बैंक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, मुख्य विशेषताएं

बैंक का अर्थ

इटली को बैंक शब्द की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है, वहाँ पर लोम्बार्ड यहूदीयों द्वारा अपने व्यापार के संचालन हेतु बेंच लगाते थे। बैंच के लिए इतालवी शब्द बैंकों है। इस तरह बैंकों की यह व्यवस्था व्यापारिक बिलों और धन के निर्बाध आदान-प्रदान के लिए स्थापित की गई थी । ऐसी व्यवस्था के कारण लोगों द्वारा उन्हें बैंकों कर्मियों, विशिष्ट बैंकों या बैंकों क्षेत्र के द्वारा सम्बोधित किया जाता था। धीरे-धीरे लोगों द्वारा इस कार्य हेतु आधुनिक बैंक शब्द का उच्चारण किया जाने लगा। समय बीतने के साथ ही जब वित्तीय संगठनों द्वारा बैंकों की तरह समान उद्देश्य के कार्यों को करना प्रारम्भ किया तब जनता द्वारा उन्हें पहले बैंकों और बाद में बैंक का नाम दिया गया। 

कुछ विद्वानों का मत है कि बैंक शब्द का मूल फ्रेंच शब्द Beque है, जिसका अर्थ भी बेंच है। कुछ विद्वानों का विश्वास है कि बैंक शब्द की उत्पत्ति जर्मन शब्द Banck द्वारा हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ एक ढेर या संयुक्त स्कंध निधि है । लेकिन शायद बैंक शब्द अलग-अलग भाषा के अलग-अलग शब्दों जर्मन के Banck का, फ्रेंच भाषा के Banko एवं इटालियन भाषा के Banck से बदलता हुआ अंग्रेजी भाषा में Bank नाम से मशहूर हुआ।"

भारतीय बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के अनुसार, “बैंकिंग का अभिप्राय जनता से (उधार देने अथवा निवेश करने हेतु ) मुद्रा के निक्षेपों को स्वीकार करना है, जो माँग पर अथवा चैक, ड्राफ्ट आदि द्वारा देय होते हैं”।

प्रो किनले के अनुसार “बैंक एक ऐसी संस्था है जो ऋण की सुरक्षा का ध्यान हुए उसे ऐसे व्यक्तियों को उधार देती है जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है और रखते जिनके पास व्यक्तियों द्वारा अपना अतिरिक्त रुपया जमा किया जाता है" ।

प्रो. फिण्डले शिराज के अनुसार, “बैंकर उस व्यक्ति, फर्म या कम्पनी को कहा जाता है जिसके पास कोई ऐसा व्यापारिक स्थान हो जहाँ मुद्रा अथवा करेंसी के जमा द्वारा साख का कार्य किया जाता है और जिसकी जमा का ड्राफ्ट, चैक या आर्डर द्वारा भुगतान किया जाता हो, या जहाँ स्टॉक, बॉण्ड धातुओं और विपत्रों पर मुद्रा उधार दी जाती हो अथवा जहाँ प्रतिज्ञा पत्र बट्टे पर बेचने के लिए स्वीकार किये जाते हो”।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि बैंक एक ऐसा कानूनी संस्थान है जहाँ जमा स्वीकार किया जाता है और माँग पर भुगतान किया जाता है। इसके अतिरिक्त बैंक द्वारा व्यक्तियों और संस्थाओं को विभिन्न प्रकार के ऋण भी प्रदान किये जाते हैं । इसके अलावा भी बैंक द्वारा कई अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, जैसे विपत्रों का संग्रहण, जरूरी दस्तावेज एवं आभूषण आदि कीमती सामान रखने के लिए लॉकर सुविधा, विनियोग करना, विदेशी बिलों का भुगतान, आदि।

