उत्तर वैदिक काल- सामाजिक, आर्थिक & धार्मिक जीवन

उत्तर वैदिक काल का सामाजिक जीवन

उत्तर वैदिक काल में साहित्य से तत्कालीन सामाजिक दशा पर व्यापक प्रकाश पड़ता है । उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में समाज का चार सही-विभाजन शुरू हुआ । गोत्र और आश्रम की नई संकल्पनाएं पनपीं । पितृसत्तात्मक परिवार चलते रहे । लेकिन महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई । उत्तर वैदिक काल में वेशभूषा, आहार और मनोरंजन के रूपों में भी परिवर्तन देखा गया ।

1. आश्रम व्यवस्था:- आर्यों ने जीवन की व्यवस्थित कर दिया । इन लोगों ने जीवन को  चार वर्गों में बांटा, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ।

2. पारिवारिक जीवन:- उत्तर वैदिक कालीन समाज भी पितृ प्रधान था तथा संयुक्त परिवार की प्रथा थी । परिवार के सभी सदस्य परिवार के मुखिया पुरुष का आदर करते थे ।

3. स्त्रियों की दशा:- उत्तर वैदिक काल के आते जाते स्त्रियों के सम्मान कम हो गया । वे सम्पति की उत्तराधिकारी नहीं थी । इस समय स्त्रियों को भोग की वस्तु समझा जाता था । इस समय विदुषी महिला गार्गी एवं मैथेयी थी ।

4. भोजन:- उत्तर वैदिक काल मे वैदिक काल की तरह ही भोजन किया जाता था । विशेष अवसर पर मांस विशेष उत्सवों एवं त्यौहारों पर अवश्य रखा जाता था ।

5. वेशभूषा:- उत्तर वैदिक कालीन लोगों की वेशभूषा में वैदिक काल की तरह रहा, ऊनी वस्त्रों का प्रयोग होने लगा ।
6. मनोरंजन:- विभिन्न अवसरों पर जुआ खेलने, रथ की दौड़ और घुड दाडै का आयोजन होता था । नाचने गाने और बजाने का शौक सभी लोग करते थे । उत्तर वैदिक काल में शततन्तु सौ तार वाला बाजा होता था ।

7. शिक्षा:- उत्तर वैदिक काल में शिक्षा का प्रमुख विषय वेद था । वेदों  के अध्ययन के साथ साथ विज्ञान, गणित, भाषा तथा युद्ध कला आदि की भी शिक्षा दी जाती थी । छात्र गुरु के निकट बैठकर कठोर व सादा जीवन व्यतीत करते हुये ज्ञानार्जन करते थे जिसे ‘उपनिषद’ कहा जाता था ।

 उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन 

उत्तर वैदिक कालीन लोगों की आर्थिक जीवन इस प्रकार है-

1. कृषि:- उत्तर वैदिक कालीन लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था । ऋग्वैिदक काल की तुलना में उत्तर वैदिक काल में कृषि की अत्यन्त उन्नति हुई । खेती के तरीकों में परिवर्तन किया गया । हल का प्रयोग किया जाता था जिसे 20 से 30 बैलो में बांधकर हल चलाया जाता था । इस समय की प्रमुख फसल गेहूॅं, चावल व जौ थी ।

2. पशुपालन:- इसके अतिरिक्त पशुपालन की परम्परा अधिक हो गई थी । हमें ऐसे प्रसंग मिलते हैं, जिनमें चरागाहों का विशेष ध्यान रखा जाता था ताकि जानवरों को किसी प्रकार की कोई कठिनाई न हो । जानवरों के लिए पशुशालाएं बनाई जाती थी । यह पशुओं की जंगली जानवरों से रक्षा के लिए तथा उन्हें सर्दी, गर्मी, शरद ऋतु से बचाने के लिए बनाई जाती थी, इस काल में गाय पूजा यौग्य बन गई थी । गऊ की मान्यता दूध तथा दूसरी वस्तुओं के प्रयोग के लिये अधिक हो गयी थी । अथर्ववेद के अनुसार उस व्यक्ति को मृत्यु-दण्ड दिया जाता था जो गाय का वध करता था ।

