स्वरोजगार क्या है स्वरोजगार की विशेषताएँ ?

अपने जीविकोपार्जन के लिए कुछ ना कुछ कार्य करते हैं। साथ ही कार्य के बदले आपको मुद्रा अर्थात रूपये पैसे चाहिए होता है। इसे प्राप्त करने के लिए आप स्वयं रोजगार करते हैं। वही स्वरोजगार होता है। अर्थात् छोटी दकुाने दर्जी कि दुकान ब्रडे की दुकान सले नु स्थानीय बाजार में चला सकते है।। इस प्रकार आप अपना रोजगार स्वयं कर सकते हैं। जीवन के लिए धनोपार्जन आवश्यक है। धनोपार्जन हेतु लोग मेहनत मजदूरी तथा नौकरी पेशा आदि कार्य करते हैं। किन्तु स्वयं के व्यवसाय आरम्भ कर उसका प्रबन्ध करना तथा तन मन से सफलता पूर्वक संचालन करना एवं लाभ हानि का भागीदारी स्वयं होना ही स्वरोजगार कहलाता है। अर्थात् स्वयं के कार्य करके धनोपार्जन करना ही स्वरोजगार कहेंगे।

स्वरोजगार की विशेषताएँ

  1. स्वयं का व्यवसाय होना  
  2. व्यवसाय का प्रबन्ध एक ही व्यक्ति द्वारा होना आवश्यकता पड़ने पर सहायक के रूप में एक या दो व्यक्ति को रखना इस प्रकार स्वरोजगार अन्य लोगो को भी रोजगार कहता है। 
  3. स्वराजे गार में आय निश्चित नहीं होती। यह वस्तअुो के उत्पादन, कय्र -विक्रय या फिर मूल्य के बदले दूसरों को सेवाए प्रदान करने से प्राप्त आय पर निर्भर करती हेैं। 
  4. स्वरोजगार में स्वामी लाभ स्वयं लेता है और हानि का जोखिम भी स्वयं ही उठाता है। इस प्रकार स्वरोजगार में प्रयत्न एवं पारितोषिक में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। 
  5. स्वरोजगार के लिए पूजी की आवश्यकता होती है चाहे यह छोटी मात्रा में ही हो। 
  6. स्वरोजगार में व्यक्ति, व्यवसाय को सफलतापूर्वक चलाने एवं व्यवसाय के विस्तार के लिए मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाने का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। इसमें व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कानूनों की परिधि में कायर् करने की पूर्ण स्वतत्रं ता है।

स्वरोजगार का महत्व

जीवनवृत्ति जीविकोपार्जन का एक तरीका है। स्वरोजगार भी जीवनवृत्ति है क्योंकि कोई भी व्यक्ति व्यवसाय या सेवा कार्यों से अपनी जीविका के लिए कमा सकता है। बरोजगारी में वृद्धि तथा नाकै रियों के पर्याप्त अवसर न मिलने के कारण स्वरोजगार का महत्व अधिक हो गया है। स्वरोजगार के महत्व के अंतर्गत निम्नलिखित बातें गिनी जा सकती हे।

1. छोटे व्यवसाय के लाभ- बड़े व्यवसायों की तुलना में छोटे व्यवसाय के अनेक लाभ हैं। इसे छोटी पूजी के निवेश से प्रारम्भ किया जा सकता है तथा इसको प्रारम्भ करना सरल भी है। छोटे पैमाने की क्रियाओं का स्वरोजगार बड़े पैमाने के व्यवसाय का अच्छा विकल्प है जिसमें वातावरण प्रदूषण, गंदी बस्तियों का विकास, कर्मचारियों के शोषण जैसी कई बुराइयां आ गई हैं।

2. नौकरी के स्थान पर प्राथमिकता-नौकरी में आय सीमित होती है जबकि स्वरोजगार में इसकी कोई सीमा नहीं है। स्वरोजगार में व्यक्ति अपनी प्रतिभा का अपने लाभ के लिए प्रयोग कर सकता है। वह निर्णय जल्दी एवं सरलता से ले सकता है। ये वे ठोस पे्ररक तत्व है। जिनके कारण कोई भी व्यक्ति नौकरी के स्थान पर स्वरोजगार को प्राथमिकता देगा।