इसके अतिरिक्त बैंक द्वारा व्यापार में वस्तुओं और सुविधाओं के विनिमय में सहायता के लिए कई प्रकार की सेवाएँ प्रदान की जाती है । इस प्रकार बैंक व्यापार का एक मुख्य सहायक बन चुका है। बैंक द्वारा न केवल व्यापार में उत्पादन और सेवाओं के लिए धन उपलब्ध करवाया जाता है बल्कि यह क्रेता और विक्रेता के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में भी कार्य करता है । हमारे देश में बैंकिंग गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कई कानून लागू किये गये हैं जिसके द्वारा बैंकों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित होता है ।

विश्व बैंकिंग का इतिहास

दूसरी शताब्दी ई. पू. में बेबीलोनिया में बैंकिंग गतिविधियाँ पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण थी और लेखा मानकों का भी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता था। ये लेखा मानक हम्बूरावि सभ्यता के सामान्य कानूनों का हिस्सा थे। यह जरूर है कि प्राचीन आदिम बैंकिंग लेनदेन, आधुनिक बैंकिंग लेनदेन से कई मायनों में अलग थे। यहाँ जमा के रूप में धन नहीं अपितु पशु, अनाज, फसल एवं कीमती धातुओं को स्वीकार किया जाता था। फिर भी आज की बैंकिंग प्रणाली में निहित कुछ बुनियादी अवधारणा इस प्राचीन व्यवस्था में भी मौजूद थी। इन प्राचीन व्यवस्थाओं में जमा की एक विस्तृत श्रृंखला को स्वीकार किया जाता था और ऋण प्रदान किये जाते थे और उधारकर्ताओं द्वारा उधारदाताओं को ब्याज का भुगतान भी किया जाता था।

उपरोक्त प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था प्राचीन मिस्र में भी पायी जाती थी। इस व्यवस्था में अनाज के केन्द्रकृत राज्य गोदामों में फसलों का भण्डारण किया जाता था। जमाकर्ताओं द्वारा भुगतान के रूप में एक निश्चित मात्रा में अनाज की निकासी का एक लिखित आदेश जारी किया जाता था। यह व्यवस्था इतने अच्छे ढंग से संचालित होती थी कि बैंकों द्वारा मुद्रा में व्यवहार किये जाने के बाद भी यह व्यवस्था अस्तिव में रही।

हमें आधुनिक बैंकिंग प्रथाओं की झलक मध्यकालीन इतालवी शहरों फ्लोरेस, वेनिस और जेनोआ से भी प्राप्त होती है। इतालवी बैंकरों द्वारा युद्धों और वैभवशाली जीवन के लिए प्रधानों को ऋण दिया जाता था। वास्तव में यह बैंक व्यापारिक परिवारों द्वारा व्यावसायिक गतिविधियों के अतिरिक्त एक भाग के रूप में स्थापित की जाती थी। 14वीं शताब्दी में बर्डी एवं पेरूज्जी परिवारों द्वारा अपने व्यापार को सुविधा प्रदान करने के लिए यूरोप के विभिन्न भागों में बैंकिंग शाखाएँ स्थापित की थी। इन दोनों बैंकों द्वारा इंग्लैंड के एडवर्ड तृतीय को फ्रांस के खिलाफ 100 साल चले युद्ध के लिए ऋण प्रदान किया गया। लेकिन एडवर्ड तृतीय के नाकाम होने से ये दोनों बैंक असफल हो गये।

शायद सबसे प्रसिद्ध मध्ययुगीन इतालवी बैंकों में “मेडिसी बैंक” था जिसकी स्थापना गियोवन्नी मेंडिसी द्वारा 1397 में की गई थी । मुद्रा परिवर्तकों के रूप में मेंडिसी का एक लंबा इतिहास है, लेकिन वो गियोवन्नी ही था जिसने एक हरी टेबल से व्यवसाय को महल में स्थानान्तरित कर दिया जो उसने स्वयं के लिए बनवाया था । उसने व्यापार का क्षेत्र बढ़ाने के लिए बैंक की शाखाओं का विस्तार लंदन में किया। मेंडिसी द्वारा व्यापारियों और राजपरिवारों को भी ऋण प्रदान किया जाता था साथ ही साथ उसे पोप का बैंकर होने का गौरव भी प्राप्त था ।