4. उद्योग एवं व्यवसाय:- उत्तर वैदिक काल तक कृषि एवं पशुपालन के अतिरिक्त अनेक व्यवसायों की उत्पत्ति हो चुकी थी । लोहे की खोज और मुख्य व्यवसाय के रूप में खेती करना, उत्तर वैदिक काल के महत्वपूर्ण पहलू थे । अनेक नई कलाएं और शिल्प पूर्ण कालिक व्यवसायों के रूप में अपनाये गये । आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार का व्यापार फला-फूला । उत्तर वैदिक काल में उत्तरी गंगा घाटी ने नगर जीवन की शुरूआत देखी ।

उत्तर वैदिक काल का धार्मिक जीवन

उत्तर वैदिक काल में धर्म और जटिल बन गया । अनेक नये दवेताओं ने आरम्भिक प्राकृतिक शक्तियों का स्थान ले लिया । पुजारी वर्ग द्वारा अधिकृत बलि का पहलू महत्वपूर्ण हो गया । लेकिन उत्तर वैदिक काल के अन्तिम चरण में उपनिषदों ने बलि की सत्ता को चुनौती देना आरम्भ कर दिया ।

1. यज्ञ:- उत्तर वैदिक काल के आते- आते धर्म जटिल तो हो गया था लोग अब अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिये मन्त्रों का जाप करना प्रारम्भ किया । यज्ञ खर्चीले होने लगे और यज्ञों में बलि का महत्व भी बढ़ने लगा । यज्ञों में पुरोहितो की संख्या भी बढ़ गयी थी ।

2. ब्राह्मणों  का महत्व बढ़ा:- यज्ञ, हवन, अनुष्ठान, मन्त्राचार होने लगे तब समाज में ब्राह्मणों का महत्व बढ़ने लगा । ब्राह्मण ग्रंथों की रचना इसी काल में की गयी एवं ब्राह्मणों को वेद ज्ञान का अधिकारी माना जाने लगा ।

3. देवताओं के स्थान मेंं परिवर्र्तन:- वैदिक काल में इन्द्र प्रधान देवता थे परन्तु उत्तर वैदिक काल के आते आते इसका स्थान विष्णु, पशपतिनाथ शिव ने ले लिया । इनकी पूजा अब शिव के रूप में की जाने लगी ।

4. दर्शन:- कर्मकाण्ड की जटिलता अधिक हो गयी । यज्ञ का विपरीत प्रभाव हुआ । ब्राह्मण कर्म कान्ड में रुचि लेते थे जिसके कारण दूसरे लोग उपासित होने लगे । इस समाज के लोगों ने आध्यात्मिक चिन्तन किया जिसका वर्णन उपनिषद में मिलता है ।

 उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन

उत्तर वैदिक कालीन साहित्य में इस समय की राजनीतिक स्थिति का पता चलता है ।

1. राजतंत्रों का उदय:- इस समय राजतंत्रों का उदय हुआ जो अत्यन्त शक्तिशाली थे । साम्राज्यवादी शक्तियों का अभ्युदय हुआ । ऐतरेण ब्राम्हण में साम्राज्य, भौज्य, स्वराज्य पारमेष्ठ राज्य महाराज्य आधिपत्य, सार्वभौम आदि राज्यों का उल्लेख है ।

2. राजा:- राजा का पद उत्तर वैदिक काल में पैतृक था वह प्रजा की रक्षा करता था । अब राजा ज्यादा शक्तिशाली हो गया । उत्तर वैदिक काल में विशाल साम्राज्यों के उदय के कारण राजाओं की शक्ति में भी वृद्धि हुई । उत्तर वैदिक काल में राज्याभिषेक होने लगा ।

3. सभा एवं सभापति:- ऋग्वैदि काल में जो सम्मान सभा एवं समिति का था वह उत्तर वैदिक काल में आते आते कम हो गया ।

4. न्याय व्यवस्था:- न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था, तथा सहायता के लिये अन्य अधिकारी होते थे । उत्तर वैदिक काल में ग्राम्यवादिन नायक अधिकारी न्याय करता था।

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