प्राचीन भारतीय इतिहास में मगध का विशेष स्थान है । प्राचीन काल में भारत अनेक
छोटे-बड़े राज्यों की सत्ता थी । मगध के प्रतापी राजाओं ने इन राज्यों पर विजय प्राप्त कर भारत
के एक बड़े भाग पर विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और इस प्रकार मगध के
शासकों ने सर्वप्रथम अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को प्रदर्शित किया । मगध में मौर्य वंश की स्थापना
से पूर्व भी अनेक शासकों ने अपने बाहुबल व वीरता से मगध साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया
था ।
मगध और आस-पास के क्षेत्रों की लोहे की समृद्ध खानों ने लोहे के हथियार बनाने में मदद की । अंग का अपन े राज्य में शामिल करना बिम्बसार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से था। अंग की राजधानी चंपा व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र थी । बिम्बसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को इस राज्य का राज्यपाल बनाया । मगध का सबसे मुख्य शत्रु अवंती था । बिम्बसार का इसके शासन प्रद्योत महासेन के साथ लंबा युद्ध चला, जो हालांकि अंतत: मित्रता में तबदील हुआ । बौद्ध ग्रंथो में हमें पता चलता है कि गंभीर रोग से पीड़ित प्रद्योत महासेन के इलाज के लिए बिम्बसार ने अपने चिकित्सक जीवक को भेजा था । बिम्बसार ने कोसल, वैशाली और भद्र के महत्वपूर्ण राज्य-परिवारों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए । कोसल नरेश प्रसेनजित की बहन से विवाह में बिम्बसार को काफी गांव दहेज में प्राप्त हुआ । इन विवाहों ने उसकी स्थिति को मजबूत किया और सम्मान को बढ़या । इस तरह वैवाहिक संबंधों और विजयों से बिम्बसार ने मगध को अत्यधिक शक्तिशाली राज्य बना दिया ।
बिम्बसार ने कार्यकुशल प्रशासन व्यवस्थित किया । महावीर और बुद्ध दोनों इसके शासन काल के दौरान अपने सिद्धांतो के उपदेश दिए और ऐसा बताया जाता है कि उसने दोनों से ही करीबी संबंध रखे । संभवत: वह अजातशत्रु के हाथों मारा गया जिसने राजगद्दी पर कब्जा किया ।
अजातशत्रु ने स्वयं को अनेक शत्रुओं से घिरा पाया । राजा प्रसेनजित ने उसके खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया और लिच्छवियों तथा विज्जियों के साथ भी उनके लंबे युद्ध हुए । काशी और अवंती साम्राज्य भी उसके शत्रु हो गए । अजातशत्रु ने इन चुनौतियों का सामना साहस और सफलता के साथ किया तथा उसने मगध को और बड़ा राज्य बना दिया । उसके पुत्र उदयन (460 ई.पू.- 444 ई.पू.) ने पाटलिपुत्र शहर का निर्माण किया, जो मगध की नई राजधानी बनी । बिबिसार के राजवंश के बाद शिशुनागों का शासन आया और अंतत: मगध की राजगद्दी की महापद्म नंद ने हथिया लिया ।