मध्ययुगीन समय में बैंकों द्वारा अपना अधिकांश अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विनिमय विपत्र के माध्यम से किया जाता था । विपत्र को सरल शब्दों में कहें तो लेनदार द्वारा देनदार को विदेशी मुद्रा इस वादे पर प्रदान की जाती थी कि भविष्य में देनदार द्वारा उसे विदेशी मुद्रा प्रदान की जाएगी। सामान्यतः बड़े अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों के समय ब्याज लगाने पर प्रतिबन्ध के कारण व्यापारियों एवं बैंकों के बीच सम्बन्ध आवश्यक था। बैंकरों द्वारा एक शहर में राशि जमा की जाती थी और माल एवं परिवहन करने वाले व्यक्ति को सुपुर्दगी देने के बाद अन्य शहर में उस राशि का भुगतान कर दिया जाता था जो उसे जमा के रूप में प्राप्त होती थी । चूंकि यह ऋण एवं भुगतान अलग-अलग मुद्रा में विभिन्न समयों पर होता था अतः इसमें ब्याज की अघोषित राशि भी शामिल होती थी । यह सब घोषित रूप से चर्च के द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों की वजह से नहीं होता था । एक दिलचस्प बात यह है कि इन मध्ययुगीन बैंकों द्वारा दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों को अपनाया जाता था।

समय के साथ बैंकों की एक संघ चार्टर्ड प्रणाली ( Federally chartered system of bank) को लागू किया गया । यह कानून राष्ट्रीय बैंक को नोट जारी करने एवं राज्य बैंक द्वारा जारी नोटों पर कर लगाने का अधिकार देता था। इससे राज्य बैंक द्वारा जारी किये गये नोट पर केन्द्रीय बैंक की भी गारंटी होती थी, जो राज्य बैंक के फेल हो जाने पर नोटधारक को सुरक्षा प्रदान करती थी।

इस नये कानून के द्वारा सभी बैंकों को संघीय पर्यवेक्षण के अर्न्तगत लाया गया। संक्षेप में वर्तमान बैंकिंग प्रणाली की आधारशिला रखी गयी।

बैंक की परिभाषा 

किनले के अनुसार “बैंकर अपने और अन्य लोगों के ऋण का व्यवसायी होता है।”

क्राउथर के अनुसार “बैंक वह व्यक्ति या संस्था है जो सदैव जमा के रूप में मुद्रा को लेने और उसे जमा करने वालों के चैकों द्वारा लौटाने के लिए तैयार रहती है।”

वाल्टर लीफ के अनुसार “बैंकिंग से तात्पर्य ऋण देने अथवा विनियोग के आशय से जनता से जमाएँ प्राप्त करना है जोकि माँग पर भुगतान योग्य होती है तथा चैक, ड्राफ्ट अथवा अन्य प्रकार की आज्ञा द्वारा शोधनीय होती है”

केंट के अनुसार:- ‘‘केंट ने अपनी परिभाषा के अन्तर्गत बैंक को एक संगठन के रूप में परिभाषित किया हैं जिसका प्रमुख संचालन आम जनता के अस्थायी रूप से निष्क्रिय धन के संचय से संबंधित हैं जो व्यय के लिये दूसरों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।

सेयेट के अनुसार - ‘‘साधारण बैंकिंग व्यवसाय में बैंक जमा के लिये नगदी बदलना और नगदी के लिये बैंक जमा आदि शामिल हैं। बैंक जमा को एक व्यक्ति या निगम से दूसरे को स्थानांतरित करना, विनिमय के बिलों के बदले बैंक जमा देना, सरकारी बाँड सुरक्षित या असुरक्षित बादे आदि शामिल हैं।’’

