पृथ्वी की आंतरिक संरचना | सचित्र वर्णन

पृथ्वी की उत्पत्ति को स्पष्ट करते समय यह बताया गया था कि पृथ्वी प्रारम्भ में उत्पत्ति अवस्था में थी। धीरे-धीरे शीतल होकर यह वर्तमान ठोस अवस्था को प्राप्त हुई। इसकी संरचना में जिन रासायनिक तत्वों का योग है उसमें कई हल्के और कई भारी पदार्थ हैं। पृथ्वी का ऊपरी भाग अवसादों से बनी परतदार चट्टानों का है। इसकी गहराई और घनत्व दोनों ही बहुत कम है। इस ऊपरी परत में रवेदार चट्टानों की प्रधानता है जिसमें सिलिकाए फेल्सपार तथा अभ्रक आदि खनिज पाए जाते हैं। इस परत के भी दो भाग किये गए हैं। पहले हल्के सिलिकेट पदार्थों के और दूसरे सिलिकेट पदार्थों से निर्मित है। पृथ्वी की सबसे अधिक गहराई वाली परत को क्रोड कहते हैं। 

पृथ्वी का क्रोड मुख्यत: क्रोड मुख्यत: भारी पदार्थो जैसे निकल व लोहे से बना है? पृथ्वी के धरातल से क्रोड मुख्यत: तीन परते है :-

1. भूपर्पटी :- यह पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है। यह ध्रातल से 100 कि.मी की गहराई तक पाया जाता है। इस परत की चट्टानो का घनत्व 3 ग्राम प्रति घन से. मी. है।

2. मैटंल :- भूपर्पटी से नीचे का भाग मैटंल कहलाता है। यह भाग भूपर्पटी के नीचे से आरम्भ होकर 2900 कि.मी गहराई तक है। मैटंल का ऊपरी भाग दुबर्ल ता मंडल हे इस मंडल की चट्टाने जले ी की तरह की सरंचना की है। यह भाग 400 कि.मी. तक है। भूपर्पटी एवं मैटंल का ऊपरी भाग मिलकर स्थल मंडल बना है। मेटंल का निचला भाग ठोस अवस्था में हे इसका घनत्व लगभग 3.4 ग्राम प्रति घन से.मी. है।

3. क्रोड :- मंटेल के नीचे क्रोड है जिसे हम आन्तरिक व बाहय क्रोड कहते है बाहय क्रोड तरल अवस्था में हे आन्तरिक क्रोड ठोस है। इसका घनत्व 13 ग्राम प्रति घन समे ी लगभग है। क्रोड निकिल व लोहे जैसे भारी पदार्थो से बना है।

इसका घनत्व 3.1 से 5.1 तक है। मैंटल पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत से घिरा है। इसे स्थलमण्डल कहते हैं, जिसका घनत्व 2.75 से 2.90 है। स्थलमण्डल के प्रमुख निर्माणकारी तत्व सिलीका (सि) एल्यूमीनियम (एल) हैं। इसलिए इस परत की स्याल (सिलीका+एल्यूमीनियम) भी कहते हैं। स्थलमण्डल के ऊपरी भाग को भूपर्पटी कहते हैं। पृथ्वी की ​ त्रिज्या 6370 कि. मी. है। 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना

सिलिकेटो की इस ऊपरी परत के नीचे पृथ्वी की संरचना को तीन भागों में बाँटा है.


पृथ्वी की आंतरिक संरचना

1. सियाल - पृथ्वी के ऊपर बिछी परतदार चट्टानों के नीचे यह सबसे हल्की परत है। यह ग्रेनाइट चट्टानों से बनी हुई है। ग्रेनाईट की इस परत में सिलिका और एल्युमीनियम तत्वों की अधिक है। इसलिए इसका नाम सियाल है जो दोनों तत्वों के प्रथम अक्षरांे के मिलने से बना है। ग्रेनाइट के आलावा इस परत में भारी कायान्तरित तथा आग्नेय चट्टानें भी सम्मिलित हैं। महाद्वीपों की रचना इसी सियाल से हुई मानी गई है। इस परत का औसत घनत्व 2.9 है और गहराई 50 से 300 कि.मी. तक आंकी गई है।

