दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

सन 1200 से 1526 के दौरान उत्तर भारत के विशाल भू-भाग पर शासन करने वाले शासकों को सुल्तान तथा उनके शासन काल को दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना गया। ये शासन मूलत: तुर्क तथा अफग़ान मूल के थे। उन्होंने उत्तर भारत के मुख्य वंशों, मुख्यत: राजपूतों को हराकर अपनी सत्ता की स्थापना की। आक्रमणकारी तुर्क मुहम्मद गोरी ने प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज चौहान को सत्ता से अलग कर दिल्ली में अपना राज्य स्थापित किया था। इन सुल्तानों ने सन 1200 से 1526 तक लगभग 300 वर्षों से अधिक शासन किया। सल्तनत के आखिरी सुल्तान इब्राहिम लोदी को सन 1526 में मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने पराजित कर भारत में मुगल वंश की नींव डाली थी।

इन 300 वर्षों की कालावधि में पांच विभिन्न वंशों ने दिल्ली पर शासन किया था। ये थे, गुलाम वंश के नाम से मशहूर ‘मामलुक’ (1206-1290 ई.), खिलज़ी वंश (सन 1290.1320), तुगलक वंश (सन 1320.1412), सैय्यद वंश (सन 1412.1451) तथा लोधी वंश (1452.1526) इन सभी वंशों का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना जाता है।

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

1. स्थायी सेना समाप्त करना - फिरोज शाह तुगलक ने स्थायी सेना समाप्त करके सामन्ती सेना का गठन किया । सैनिकों के वेतन समाप्त कर के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अनुदान दिया गया । अमीरों के भूमि वंशानुगत कर दिए गए थे उसी तरह सैनिकों की भूमि भी वंशानुगत कर दिया गया । सैनिक सुखी पूर्वक स्वच्छाचारिता पूर्ण कार्य करने लगा । उन्हें भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता था इसलिए उन्हें किसी का डर भी नहीं था । नियमित व निश्चित भूमिकर प्राप्त होने से सैनिक आलसी विलास प्रिय होने लगा । उसका अधिकांश समय लगान वसुली में लगता था। राज्य सुरक्षा के लिए समय नहीं बच पाता था । इस तरह शिथिल सैनिकों का लाभ विदेशियों ने उठाया

2. गुलाम प्रिय शासक - दिल्ली सल्तनत गुलामों का शौकिन था । गुलामों को अपनी शक्ति मानकर उनके प्रशिक्षण के पृथक विभाग की स्थापना किया । दासों को पर्याप्त वेतन और सुविधाएं देने के कारण राजकोष पर भारी आर्थिक दबाव पड़ा । आगे चलकर दासों ने संगठित होकर तुगलक के साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह करने लगे ।

3. जजिया व अन्य कर लगाना - सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने ब्राम्हणों व गैर मुसलमानों पर धार्मिक कर लगा दिया जिससे, हिन्दू व गैर मुसलमान सुल्तान के विरूद्ध हो गये ।

4. न्याय व्सवस्था में लचीलापन - सुल्तान तुगलक के न्याय शरियत के आधार पर न करके सभी अमानवीय दण्डों को शरियत के विरूद्ध मानकर बन्द कर दिया । उसने मुसलमानों के लिए मृत्यु दण्ड समाप्त कर दिया । मृत्यु दण्ड विद्रोहीयों को ही दिया जाने लगा । न्याय की लचीलापन के कारण प्रजा स्वतंत्रता व स्वेच्छाचारिता होने लगे ।

5. आर्थिक संकट- सुल्तान ने युद्ध और विजय की अपेक्षा शांति पूर्वक प्रजा की सुख- सुविधा की और ध्यान दिया, कृषि के विकास के लिए नहरें, तालाब, कुओं का निर्माण करवाया । किसानों को पूर्व से लगान पता था कि उन्हें कितना कर देना पड़ेगा । भूमि लगान वसूली में कोई सख्ती नहीं बरती, उलेमाओं के परामर्श से लगान उपज का 1/10 भाग निर्धारित किया गया ।

6. व्यापार को प्रोत्साहन- सुल्तान ने व्यापार व्यावसाय को प्रोत्साहन दिया निश्चित बाजार निर्धारित किया । बाजार नियंत्रित था, कोई व्यापारी जनता का अनावश्यक शोषण नहीं कर सकते थे । व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया था, व्यापारी दुरस्थ क्षेत्रों में भी जाकर निश्चित व्यापार करते थे । व्यापार की सुविधा के लिए कम दाम के मुद्रा का प्रचलन किया व सिक्के चलाए ।

