नियुक्तिकरण का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता, महत्व, प्रक्रिया के चरण

किसी उपक्रम में रिक्त पदों पर पद के अनुरूप योग्य व्यक्तियों को कार्य पर रखना नियुक्ति कहलाता है। इसमें कर्मचारियों का प्रशिक्षण एवं विकास भी शामिल है।

नियुक्तिकरण का अर्थ

लोगों को काम पर लगाना। यह मानव संसाधन के नियोजन से प्रारम्भ होता है तथा भर्ती, प्रशिक्षण, विकास, पदोन्नति तथा कार्यदल के निष्पादन मूल्यांकन को शामिल करता है।

नियुक्तिकरण की आवश्यकता

  1. योग्य कर्मचारी प्राप्त करना :- यह विभिन्न पदों के लिए योग्य कर्मचारियों को खोजने में सहायता करता है।
  2. बेहतर निष्पादन :- सही व्यक्ति को सही स्थान पर रखकर यह बेहतर निष्पादन को निश्चित करता है।
  3. निरन्तर विकास :- उचित नियुक्तिकरण उपक्रम के निरन्तर विकास को  सुनिश्चित करता है।
  4. मानव संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग :- यह आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों को रखने से बचाता है। उच्च श्रम लागत को रोकने में सहायक है।
  5. कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाता है :- यह कर्मचारियों के कार्य सन्तोष में सुधार करता है।

नियुक्ति का महत्व

1. उद्द्देयों की प्राप्ति हेतु आवश्यक- सभी संस्था की अपनी कुछ न कुछ उद्देश्य होते हैं। जिसकी पूर्ति हेतु संस्था प्रमुख नीतियों का निर्धारण करते है जिसकी पूर्ति हेतु वहां के कर्मचारी ही कार्य करते हैं अत: समय पर कर्मचारियों की नियुक्ति आवश्यक है।

2. रोजगार की प्राप्ति एवं जीवन स्तर में सुधार - नियुक्ति के अंतर्गत व्यक्ति को नियुक्ति (कर्मचारी या अधिकारी के रूप में) प्राप्त होता है। साथ ही उसे अच्छा वातावरण व अच्छी परिस्थितियों में कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है, जिससे आय में वृद्धि होती है और जीवन-स्तर में सुधार आता है। वही दूसरी ओर प्रशिक्षण और अनुभव/ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे मानसिक क्षमता भी बढ़ता है।

3. कार्यों को समय पर पूर्ण करने हेतु - प्रत्येक व्यवसाय एवं संस्था में उद्देश्य के अनुरूप उत्पादन तथा वितरण से सम्बन्धित कार्य होते है, जिसे उच्च प्रबंध को या कुछ कमर्चारियों द्वारा पूर्ण करना सम्भव नहीं होता है अत: इसे पूर्ण करने के लिए कमर्चारियों की नियुक्ति आवश्यक है।

4. श्रम शक्ति का अधिकतम उपयोग- समय के साथ-साथ जो भी औद्योगिक/मशीनरी प्रगति हुर्इ है फिर भी मानवीय श्रम शक्ति का महत्व कभी भी कम नहीं हो सकता है। मानव मानसिक, योग्यता, बुद्धि, कला-कौशल व ज्ञान का समूचित उपयोग हो और इसके लिए स्टाफिंग महत्वपूर्ण है।

5. विभिन्न तकनीकी ज्ञान व कला का उपयोग- नियुक्ति के माध्यम से अन्य क्षेत्रों से, विभिन्न प्रकार के ज्ञान व कौशल वाले कर्मचारी किसी संस्था में एकत्र होते हैं। और वे अपने अनुभव योग्यता व कला से संस्था की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते है।

6. सामाजिक महत्व- स्टाफिंग का सामाजिक दृष्टिकोण से महत्व है, क्योंकि इससे समाज में रहने वाले लोगों को रोजगार मिलता है और रोजगार मिलने से परिवार का और फिर समाज का स्तर सुधरता है। इससे सामाजिक अशांति का खतरा कम हो जाता है।