पुराणों के अनुसार नंद-नीची जाति के थे और क्षत्रिय नहीं थे । लेकिन उन्होंने स्वयं को सर्वाधिक शक्तिशाली शासक साबित किया और संभवत: उन्होंने कलिंग को अपने साम्राज्य में मिला लिया । सिकंदर के आक्रमण के समय (326 ई.पू.) नंद मगध पर शासन कर रहे थे । कुछ ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार नंदों की शक्ति ने सिंकदर को भारत में और आगे बढ़ने से हतोत्साहित किया और उसे घर लौटने को विवश किया । यूनानी विवरणों के अनुसार धननंद के पास 20,000 घोड़ों, 2,00,000 पदाति, 2,000 रथों और कम से कम 3,000 हाथियों की विशाल सेना थी । नंद विभिन्न कारणों से अलोकप्रिय हो गए । विशाल सेना के रख-रखाव के लिए उन्होंने लोगों पर भारी कर लगाए और वे दमनकारी और साथ ही बहुत अहंकारी भी हो गए । परंपरा के अनुसार, नंदों के निरंकुश शासन को चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 323 ई.पू. में उखाड़ फेका । ऐसा भी विश्वास है कि इस उपलब्धि में चाणक्य नामक ब्राम्हण ने चन्द्रगुप्त की बहुत मदद की । महाजनपदों में से कुछ तो साम्राज्यवादी थे और कुछ लोकतंत्रात्म । बिम्बसार और अजातशत्रु के शासन काल में मगध अत्यधिक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा । नंद राजाओं के शासनकाल के दौरान सिंकदर ने पंजाब में तो प्रवेश कर लिया, लेकिन नंद की सेना के डर से और आगे नहीं बदला । चन्द्रगुप्त मौर्य ने राजा नंद को हरा कर मगध का शासन प्राप्त किया । अपने पिता की मृत्यु के बाद 20 वर्ष की आयु में वह मकदूनिया (यूनान का एक राज्य) के सिंहासन पर आसीन हुआ । दो वर्ष पश्चात् वह एक विशाल सेना लेकर विश्व विजय के लिये चल पड़ा । 331 ई.पू. में उसने विशाल मखमली साम्राज्य को नष्ट कर डाला और 327 ई.पू. में बल्ख या बैक्ट्रियां पर अधिकार करके उसने भारतीय द्वार पर दस्तक दी । सिकन्दर के भीतरी अभियान के दो चरण थे ।
इसके बाद सिकन्दर व्यास नदी की ओर बढ़ा और उसने पंजाब के काफी राज्यों को हरा दिया । वह पूर्व दिशा में आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन उसके सैनिकों ने मगध के नंदा की विशाल सेना और शक्ति के बारे में सुना और हतोत्साहित होकर, उन्होंने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। यूनानी इतिहासकारों के अनुसार दस वर्षो के लंबे अभियान के बाद उन्हें घर की याद भी सताने लगी थी । सिकन्दर के बार-बार अनुरोध करने के बावजूद सैनिकों ने पूर्व दिशा की ओर बढ़ने से इंकार कर दिया और सिकन्दर को लौटना पड़ा । इस तरह पूर्व में साम्राज्य स्थापित करने का उसका सपना पूरी तरह साकार नहीं हुआ ।
वापसी यात्रा में सिकन्दर ने अनेक छोटे-मोटे गणतंत्रों जैसे सिबि और शुद्रक को हराया । सिकन्दर भारत में 19 महीनों (326 ई.पू.-325 ई.पू.) तक रहा । इन महीनों में उसने युद्ध ही युद्ध किए । 323 ई.पू. में 32 वर्ष की अल्पायु में उसकी बेबीलोन (बगदाद के निकट) में मृत्यु हो गई । सिकन्दर को अपनी विजयों को व्यवस्थित करने का समय नहीं मिला । ज्यादा राज्यों को उसके शासकों को, जिन्होंने उसकी सत्ता स्वीकार कर ली, लौटा दिया गया । उसने अपने अधिकृत क्षेत्र, जिनमें पूर्वी यूरोप के कुछ भाग और पश्चिमी एशिया का कुछ बड़ा भाग शामिल था, को तीन भागों में बांटा । उसके लिए सिकन्दर ने तीन राज्यपाल नियुक्त किए । उसके साम्राज्य का पूर्वी हिस्सा सेल्यूक्स निकेटर को मिला, जिसने अपने स्वामी सिकन्दर की मृत्यु के बाद, स्वयं को राजा घोषित कर दिया ।
