शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियां

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियां

शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार का तथा विभिन्न समस्याओं का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में करता है। यह अध्ययन एक विधि से किया जाता है। विधि का अर्थ उस प्रणाली या तरीके से है जिसकी सहायता से व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन, विश्लेषण और व्याख्या करके एक निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। विधि तथ्यों की जानकारी का एक तरीका है। शिक्षा मनोविज्ञान भी अपनी विभिन्न समस्याओं का अध्ययन एवं समाधन करने के लिए वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करता है। शिक्षा मनोविज्ञान में किसी पदार्थ विज्ञान की भाँति अध्ययन की वैज्ञानिक प्रणालियों को कठोरता से लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहाँ अध्ययन की विषय-वस्तु जीवित शरीरधरी शिक्षार्थी का शैक्षिक व्यवहार होता है। 

हम यह भलीभाँति जानते हैं कि शिक्षाशास्त्र और शिक्षा-मनोविज्ञान को कुछ कारणों से विशुद्ध विज्ञान (रसायन एवं भौतिक शास्त्र) की कोटि में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इनके नियम अटल होते हैं और उनका सम्बन्ध् भौतिक पदार्थों से है जबकि शिक्षा एक मानवीय विषय है और यह मानव-समाज तथा शैक्षिक क्रिया-कलापों से सम्बन्ध् रखती है।

अब शिक्षा-मनोविज्ञान को भी विज्ञान की कोटि में रखा जाने लगा है, क्योंकि इसने कल्पना, अनुमान तथा अन्ध्विश्वास को त्याग करके अपने कार्यों के लिए वैज्ञानिक विधि को अपनाया है। वैज्ञानिक भाषा की ‘अध्ययन विधि का तात्पर्य उस मार्ग से है जिस पर चलकर सत्य की खोज की जाती है।

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियां 

शिक्षा मनोविज्ञान की अध्ययन विधियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- 

1. आत्मगत या आत्मनिष्ठ विधियाँ - इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं अपने व्यवहार की व्याख्या और विश्लेषण करता है जैसे अन्तदर्शन विधि और गाथावर्णन विधि।

2. वस्तुगत या वस्तुनिष्ठ विधियाँ - इस विधि में दूसरों के द्वारा तथ्यों का संग्रह किया जाता है। इसके अंतर्गत बहुत-सी विधियाँ हैं। 

इन दोनों वर्गों की विभिन्न विधियों का उल्लेख नीचे दिया जा रहा है।

शिक्षा मनोविज्ञान का मनोविज्ञान से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः दोनों की अध्ययन विधियों में समानता है, उनमें अन्तर
केवल उपयोग के क्षेत्र का है। शिक्षा-मनोविज्ञान की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
  1. अन्तर्निरीक्षण या अन्तर्दर्शन विधि
  2. बाह्य निरीक्षण या बहिर्दर्शन विधि
  3. प्रयोगात्मक विधि
  4. व्यक्ति इतिहास विधि
  5. गाथा वर्णन विधि
  6. विकासात्मक विधि
  7. तुलनात्मक विधि
  8. साक्षात्कार विधि
  9. प्रश्नावली विधि
  10. सांख्यिकी विधि
  11. उपचारात्मक विधि
  12. परीक्षण विधि
  13. मनोविश्लेषण विधि

