व्यवसाय का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्व

व्यवसाय का अर्थ
आपने देखा होगा कि बाजार में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं। आपको जब और जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, आप वे वस्तुएँ खरीद लाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये वस्तुएँ बाजार में कहाँ से आती हैं? वास्तव में इन वस्तुओं का उत्पादन कुछ विशेष स्थानों पर किया जाता है, जहाँ से कुछ लोग इन्हें लाकर बाजार तक पहुँचाते हैं। उसके बाद ही हम अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इन्हें खरीदते हैं, और इनका उपयोग कर पाते हैं।

इसके अतिरिक्त आपने ऐसे भी बहुत से व्यक्तियों को देखा होगा, जो यात्री तथा माल परिवहन, बैंकिंग, बीमा, विज्ञापन, बिजली आपूर्ति, टेलीफोन आदि जैसी विभिन्न क्रियाओं में लगे होते हैं। ये सभी सेवा संबंधी क्रियाएँ हैं, जिन्हें लोग अपनी आजीविका अर्जित करने के उद्देश्य से करते हैं।

उपरोक्त सभी क्रियाओं में, चाहे वह उत्पादन की हों, वितरण की हों, या वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय की हों, सबमें आर्थिक लाभ निहित होता है और ये सभी नियमित आधार पर की जाती है। इस प्रकार व्यवसाय का अर्थ, ऐसी मानवीय क्रियाओं से है, जिन्हें नियमित रूप से आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन, वितरण, वस्तुओं या सेवाओं के क्रय-विक्रय द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

व्यवसाय का अर्थ

व्यवसाय अंग्रेजी भाषा के Business (बिज्-निस) का हिंदी समानार्थी शब्द है। अंग्रेजी में इसका आशय है, ‘किसी कार्य में व्यस्त रहना: अत: हिदीं में व्यस्त रहने की अवस्था के अर्थ वाले ‘व्यवसाय’ शब्द का चयन किया गया। इस प्रकार व्यवसाय का शाब्दिक अर्थ हैं- किसी न किसी आर्थिक क्रिया में व्यस्त रहना। 

आपने टाटा कम्पनी समूह के बारे में तो सुना ही होगा। वे नमक से लेकर ट्रक एवं बसों तक बहुत सी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और उन्हें हम और आप जैसे लोगों को बेचते हैं. इस प्रक्रिया में वे लाभ कमाते हैं जरा अपने पास के दुकानदार पर नजर डालें. वह क्या करता है ? वह बड़ी मात्रा में माल खरीदता है उन्हें छोटी-छोटी मात्रा में बेचता है। वह इस प्रक्रिया में लाभ कमाता है। व्यवसाय में लगे हुए ये सभी व्यक्ति व्यवसायी कहलाते हैं। ये सभी अपनी क्रियाएं लाभ कमाने के लिए नियमित रूप से करते हैं। 

व्यवसाय की परिभाषा एक ऐसी आर्थिक क्रिया के रूप में दी जा सकती है जिनमें लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं एवं सेवाओं का नियमित उत्पादन क्रय, विक्रय हस्तांतरण एवं विनिमय किया जाता है।

हम बहुत से व्यवसायी जैसे केबल आपरेटर, कारखाना- मालिक, परिवहन कर्ता, बैकर, दर्जी, टैक्सी चालक आदि को क्रय-विक्रय करते अथवा सेवा प्रदान करते देखते हैं। इन्होंने कुछ राशि का निवेश किया है, ये जोखिम उठाते हैं और लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करते है।

व्यवसाय की विशेषताएँ 

1. वस्तुओं तथा सेवाओं का लेन-देन - व्यवसाय में लोग वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन तथा वितरण कार्यों में संलग्न होते हैं। इन वस्तुओं में ब्रेड, मक्खन, दूध, चाय आदि जैसी उपभोक्ता वस्तुएं भी हो सकती हैं और संयन्त्रा, मशीनरी, उपकरण आदि जैसी पूंजीगत वस्तुएँ भी। सेवाएँ- परिवहन, बैंकिंग, बीमा, विज्ञापन आदि रूपों में हो सकती हैं।