सिकन्दर के आक्रमण ने भारत में राजनीतिक एकता का मार्ग प्रशस्त किया । सिकन्दर ने सभी छोटे और झगडालू राज्यों को जीत लिया था, और इस क्षेत्र में मोर्यो का विस्तार आसान हो गया । सिकन्दर 326 ई.पू. में भारत पर आक्रमण किया । उसने पंजाब को झेलम नदी तक जीत लिया था । लेकिन वह अपना साम्राज्य को व्यवस्थित नहीं कर पाया । सिकन्दर के आक्रमण ने राजनीतिक एकता की प्रक्रिया में मदद की ।
छठी शताब्दी ई.पू. में भगवान बुद्ध के समय में सोलह महाजनपद या विस्तृत प्रादेशिक राज्य थे । उनमें से कुछ साम्राज्यवादी थे और कुछ लोकतंत्रात्मक । इन सोलह राज्यों में से मगध अन्तत: सर्वोच्च शक्ति बन गया । गमध के उत्थान में कुछ कारक उत्तरदायी थे । वहां प्राप्त लोहे की खानों से लोगों को मजबूत हथियार बनाने में मदद मिली । उपाजा़ऊ भूमि, अतिरिक्त अन्न और समुद्री मार्ग बनाने वाली नदियों ने व्यापार और वाणिज्य के विकास में मदद की । फलत: मगध सर्वाधिक उन्नतिशील और शक्तिशाली राज्य बन गया ।
बिम्बसार ऐसा पहला राजा था, जिसने मगध को बड़ा बनाया । उसने यह विजयों और वैवाहिक संबंधों के द्वारा किया । अजाजशत्रु के शासनकाल मगध में विशाल साम्राज्य बन गया । नदं काल में यह शिखर पर पहुंच गया । धीरे-धीरे मगध न े अनेक सीमावतीर् राज्या ें को अपने साथ मिला लिया । सिकन्दर ने जब उत्तर पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया, तो नंद शासक थे । भारत में बहुत आगे बढ़ने के बजाय यूनानी नेता शीघ्र ही वापिस चला गया । संभवत: यूनानियों ने सोचा कि मजबूत मगध साम्राज्य के साथ मुकाबला बुद्धिमत्ता नहीं है ।
पांचवी शताब्दी ई.पू. मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थानांतरित हो गई, जिसे अजातशत्रु के पुत्र उदयिन ने बनाया था । पाटलिपुत्र तीन नदियों, गंगा, गंडक और सोन के संगम पर स्थित था । चौथी नदी सरयू भी पाटलीपुत्र के निकट गंगा में मिलती थी । चारों ओर से इसे नदियों ने घेरा हुआ था, जिसने इसे वस्तुत: ‘‘जलदुर्ग’’ बना दिया था जहां शत्रुओं की पहुंच प्राय: असंभव थी। इन नदियों को राज मार्ग, की तरह इस्तेमाल करके मगध के राजा अपने सैनिकों को किसी भी दिशा में भेज सकते थे ।
गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ कछारी मिट्टी ने मगध क्षेत्र को बहुत अधिक समृद्ध बना दिया । लोहे के औजारों और उपकरणों से जंगलों को साफ करके अधिकाधिक भूमि पर खेती की जाने लगी । उष्ण वातावरण और भारी वर्षा से किसान बिना किसी खास कठिनाई के भारी फसल उगा पाते थे । बौद्ध ग्रंथों में आया है कि मगध के किसान चावलों की अनेक किस्में उगाते थे । अतिरिक्त उपज का इस्तेमाल राजा अपने सैनिकों और अधिकारियों को वेतन देने के लिए कर सकते थे । अतिरिक्त अन्न के कारण व्यापार भी फला फूला । मगध के जल मार्गो ने पूर्व भारत के व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित किया । इन नदियों के किनारे अनेक महत्वपूर्ण नगर, महत्वपूर्ण व्यापार केन्द्रों के रूप में विकसित हुए, जिस ने मगध के राजाओं को वस्तुओं की बिक्री पर मार्ग कर लगाने की अभिप्रेरणा दी । इससे उन्हें अपार संपदा एकत्रित करने और विशाल सेना रखने में मदद हुई ।