7. राष्ट्रीय महत्व-स्टाफिंग का राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत महत्व है। राष्ट्र या राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सम्पूर्ण समाज में सुख, शांति, रोजगार व उपभोग योग्य वस्तुएँ उपलब्ध कराए, जो स्टॉफिंग से पूर्ण होता है।

8. अन्य महत्व-
  1. प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना होती है।
  2. उपक्रम के आकार में वृद्धि होती है।
  3. मानवीय विकास होता है।
  4. राष्ट्रीय स्तर में वस्तु की गुणवत्ता में सुधार व लागत में कमी आती है।

नियुक्तिकरण की प्रक्रिया

नियुक्तिकरण की प्रक्रिया को मानव शक्ति नियोजन भी कहते हैं इसमें सर्वप्रथम संगठन के लिए कर्मचारियों के प्रकार और संख्या का निर्धारण किया जाता है तत्पश्चात् भर्ती प्रक्रिया जिसमें मानव संशाधनों की खोज की जाती है इसके पश्चात् परीक्षा, साक्षात्कार द्वारा उचित व्यक्ति का चयन और उसकी नियुक्ति दी जाती है फिर उस वातावरण से परिचय कराया जाता है जिसमें उन्हें कार्य करना है साथ ही पारिश्रमिक संबंधी नियम, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि की भी जानकारी दी जाती हैं।

नियुक्तिकरण प्रक्रिया के चरण 
मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन
भर्ती
आवेदकों में से चयन
अनुस्थापन तथा अभिविन्यास
प्रशिक्षण तथा विकास
निष्पादन एवं मूल्यांकन

1. मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन- इसमें निम्नलिखित शामिल है:-
  • सबसे पहले इस बात का पता लगाना कि कितनी संख्या में तथा किस प्रकार के कर्मचारी संस्था में उपलब्ध है।
  • यह निर्धारित किया जाता है कि संस्था को कितने एवं किस प्रकार के कर्मचारियों की आवश्यकता है।
  • मानव शक्ति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्यक्रम तैयार करना। कार्यभार विश्लेषण मानव शक्ति आवश्यकताओं को समझने के लिए उपयुक्त है।
2. भरती- यह वह प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मानव शक्ति की उपलब्धता के विभिन्न स्रोतों से संभावित कर्मचारियों की खोज की जाती है तथा उन्हें संस्था में प्रार्थना-पत्र भेजने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
चयन : इसके अंतर्गत विभिन्न कार्यों के लिए योग्य प्रार्थियों को चुना जाता है जिसके लिए रोजगार, परीक्षाएँ लेना, साक्षात्कार एवं चिकित्सीय जाँच शामिल है।

3. अनुस्थापन एवं अभिविन्यास :- जब भी किसी नए कर्मचारी का संस्था में चयन किया जाता है तो उसे उस कार्य पर लगाया जाता है जिसके लिए वह उपयुक्त हो। स्थापन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि इसके द्वारा ही सही कार्य पर सही व्यक्ति को नियुक्त की जाता है। अभिविन्यास में नए कर्मचारी को संस्था से परिचित कराया जाता है। नए कर्मचारी का उनकी इकाइयाँ, पर्यवेक्षकों और साथी कर्मचारियों से परिचय कराया जाता है। उन्हें काम के घण्टों, छुट्टियाँ लेने की प्रक्रिया, चिकित्सा सुविधाओं इत्यादि की जानकारी भी दी जाती है। संस्था के इतिहास तथा संस्था में विभिन्न स्थानों पर उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं के विषय में बताया जाता है।

4. प्रशिक्षण एवं विकास :- व्यवस्थित प्रशिक्षण कर्मचारियों के ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करने में सहायता करता है। कर्मचारियों के ज्ञान एवं कौशल को बढ़ाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। विकास का अर्थ कर्मचारियों को सभी दृष्टियों में उन्नत व निपुण बनाना है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारी अपना वर्तमान काम करने के लिए कौशल हासिल करते हैं और भविष्य में उच्चतर कार्य संभालने के हलिए क्षमताओं को बढ़ाते हैं।

5. निष्पादन एवं मूल्यांकन :- इसके अंतर्गत कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है। कर्मचारियों का स्थानान्तरण एवं पदोन्नति इसी पर आधारित है। 

2 Comments

  1. Thanks for providing subject staffing and simple language

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