रेडियोधर्मी प्रदूषण किसे कहते हैं? इसके स्त्रोत तथा प्रभावों का उल्लेख।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण मनुष्यों में अत्यंत खतरनाक रोग जैसे रक्त कैंसर, अस्थि कैंसर और अस्थि टी.बी. आदि हो जाते हैं। 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु बम का विस्फोट कर इन दोनों जापानी शहरों को नष्ट कर दिया रोडियोधर्मी विकिरण के प्रभाव से लोग झुलस-झुलस कर मर गये जो जीवित बचे अपाहिज हो गये। आज 56 साल बाद भी हिरोशिमा और नागासाकी में विकिरण के प्रभाव से अपाहिज पैदा हुए लोग देखे जा सकते हैं क्योंकि रेडियोधर्मी विकिरण का प्रभाव कई हजार वर्षों तक रहता है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत

रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत

रेडियोधर्मी प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता का विघटन होता है। इस प्रकार के प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोत हैं- प्राकृतिक तथा (2) मानवीय। 
  1. प्राकृतिक प्रक्रियायें - रेडियम, यूरेनियम, थ्योरियम, पोटेषियम तथा कार्बन पदार्थ चट्टानों से निकालने से भी प्रदूषण होता है। 
  2. मानवी क्रियायें - इसके प्रमुख स्रोत परमाणु बम्ब, परमाणु संयंत्र तथा अन्य रेडियेषन के स्रोत रेडियो आसोटोपस जैसे- आइओडीन, स्ट्रोनियम प्लोटीनस, कोबाल्ट आदि। 

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव

  1. मानव स्वास्थ पर प्रभाव
  2. अन्य प्राणि जातियों पर प्रभाव
  3. वनस्पतियों पर प्रभाव

मानव स्वास्थ पर प्रभाव 

रेडियोधर्मी पदार्थ से परमाणु केन्द्रकों से अल्फा, बीटा या गामा आदि कण किरणाों के रूप में निकलते हैं आयनीकरण द्वारा नाभिकीय विकिरण जीवित ऊतकों के जटिल अणुओं को विघटित कर कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। इन मृतकोशिकाओं के कारण चर्मरोग, कैन्सर जैसी समस्याएं हो सकती हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण जीन्स और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है। बच्चों की गर्भाशय में ही मृत्यु हो जाती है। कभी-कभी बच्चों के विभिन्न अंग विचित्र व असाधारण प्रकार के हो जाते हैं। 

नाभिकीय विकिरण का रक्षक - पोटेशियम आयोडाइड - परमाणु बम- आक्रमण से निपटने के लिए अमेरिका खाद्य और औषधि प्रशासन ने दिसंबर 2001 को घोषणा किया की यदि अमेरिका पर परमाणु बम से हमले हो तो उससे निकलने वाले नाभिकीय विकिरण अवपात से बचने के लिए सभी नागरिक पौटैशियम आयोडइड की गोलियां सेवन करें, अत: इन गोलियों का प्रचुर भण्डार देश में उपलब्ध होना चाहिए।अमेरिका में नाभिकीय विकिरण से बचाव के लिए 1945 से शोध चल रहा है जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बन से आक्रमण किया था। युनियन आफ कन्र्शन्ड साइंटिस्ट्स के नाभिकीय मामलों के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डेविड लोकबम के अनुसार परमाणु बम विस्फोट के थोड़ा पहले या शीध्र विस्फोट के बाद पोटिशियम आयोडाइड की गोलियां ले लेने से थायराइड ग्रंथि मे  कैंसर होने का भय नहीं रहता। 

हमारे शरीर में थयराइड ग्रंथि को आयोडीन की प्रचुर आवश्यकता रहती है। थायराइड ग्रंथि से स्रावित पदार्थ हमारे शरीर की उपापचय पद्धति का नियमन करते हैं। पोटैशियम आयोडाइड नाभिकीय विकिरण अवपात से थायराइड की रक्षा करता है विशेष कर बच्चों को जो कि शीध्र ही विकिरण के प्रभाव से प्रभावित होते हैं। लेकिन परमाणु बम विस्फोट के बाद पोटैशियम आयोडाइड लेकर लोगों को निश्चित नहीं हो जाने चाहिए, यह तो त्वरित प्रभाव से रोकथाम मात्र है अत: विस्फोट के बाद लोगों को और अधिक विकिरण से बचने के लिए सुरक्षित स्थान पर भाग जाना चाहिए।

अन्य प्राणि जातियों पर प्रभाव 

मानव के साथ-साथ नाभिकीय प्रदूषण अन्य प्राणि जातियों के स्वास्थ्य तथा उनके विभिन्न व्यवहारिक क्रियाकलापों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नाभिकीय अवपात के फलस्वरूप विभिन्न खनिज तत्वों के रेडियोधर्मी समस्थानिक (पोटेशियम-40, आयोडिन-131, कैल्शियम-45 आदि) वनस्पतियों द्वारा खनिज अवशेषण के समय मृदा से अवशोषित कर लिए जाते हैं तथा यह पदार्थ श्रृंखला के माध्यम से विभिन्न स्तर के जीवों के शरीर में पहुंच कर कुप्रभाव डालते हैं। 

रेडियोधर्मी पदार्थों से संदूषित घास, तिनकों, दानों आदि खाने से पक्षियों के अण्डों में शिशु निर्माण प्रक्रिया रूक जाती है। रेडियोधर्मी पदार्थों के जलराशियों में प्रभावित होने से जलचरों विशेषकर के शिशुओं लार्वा तथा अन्य छोटे जीवों की संख्या में अवांछनीय कमी होती है। कुछ रेडियोधर्मी तत्व कीट-पतंगों के जीवन चक्र की अवस्थाओं को नष्ट कर देते है।। जिससे इनकी प्रजातियों के विलुप्त होने का संकट उत्पन्न हो जाता है।

वनस्पतियों पर प्रभाव 

नाभिकीय अथवा रेडियोधर्मी प्रदूषण का प्रभाव वनस्पतियों की प्रचूरता, कार्यिकी तथा गुणवत्ता (अर्थात रेडियोधर्मी पदार्थों का पादपों के समंपूर्ण तंत्र) पर पड़ता है। नाभिकीय विस्फोटों के फलस्वरूप इतनी अधिक मात्रा मे उर्जा निकलती है जिससे 16 वर्ग किमी. तक के क्षेत्र का स्थान पादपों के क्रियात्मक तंत्रों में ले लेते हैं। जिससे पादपों की विभिन्न कियाएं- जैसे रसारोहण, प्रकाश-संश्लेषण, श्वसन, पुष्पन तथा जनन व्यवधानित होते हैं।

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