युद्ध हाथी मगध की सेना का विशेष अंग थे । मगध पहला राज्य था, जिसने युद्ध में हाथियों का इस्तेमान बड़े पैमाने पर किया । बाकी अन्य राज्य प्राय: रथों और, घोड़रों पर निर्भर थे । दुर्गो को गिराने और दलदल में चलने में हाथी उपयोगी थे । युनानी स्त्रोतां से हमें पता चलता है कि मगध की सेना में 6,000 हाथी थे, जिन्होंने सिकन्दर के नेतृत्व में पंजाब पर कब्जा कर चुके सैनिकों के मन में दहशत पैदा कर दी थी । संभवत: यह उन कारणों में से एक था, जिनकी वजह से मगध साम्राज्य पर आक्रमण करने के स्थान पर वह यूनान वापस लौट गए । मगध के समाज के गैर रूढिवादी चरित्र ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इसके विकास में मदद की। कुछ प्रमुख इतिहासकारों का मत है कि शक्तिशाली राज्य के रूप में मगध के उदय का प्रमुख कारण इस क्षेत्र के लोगों का जातीय मिश्रण था । अनेक समुदायों का मिला-जुला रूप मगध में था, जिससे एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ, जो प्रकृति में रूढिवादी वैदिक समाज से बहुत भिन्न थी ।
मगध की भौगोलिक स्थिति ने इसके इतिहास को बहुत प्रभावित किया । इसने इसे विदेशी आक्रमणों से बचाया और वहां के निवासियों के हित में व्यापार और खेती को बढ़ाया । इसकी लोहे की समृद्ध खानों ने मगध के लोगों को लोहे के हथियार व औजार बनाने में मदद की । मगध के लोगों के जातीय मिश्रण ने उन्हें गैर रूढ़िवादी बनाया ।
मगध साम्राज्य का उदय के कारण
- मगध उत्तर भारत के विशाल तटवर्ती मैदानों के उपरी एवं निचले भागों के मध्य अति सुरक्षित स्थान पर था पांच पहाडियों के मध्य एक दुर्गम स्थान पर स्थित होने के कारण वहां तक शत्रुओं का पहुंचना प्राय: असम्भव था ।
- गंगा नदी के कारण भी मगध में व्यापारी सुविधाये बढ़ी और आर्थिक दृष्टि से मगध के महत्व में वृद्धि हुई । मगध साम्राज्य की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी अत: आर्थिक दृष्टि से मगध सम्पन्न राज्य था । मगध साम्राज्य उत्कर्ष में हाथियों के बाहुल्य ने भी मगध साम्राज्य के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण योगदान था ।
- मगध साम्राज्य में लोहा बहुतायत और सरलता से मिलता था । मगध की शक्ति का यह महत्वपूर्ण स्त्रोत था । इससे जंगल साफ करके खेती के लिये भूमि निकाली जा सकती थी और उपज बढ़ाई जा सकती थी ।
मगध साम्राज्य का उदय
काफी समय तक इस काल का राजनीतिक इतिहास मुख्यत: उपरोक्त राज्यों में सर्वोच्चता के संघर्ष का लेखा-जोखा है । समय के साथ, मगध सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य के रूप में उदित हुआ और एक विशाल साम्राज्य के रूप में फैला । मगध, राजा बिम्बसार (544 492-ई.