भारत में वनों के प्रकार, भारत के वनों का वर्गीकरण \\ Types Of Forest In India

भारत में वनों के प्रकार और वर्गीकरण

भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत में कुल वन क्षेत्र 7,12,249 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.67 प्रतिशत है। वर्ष 2017 में भारत में कुल वन क्षेत्र 70,82,73 किलोमीटर की कमी आयी है। 

भारत में वनों के प्रकार

भारत में 17 प्रकार के वनों का उल्लेख किया गया है। भारत में सर्वाधिक 40.86 प्रतिशत पर उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन है।

वन प्रकारक्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर)कुल का प्रतिशत
उष्णकटिबंधीय आद्र
सदाबहार वन
20,0542.61
उष्णकटिबंधीय
अर्ध-सदाबहार वन
71,1719.27
उष्णकटिबंधीय आद्र
पर्णपाती वन
1,35,49217.65
तटीय व दलदली वन5,5960.73
उष्णकटिबंधीय शुष्क 
पर्णपाती वन
3,13,61740.86
उष्णकटिबंधीय कटीले वन20,877 2.72
उष्णकटिबंधीय शुष्क
सदाबहार वन
9370.12
उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी
पत्ती वाले वन
32,7064.26
उपोष्ण कटिबंधीय देवदार
वन
18,1022.36
उपोष्ण कटिबंधीय शुष्क
सदाबहार वन
1800.02
पर्वतीय आद्र समशीतोष्ण
वन
20,4352.66
हिमालय नम समशीतोष्ण
वन
25,7433.35
हिमालय शुष्क समशीतोष्ण
वन
56270.73
उप-अल्पाइन वन14,9951.96
नम अल्पाइन स्क्रब9590.13
शुष्क अल्पाइन स्क्रब29220.38
बागवानी/टीओएपफ64,8398.45

भौगोलिक आधार पर वनों का वर्गीकरण

भौगोलिक आधार पर वनों का वर्गीकरण कर इन्हें बांटा गया हैं।

1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन - यह वन उन भागों में मिलता है। जहां का तापमान 240 से.ग्रे के आस पास तथा वार्षिक वर्षा 200 से.मी. से अधिक होती हैं। ये वृक्ष सदैव हरे भरे दिखा पड़ते हैं। इनकी लकड़ी काले रंग की तथा कठोर दिखा देती हैं। मुख्य वृक्ष रबड़, महोगनी, एबोनी, ताड़, आबनूस, बाँस आदि हैं। ये वन पश्चिमी तटीय प्रदेश, पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्वी पर्वतीय प्रदेश एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाये जाते है।

2. आद्र मानसूनी वन - ये वन उनभागों में मिलते हैं। जहां का वार्षिक तापमान 200 से अधिक तथा वर्षा 100 से 200 से.मी. तक होती हैं। ये वृक्ष एक विशेष मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं । ये कम सघन हैं। इन वनों में सागौन, साखू, कुसूम, पलास, सीसम, आंवला, नीम, चंदन प्रमुख वृक्ष हैं। ये वन छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु के भागों में पाये जाते है।। चंदन की लकड़ी सुगंिन्धत होती है।, सागौन सबसे बहुमूल्य य फर्नीचर उद्योग के लिये मानी जाती हैं।

3. शुष्क मानसूनी वन - इन वनों के पत्ते ग्रीष्म ऋतु में गिरने आरम्भ हो जाते है।। जहां का तापमान औसत 240 से.ग्रे. होता हैं। वर्षा 50 से 100 सेमी. होती हैं। ये वन पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में पायें जाते हैं। इन भागों में अधिकतर खेजड़ा खैर, बबूल, महुआ,कीकर, नागफनी, खजूर आदि मिलती हैं।

4. मरूस्थलीय वन - यहां अधिक तापमान रहता हैं तथा वर्षा भी मात्र 50 सेमी. से कम होती हैं। यहां पाये जाने वाले वृक्षों में नागफनी, बेर, खजूर, केकटस प्रमुख हैं। थार के मरुस्थल व दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के वृष्टि छाया वाले क्षेत्र में मिलते हैं।

5. ज्वारीय वन - इन्हें डेल्टा या सुंदरी वन भी कहते हैं। क्योंकि ये डेल्टा क्षेत्र में अधिकता से पा जाते है। तथा यहां सुंदरी नाम के वृक्षों की प्रधानता होती है। ये सदा हरे भरे रहते हैं। अन्य प्रकार के वृक्षों में मैनग्रोव के अलावा केवड़ा, नारियल, मोगरा, व गोरडोल हैं। गंगा एंव बम््रहपुत्र के डेल्टा में पाये जाते है।।

5. पर्वतीय वन - ये दो भागों में बाटे गये हैं:-

1. पूर्वी हिमालय के वन -
  1. उष्ण कटिबंधीय वन 
  2. शीतोष्ण कटिबंधीय वन 
  3. शीत शीतोष्ण कटिबंधीय वन 
  4. 5000 मीटर से ऊपर के वन 
2. पश्चिमी हिमालय के वन -
  1. अर्द्ध उष्ण कटिबंधीय वन 
  2. शीतोष्ण कटिबंधीय वन 
  3. अधिक ऊँचा वाले वन । 

वनों से लाभ

संपूर्ण भारत में वनों के अस्तित्व को बनायें रखने के लिये अनेक उपाय किये जा रहें हैं। जगह, जगह वृक्षारोपण पर्वतीय भागों में वनारोपण कार्यक्रम चलाये जा रहें हैं। यदि भारतीय जनमानस अपने बच्चों के समान देख भाल करें तो अनेक लाभ मिलेंगे। वनों से देश की अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलता हैं।

1. वनों के प्रत्यक्ष लाभ

  1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि :- वर्तमान में देश की आय का लगभग 2 प्रतिशत या लगभग 4000 करोड़ रुपये मिलते हैं। 
  2. ईधन :- यह भारतीय ईधन खासकर ग्रामीण जनों का मुख्य ईंधन का कार्य करती है।। 
  3. व्यवसाय का स्त्रोत :- वन लगभग 60 लाख व्यक्तियों को व्यवसाय प्रदान करता हैं। 
  4. औद्योगिक कच्चा माल की पूर्ति :- ये लाख, बिड़ी, कागज, प्लावुड, रबर, रेशम एवं फर्नीचर उद्योगों के लिये कच्चामाल प्रदान करता हैं। वनो से मिलने वाली जड़ी बूटियों से अनेक प्रकार की दवाइयाँ बनायी जाती हैं। 

2. वनों के अप्रत्यक्ष लाभ

  1. बाढ़ एवं मिट्टी के कटाव से बचत करते हैं। 
  2. वर्षा को आकर्षित करते हैं। 
  3. इनसे तापमान में नियंत्रण होता हैं। 
  4. रेगिस्तान के विस्तार को वृक्ष लगाकर रोका जा सकता है। 
  5. मिट्टी में उर्वरा शक्ति बनायें रखते हैं। 
  6. मानव के मनोरंजन एवं पर्यटन के स्थल हैं।

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