मराठों का उदय
सत्रहवीं शताब्दी में शक्तिशाली मराठों का उदय और अठारवीं शताब्दी के अन्त में मराठों का भारत में एक राजनीतिक सत्ता के रूप में उभरना एक महत्वपूर्ण सामाजिक व राजनीतिक घटना थी । मराठों को संगठित एवं एकत्रित करने तथा मराठा राज्य की स्थापना का श्रेय शिवाजी को है । राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठ भूमि शिवाजी की सफलताओं ने तैयार कर दी थी ।शिवाजी के उदय के पूर्व मराठों ने अहमदनगर और बीजापुर की सेना व दरबार में रहकर राजनीतिक आरै सैिनक प्रशासन का अनभुव प्राप्त कर लिया था जिससे उनमें आत्मविश्वास आया और वे स्वतंत्र भूमिका निभा सकें । मुगलों का दक्कन की ओर बढ़ना और मराठों की शक्ति व प्रभाव भी बढ़ता गया । यहां मुगल और दक्कन के सुल्तान दोनों ही मराठों का सहयोग प्राप्त करने का प्रयास करने लगे । जहांगीर ने मराठों के महत्व को समझ कर अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मराठे परिश्रमी है और वह उन क्षेत्र में प्रतिरोध का केन्द्र है । मलिक अम्बर ने अपनी सेना में मराठों को शामिल किया था । कुछ मराठा सरदार प्रसिद्ध हुए उन्हें जागीरें दी गयीं इनमें ही एक शिवाजी के पिता शाहजी भोसले थे । उस समय उन्होंने साथ दिया जब निजाम शाह मुगलों को दक्कन में बढऩे से राके ने का प्रयास कर रहा था । शाहजहां ने जब 1636 इर्. में अहमदनगर में अपने राज्य में शामिल कर लिया था तो शाहजी भोंसले ने बीजापुर के सुलतान के यहां नौकरी कर ली थी । उन्हें कर्नाटक में जागीर दी गर्इ । अव्यवस्था का लाभ उठाकर उसने अर्द्ध स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास किया ।
मराठों के उदय में भक्ति आन्दोलन महत्वपूर्ण प्रेरक शक्ति रहा इस आन्दोंलन का आरम्भ 1296 र्इ. से ज्ञानदेव से आरम्भ हुआ । सन्त तुकाराम (1608 र्इ.) में अपनी चरमोत्कर्ष पर पहुंचा । इस प्रकार भक्ति आन्दोलन ने मराठा समाज को जागरूक बनाया और इसे शक्ति प्रदान की । सन्तों ने जनसाधारण की भाषा (मराठी) में भक्ति गीत लिखे । यह साहित्य जनसाधारण को उत्साहित करने का सफल माध्यम था ।
ऐसी परिस्थितियों में शिवाजी मराठों के विभिन्न वर्गो को संगठित करने में सफल रहे विभिन्न जन-जाति के लोगों से मित्रता की इस मित्रता से आन्दोलन का े शक्ति मिली और वह व्यापक बना । व्यापकता का अनुमान इसमें शामिल विभिन्न वर्गो के लोगों से लगाया जा सकता है । इस आन्दोलन को इस बात से भी बल मिला कि निम्न वर्ग में जन्में व्यक्ति ऊँचा पद प्राप्त कर सकते हैं । मराठा समाज में भूमि के लिए संघर्ष एक महत्वपूर्ण पक्ष था । सर्व प्रथम छोटे भूमिधरों ने शिवाजी का साथ दिया शिवाजी ने बड़े भू-स्वामियों पर कभी विश्वास नहीं किया उन्हें समर्पण करने सैन्य संख्या पर रोक लगाने को विवश किया ।
मराठा लोगों के चरित्र व इतिहास पर महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति का विशेष योगदान था । महाराष्ट्र का अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय और पठारी है भौगोलिक वातावरण ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध पद्धति को अपनाने का अवसर प्रदान किया । यही युद्ध पद्धति आगे चलकर इनकी सफलता का कारण बनी । दक्कन की बीहड़ अनुत्पादक भूमि, कम वर्षा, कृषि के सीमित साधन ने मराठों को परिश्रमी, दृढ़ संकल्पी बना दिया । जिनकी शक्ति का प्रयोग एक शक्तिशाली आन्दोलन के लिए किया जा सकता था ।
कुछ इतिहासकारों का मत है कि मराठा आन्दोलन का उदय औरंगजेब की भेद-भाव पूर्ण धार्मिक नीति के कारण हुआ था । इस बात के ऐतिहासिक आधार कम हैं । मराठों का प्रारंभिक शक्ति काल शाहजहां के शासन काल से संबंध रखता है । शाहजहां ने धार्मिक सहनशीलता की नीति का अनुसरण किया था । दूसरे आरम्भ में मराठों का संघर्ष मुख्य रूप से दक्कन के मुस्लिम राज्य बीजापुर से था । उस समय संघर्ष मुगलों से नहीं था । शिवाजी ने हिन्दुओं और मुसलमानों को समान रूप से लूटा था । इतना होने पर भी यह सत्य है कि उसने राज्यभिषेक के अवसर पर धर्मोद्धारक (हिन्दू धर्म की सुरक्षा करने वाला) की पदवी ग्रहण कर हिन्दूओं की रक्षा की प्रतिज्ञा की थी ।