पू.) के शासन काल में शक्तिशाली बना । वह भगवान् बुद्ध का समकालीन था और हरयंक राजकुल से संबंधित था । शुरू से ही बिम्बसार ने विस्तार की नीति अपनाई । अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने के लिए उसके पास कुछ सुविधाएं थी । उसका साम्राज्य चारों ओर नदियों और पहाडियों के द्वारा सुरक्षित था । उसकी राजधानी राजगीर पहाड़ियों के साथ थी । उसके साम्राज्य की समृद्ध और उपजाऊ मिट्टी में बहुत अधिक उपज होती थी । हिरण्यवता या सोन नदी ने व्यापार को बढ़ावा दिया । इस तरह व्यापारिक और भूमि कर राज्य की आमदनी के पमुख स्त्रोत थे ।मगध और आस-पास के क्षेत्रों की लोहे की समृद्ध खानों ने लोहे के हथियार बनाने में मदद की । अंग का अपन े राज्य में शामिल करना बिम्बसार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से था। अंग की राजधानी चंपा व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र थी । बिम्बसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को इस राज्य का राज्यपाल बनाया । मगध का सबसे मुख्य शत्रु अवंती था । बिम्बसार का इसके शासन प्रद्योत महासेन के साथ लंबा युद्ध चला, जो हालांकि अंतत: मित्रता में तबदील हुआ । बौद्ध ग्रंथो में हमें पता चलता है कि गंभीर रोग से पीड़ित प्रद्योत महासेन के इलाज के लिए बिम्बसार ने अपने चिकित्सक जीवक को भेजा था । बिम्बसार ने कोसल, वैशाली और भद्र के महत्वपूर्ण राज्य-परिवारों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए । कोसल नरेश प्रसेनजित की बहन से विवाह में बिम्बसार को काफी गांव दहेज में प्राप्त हुआ । इन विवाहों ने उसकी स्थिति को मजबूत किया और सम्मान को बढ़या । इस तरह वैवाहिक संबंधों और विजयों से बिम्बसार ने मगध को अत्यधिक शक्तिशाली राज्य बना दिया ।
बिम्बसार ने कार्यकुशल प्रशासन व्यवस्थित किया । महावीर और बुद्ध दोनों इसके शासन काल के दौरान अपने सिद्धांतो के उपदेश दिए और ऐसा बताया जाता है कि उसने दोनों से ही करीबी संबंध रखे । संभवत: वह अजातशत्रु के हाथों मारा गया जिसने राजगद्दी पर कब्जा किया ।
अजातशत्रु ने स्वयं को अनेक शत्रुओं से घिरा पाया । राजा प्रसेनजित ने उसके खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया और लिच्छवियों तथा विज्जियों के साथ भी उनके लंबे युद्ध हुए । काशी और अवंती साम्राज्य भी उसके शत्रु हो गए । अजातशत्रु ने इन चुनौतियों का सामना साहस और सफलता के साथ किया तथा उसने मगध को और बड़ा राज्य बना दिया । उसके पुत्र उदयन (460 ई.पू.- 444 ई.पू.) ने पाटलिपुत्र शहर का निर्माण किया, जो मगध की नई राजधानी बनी । बिबिसार के राजवंश के बाद शिशुनागों का शासन आया और अंतत: मगध की राजगद्दी की महापद्म नंद ने हथिया लिया ।
पुराणों के अनुसार नंद-नीची जाति के थे और क्षत्रिय नहीं थे । लेकिन उन्होंने स्वयं को सर्वाधिक शक्तिशाली शासक साबित किया और संभवत: उन्होंने कलिंग को अपने साम्राज्य में मिला लिया । सिकंदर के आक्रमण के समय (326 ई.