शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकृति, आवश्यकता व विधियां

शिक्षा मनोविज्ञान का क्या अर्थ है

शिक्षा-मनोविज्ञान के अंतर्गत शैक्षिक वातावरण में उत्पन्न समस्याओं और उनके समाधान का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसका सम्बन्ध व्यावहारिक परिवर्तनों के अध्ययन से है।
  1. शिक्षा द्वारा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो मानव-व्यवहार के सभी रूपों का अध्ययन करता है। इस दृष्टि से शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों ही मानव व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित हैं।
  2. चूंकि मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धन्तों और नियमों का प्रयोग शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है इसलिए शिक्षा-मनोविज्ञान को व्यावहारिक मनोविज्ञान भी कहते हैं। 
  3. अध्ययन -पद्धति के दृष्टिकोण से मनोविज्ञान की भाँति शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रकृति को वैज्ञानिक कहा जाता है। शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षा की विभिन्न समस्याओं के समाधान में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके निष्कर्षों के आधार पर सामान्य नियम का प्रतिपादन करता है और शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार तथा सीखने से सम्बन्धित विषय में भविष्यवाणी करता है। 
  4. शिक्षा में परिस्थिति एवं वातावरण का अत्यधिक महत्व है। शिक्षा के लिए शैक्षिक परिस्थिति का निर्माण नियोजित रूप से किया जाता है। यदि उचित वातावरण नहीं होता है तो शैक्षिक प्रयास सफल नहीं हो पाते। मनोविज्ञान में वातावरण का भी अध्ययन किया जाता है क्योंकि व्यवहार का जन्म देने वाले तत्व वातावरण में निहित होते हैं। 
अतः शिक्षा-मनोविज्ञान में शिक्षक के व्यक्तित्व, उसके प्रशिक्षण तथा उसकी शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य आदि का व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ

शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। 

शिक्षा द्वारा मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो मानव-व्यवहार के सभी रूपों का अध्ययन करता है। इस दृष्टि से शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों ही मानव व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित हैं। शिक्षा-मनोविज्ञान का आधर मनोविज्ञान व्यक्तिगत आचरण के तथ्य और नियमों का अध्ययन करता है उसी प्रकार शिक्षा-मनोविज्ञान एक विशेष प्रकार के व्यक्तियों अर्थात् विद्यालय या विद्यालय के बहार शिक्षा प्राप्त करने वाले के आचरण व व्यवहार का अध्ययन करता है। इसका अध्ययन-क्षेत्र अधिक संकीर्ण एवं विशिष्ट है। 

शिक्षा मनोविज्ञान अपने विषय के अध्ययन के लिए सामान्य मनोविज्ञान की पद्धतियों का प्रयोग करता है। यह बालक की प्रवृत्तियों, स्वभाव तथा उसके व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों में अध्ययन करता है तथा शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का विवेचन, विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत करता है। 

स्किनर के शब्दों ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान है, ग्रहण करता है।’’ शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ का विश्लेषण करने के लिए स्किनर ने अधोलिखित तथ्यों की ओर संकेत किया है:-
  1. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र, मानव व्यवहार है।
  2. शिक्षा मनोविज्ञान खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।
  3. शिक्षा मनोविज्ञान में संग्रहीत ज्ञान को सिद्धांतों का रूप प्रदान किया जा सकता है।
  4. शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी स्वयं की पद्धतियों का प्रतिपादन किया है।
  5. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत और पद्धतियां शैक्षिक सिद्धांतों और प्रयोगों को आधार प्रदान करते है।

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा

शिक्षा-मनोविज्ञान की परिभाषा मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रिायों ने विभिन्न प्रकार से की है जिसमें से कुछ का
उल्लेख किया जा रहा है- 

1. नाल और अन्य-‘‘शिक्षा-मनोविज्ञान मुख्य रूप से सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव-व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है।’’ 

2. स्वारे तथा टेलपफोर्ड- ‘‘शिक्षा-मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध् सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है, जो शिक्षा की मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से सम्बन्ध्ति है।’’ 

3. एलिस क्रो-‘‘शिक्षा मनोविज्ञान, वैज्ञानिक विधि से ग्राह्य किये जाने वाले मानव-प्रतिक्रियाओं के उन सिद्धन्तों के प्रयोग करता है, जो शैक्षिक और अधिगम को प्रभावित करता हैं।’’ 

4. स्टीफन-‘‘शिक्षा-मनोविज्ञान शैक्षणिक विकास का अध्ययन है।’’

5. स्किनर - शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिक्षा से संबंधित संपूर्ण व्यवहार आरै व्यक्तित्व आ जाता है। क्रो एण्ड क्रो - शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है। सॉरे व 

6. टेलफोर्ड - शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य संबंध सीखने से है। वह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से संबंधित है।