2.  सीमा - ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित सियाल परत के नीचे एक मध्यवर्ती परत है, जिसको सीमा कहा जाता है। इस परत का निर्माण जिन चट्टानों से हुआ उसमें सिलिका और मैग्नीषियम तत्वों की प्रधानता पायी जाती है। इसलिए इस परत को सीमा कहा जाता है। इस परत में क्षारीय पदार्थ अधिक पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें लोहा, कैल्षियम और मैग्नीषियम के सिलीकेट भी बहुलता से मिलते है। इस परत का औसत घनत्व 2.9 से 4.7 है और गहराई 1,000 से 2,000 कि.मी. तक है। 

3.  नीफ - सीमा के नीचे यह पृथ्वी की अन्तिम और तीसरी परत है। इस परत का निर्माण बहुत ही कठोर और भारी पदार्थों से हुआ हैए जिनका औसत घनत्व 11 है। इन पदार्थों मंे निकिल और फेरियम प्रधान हंै। इसीलिए इस परत का नाम नीफे पड़ा है। फेरियमए लोहे का ही रूप है। इस प्रकार पृथ्वी की इस अन्तिम परत मंे लोहे की प्रधानता होने से ही उसमें चुम्बकीय गुण विद्यमान है। इसी से पृथ्वी मंे स्थिरता भी है।

उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि पृथ्वी की संरचना विभिन्न घनत्व के पदार्थों से हुई है। भूगर्भ में एक समान घनत्व वाले पदार्थाें को एक परत की संज्ञा दी गई है। पृथ्वी के भीतर विभिन्न घनत्व वाली ऐसी कई परतें हैं। इन परतांे की संख्या और उनकी गहराई के सम्बन्धी में सभी विद्वान एकमत नहीं है। कुछ विद्वान् पृथ्वी की तीन और कुछ चार परत मानते हैं। 

भूगर्भ का तापमान, दबाव तथा घनत्व

तापमान  

गहरी खानों और गहरे कूपों से जानकारी मिलती है कि पृथ्वी के भीतर गहराई बढ़ने के साथ तापमान बढ़ता है। यह बात ज्वालामुखी के उद्गारों में पृथ्वी के अन्दर से निकले अत्यन्त गर्म लावा से भी सिद्ध होती है कि भूगर्भ की ओर तापमान बढ़ता जाता है। विभिन्न प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि भूगर्भ में ध्धरातल से केन्द्र की ओर तापमान बढ़ने की दर एक समान नहीं है। कहीं पर यह तेज है और कहीं पर धीमी। प्रारम्भ में तापमान बढ़ने की औसत दर प्रत्येक 32 मीटर की गइराई पर 10 सेल्सियस है। तापमान की इस स्थिर वृद्धि के आधार पर 10 किलोमीटर की गहराई में तापमान धरातल की अपेक्षा 3000 से. अधिक होना चाहिये और 40 किलोमीटर की गहराई में इसे 12000 से. होना चाहिये। तापमान की इस वृद्धि दर के अनुसार भूगर्भ के सभी पदार्थ पिघली हुई अवस्था में होने चाहिये। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। चट्टानें जितनी अधिक गहराई में होंगी उनके पिघलने का तापमान-बिन्दु उतना ही ऊँचा होगा। इसका कारण यह है कि भूगर्भ में नीचे दबी शैलों पर ऊपर की शैलों का इतना अधिक दाब होता है जिससे उनके पिघलने का तापमान-बिन्दु धरातल की तुलना में बहुत अधिक हो जाता है। 