7. जन सहायता के कार्य - सुल्तान ने विभिन्न प्रयोग कार्य के कारण आम जनता को जो आर्थिक हानि हुई जिसका क्षतिपूर्ति राजकोष से मुआवजा देकर किया । जिससे राजकोष पर आर्थिक भार पड़ा । बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्रदान किया गया । व्यवसाय का विकास किया । बेरोजगारों की सहायता के लिए रोजगार दफ्तर खोले ।

8. दीवान-ए-खैरात - लोगों को नुकसान व आर्थिक संकट के समय आर्थिक सहायता प्रदान किए दीवान ए खैरात विभाग की स्थापना किया, जो मुसलमान विधवाओं और अनाथ बच्चों की आर्थिक सहायता करते थे । निर्धन मुसलमान लड़कियों के निकाह में आर्थिक सहयोग देता था। रोगियों के लिए अस्पताल की व्यवस्था किया था ।

9. प्रशासनिक दुर्बलता - फिरोज तुगलक के उदार हृदय ने सभी के दिलों को जीत लिया था किन्तु कुछेक राज द्रोहीयों व शत्रुओं ने इसका नाजायज लाभ उठाना चाहा और स्थानिय राजाओं को भड़काना प्रारंभ किया । जिसके कारण प्रान्तीय राज्य जैसे- बंगाल, गुजरात, जौनपुर, मालवा स्वतंत्र होने लगे व दिल्ली सल्तनत से नाता तोड़ने लगा ।

10. स्थापत्य कला- सुल्तान ने अनेक मदरसों व मकबरे की स्थापना किया गया । वास्तुकला प्रेमी यहां विद्वानों शिक्षकों की नियुक्ति किया, मस्जिद ए जामा हौज ए अलहि की मरम्मत करवाये । कुतुबमीनार में आवश्यक सुधार कार्य करवाये ।

11. शिक्षा- शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए विद्वानों का आदर करता था । इसके शासन काल में बरनी ने दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों (1) फतवा ए जहांदारी (2) तारीखें फिरोजशाही का लेखन किया। उर्दू व अन्य सहित्यों का फारसी में अनुवाद भी करवाये ।
सुल्तान स्वयं इतिहास, धर्मशास्त्र, कानून जैसे साहित्यों पर रूचि रखते थे । प्रत्येक शुक्रवार को अपने दरबार में विद्वानों, कलाकारों, संगीतज्ञों का दरबार लगता था । हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमानों को अधिक प्रिय समझते थे । इसलिए मुसलमानों की शिक्षा पर अधिक जोर दिया । सुल्तान ने अपनी मुस्लिम प्रजा की शिक्षा के लिए शालाएं और उच्च विद्यालय स्थापित किये । मस्जिदों में प्राथमिक शालाएं बनवायी प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा मकतब एवं मदरसों की स्थापना की। इल्तुमिश ने भी दिल्ली में उच्च विद्यालय की स्थापना की ।

राज्य व प्रदेश सभी राजधानियों एवं शहरों में अनेक विद्यालयों की स्थापना की गई । जौनपुर शिक्षा के केन्द्र थे । बीदर में महाविद्यालय और पुस्तकालय की स्थापना की । मंगोल आक्रमणों से डर कर शिक्षा शास्त्रियों एवं विद्वानों ने दिल्ली में शरण लेकर प्राण बचाये । दिल्ली में रहने के कारण साहित्यों का अधिक विकास हुआ।

तैमूर का आक्रमण 

प्रारम्भिक आक्रमण - तैमूर ने शीघ्र ही ट्रासं अक्सि माना, तुकीर्स्तान, अफगानिस्तान, पर्शिया, सीरिया, तुर्किस्तान एशिया माइनर का कुछ भाग बगदाद, जार्जिया, खारिज्म, मेसोपोटामिया आदि जीत लिया इसके पश्चात उनहोंने आक्रमण किया । भारत पर आक्रमण निम्न कारणों से किया था -
  1. धन प्राप्त करना - तैमूर का उद्देश्य भारत पर आक्रमण करके लुट मार करना व धन की प्राप्ति करना था । यहां की शांति प्रिय क्षेत्रों पर कब्जा करना व धन प्राप्ति करना था ।
  2. शिया व गैर मुस्लिम धर्माविलम्बियों को समाप्त कर काफिरों व गद्दारों को डरा धमका कर मुस्लिम धर्म मानने के लिए बाध्य करना ।
  3. अति महत्वकांक्षी व्यक्ति - तैमूर अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति था जिसके कारण बहुदेव वाद व अन्ध विश्वास का े समाप्त करके ईश्वर का समथर्क एव  सैि नक बनकर गाजी मुजाहिर कायद प्राप्त करना चाहते थे । 
तैमरू के आक्रमण का सामना - तात्कालिक शासक नासिरूद्दीन महमूद नहीं कर पाया और दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण हो गए । तैमूर आक्रमण के दौरान मार्ग में लुटपाट करते हुए दिल्ली की ओर आने लगा, लोगों की हत्या आम बात हो गई । तैमूर पादन, दीपालपुर, भटनेर, सिरसा, कैथल पानीपत होता हुआ उन्हें लुटता तथा काण्ड करना हुआ ।

