रह पाता है। क्योंकि पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपस्थित नहीं होते हैं। जिसके कारण पोषक तत्व हीनताजन्य रोगों की सम्भावना बनी रहती है। 

इसकी परिभाषा हम इस प्रकार दे सकते हैं। ‘‘अत: वह आहार जिसकी मात्रा तो व्यक्ति की आवश्यकतानुसार होती है। किन्तु उसमें पोषक तत्वों की मात्रा आवश्यकतानुसार नहीं होती है। वह पर्याप्त आहार कहलाता है।’’

2. संतुलित आहार - शरीर को इन कारणों से भोजन की आवश्यकता पड़ती है।
  1. ऊर्जा प्राप्ति के लिये। 
  2. शरीर को वृद्धि और विकास के लिये। 
  3. शरीर को निरोग और स्वस्थ रखने के लिये। 

संतुलित आहार की परिभाषा 

संतुलित आहार वह है जिसमें विभिन्न प्रकार के भोज्य तत्व उचित मात्रा में रहते हैं, जिनमें शरीर को सभी आवश्यक पोषक तत्वों का शरीर में भण्डारण भी हो सके ताकि कभी-कभी अल्पाहार के समय उनका उपयोग शरीर में हो सके। प्रत्येक व्यक्ति के लिए संतुलित आहार अलग-अलग होता है। एक ही प्रकार का भोजन दो या अधिक व्यक्ति को देने पर वह भोजन एक व्यक्ति के लिए संतुलित होता है, किन्तु दूसरे के लिए संतुलित हो सकता है, क्योंकि दोनों की पौष्टिक तत्वों की मांग भिन्न हो सकती हैं

संतुलित आहार का महत्व

1. आवश्यकतानुसुसार भोजन की प्राप्ति - संतुलित आहार वही होता है। जिसके द्वारा व्यक्ति की भूख शांत हो सके, इसलिए संतुलित आहार में भोजन की मात्रा पर्याप्त होती है।

2. आवश्यकतानुुसार पोषक तत्वोंं की प्राप्ति - संतुलित आहार इसलिए व्यक्ति के लिये महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें आहार की मात्रा के साथ-साथ पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति निरोग बना रहता है।

3. पूर्ण संतुष्टि की प्राप्ति - उस भोजन को हम सही आहार की श्रेणी में नहीं ला सकते जिससे संतुष्टि प्राप्त न हो। संतुलित आहार व्यक्ति, के तन और मन दोनों को संतुष्ट करने में सक्षम होता है।

4. उच्च भोज्य ग्राहिता - वह भोजन ही सही भोजन हो सकता है। जिसे देखकर, सूँघकर भोजन को ग्रहण करने की इच्छा जाग्रत हो जाये। संतुलित भोजन में ग्राहिता का गुण पाया जाता है।

5. वृद्धि आर विकास में सहायक - संतुलित आहार में सभी पोषक तत्व व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार होते हैं। इसलिये इस आहार से वृद्धि और विकास उचित प्रकार से सम्भव हो सकता है।

6. रोग प्रतिरोधी - इस भोजन में सभी पोषक तत्व होने से इसमें रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक पायी जाती है।

7. उचित पाक विधियों का प्रयोग - इस आहार में उचित पाक विधियों का प्रयोग किया जाता है। जिससे भोज्य पोषक तत्व संरक्षित बने रहते हैं।

संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक

हर व्यक्ति के भोजन की मात्रा तथा पोषक आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं। संतुलित आहार की भिनन्ता को ये तत्व प्रभावित करते हैं :-
  1. आयु 
  2. स्वास्थ्य
  3. लिंग
  4. क्रियाशीलता
  5. जलवायु मौसम 
  6. विशिष्ट शारीरिक अवस्था
1. उम्र- भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में संतुलित आहार में उपस्थित पोषक तत्वों की आवश्यकतायें भिन्न होती है। जैसे बाल्यावस्था में शारीरिक, मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। 

अत: इस समय शरीर निर्माणक तत्व (प्रोटीन, खनिज लवण) की आवश्यकता अधिक हो जाती है। 

2. लिंग- स्त्रियों और पुरुषों की आहार आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती है। पुरुषों का आकार, भार और क्रियाशीलता अधिक होने के कारण स्त्रियों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा जो पुरुष शारीरिक श्रम अधिक करते हैं। उनके शरीर मे कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत के लिये अधिक प्रोटीन की भी आवश्यकता होती है, परन्तु लोहे (आयरन) की आवश्यकता स्त्रियों में पुरूषों की अपेक्षा अधिक होती है। 

(मासिक रक्त स्त्राव के कारण) कुछ विशेष परिस्थियों में भी जैसे- गर्भावस्था, स्तनपान अवस्था में भी स्त्रियों को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

3. स्वास्थ्य- व्यक्ति का स्वास्थ भी पोषक आवश्यकताओं को प्रभावित करता है। अस्वस्थता की स्थिति में क्रियाशीलता कम होने के कारण स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, परन्तु यदि दोनों व्यक्तियों की क्रियाशीलता समान हो तो अस्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कोशिकाओं की टूट-फूट अधिक होने के कारण अधिक निर्माणक तत्व (प्रोटीन) तथा सुरक्षात्मक तत्व (विटामिन व खनिज तत्व) की आवश्यकता अधिक हो जाती है।

4. शरीर का आकार एवं बनावट-लम्बे तथा अधिक भार वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में ऊर्जा और अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अपेक्षाकृत दुबले-पतले और कम वजन वाले व्यक्तियों के।

5. जलवायु- ठण्डी जलवायु में रहने वाले निवासी अधिक क्रियाशील होते हैं, इसलिए उन्हें अधिक ऊर्जायुक्त आहार की आवश्यकता होती है। इसके साथ-साथ उन्हें शरीर का तापक्रम बढ़ाने के लिए भी अधिक ऊर्जा की आवश्कयता होती है, जबकि गर्म जलवायु में रहने वाले निवासी कम क्रियाशील होते हैं, इसलिए कम ऊर्जायुक्त आहार की आवश्कयता होती है। जलवायु के कारण ही ठंड में भी अधिक वसायुक्त भोजन इच्छा लगता है, जबकि गर्मी में नहीं।

6. व्यवसाय-शारीरिक या मानसिक श्रम करने वाले व्यक्तियों को अधिक ऊर्जा युक्त तथा अधिक प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है- जैसे मजदूर। जबकि केवल मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति को कम ऊर्जा युक्त और अधिक प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है। जैसे ऑफिस का अधिकारी, क्योंकि मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति में ऊर्जा का व्यय कम होता है, किन्तु कोशिकाओं की टूट-फूट अधिक होती है।

7. विशेष शारीरिक अवस्थायें- विशेष शारीरिक अवस्थायें भी पोषक तत्वों की मात्रा को प्रभावित करती है। जैसे गर्भावस्था, स्तनपान अवस्था आपरेशन के बाद की अवस्था, रोगउपचार के बाद स्वस्थ होने की अवस्था।
प्रौढ़ महिला के लिए संतुलित आहार

प्रौढ़ व्यक्ति के लिए संतुलित आहार

किशोरों के लिए संतुलित आहार

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