2. वस्तुओं तथा सेवाओं का विक्रय अथवा विनिमय - यदि कोई व्यक्ति अपने उपयोग के लिए या किसी व्यक्ति को उपहार देने के लिए कोई वस्तु खरीदता या उत्पादित करता है तो वह किसी प्रकार के व्यवसाय में संलग्न नहीं है। लेकिन जब वह किसी दूसरे व्यक्ति को बेचने के लिए किसी वस्तु का उत्पादन करता है अथवा खरीदता है तो वह व्यवसाय में संलग्न होता है। इस प्रकार व्यवसाय में क्रेता और विक्रेता के बीच वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन अथवा क्रय में धन अथवा वस्तु (वस्तु विनिमय प्रणाली में) का विनिमय आवश्यक होता है। बिना विक्रय अथवा विनिमय के किसी भी क्रिया को व्यवसाय की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

3. वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियमित विनिमय - इसमें वस्तुओं का नियमित उत्पादन अथवा क्रय-विक्रय होना आवश्यक होता है। सामान्यतया एकाकी सौदे को व्यवसाय की संज्ञा नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिए, यदि राजू अपनी पुरानी कार हरि को बेचता है तो इसे व्यवसाय नहीं कहा जाएगा, जब तक कि वह नियमित रूप से कारों के क्रय-विक्रय में संलग्न न हो।

4. निवेश की आवश्यकता - प्रत्येक व्यवसाय में भूमि, श्रम अथवा पूंजी के रूप में कुछ न कुछ निवेश की आवश्यकता होती है। इन संसाधनों का उपयोग विविध प्रकार की वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग के लिए किया जाता है।

5. लाभ कमाने का उद्देश्य -  व्यावसायिक क्रियाओं का प्राथमिक उद्देश्य लाभ के माध्यम से आय अर्जित करना है। बिना लाभ के कोई भी व्यवसाय अधिक समय तक चालू नहीं रह सकता। लाभ कमाना व्यवसाय के विकास और विस्तार की दृष्टि से भी आवश्यक होता है।

6. आय की अनिश्चितता और जोखिम - प्रत्येक व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है। जब कोई व्यवसायी विभिन्न संसाधनों का निवेश करता है तो वह उसके बदले में कुछ न कुछ आय प्राप्त करना चाहता है। लेकिन उसके श्रेष्ठतम प्रयासों के बावजूद व्यवसाय में आय की अनिश्चितता बनी रहती है। कई बार उसे बहुत लाभ होता है, और कई बार ऐसा भी समय आता है, जब उसे भारी हानि उठानी पड़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भविष्य अनिश्चित है। व्यवसायी का आय को प्रभावित करने वाले तत्वों पर कोई नियंत्रण नहीं होता।

व्यवसाय के उद्देश्य

सभी व्यावसायिक क्रियाएँ कुछ उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती हैं। व्यवसाय के उद्देश्य को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :

आर्थिक उद्देश्य

व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों के अंतर्गत लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ वे समस्त आवश्यक क्रियाएँ भी आती हैं, जिनके द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है, जैसे ग्राहक बनाना, नियमित नव प्रवर्तन तथा उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग आदि।

1. लाभ कमाना - लाभ, व्यवसाय के लिए जीवन दायिनी शक्ति का कार्य करता है। इसके बिना कोई भी व्यवसाय प्रतियोगिता के बाजार में टिका नहीं रह सकता। वास्तव में किसी भी व्यावसायिक इकाई के अस्तित्व में आने का उद्देश्य होता है- लाभ कमाना। लाभ, व्यवसायी को न केवल उसकी आजीविका अर्जित करने में सहायता करता है, अपितु लाभ का एक भाग व्यवसाय में पुन: विनियोजित कर व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार में भी सहायक होता है। लाभ कमाने के प्राथमिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यवसाय के कुछ अन्य उद्देश्य हैं :