1398 ई. को दिल्ली पहुचा। तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश और दिल्ली सल्तनत दोनों लिए घातक बना । अकेले दिल्ली में ही लाखों लागों को बन्दी बनाए गये । व हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया । तैमूरलंग की सेना और महमूद शाह की सेना के मध्य 17 दिसम्बर 1398 ई. को युद्ध हुआ। तैमूर आक्रमण होते ही तैमूर के प्रतिनिधि और मुल्तान के शासक ने पंजाब में अधिकार कर लिया, तुगलक वंश के समाप्त होते ही खिज्र खां पूरे दिल्ली पर अधिकार कर लिया और शासक बन गया।

तैमूर के आक्रमण का प्रभाव तैमूर आक्रमण अत्यन्त भयावह था । इनका प्रभाव पड़ा -
  1. महाविनाश - तैमूर  के आक्रमण ने दिल्ली, राजस्थान एवं उत्तर पश्चिमी सीमा पा्र न्त पूर्णत: उजाड़ दिया । फसलें नष्ट हो गई, व्यापार चौपट हो गया । हजारों व्यक्तियों के कत्लेआम के परिणामस्वरूप अकाल पड़ा । महामारी फैल गई । शवों के सड़ने से जल एवं हवाएं प्रदूषित हो गई । 
  2. सल्तनत की सीमा में कमी - प्रधानमंत्री मल्लू ने 1401 ई. में सुल्तान महमदू को दिल्ली बुलाया मल्लू 1405 ई. में खिज्र खां के साथ युद्ध में माया गया । सल्तनत की सीमा संकुचित हो गई ।
  3. प्रादेशिक राज्योंं की स्थापना- तैमूर के आक्रमण के बाद तुगलक साम्राज्य का विभाजन प्रारम्भ हो गया । पंजाब, गुजरात, मालवा, ग्वालियर, समाना, काल्पी, महोबा, खान देश, बंगाल आदि स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गई ।
  4. इस्लामी संस्कृति का प्रसार- जिन राज्यों में मुस्लिम शासन सत्ता की स्थापना हुई उनमें मुस्लिम सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ ।
  5. पंजाब में अव्यवस्था - तैमूर के वंशजों ने पंजाब पर अपने अधिकार को नहीं भुलाया। फलत: अशान्ति एवं अव्यवस्था पंजाब में बनी रही ।
  6. साम्प्रदायिक वैमनस्य की भावना - तैमूर के आक्रमण ने कत्लेआम के द्वारा हृदय विदारक स्थिति उत्पन्न कर दी फलत: हिन्दुओं एवं मुसलमानों में वैमनस्य बढ़ा ।
  7. भारतीय कला का विस्तार - तैमरू कलाकारों को बन्दी बनाकर समरकन्द ले लगा। उन कलाकारों ने मस्जिदें तथा भवनों का निर्माण कर भारतीय कला का विस्तार किया । इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से तुगलक वंश के विकास एवं पतन तथा तैमूर लंग के भारतीय आक्रमण के संबधं में संक्षेप में जानकारी मिलती है ।
  8. प्रान्तीय राज्यों की स्वतंत्रता- केन्द्रीय सत्ता के टुटते ही गुजरात हाकिम जफर खां, जौनपुर के मलिक सरवर, मालवा के दिशाबर खां ने दिल्ली से संबंध विच्छेद कर लिए और स्वतंत्र राजवंशों की स्थापना की । 
  9. तैमूर के आक्रमण से राजकोष खाली हो गया । स्थानीय राज्यों ने नजराना देना बंद कर दिया, सल्तनत में अकाल और महामारी फैली । 
तैमूर के आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत के विघटन प्रक्रिया को तेज कर दिया । जनता का सल्तनत से विश्वास उठ गया । प्रान्तीय हाकिम शासकों ने दिल्ली सल्तनत की अधिनता त्याग दिया । तैमूर लंग दिल्ली की अपार संपदा लूट कर दिल्ली को लंगड़ बना दिया ।

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