1. अन्त:दर्शन विधि

अन्त:दर्शन विधि के माध्यम से व्यक्ति के चेतन मन का अध्ययन किया जाता है। Stout ने अन्त: दर्शन के तीन स्तर बताए है :-
  1. व्यक्ति अपने मन का अन्त: निरीक्षण करता है।
  2. उसका विश्लेषण करता है।
  3.  मानसिक प्रक्रियाओं में सुधार लाने का प्रयास करता है।
अन्त:दर्शन विधि के गुण -
  1. इस पद्धति का सबसे बड़ा गुण यह है कि व्यक्ति अपनी मानसिक क्रियाओं और अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त करके अपने को समझने में समर्थ हो जाता है। व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं का सीध अध्ययन अन्तर्निरीक्षण द्वारा ही सम्भव है। जैसे सुख-दुःख में किस प्रकार का अनुभव होता है। इसका उत्तर वह अन्तर्निरीक्षण द्वारा दे सकता है।
  2. इस विधि का प्रयोग किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। इस पद्धति में किसी प्रयोगशाला, यंत्रा व सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती। राॅस ने कहा है- मनोवैज्ञानिक का स्वयं का मष्तिष्क प्रयोगशाला होता है, क्योंकि यह सदैव उनके साथ रहता है, इसलिए वह अपनी इच्छानुसार कभी भी निरीक्षण कर सकता है।
  3. इस पद्धति का बार-बार प्रयोग करने से व्यक्ति की विचार शक्ति बढ़ती है। इस विधि से दूसरों की मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जा सकता है। मानसिक क्रियाओं के सम्बन्ध् में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को जो अनुभव हुए हैं उनका भी तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। 
  4. अन्तर्निरीक्षण विधि द्वारा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन आरम्भ हुआ। अतः मनोविज्ञान को विज्ञान बनाने में इस विधि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यद्यपि इस विधि का प्रयोग क्षेत्र सीमित है पिफर भी इसकी सहायता से अनेक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का अध्ययन हुआ है। अन्तर्निरीक्षण विधि मनोविज्ञान की एक उपयोगी विधि है।
अन्त:दर्शन विधि की आलोचना-
  1. अन्त: दर्शन सभी व्यक्ति नहीं कर सकते। जिनमें चिन्तन की क्षमता है वहीं लोग कर सकते है।
  2. छोटे बच्चे व असामान्य व्यक्ति अन्त: दर्शन नहीं कर सकते।
  3. एक व्यक्ति के अन्त: दर्शन के आधार पर सामान्य नियम निकालना दुष्कर है।

2. बाह्य-निरीक्षण या बहिर्दर्शन विधि

इस विधि में अध्ययनकत्र्ता व्यक्ति के व्यवहार और क्रियाओं का निरीक्षण अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर करता है। इसमें बाह्य रूप से जो कुछ स्पष्ट दिखाई देता है उसका निरीक्षण किया जाता है और उसी के आधार पर उसकी मानसिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। व्यक्ति के व्यवहार, क्रियाओं या प्रतिक्रियाओं का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करके उसकी मानसिक अवस्था का पता लगाया जाता है। जैसे किसी व्यक्ति को मुस्कराता देखकर हम जान लेते हैं कि वह प्रसन्न है, आँसू बहाते देखकर उसे दुःखी समझ लेते हैं। वाह्य-निरीक्षण द्वारा स्वाभाविक परिस्थितियों में होने वाले व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि को विशेष महत्व दिया है। उन्होंने अनुभूति के स्थान पर व्यवहार को मनोविज्ञान का अध्ययन विषय माना है और अन्तर्निरीक्षण के स्थान पर बाह्य-निरीक्षण को मनोविज्ञान की विधि स्वीकार किया। उनके अनुसार अनुभूति वैयक्तिक और आत्मगत होती है। 

इसके विपरीत व्यक्ति के बाह्य व्यवहारों का सरलतापूर्वक देखा और समझा जा सकता है। उसके व्यवहार को देखकर मानसिक अवस्था की जानकारी हो जाती है। उनके अनुसार व्यवहारों के अध्ययन के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष अधिक वैज्ञानिक होगा। चूंकि व्यवहार व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं में ही दिखाई देता है, बाह्य-निरीक्षक व्यक्ति की शारीरिक क्रियाओं का निरीक्षण करके उसके आधार पर सामान्य मनोवैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन करता है। निरीक्षण विधि के निम्न सोपान हैं- 