1. ग्राहक बनाना : जब तक उत्पाद को और सेवाओं को खरीदने वाले ग्राहक न हों, तब तक किसी भी व्यवसाय का अस्तित्व में बने रहना संभव नहीं है। कोई भी व्यवसायी तभी लाभ अर्जित कर सकता है जबकि वह लाभ के बदले में अपने ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध् कराए। इसके लिए यह आवश्यक है वह अपनी विद्यमान वस्तुओं के लिए ग्राहकों को आकर्षित करे तथा अध्कि से अध्कि ग्राहक बनाए और नए-नए उत्पाद बाजार में लाए। विभिन्न विपणन क्रियाओं के द्वारा इसे प्राप्त किया जा सकता है।

2. नियमित नव-प्रवर्तन : व्यवसाय अत्यतं गतिशील है तथा एक उपक्रम अपने वातावरण में हुए परिवर्तनों को अपनाकर ही निरंतर सपफल हो सकता है। नव प्रवर्तन का अर्थ है- नया परिवर्तन। ऐसा परिवर्तन, जिससे उत्पाद की गुणात्मकता, प्रक्रिया और वितरण में संशोध्न हो। कीमतों में कमी और बिक्री में वृद्धि से व्यवसायी को अध्कि लाभ प्राप्त होता है। हथकरघों के स्थान पर पावरलूम और वृफषि में हल अथवा हाथ से चलने वाले यंत्रों के स्थान पर ट्रैक्टर का उपयोग आदि नव-प्रवर्तन के ही परिणाम हैं।

3. संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग : आप जानते हैं कि किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए पर्याप्त पूँजी अथवा कोष की आवश्यकता होती है। इस पूँजी को मशीनें खरीदने, कच्चा माल तथा कर्मचारियों को काम पर रखने और प्रतिदिन के खर्चों की पूर्ति के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रकार व्यावसायिक क्रियाओं में विभिन्न संसाध्नों जैसे मशीनें, आदमी, माल, मुद्रा आदि की आवश्यकता होती है। कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति द्वारा, मशीनों का क्षमता पूर्ण उपयोग करके तथा कच्चे माल के अपव्यय को कम करके इन उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।

सामाजिक उद्देश्य

सामाजिक उद्देश्य व्यवसाय के वे उद्देश्य होते हैं, जिन्हें समाज के हितों के लिए प्राप्त करना आवश्यक होता है। अत: हर व्यवसाय का उद्देश्य होना चाहिए कि वह किसी भी प्रकार से समाज को हानि न पहुँचाए। व्यवसाय के सामाजिक उद्देश्यों के अंतर्गत अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन तथा पूर्ति, उचित व्यापारिक प्रथाएँ अपनाना, समाज के सामान्य कल्याणकारी कार्यों में योगदान तथा कल्याणकारी सुविधाओं में योगदान करना सम्मिलित है।

1. अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा पूर्ति : चूंकि व्यवसाय समाज के विविध संसाधनों का उपयोग करता है। इसलिए समाज की अपेक्षा होती है कि व्यवसाय उसे गुणवत्ता वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की आपूर्ति करें। इसलिए व्यवसाय का उद्देश्य होना चाहिए कि वह अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करें तथा उचित कीमत पर और उचित समय पर उनकी पूर्ति करें। व्यवसायी द्वारा समाज को आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता के अनुसार उनका मूल्य वसूल करना चाहिए।