उदाहरण के लिये बैसाल्टी लावा शैल धरातल पर 12500 से. पर पिघलती है परन्तु वही शैल भूगर्भ में 32 किलोमीटर की गहराई पर 14000 से. तापमान पर पिघलेगी। भूकम्प की तरंगों के व्यवहार से भी यह बात सिद्ध होती है। उनसे इस बात की भी पुष्टि होती है कि भूगर्भ में तापमान के बदलने के साथ पदार्थों की संरचना में भी परिवर्तन आता है। भूगर्भ के ऊपरी 100 किलोमीटर में तापमान के बढ़ने की दर 120 से. प्रति किलोमीटर है, अगले 300 किलोमीटर में यह वृद्धि-दर 200 सेप्रति किलोमीटर है और इसके बाद यह वृद्धि-दर केवल 100 से. प्रति किलोमीटर रह जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि धरातल के नीचे तापमान के बढ़ने की दर पृथ्वी के केन्द्र की ओर घटती जाती है। इस गणना के अनुसार पृथ्वी के केन्द्र का तापमान लगभग 40000 से 50000 से. के बीच है। भूगर्भ में इतना ऊँचा तापमान उच्च दाब के फलस्वरूप हुई रासायनिक प्रक्रियाओं और रेडियोधर्मी तत्वों के विखंडन के कारण ही संभव है।

दबाव - 

भूगर्भ में ऊपरी परतों के बहुत अधिक भार के कारण पृथ्वी के सतह से केन्द्र की ओर जाने पर दबाव भी निरन्तर बढ़ता जाता है। पृथ्वी के केन्द्र पर अत्यधिक दबाव है। यह दबाव समुद्र तल पर वायुमंडल के दाब से 30-40 लाख गुना अधिक है। केन्द्र पर उच्च तापमान होने के कारण यहां पाये जाने वाले पदार्थों को द्रव रूप में होना स्वाभाविक है, परन्तु इस ऊपरी भारी दबाव के कारण यह द्रव रूप ठोस का आचरण करता है। सम्भवत: इसका स्वरूप प्लास्टिक नुमा है।

घनत्व - 

पृथ्वी के केन्द्र की ओर निरन्तर दबाव के बढ़ने और भारी पदार्थों के होने के कारण उसकी परतों का घनत्व भी बढ़ता जाता है। अत: सबसे गहरे भागों में अत्यधिक घनत्व वाले पदार्थों का होना स्वाभाविक है।

भूपर्पटी के पदार्थ

स्थलमंडल का सबसे ऊपर भाग भूपर्पटी कहलाता है। यह पृथ्वी का सबसे महत्वपूर्ण भाग है; क्योंकि इसकी ऊपरी सतह पर मानव रहते हैं। जिन पदार्थों से भूपर्पटी बनी है, उन्हें शैल कहते हैं। शैलें विभिन्न प्रकार की होती हैं। शैलें ग्रेनाइट की तरह कठोर, चीका मिट्टी की तरह मुलायम अथवा बजरी के समान बिखरी होती है। शैलें विभिन्न रंग, भार और कठोरता लिए होती है। शैलें खनिजों से बनी हैं। वे एक या एक से अधिक खनिजों का मिश्रण हैं। दूसरी ओर खनिज एक या एक से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में मिलने से बने हैं। खनिजों में एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है। भूपर्पटी 2000 से भी अधिक खनिजों से बनी है, परन्तु इनमें से केवल 6 खनिजों की अधिकता है। इन्हीं का पृथ्वी की ऊपरी परत के निर्माण में विशेष योग है। इन 6 खनिजों के नाम - फेल्सपार, क्वाटर््ज, पाइराक्सीन, एम्फीबोल, अभ्रक और ओलीबीन हैं।

ग्रेनाइट एक कठोर शैल है। इसके निर्माणकारी खनिज क्वार्टज, फेल्सपार और अभ्रक हैं। इन खनिजों के अनुपात में भिन्नता होने से ग्रेनाइट के रंग और उसकी कठोरता में अन्तर आ जाता है। जिन खनिजों में धात्विक अंश होता है, उन्हें धाित्त्वक खनिज कहते हैं। हैमेटाइट एक प्रमुख लौह-अयस्क है। यह धात्विक खनिज है। अयस्क धात्विक खनिज होते हैं, जिनसे धातुओं का निकालना लाभकारी होता है। शैलों का निर्माण खनिजों से हुआ है। इनका मानव जीवन में बहुत अधिक महत्व है।

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