क्रॉथर के अनुसार- ‘‘एक बैंक अपने तथा अन्य लोगों के लिये एक डीलर हैं।’’

जॉन हैरी के अनुसार- ‘‘बैंक एक आर्थिक संस्थान हैं जिसका मुख्य उद्देश्य पैसे और क्रेडिट साधन के आदान-प्रदान के माध्यम से लाभ कमाना हैं।’’

आर. पी. केन्ट के अनुसार- ‘‘एक बैंक एक संस्था हैं जिसका प्रमुख कार्य लोगों के बिना सोचे समझे धन एकत्रित करना और दूसरे लोगों को उधार देना शामिल हैं।’’

आर.एस.सेयर्स के अनुसार - ‘‘बैंक वे संस्थान होते हैं जिनके ऋणों को आमतौर पर अन्य लोगों के निपटान में स्वीकार किया जाता हैं।’’

केयरक्रॉस के अनुसार - ‘‘एक बैंक ऋण एवं ऋण डीलर के रूप में एक वित्तीय मध्यस्थ हैं।’’

चैम्बर्स शब्दकोश में बैंक का अर्थ ’’मुद्रा जमा करने, ऋण देने एवं मुद्रा का व्यवहार करने वाली संस्था के रूप में वर्णित हैं।

बैंकों के विभिन्न प्रकार

हमारे देश में विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं जैसे कृषि, व्यापार, पेशा आदि को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के बैंक कार्यरत हैं । भारत में निम्न प्रकार के बैंक कार्यरत हैं :-

(A) केन्द्रीय बैंक :- केन्द्रीय बैंक को बैंकों का बैंक कहा जाता है । प्रत्येक देश में इस प्रकार का एक ही बैंक होता है। हमारे देश में केन्द्रीय बैंक की भूमिका का निर्वहन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है। इसके द्वारा समय-समय पर बैंकों को मार्गदर्शन देने का कार्य किया जाता है । केन्द्रीय बैंक द्वारा सरकार के विभिन्न मदों पर किये गये व्यय एवं प्राप्त आय का भी हिसाब रखा जाता है। इसके द्वारा सरकार को समय-समय पर मौद्रिक एवं साख नीति पर सलाह देने का कार्य भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा विनिमय दर, बैंकों द्वारा जमा राशि पर दिये जाने वाले एवं ऋण प्रदान करने पर लिये जाने वाले ब्याज की दर का भी निर्धारण केन्द्रीय बैंक के द्वारा किया जाता है

इन सबके अतिरिक्त रिजर्व बैंक द्वारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो किया जाता है वह है देश की मुद्रा का निर्गमन । रिजर्व बैंक के अतिरिक्त किसी अन्य बैंक द्वारा हमारे देश में मुद्रा का निर्गमन नहीं किया जा सकता है केवल 1 रु. का नोट केन्द्र सरकार के वित्त विभाग द्वारा जारी किया जाता है ।

(B) व्यापारिक बैंक (Commercial Bank) :- यह बैंकों का सर्वाधिक प्रचलित स्वरूप है। इन्हें वाणिज्यिक बैंक या अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक भी कहते हैं। इन बैंकों का प्रमुख कार्य सामान्य बैंकिंग का कार्य करना होता है । इनके द्वारा मुख्य रूप से जमा स्वीकार किये जाते हैं और विभिन्न प्रकार के लघु एवं दीर्घकालीन ऋण प्रदान किये जाते हैं। इसके साथ ही व्ययों का भुगतान करना, आयों का संग्रहण करना एवं बिलों का भुगतान करना आदि शामिल है। व्यापारिक बैंक मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं :-

1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक :- ये वे बैंक होते हैं जिनकी ज्यादातर हिस्सेदारी केन्द्र सरकार एवं रिजर्व बैंक के पास होती है। इस तरह के बैंकों में मुख्य रूप से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, सेन्ट्रल बैंक आदि प्रमुख हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 19 राष्ट्रीयकृत बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसकी सहयोगी अन्य 5 बैंक शामिल हैं।