1. दूसरों के व्यवहार का प्रत्यक्ष निरीक्षण करके उनकी मनःस्थिति का पता लगाना-यह विधि का मुख्य तत्व है। इसमें निरीक्षण द्वारा तथ्यों को सावधानीपूर्वक नोट करना आवश्यक होता है।

2. व्यवहार की व्याख्या और विश्लेषण करना-इसमें अध्ययनकर्ता अपने अन्तदर्शन के आधार पर दूसरों के व्यवहार की व्याख्या और विश्लेषण करता है, जैसे किसी व्यक्ति को आँसू बहाते देखकर हम अपने पूर्व अनुभव से उसके दुःखी होने का अनुमान लगा लेते हैं।

3. विकासात्मक विधि

इसका प्रयोग व्यक्ति के विकास एवं वृद्धि का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। इसके अन्तर्गत मुख्यत: तीन विधियों का प्रयोग किया जाता है -
  1. क्रास सेक्शनल - इस विधि में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का अध्ययन एक ही समय पर किया जाता है। उदाहरणार्थ स्मृति से सम्बन्धित विकासात्मक रूख जाने हेतु 5, 10, 15, 20, 25 व 30 आयु वर्ग के कुछ बच्चों को स्मृति स्मरण करने लिए दिया गया। और इन सबके स्मरण करने की गति व क्षमता की तुलना कर ली गयी।
  2. लम्बर्तीय विधि - लम्बे समय तक व्यक्तियों के एक समूह का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण - जॉ प्याजे ने अपने तीन बच्चों के व्यवहार का निरीक्षण लम्बे समय तक किया और बच्चों के संजानात्मक विकास का सिद्धान्त दिया है। इस विधि अत्यधिक समय लगता है तथा खर्च भी अधिक आता है। छोड़ने वाले छात्रों की सम्भावना भी अधिक होती है।
  3. क्रमवार विधि - इस विधि का आरम्भ से करते है और कुछ माह व साल के बाद उसी समूह का अध्ययन करते है। कुछ समय अन्तराल पर फिर कुछ नए लोगों को अध्ययन में शामिल कर लेते है। इसमें क्रास सेक्शनल तथा लम्बवर्तीय दोनों विक्तिायों के गुण शामिल है। यह जटिल, मंहगी तथा अधिक समय लेने वाली विधि है।

4. उपचारात्मक विधि

इस विधि का प्रयोग छात्रों की कुण्ठाओं, भय, कल्पनाओं, ग्रन्थियों, चिन्ता, अपराधिक वृत्तियों, संवेगात्मक विघटन, हकलाना आदि व्यवहार सम्बन्धी कठिनायों के कारणों को जानने के लिये किया जाता है। इसके आधार पर निर्देशन व परामर्श देना आसान हो जाता है। जॉ प्याजें ने बालकों के संज्ञानात्मक स्तर को जानने हेतु इसी विधि का प्रयोग किया है।

5. जीवनवृत्त अध्ययन विधि

इस विधि के अन्तर्गत किसी एक का का गहन व विस्तृत अध्ययन किया जाता है। वह का एक व्यक्ति, एक संस्था, एक घटना कुछ भी हो सकती है। गहन व विस्तृत अध्ययन करने हेतु बहु उपागमों का प्रयोग किया जाता है जैसे शारीरिक परीक्षण, मनोचिकित्सीय परीक्षण सामाजिक रिपोर्ट आदि। 

पी0वी0 यंग के अनुसार, “वैयक्तिक अध्ययन एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा एक सामाजिक का-चाहे वह एक व्यक्ति, एक परिवार, संस्था, संस्कृति, समूह और एक समस्त समुदाय ही हो, के जीवन का अन्वेषण तथा विश्लेषण किया जाता है। इसका उद्देश्य उन कारकों को निर्धारित करना होता है जो कि सम्बन्धित का के व्यवहार के विषम प्रतिरूपों तथा उनके का के प्रति सम्बन्ध ाों की व्याख्या उसके सम्बन्धित स्थानीय परिवेश के आधार पर प्रस्तुत करना होता है।”

