विश्व व्यवस्था से क्या अभिप्राय है

क्रम’ या व्यवस्था से सभी वस्तुओं के उचित स्थान पर होने का संकेत मिलता है। यह नियमों को लागू करने और उनका सम्मान करने को भी दर्शाता है। यदि व्यवस्था सुदृढ़ हो तो दैनिक क्रियाकलाप शांतिपूर्ण और सामान्य होंगे। पर विश्व व्यवस्था में एक देश का अपने मामलों को दूसरे देशों के साथ संचालन करने का तरीका प्राप्त होता है। यह तरीका नियमों और सिद्धान्तों के रूप में हो सकता है जो सरकारों द्वारा स्वीकृत और सम्मानित होता है, इन नियमों में शामिल हैं-सभी राष्ट्रों की समानता, किसी राष्ट्र को अन्य राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, द्विपक्षीय संबंधों में शक्ति का प्रयोग न किया जाना और न ही उसके प्रयोग की चेतावनी देना, युद्ध बंदियों के साथ मानवोचित व्यवहार किया जाना आदि। राष्ट्रों में इन नियमों को लागू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था की स्थापना की गई है। इसका उद्देश्य राष्ट्रों के बीच वार्ता और राजनीति द्वारा उनके बीच अंतरों और समस्याओं को हल करने में सहायता देना हैं।

इस वास्तविकताओं के विपरीत ‘विश्व व्यवस्था’ शब्द विचित्र जान पड़ सकता है। यघपि औपचारिक रूप से राष्ट्र समान माने जाते हैं, परंतु उनके बीच स्पष्ट असमानता होती हैं। इनमें से कुछ असमानताएं इस रूप में देखी जाती हैं कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में निषेधाधिकार (वीटो) केवल पाँच ही देशों को ही दिया गया। संसाधनो और अपना प्रभुत्व बढाने के लिए संभी देश की परस्पर स्पर्धा करते है। वे एक-दूसरे की नियती और महवाकांक्षा पर संदेह करते हैं वे सीमा, व्यापार और अन्य मामलों के कारण झगड़ते हैं। वास्तव में इस समय भी विश्व में एशिया, अफ्रीका और युरोप में दर्जनों युद्ध चल रहे हैं जो लाखों लोगों की मौत और बहुमूल्य सम्पत्ति का विनाश करते हैं। अनेक देशों में गृह युद्ध चल रहैं हैं। ये गृह युद्ध देश की सेना और एक समुदाय के बीच का लंबा संघर्ष है ताकि वहां की सरकार को अपदस्थ किया जा सके या अलग स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित कर लिया जाए। श्रीलंका इसका एक उदाहरण है। इसी से आतंकवाद भी जुड़ा हुआ है जो आम जनता में हिंसा और नृशंसतापूर्वक हत्याओं का डर पैदा करता है। इसके अलावा वाणिज्यिक और सामाजिक दबाव वाले समुदाय भी राज्य नीतियों से बड़ी-बड़ी मांगे करते हैं।

अमेरिका और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कपंनियाँ इतनी शक्तिशाली हो गई हैं जो कुछ निर्धन देशों में वहॉ की आर्थिक नीतियों के निधार्रण में हस्तक्षेप करती हैं। व्यापारिक गैर-सरकारी संगठनों का भी उन नीतियों पर प्रभाव बढता जा रहा है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां वे व्यापारिक कंपनियां हैं जो मुख्यत: अमेरीका आरै यूरोप की हैं। उन्होने अपने उपभोक्ता सामानों, दवाओं आदि के व्यापार को विश्व के अन्य भागों में फैलाया हैं। आप कोक, माइक्रोसाफट, जनरल मोटर्स आदि से परिचित होंगे। उन्हें बहुत अर्थिाक मुनाफा होता हैं। कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की वार्षिक आय, अनेक अल्प विकसित राष्ट्रों से अधिक होता है। गैर-सरकारी संस्थाएं वे हैं जो व्यक्ति विशेष द्वारा उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार सरकार के सीधे हस्तक्षेप के बिना स्थापित की जाती हैं वाय. एम. सी. ए. रोटरी इंटरनेशनल, रेडक्रास आदि कुछ एंसे गैर-सरकारी संगठनों के उदाहरण हैं जो स्थानीय, राष्ट्रीय आरै अन्तराष्टी्रय स्तर पर सक्रिय है। ये वातावरण सुरक्षा, विकास और मानव अधिकार आदि क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

वास्तव में आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि विश्व व्यवस्था को वर्तमान परिस्थिति में कैसे वर्णित किया जा सकता हैं। निःसंदेह बहुत कुछ असंतोषजनक हैं परंतु यह भी सत्य है कि विश्व के मामलों में बहुत कुछ व्यवस्थित है जो कि आसानी से ध्यान में नहीं आता। उदाहरण के लिए, राजनायिकों का आदान-प्रदान, युद्ध संबंधी नियम पत्र व्यवहार, वायु और समुद्री यातायात, विदेशियों से व्यवहार तथा मुद्रा विनिमय सभी अंत राष्ट्रीय व्यवस्था के उदाहरण हैं। अंतराष्ट्रीय मामलों के इन पहलुओं को प्रथा और परमपरा के द्वारा तथा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझोतों और संधियों के नियमों द्वारा निर्धारित किया जाता हैं।

सामान्यत: यह भी देखा जाता है कि जिन राष्ट्रों के बीच विवाद होता है, वे किसी समझौते पर पहुचने के लिए किसी दूसरे देश या किसी अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी की सहायता लेते है। भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही वर्ता प्रक्रिया इसी विश्व व्यवस्था का द्योतक है। 1945 के बाद विश्व युद्ध का न होना विश्व व्यवस्था के सकारात्मक पहलू को दर्शाता हैं। हमें यहां यह जानना चाहिए कि वास्तविकताओं को पूर्ण रूप से उपेक्षित करके आदर्श विश्व व्यवस्था प्राप्त नहीं की जा सकती। राजनीतिक और अन्य परिस्थितियाँ या विश्व व्यवस्था को सदैव प्रभावित करती रही हैं। इन घटनाओं के संदर्भ में आवश्यक समायोजन करती हुई विश्व व्यवस्था बनती जाती है। यह व्यवस्था किसी नई व्यवस्था को स्थान देने के लिए पूर्ण रूप से समाप्त नहीं की जाती, इसमें संसार की वास्तविकता के आधार पर कवे ल कुछ परिवतर्न किए जाते हैं। ये परिवर्तन अच्छे या बुरे, छोटे या बड़े हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में, शीत युद्ध जैसी घटनाओं के अंत के लिए व्यवस्था में परिवर्तन किया गया न की उस समय अस्तित्व में व्यवस्था को पूर्ण रूप से बदला गया।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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