पू.) नंद मगध पर शासन कर रहे थे । कुछ ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार नंदों की शक्ति ने सिंकदर को भारत में और आगे बढ़ने से हतोत्साहित किया और उसे घर लौटने को विवश किया । यूनानी विवरणों के अनुसार धननंद के पास 20,000 घोड़ों, 2,00,000 पदाति, 2,000 रथों और कम से कम 3,000 हाथियों की विशाल सेना थी । नंद विभिन्न कारणों से अलोकप्रिय हो गए । विशाल सेना के रख-रखाव के लिए उन्होंने लोगों पर भारी कर लगाए और वे दमनकारी और साथ ही बहुत अहंकारी भी हो गए । परंपरा के अनुसार, नंदों के निरंकुश शासन को चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 323 ई.पू. में उखाड़ फेका । ऐसा भी विश्वास है कि इस उपलब्धि में चाणक्य नामक ब्राम्हण ने चन्द्रगुप्त की बहुत मदद की । महाजनपदों में से कुछ तो साम्राज्यवादी थे और कुछ लोकतंत्रात्म । बिम्बसार और अजातशत्रु के शासन काल में मगध अत्यधिक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा । नंद राजाओं के शासनकाल के दौरान सिंकदर ने पंजाब में तो प्रवेश कर लिया, लेकिन नंद की सेना के डर से और आगे नहीं बदला । चन्द्रगुप्त मौर्य ने राजा नंद को हरा कर मगध का शासन प्राप्त किया । अपने पिता की मृत्यु के बाद 20 वर्ष की आयु में वह मकदूनिया (यूनान का एक राज्य) के सिंहासन पर आसीन हुआ । दो वर्ष पश्चात् वह एक विशाल सेना लेकर विश्व विजय के लिये चल पड़ा । 331 ई.पू. में उसने विशाल मखमली साम्राज्य को नष्ट कर डाला और 327 ई.पू. में बल्ख या बैक्ट्रियां पर अधिकार करके उसने भारतीय द्वार पर दस्तक दी । सिकन्दर के भीतरी अभियान के दो चरण थे ।
- व्यास नदी तक सिकन्दर का अभियान
- सिकन्दर की वापसी
इसके बाद सिकन्दर व्यास नदी की ओर बढ़ा और उसने पंजाब के काफी राज्यों को हरा दिया । वह पूर्व दिशा में आगे बढ़ना चाहता था, लेकिन उसके सैनिकों ने मगध के नंदा की विशाल सेना और शक्ति के बारे में सुना और हतोत्साहित होकर, उन्होंने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया। यूनानी इतिहासकारों के अनुसार दस वर्षो के लंबे अभियान के बाद उन्हें घर की याद भी सताने लगी थी । सिकन्दर के बार-बार अनुरोध करने के बावजूद सैनिकों ने पूर्व दिशा की ओर बढ़ने से इंकार कर दिया और सिकन्दर को लौटना पड़ा । इस तरह पूर्व में साम्राज्य स्थापित करने का उसका सपना पूरी तरह साकार नहीं हुआ ।
वापसी यात्रा में सिकन्दर ने अनेक छोटे-मोटे गणतंत्रों जैसे सिबि और शुद्रक को हराया । सिकन्दर भारत में 19 महीनों (326 ई.पू.-325 ई.पू.) तक रहा । इन महीनों में उसने युद्ध ही युद्ध किए । 323 ई.पू. में 32 वर्ष की अल्पायु में उसकी बेबीलोन (बगदाद के निकट) में मृत्यु हो गई । सिकन्दर को अपनी विजयों को व्यवस्थित करने का समय नहीं मिला । ज्यादा राज्यों को उसके शासकों को, जिन्होंने उसकी सत्ता स्वीकार कर ली, लौटा दिया गया । उसने अपने अधिकृत क्षेत्र, जिनमें पूर्वी यूरोप के कुछ भाग और पश्चिमी एशिया का कुछ बड़ा भाग शामिल था, को तीन भागों में बांटा । उसके लिए सिकन्दर ने तीन राज्यपाल नियुक्त किए । उसके साम्राज्य का पूर्वी हिस्सा सेल्यूक्स निकेटर को मिला, जिसने अपने स्वामी सिकन्दर की मृत्यु के बाद, स्वयं को राजा घोषित कर दिया ।