व्यक्तिगत अध्ययन विधि की विशेषताएँ -
  1. एक समय में एक का का गहन, विस्तृत, सूक्ष्मतम तथा विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। सामान्यत: ऐसे अध्ययन का स्वरूप गम्भीर व विषम होता है।
  2.  प्रत्येक का का क्रमबद्ध व वस्तुपरक अध्ययन किया जाता है।
  3. प्रत्येक का का बहुपक्षीय अध्ययन किया जाता है।
  4. इसमें एक का से सम्बन्धित विभिन्न अंगो व चरो का अलग-अलग विवरणात्मक अध्ययन न करके उनमें पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है।
व्यक्तिगत अध्ययन विधि की आधारभूत धारणाएं -
  1. भौतिक जगत में घटनाएं स्वतन्त्र रू से घटित नही होती है वरन् उनके घटित होने का एक क्रम होता है और इस रूप का स्वाभाविक एवं तर्कसंगत आधार होता है।
  2. एक घटना के विभिन्न अंगो में यान्त्रिक क्रमबद्धता तथा पारस्परिक आश्रित अन्तर्निहित होती है।
  3. घटना के विभिन्न अंगो में कार्यकारण सम्बन्ध होता है। 
वैयक्तिक अध्ययन विधि-द्वारा सामान्य व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन सरलता से किया जा सकता है। परन्तु इस विधि का अधिकतर उपयोग असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन में अत्यधिक उपयुक्त रहता है। बाल अपराधी, अपराधी, मन: स्नायु विकृति तथा स्नायु विकृति से ग्रसित लोगों के व्यवहारों का विश्लेषण करने के लिए यह विधि उपयुक्त रहती है।

6. प्रयोगात्मक विधि 

प्राकृतिक विज्ञान की देन है जिसके द्वारा कार्य-कारण संबंध का अध्ययन श्रेष्ठ ढंग से किया जाता है। आधुनिक समाज मनोविज्ञान में इस विधि का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इस विधि में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन प्रयोगशाला से अलग वास्तविक परिस्थितियों में भी किया जाता है। इन्हें क्षेत्र प्रयोग कहते हैं। प्रयोगात्मक विधि वह विधि है जिसमें योजनानुसार चरों को घटा-बढ़ा कर नियंत्रित दशाओं में अध्ययन किया जाता है। इस विधि में कार्य को आश्रित चर तथा कारण को स्वतंत्र चर कहते हैं।

किसी भी व्यवहार को प्रभावित करने वाले अनेक कारक होते हैं। अध्ययनकर्ता इन कारकों में से कुछ को अध्ययन के लिए चुन लेता है तथा शेष कारकों को नियंत्रित करके चुने हुए कारकों का व्यक्ति के व्यवहार पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। चुने हुए कारक स्वतंत्र चर कहलाते हैं तथा नियंत्रित किये गये कारक बाधक चर कहलाते हैं। प्रयोग करते समय स्वतंत्र चर को घटा बढ़ा कर कार्य पर पड़ने वाले प्रभावों को नोट कर लिया जाता है। अन्त में, प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण कर परिकल्पना की जाँच की जाती है। प्रयोगात्मक अध्ययन में कम से कम दो अध्ययन समूह होते हैं जिनमें से एक को नियंत्रित समूह तथा दूसरे को प्रयोगात्मक समूह कहते हैं।

संदर्भ -
  1. शिक्षा मनोविज्ञान-एस.के. मंगल पी.एच.आई. लर्निंग प्रा. लि., नई दिल्ली।
  2. मनोविज्ञान-डाॅ. सरयू प्रसाद, आगरा बुक स्टोर, आगरा।
  3. मनोविज्ञान-मानव व्यवहार का अध्ययन-ब्रजकुमार मिश्र, पी.एच.आई. लर्निंग, नई दिल्ली।

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