जहांगीर का जीवन परिचय और इतिहास - History Of Jahangir

जहांगीर के बचपन का नाम सलीम था । इनका जन्म 1569 ई. में हुआ । इनकी माता मरियम उज्जमानी थी । सलीम के पांच वर्ष के होते ही शिक्षा की उचित व्यवस्था किया था । अब्दुल रहीम खान खाना के अधिन रखकर शिक्षा की व्यवस्था किया था । 15 वर्ष की अवस्था में सलीम की सगाई आमेर नरेश भगवान दास की पुत्री के साथ कर दी गई । जहांगीर विलासी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, मदिरापान का अत्यधिक सेवन करने लगा । उनका लालन पालन अत्यधिक सावधानी व नाजुक रूप से होने के कारण अकबर, जहांगीर को दुव्र्यसन व मदिरापान से दुर रखना चाहते थे। जिसके कारण पिता पुत्र में दुश्मनी का रूप ले लिया ।

सलीम का विद्रोह- सलीम का विद्रोह राज सिंहासन पर बैठने के लिए अति आतुर था। जब अकबर असीरगढ़ के घेरे में व्यस्त था तब सलीम ने इलाहाबाद में स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया । अकबर इससे अत्यधिक नाराज हुआ सलीम ने क्षमा मांगी । अकबर ने सलीम को क्षमा करके बंगाल बिहार का गवर्नर बनाकर भेज दिया । फिर भी विद्रोह स्वभाव बना रहा ।

सलीम का राज्याभिषेक- 1605 ई. में जहांगीर, पिता की मृत्यु उपरांत गद्दी पर बैठा ।

जहांगीर की उपलब्धियां

कला व संगीत पेम् जहांगीर का विशेष उल्लेखनीय माना जाता है । 1611 ई. में जहांगीर ने अपने सैनिक कर्मचारी गयास बेग की कन्या मेहरून्निसा से कर लिया । मेहरून्निसा की रूप व लावण्यमयी से प्रभावित हो कर उसे नूरमहल की संज्ञा दिया आगे चलकर नूर महल से नूरजहां (विश्व ज्योति) कहा । जहांगीर की विलासीता एवं शराब के अत्यधिक सेवक के कारण सारी सल्तनत नूरजहां के हाथों में था ।

जहांगीर नाम मात्र के शासक रहे । नूरजहां ने राज सिंहासन के साथ-साथ कला व फैशन के शौकिन रहे । नये-नये फैशनों को जन्म दिया । विभिन्न इत्रों का आविष्कार किया गुलाब जल का प्रयोग प्रमुखता से करने लगी। जहांगीर नूरजहां की बुद्धिमत्ता चातुर्यता से प्रभावित होकर यहां तक कह डाला कि-

एक गिलास शराब हो
एक आध कबाब हो
सारी सल्तनत नूरजहां की हो
खुब हो कि खराब हो ।

जहांगीर विलासी प्रवृत्ति के बावजूद उनके शासन काल सही व्यवस्थित चलते रहे । 1622 ई. से 1627 ई. तक सल्तनत नूरजहां के हाथों में रहकर विकास किया ।

साहित्य प्रेमी- जहागींर साहित्य प्रेमी, कवियों, साहित्यकारों का प्रश्रयदाता था । वह स्वयं साहित्यकार भी थे, तुजुके जहांगीर का लेखन स्वयं जहांगीर के द्वारा किया गया । शुक्रवार की शाम विद्वानों एवं साहित्यकारों के नाम किया जाता था । पिता की भांति विद्वानों के विचार आमंत्रित करते थे विभिन्न साहित्यों का रसास्वादन होता था, साथ में संगीत कला का भी प्रदर्शन होता था ।