3. उद्यमिता की भावना का विकास- उद्यमिता जोखिम उठाने का दूसरा नाम है क्योंकि उद्यमी नए उत्पाद तथा उत्पादन तथा विपणन की नई पद्धति खोजता है। जबकि स्वरोजगार में या तो कम अथवा कोई जोखिम नहीं होता। लेकिन जैसे ही स्वरोजगार में लगा व्यक्ति कुछ नया सोचता है तथा अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए कदम उठाता है तब वह उद्यमी बन जाता है। इस प्रकार स्वरोजगार उद्यमिता के लिए अवतरण मंच बन जाता है।

4. व्यक्तिगत सेवाओं का प्रवर्तन- स्वरोजगार में व्यक्तिगत सेवाएं जैसे दर्जी का काम, कारीगरी, दवाओं की बिक्री, आदि कार्य भी सम्मिलित हैं। ये सेवाएं उपभोक्ता सन्तुष्टि में सहायक होती हैं। इन्हें व्यक्ति आसानी से शुरू कर निरंतर चला सकता है।

5. सृजनता का अवसर- स्वरोजगार में कला एवं कारीगरी में सृजनात्मकता तथा कलात्मकता के विकास का अवसर मिलता है जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने में सहायक होता है। उदाहरण के लिए हस्तकला, हस्तशिल्प, इत्यादि में हम सृजनात्मक विचारों का स्पष्ट झलक देख सकते हैं।

6. बेरोजगारी की समस्या में कमी-स्वरोजगार करने से बेरोजगारी दूर होती है। एवं आय में वृद्धि होती है। साथ ही साथ राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। उच्च शिक्षा की सुविधाओं से वंचीत लोगों के लिए वरदान कम पढ़े लिखे लोगों के लिए स्वरोजगार एक प्रकार से वरदान है।

स्वरोजगार के क्षेत्र 

स्वरोजगार की विशेषताओं का अध्ययन करने के पश्चात आप उन क्षेत्रों के सम्बन्ध् में जानना चाहेंगे जिनमें स्वरोजगार की संभावनाएं हैं। जब आप स्वरोजगार की योजना बनाएं तो आप इसके लिए इन अवसरों को ध्यान में रख सकते हैं -

1. छोटे पैमाने का फुटकर व्यापार - एक अकेला स्वामी छोटे व्यावसायिक इकाइयों को एक या दो सहायकों के सहयोग से सरलता से प्रारम्भ कर सकता है तथा लाभ कमा सकता है।

2. व्यक्तिगत निपुणता के आधार पर सेवाएं प्रदान करना - जो लोग अपनी विशिष्ट निपुणता के आधार पर ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करते हैं वह भी स्वरोजगार में सम्मिलित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए साइकिल, स्कूटर, घड़ियों की मरम्मत, सिलाई, बाल संवारना आदि ऐसी सेवाएं है जो ग्राहक को व्यक्तिगत रूप से प्रदान की जाती है।

3. पेशेगत योग्यताओं पर आधारित व्यवसाय -जिन कार्यों के लिए पेशे सम्बन्धी प्रशिक्षण एवं अनुभव की आवश्यकता होती है वह भी स्वरोजगार के अंतर्गत आते हैं। उदाहरण के लिए पेशे में कार्यरत डॉक्टर, वकील, चाटर्ड एकाउन्टैंट, फार्मेसिस्ट, आरकीटैक्ट आदि भी अपने विशिष्ट प्रशिक्षण एवं निपुणता के आधार पर स्वरोजगार की श्रेणी में आते हैं इनके छोटे प्रतिष्ठान होते हैं जैसे क्लीनिक, दफ्तर का स्थान, चैम्बर आदि तथा यह एक या दो सहायकों की सहायता से अपने ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करते हैं।

4. छोटे पैमाने की कृषि - कृषि के छोटे पैमाने के कार्य जैसे डेरी, मुर्गीपालन, बागबानी, रेशम उत्पादन आदि में स्वरोजगार सम्भव है।

5. ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग - चर्खा कातना, बुनना, हाथ से बुनना, कपड़ों की सिलाई भी स्वरोजगार है। यह पारम्परिक विरासत में मिली निपुणताएं हैं।

6. कला एवं काश्तकारी/शिल्प -जो लोग किसी कला अथवा शिल्प में प्रशिक्षण प्राप्त हैं वह भी स्व रोजगार ही है। इनके व्यवसाय हैं - सुनार, लोहार, बढ़ई आदि।

Post a Comment

Previous Post Next Post