सिकन्दर के आक्रमण ने भारत में राजनीतिक एकता का मार्ग प्रशस्त किया । सिकन्दर ने सभी छोटे और झगडालू राज्यों को जीत लिया था, और इस क्षेत्र में मोर्यो का विस्तार आसान हो गया । सिकन्दर 326 ई.पू. में भारत पर आक्रमण किया । उसने पंजाब को झेलम नदी तक जीत लिया था । लेकिन वह अपना साम्राज्य को व्यवस्थित नहीं कर पाया । सिकन्दर के आक्रमण ने राजनीतिक एकता की प्रक्रिया में मदद की ।
छठी शताब्दी ई.पू. में भगवान बुद्ध के समय में सोलह महाजनपद या विस्तृत प्रादेशिक राज्य थे । उनमें से कुछ साम्राज्यवादी थे और कुछ लोकतंत्रात्मक । इन सोलह राज्यों में से मगध अन्तत: सर्वोच्च शक्ति बन गया । गमध के उत्थान में कुछ कारक उत्तरदायी थे । वहां प्राप्त लोहे की खानों से लोगों को मजबूत हथियार बनाने में मदद मिली । उपाजा़ऊ भूमि, अतिरिक्त अन्न और समुद्री मार्ग बनाने वाली नदियों ने व्यापार और वाणिज्य के विकास में मदद की । फलत: मगध सर्वाधिक उन्नतिशील और शक्तिशाली राज्य बन गया ।
बिम्बसार ऐसा पहला राजा था, जिसने मगध को बड़ा बनाया । उसने यह विजयों और वैवाहिक संबंधों के द्वारा किया । अजाजशत्रु के शासनकाल मगध में विशाल साम्राज्य बन गया । नदं काल में यह शिखर पर पहुंच गया । धीरे-धीरे मगध न े अनेक सीमावतीर् राज्या ें को अपने साथ मिला लिया । सिकन्दर ने जब उत्तर पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया, तो नंद शासक थे । भारत में बहुत आगे बढ़ने के बजाय यूनानी नेता शीघ्र ही वापिस चला गया । संभवत: यूनानियों ने सोचा कि मजबूत मगध साम्राज्य के साथ मुकाबला बुद्धिमत्ता नहीं है ।
मगध की सर्वोच्चता - मुख्य कारक
मजबूत केंद्रिक सरकार के अन्र्तगत मगध एक बड़े राज्य के रूप में विकसित हुआ, यह बिम्बसार, अजातशत्रु और महापद्म नंद जैसे अनेक महत्वाकांक्षी राजाओं की जीतोड़ मेहनत का नतीजा था, जिन्होंने साम्राज्यवादी नीति के तहत अपनी शक्ति को बढ़या । धार्मिक दृष्टि से भी मगध बहुत महत्वपूर्ण बन गया । जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों इसी क्षेत्र में विकसित हुए, जिन्होंने लोगों के सामाजिक जीवन को बहुत प्रभावित किया । कृषि और व्यापार के विकास से वैश्य समुदाय समृद्ध हो गया, लेकिन ब्राम्हणवाद समाज से उसे कोई मान्यता नहीं मिली । इसलिए उन्होंने जैन धर्म और बौद्ध धर्म को स्वीकार करना अधिक अच्छा समझा, जो रूढ़ जाति पद्धति को मान्यता नहीं देते थे और साथ ही पशु बलि पर भी प्रतिबंध लगाते थे, जो कृषि अर्थ व्यवस्था में अत्यन्त महत्वपूर्ण थे । जैसा कि पहले बताया जा चुका है, मगधवासियों ने इस क्षेत्र में उपलब्ध समृद्ध लोहे की खनों का इस्तेमाल मजबूत हथियार और कृषि औजार बनाने के लिए किया । इसने उन्हें राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से लाभ की स्थिति प्राप्त करने में मदद की । मगध को कुछ और सुविधाएं भी थी । मगध की दोनों राजधानियां पहले राजगीर और बाद में पाटलीपुत्र, सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थिति में थी । राजगीर का दुर्ग पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ था । इसलिए इसे गिरिवज्र भी कहा जाता था । आक्रमणकारियों के लिए राजधानी से घुसना अत्यन्त कठिन था ।