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति

शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रकृति अथवा स्वरूप पर विचार किया जा सकता है। शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रकृति को वैज्ञानिक माना गया है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अर्थ से यह स्पष्ट हो जाता है कि मनोविज्ञान के सिद्वान्तों का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्रा में किया जाता है। आज शैक्षिक प्रक्रिया में मनोविज्ञान अत्यन्त सहायक सिद्ध हुआ है। मनोविज्ञान की सहायता से सीखने के नियम, ध्यान, थकान, स्मरण की विधियाँ, पाठ्यक्रम-निर्माण के सिद्धान्त, शिक्षण और शैक्षिक मूल्यांकन आदि के सम्बन्ध् में वैज्ञानिक सिद्धान्तों और नियमों का निरूपण किया जाता है। इस प्रकार अध्ययन-प(ति के दृष्टिकोण से मनोविज्ञान की भाँति शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रकृति को वैज्ञानिक कहा जाता है। 

शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षा की विभिन्न समस्याओं के समाधान में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके निष्कर्षों के आधार पर सामान्य नियम का प्रतिपादन करता है और शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार तथा सीखने से सम्बन्धित विषय में भविष्यवाणी करता है। शिक्षा-मनोविज्ञान की अध्ययन विधियों का वर्णन आगे किया जाएगा। आज शिक्षा के क्षेत्रा में शिक्षकों, परामर्शदाताओं और विद्यालयों के सभी क्रियाकलापों के लिए तथा मानव प्रकृति को समझने के लिए शिक्षा-मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान कार्य हो रहे है। शिक्षा-मनोविज्ञान को एक व्यावहारिक मनोविज्ञान माना जाता है, क्योंकि यह अधिगम प्रक्रिया की व्याख्या मानवीय व्यवहार के आधारभूत वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर करता है।

इस प्रकार शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का विवेचन, विश्लेषण और समाधान प्रस्तुत करता है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गये विचारों के आधार पर शिक्षा-मनोविज्ञान का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि-

1.  शिक्षा-मनोविज्ञान भी व्यवहार का विधायक विज्ञान है। इसमें भी मनोविज्ञान की तरह व्यवहार के क्या, क्यों और कैसे का अध्ययन किया जाता है? इसमें सीखने-सिखाने की क्रिया की शैक्षिक परिवेश में मनोवैज्ञानिक ढंग से व्याख्या की जाती है। इस सम्बन्ध् में मनोवैज्ञानिक क्रो और क्रो का विचार ‘‘मनोवैज्ञानिक सीखने से सम्बन्धित मानव विकास के ‘कैसे’ की व्याख्या करता है, शिक्षा सीखने के ‘क्या’ को प्रदान की चेष्टा करती है, शिक्षा-मनोविज्ञान सीखने के ‘क्यों’ और ‘कब’ से सम्बन्धित है।’’ 

अर्थात क्रो एवं क्रो के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान को व्यावहारिक विज्ञान माना जा सकता है क्योंकि यह मानव व्यवहार के सम्बन्ध् में वैज्ञानिक विधि से निश्चित किये गये सिद्धान्तों और तथ्यों के अनुसार सीखने की व्याख्या करने का प्रयास करता है। स्वारे और टेलपफोर्ड- शिक्षा मनोविज्ञान अपनी खोज के रूप में विज्ञान की विधियों का प्रयोग करता है।

2.  शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है। इसमें भी शिक्षार्थी की शैक्षिक परिस्थितियों में क्रियाओं एवं व्यवहार का व्यवस्थित तथा नियमित अध्ययन वैज्ञानिक विधि द्वारा किया जाता है।

3.  शिक्षा-मनोविज्ञान के अध्ययन का केन्द्र शैक्षणिक परिवेश में सीखने से सम्बन्धित व्यवहार है। शिक्षा-मनोविज्ञान के स्वरूप को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक स्किनर के विचारों पर ध्यान देना चाहिए- शिक्षा-मनोविज्ञान उन खोजो को शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो कि विशेषतया मानव प्राणियों के अनुभव और व्यवहार से सम्बन्धित है।

अन्त में हम कह सकते हैं कि शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक सिद्धातों एवं नियमों के अनुसार अध्ययन करने वाला विज्ञान है। यद्यपि शिक्षा-मनोविज्ञान की एक शाखा है किन्तु आज वह स्वतंत्र रूप से शैक्षिक समस्याओं का समाधान प्रयोगात्मक ढंग से करके, प्रयोगों के निष्कर्ष के आधार पर नियमों एवं सिद्धंान्तों का प्रतिपादन करता है और इन नियमों और सिद्धान्तों के अनुसार शैक्षणिक परिस्थितियों में होने वाले व्यवहार एवं क्रियाओं का अध्ययन करता है। इनका सीखने की क्रिया और सीखने के उत्पाद पर प्रभाव पड़ता है।

शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता

  1. बालक के स्वभाव का ज्ञान प्रदान करने हेतु।
  2. बालक के वृद्धि और विकास हेतु।
  3. बालक को अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के लिए।
  4. शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित करना।
  5. सीखने और सिखाने के सिद्धांतों और विधियों से अवगत कराना।
  6. संवेगों के नियंत्रण और शैक्षिक महत्व का अध्ययन।
  7. चरित्र निर्माण की विधियों और सिद्धांतों से अवगत कराना।
  8. विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों में छात्र की योग्यताओं का माप करने की विधियों में प्रशिक्षण देना।
  9. शिक्षा मनोविज्ञान के तथ्यों और सिद्धांतों की जानकारी के लिए प्रयोग की जाने वाली वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।

शिक्षा मनोविज्ञान की विधियां

शिक्षा मनोविज्ञान को व्यवहारिक विज्ञान की श्रेणी में रखा जाने लगा है। विज्ञान होने के कारण इसके अध्ययन में भी अनेक विधियों का विकास हुआ। ये विधियां वैज्ञानिक हैं। 

जार्ज ए लुण्डबर्ग के शब्दों में ‘‘सामाजिक वैज्ञानिकों में यह विश्वास पूर्ण हो गया है कि उनके सामने जो समस्याऐं है उनको हल करने के लिए सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण का प्रयोग करना होगा। ठोस एवं सफल होने क कारण ऐसे दृष्टिकोण को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है।’’ 

शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन और अनुसंधान के लिए सामान्य रूप से जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनको दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

1. आत्म निरीक्षण विधि

आत्म निरीक्षण विधि को अन्र्तदर्शन, अन्तर्निरीक्षण विधि भी कहते है। स्टाउट के अनुसार ‘‘अपना मानसिक क्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन ही अन्तर्निरीक्षण कहलाता है।’’

वुडवर्थ ने इस विधि को आत्मनिरीक्षण कहा है। इस विधि मेंं व्यक्ति की मानसिक क्रियाएं आत्मगत होती हे। आत्मगत होने के कारण आत्मनिरीक्षण या अन्तर्दर्शन विधि अधिक उपयोगी होती हे।

लॉक के अनुसार - मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण।’’

1. परिचय :- पूर्व काल के मनोवैज्ञानिक अपनी मस्तिष्क क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये इसी विधि पर निर्भर थे। वे इसका प्रयोग अपने अनुभवों का पुन: स्मरण और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिये करते थे। वे सुख, दुख, क्रोध और शान्ति, घृणा और प्रेम के समय अपनी भावनाओं और मानसिक दशाओं का निरीक्षण करके उनका वर्णन करते थे।

2. अर्थ :- अन्तर्दर्शन का अर्थ है- ‘‘अपने आप में देखना।’’ इसकी व्याख्या करते हुए बी.एन. झा ने लिखा है ‘‘आत्मनिरीक्षण अपने स्वयं के मन का निरीक्षण करने की प्रक्रिया है। यह एक प्रकार का आत्मनिरीक्षण है जिसमें हम किसी मानसिक क्रिया के समय अपने मन में उत्पन्न होने वाली स्वयं की भावनाओं और सब प्रकार की प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण, विश्लेषण और वर्णन करते है।’’

3. गुण- मनोविज्ञान के ज्ञान में वृृिद्धि :- डगलस व हालैण्ड के अनुसार - ‘‘मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि की है।’’

4. अन्य विधियों में सहायक :- डगलस व हालैण्ड के अनुसार ‘‘यह विधि अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों नियमों और सिद्धांन्तों की व्याख्या करने में सहायता देती है।’’

5. यंत्र व सामग्री की आवश्यकता :- रॉस के अनुसार ‘‘यह विधि खर्चीली नहीं है क्योंकि इसमें किसी विशेष यंत्र या सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है।’’

6. प्रयोगशाला की आवश्यकता :- यह विधि बहुत सरल है। क्योंकि इसमें किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है। रॉस के शब्दों में ‘‘मनोवैज्ञानिकों का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और क्योंकि वह सदैव उसके साथ रहता है इसलिए वह अपनी इच्छानुसार कभी भी निरीक्षण कर सकता है।’’

2. व्यक्ति अध्ययन विधि

व्यक्ति अध्ययन विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानसिक रोगियों, अपराधियों एवं समाज विरोधी कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिये किया जाता है। ‘‘जीवन इतिहास द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन।’’ बहुधा मनोवैज्ञानिक का अनेक प्रकार के व्यक्तियों से पाला पड़ता है। इनमें कोई अपराधी, कोई मानसिक रोगी, कोई झगडालू, कोई समाज विरोधी कार्य करने वाला और कोई समस्या बालक होता है। 