2. निजी क्षेत्र के बैंक :- ये वे बैंक होते हैं जिनकी ज्यादातर हिस्सेदारी निजी व्यक्तियों एवं संस्थाओं के हाथ में होती है। इन बैंकों द्वारा भारत में पंजीकृत कम्पनियों की तरह कार्य किया जाता है जिनका दायित्व सीमित होता है उदाहरण के लिए द जम्मू एण्ड काश्मीर बैंक । ये बैंक सामान्यतः पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत होते हैं। इनकी कार्य प्रणाली आधुनिक है एवं इनके द्वारा ग्राहकों को त्वरित एवं तुरन्त सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। इन बैंकों से परम्परागत वाणिज्यिक बैंकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है एवं उन्हें अपनी कार्यप्रणाली एवं ग्राहक सेवा स्तर सुधारने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इन बैंकों का भारत में भविष्य उज्ज्वल है।

3. विदेशी बैंक :- इन बैंकों का पंजीकरण एवं मुख्यालय विदेश में स्थित होता है। परन्तु इनके द्वारा अपनी शाखाओं के माध्यम से भारत में कार्य किया जाता है। कुछ विदेशी बैंकों द्वारा भारत में सफलतापूर्वक बैंकिंग के क्षेत्र में नयी तकनीक को अपनाया गया, जिससे बैंकिंग का कार्य काफी हद तक आसान हो गया। विदेशी बैंकिंग अवधारणा ने भारत में प्रचलित बैंकिंग परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। अब बैंकिंग का क्षेत्र पहले की तुलना में काफी प्रतिस्पर्धात्मक एवं ग्राहकोन्मुखी हो गया है। सन् 1994 के बजट में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा विदेशी बैंकों के सम्बन्ध में कुछ नये नियम तय किये गये । विदेशी बैंकों द्वारा देश में अब अपनी सहायक बैंकों की स्थापना की जा सकती है, लेकिन इसके अतिरिक्त उन पर यह प्रतिबन्ध भी लगाया गया है कि वे किसी भी भारतीय बैंक का तब तक अधिग्रहण नहीं कर सकते हैं, जब तक रिजर्व बैंक द्वारा उन्हें कमजोर बैंक घोषित नहीं किया जाता। इसके साथ ही विदेशी बैंक की सहायक बैंक भी अपनी शाखाएँ देश में स्वतंत्रतापूर्वक नहीं खोल सकती। भारत में कार्य कर रही प्रमुख विदेशी बैंक अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक, अबुधाबी कॅमर्शियल बैंक, बार्कलेस बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका आदि प्रमुख हैं ।

(C) सहकारी बैंक :- भारत में सहकारी बैंकों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों की कृषि सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाना था, जिससे कि साहूकारों द्वारा ऊँची ब्याज दर पर कृषि कार्यों के लिए ऋण उधार देकर उनका शोषण न किया जा सके।

भारत में सहकारी बैंक, सहकारी सोसायटी अधिनियम के द्वारा पंजीकृत एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विनयमित हैं। वे बैंकिंग विनियम अधिनियम 1949 और बैंकिंग कानून (सहकारी सोसायटी) अधिनियम 1965 द्वारा भी नियमित हैं।

बैंक की मुख्य विशेषताएं

  1. बैंक एक वाणिज्यिक संस्थान है जिसका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है।
  2. बैंक मुद्रा का कारोबार करता है।
  3. बैंक जमा स्वीकार करता है तथा अग्रिम ऋण प्रदान करता है।
  4. बैंक साख का सृजन करता है।
  5. बैंक एवं विशिष्ट वित्तीय संस्थान है जो मांग जमाओ का सृजन करता है जो कि विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करता है।
  6. बैंक मुद्रा की आपूर्ति को प्रभावित करता है।
  7. बैंक देश की भुगतान प्रणाली का प्रबन्धन करता है।

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