वास्तुकला- जहांगीर को स्थापत्यकला में विशेष रूचि नही थी । बाग लगवाने व चित्रकारी का विशेष शौक था । इनके बावजूद उन्होंने दो इमारते आगरे का एतमात उद्दौला और सिंकदरा में अकबर का मकबरा उल्लेखनीय है । अपने पिता की याद में नूरजहां ने अपने देखरेख में एक मात्र उदौला का मकबरा बनवाया । सफेद संगमरमर रंग बिरंगे पत्थरों की सजवाटें की गई। सिकंदरा में अकबर का मकबरा जहांगीर स्वयं नक्शा बनाकर बनवाया, इसके पश्चात लाहौर के निकट शाहदरा में जहांगीर का मकबरा नूरजहां ने अपने देखरेख में बनवाया था ।

चित्रकला- जहागीर स्वयं उच्चकोटि के चित्रकार थे  उसने अनके हिन्द व मुसलमान चित्रकार उनके संरक्षण में रहते थे । प्रसिद्ध चित्रकारों- आगा राजा, अब्दुल हसन, उस्तार मनपुर, किसनदास, तुलसी, मनोहर, माधव गोवर्धन आदि चित्रकारों का नाम विशेष उल्लेखनीय है ।

जहांगीर की धार्मिक नीति

कुछ इतिहासकार जहांगीर को नास्तिक समझते थे क्योंकि वह नमाज, खुदा, नरक, रोजे के झेंझटों में पड़ना नहीं चाहते थे । कुछ इतिहासकार इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति के व पिता के सामान सभी धर्मो के प्रति श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति कहा । पर कहीं धर्मान्धता भी देखने को मिला । सिक्ख धर्म के प्रति संकीर्ण विचार रखते थे । सिक्खों के पांचवे गुरू अर्जुन देव की हत्या तथा गुजरात में जैन श्वेताम्बरों के धार्मिक नेता मानसिंह पर किये गये अत्याचार धार्मिक अन्धविश्वास की पराकाष्ठा माना जाता है । हिन्दुओं के मन्दिरों को नष्ट भ्रष्ट करने के आदेश दिये । अजमेर में बराह मन्दिर नष्ट कर तालाब में डलवा दिया । जैनियों के मन्दिर निर्माण को निषिद्ध किया । पुर्तगालियों से युद्ध के दौरान गिरजाघरों को बन्द किये । अन्त में मूल्यांकित जहांगीर के रूप में पाते है कि जहां सभी धर्वावलम्बियों के प्रति उदार व सहिष्णुता के भाव रखते थे हिन्दु मुसलमान सन्तों फकीर का समान आदर करता था ।

न्यायप्रिता- जहांगीर न्याय प्रिय शासक था । वह कहा करता था कि प्रजा को प्रतिदिनन्याय देना मेरे पवित्र कर्तव्यों में से एक है ।’’ आगरा दुर्ग के शाहबुर्ज में उसने एक न्याय जंजीर लटकायी थी जिसे खींचकर कोई भी जहांगीर के सामने न्याय की याचना कर सकता था । वह सामन्तों, सरदारों और उच्च पदाधिकारियों के साथ न्याय की दृष्टि से पक्षपात नहीं करता था । कठोर दण्ड सबके लिए समान थी । पर उसने अपराधी के हाथ पैर काटने या नाम मान काटने की दंड व्यवस्था भंग कर दी थी । मृत्युदण्ड का अधिकार केवल सम्राट को था ।

प्रजा......- जहांगीर कठारे के साथ-साथ नरम भी था वह प्रजाहित के कार्य किये । अपनी प्रजा व कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण अतिशीघ्र करते थे । उसने योग्य और कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारियों की नियुक्ति की ।

सैनिक गुणो का अभाव- जहागीर बचपन से ही विभिन्न अस्त्र शस्त्रों में परिचित थे । विभिन्न राज्यों के गवर्नरों के रूप में कार्य करने के दौरान युद्धों में भाग लेने के बावजूद उसमें एक वीर, साहसी कट्टर योद्ध के गुणों की कमी, सेनापति की प्रतिभा और सैन्य संचालन के गुणों का आभाव था ।

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