मनोवैज्ञानिक के विचार से व्यक्ति का भौतिक, पारिवारिक व सामाजिक वातावरण उसमें मानसिक असंतुलन उत्पन्न कर देता है। जिसके फलस्वरूप वह अवांछनीय व्यवहार करने लगता है। इसका वास्तविक कारण जानने के लिए वह व्यक्ति के पूर्व इतिहास की कड़ियों को जोड़ता है। इस उद्देश्य से वह व्यक्ति उसके माता पिता, शिक्षकों, संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों आदि से भेंट करके पूछताछ करता है। 

इस प्रकार वह व्यक्ति के वंशानुक्रम, पारिवारिक और सामाजिक वातावरण, रूचियों, क्रियाओं, शारीरिक स्वास्थ्य, शैक्षिक और संवेगात्मक विकास के संबंध में तथ्य एकत्र करता है जिनके फलस्वरूप व्यक्ति मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित आचरण करने लगता है। इस प्रकार इस विधि का उद्देश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण की खोज करना है। क्रो व क्रो ने लिखा है ‘‘जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।’’

3. वस्तुनिष्ठ विधियां

बहिर्दर्श्र्शर्नन या अवलोकेकन विधि - बहिदर्शन विधि को अवलोकन या निरीक्षण विधि भी कहा जाता है। अवलोकन या निरीक्षण का सामान्य अर्थ है- ध्यानपूर्वक देखना। हम किसी के व्यवहार आचरण एवं क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को बाहर से ध्यानपूर्वक देखकर उसकी आंतरिक मन:स्थिति का अनुमान लगा सकते है।

उदाहरणार्थ:- यदि कोई व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा है और उसके नेत्र लाल है तो हम जान सकते है कि वह क्रुद्ध है। किसी व्यक्ति को हंसता हुआ देखकर उसके खुश होने का अनुमान लगा सकते हैं। निरीक्षण विधि में निरीक्षणकर्ता, अध्ययन किये जाने वाले व्यवहार का निरीक्षण करता है और उसी के आधार पर वह विषय के बारे में अपनी धारणा बनाता है। व्यवहारवादियों ने इस विधि को विशेष महत्व दिया है।

कोलेसनिक के अनुसार निरीक्षण दो प्रकार का होता है (1) औपचारिक और (2) अनौपचारिक। औपचारिक निरीक्षण नियंत्रित दशाओं में और अनौपचारिक निरीक्षण अनियंत्रित दशाओं में किया जाता है। इनमें से अनौपचारिक निरीक्षण, शिक्षक के लिये अधिक उपयोगी है। उसे कक्षा और कक्षा के बाहर अपने छात्रों के व्यवहार का निरीक्षण करने के लिए अनेक अवसर प्राप्त होते है। वह इस निरीक्षण के आधार पर उनके व्यवहार के प्रतिमानो का ज्ञान प्राप्त करके उनको उपयुक्त निर्देशन दे सकता है।

4. प्रश्नावली विधि

गुड तथा हैट के अनुसार -’’सामान्यत: प्रश्नावली शाब्दिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने की विधि है, जिसमें व्यक्ति को स्वयं ही प्रारूप में भरकर देने होते हैं। इस विधि में प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके समस्या संबंधी तथ्य एकत्र करना मुख्य होता है। प्रश्नावली एक प्रकार से लिखित प्रश्नों की योजनाबद्ध सूची होती है। इसमें सम्भावित उत्तरों के लिए या तो स्थान रखा जाता है या सम्भावित उत्तर लिखे रहते हैं।

5. साक्षात्कार विधि

इस विधि में व्यक्तियों से भेंट कर के समस्या संबंधी तथ्य एकत्रित करना मुख्य होता हैं इस विधि के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसमें दो व्यक्तियों में आमने-सामने मौखिक वार्तालाप होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति की समस्याओं का समाधान खोजने तथा शारीरिक और मानसिक दशाओं का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। गुड एवं हैट के शब्दों में - ‘‘किसी उद्देश्य से किया गया गम्भीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।

6. प्रयोग विधि

‘‘पूर्व निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन।’’ विधि में प्रयोगकर्ता स्वयं अपने द्वारा निर्धारित की हुई परिस्थितियों या वातावरण में किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है या किसी समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र करता है।

7. मनोचिकित्सीय विधि

‘‘व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करना।’’ इस विधि के द्वारा व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके, उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। तदुपरांत उन इच्छाओं का परिष्कार या मार्गान्तीकरण करके व्यक्ति का उपचार किया जाता है और इस प्रकार इसके व्यवहार को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है।

संदर्भ-
  1. शिक्षा मनोविज्ञान-एस.एच. सिन्हा और रचना शर्मा, अटलांटिक पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली।
  2. शिक्षा मनोविज्ञान-एस.के. मंगल, पी.एच.आई. लर्निंग प्रा. लि., नई दिल्ली।

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