पांचवी शताब्दी ई.पू. मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थानांतरित हो गई, जिसे अजातशत्रु के पुत्र उदयिन ने बनाया था । पाटलिपुत्र तीन नदियों, गंगा, गंडक और सोन के संगम पर स्थित था । चौथी नदी सरयू भी पाटलीपुत्र के निकट गंगा में मिलती थी । चारों ओर से इसे नदियों ने घेरा हुआ था, जिसने इसे वस्तुत: ‘‘जलदुर्ग’’ बना दिया था जहां शत्रुओं की पहुंच प्राय: असंभव थी। इन नदियों को राज मार्ग, की तरह इस्तेमाल करके मगध के राजा अपने सैनिकों को किसी भी दिशा में भेज सकते थे ।
गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ कछारी मिट्टी ने मगध क्षेत्र को बहुत अधिक समृद्ध बना दिया । लोहे के औजारों और उपकरणों से जंगलों को साफ करके अधिकाधिक भूमि पर खेती की जाने लगी । उष्ण वातावरण और भारी वर्षा से किसान बिना किसी खास कठिनाई के भारी फसल उगा पाते थे । बौद्ध ग्रंथों में आया है कि मगध के किसान चावलों की अनेक किस्में उगाते थे । अतिरिक्त उपज का इस्तेमाल राजा अपने सैनिकों और अधिकारियों को वेतन देने के लिए कर सकते थे । अतिरिक्त अन्न के कारण व्यापार भी फला फूला । मगध के जल मार्गो ने पूर्व भारत के व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित किया । इन नदियों के किनारे अनेक महत्वपूर्ण नगर, महत्वपूर्ण व्यापार केन्द्रों के रूप में विकसित हुए, जिस ने मगध के राजाओं को वस्तुओं की बिक्री पर मार्ग कर लगाने की अभिप्रेरणा दी । इससे उन्हें अपार संपदा एकत्रित करने और विशाल सेना रखने में मदद हुई ।
युद्ध हाथी मगध की सेना का विशेष अंग थे । मगध पहला राज्य था, जिसने युद्ध में हाथियों का इस्तेमान बड़े पैमाने पर किया । बाकी अन्य राज्य प्राय: रथों और, घोड़रों पर निर्भर थे । दुर्गो को गिराने और दलदल में चलने में हाथी उपयोगी थे । युनानी स्त्रोतां से हमें पता चलता है कि मगध की सेना में 6,000 हाथी थे, जिन्होंने सिकन्दर के नेतृत्व में पंजाब पर कब्जा कर चुके सैनिकों के मन में दहशत पैदा कर दी थी । संभवत: यह उन कारणों में से एक था, जिनकी वजह से मगध साम्राज्य पर आक्रमण करने के स्थान पर वह यूनान वापस लौट गए । मगध के समाज के गैर रूढिवादी चरित्र ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इसके विकास में मदद की। कुछ प्रमुख इतिहासकारों का मत है कि शक्तिशाली राज्य के रूप में मगध के उदय का प्रमुख कारण इस क्षेत्र के लोगों का जातीय मिश्रण था । अनेक समुदायों का मिला-जुला रूप मगध में था, जिससे एक मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ, जो प्रकृति में रूढिवादी वैदिक समाज से बहुत भिन्न थी ।
मगध की भौगोलिक स्थिति ने इसके इतिहास को बहुत प्रभावित किया । इसने इसे विदेशी आक्रमणों से बचाया और वहां के निवासियों के हित में व्यापार और खेती को बढ़ाया । इसकी लोहे की समृद्ध खानों ने मगध के लोगों को लोहे के हथियार व औजार बनाने में मदद की । मगध के लोगों के जातीय मिश्रण ने उन्हें गैर रूढ़िवादी बनाया ।
Hi
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