2. उचित व्यापारिक प्रथाएँ अपनाना : प्रत्येक समाज में जमाखोरी कालाबजारी, अध्कि कीमत वसूलना आदि क्रियाएँ अवांछित मानी जाती हैं। इसके अलावा गुमराह करने वाले विज्ञापन, वस्तुओं की गुणवत्ता के बारे में गलत छाप छोड़ते हैं। व्यावसायिक इकाइयों को अधिक लाभ कमाने के लिए आवश्यक वस्तुओं की वृफित्राम कमी अथवा कीमतों में वृद्धि नहीं करनी चाहिए। ऐसी क्रियाओं से व्यवसायी की बदनामी होती है और कभी-कभी उसे दंड अथवा कानूनन जेल की सजा भी भुगतनी पड़ती है। 

इस प्रकार उपभोक्ता और समाज के कल्याण को ध्यान में रखते हुए, व्यवसायी को उद्देश्य तथा उचित व्यापारिक प्रथाओं को अपनाना चाहिए।

3. समाज के सामान्य कल्याण कार्यों में योगदान : व्यावसायिक इकाइयों को समाज के सामान्य कल्याण तथा उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए। यह अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल तथा कालेज बनाकर, लोगों को आजीविका कमाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र खोलकर, चिकित्सा की सुविधा के लिए अस्पतालों की स्थापना कर, आम जनता के मनोरंजन के लिए पार्क तथा खेल परिसरों आदि की सुविधाएँ प्रदान करके संभव है।

मानवीय उद्देश्य

मानवीय उद्देश्यों से अभिप्राय उन उद्देश्यों से है, जिनमें समाज के अक्षम तथा विकलांग, शिक्षा अथवा प्रशिक्षण से वंचित लोगों के कल्याण तथा कर्मचारियों की अपेक्षाओं की पूर्ति के लक्ष्य निहित होते हैं। इस प्रकार व्यवसाय के मानवीय उद्देश्यों के अंतर्गत कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक संतुष्टि और मानव संसाधनों का विकास निहित है।

1. कर्मचारियों का आर्थिक कल्याण : व्यवसाय में कर्मचारियों को उचित वेतन, कार्य-निष्पादन के लिए अभिप्रेरणाएं, भविष्यनिध् प्रोविडेंट फंड के लाभ, पैंशन तथा अन्य अनुलाभ जैसे चिकित्सा सुविधा, आवासीय सुविधा आदि उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इससे कार्य क्षेत्र में व्यक्ति अधिक संतुष्टि का अनुभव करेंगे और व्यवसाय के लिए अधिक योगदान दे सकेंगे।

2. कर्मचारियों की सामाजिक तथा मानसिक संतुष्टि : यह हर व्यावसायिक इकार्इ का कर्तव्य बनता है कि वह अपने कर्मचारियों को सामाजिक तथा मानसिक संतुष्टि प्रदान करें और ऐसा वे उनके काम को रोचक और चुनौतीपूर्ण बनाकर, सही कार्य के लिए सही व्यक्ति को नियुक्त कर तथा कार्य की नीरसता को समाप्त करके संभव बना सकते हैं। साथ ही निर्णय लेते समय कर्मचारियों की शिकायतों तथा उनके सुझावों पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। यदि कर्मचारी खुश और संतुष्ट हैं तो वे अपने कार्य भी अच्छे ढंग से कर सकेंगे।

3. मानवीय संसाधनों का विकास : कर्मचारी मनुष्य हैं और इसलिए सदैव अपने पेशागत वृद्धि के लिए तत्पर रहते हैं। इसके लिए उपयुक्त प्रशिक्षण तथा विकास की आवश्यकता होती है। व्यवसाय तभी उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है जब समय के अनुसार उसके कर्मचारी अपनी क्षमताओं, कार्य-कुशलताओं तथा दक्षताओं में सुधर करते रहें। अत: व्यवसाय के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण तथा विकास के कार्यक्रम आयोजित करते रहें। 

4. सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का आर्थिक कल्याण : व्यावसायिक इकाइयाँ समाज के पिछड़े तथा शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग लोगों की मदद करके समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन सकती हैं। ऐसा वे विभिन्न प्रकार से कर सकती हैं। उदाहरण के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करके समाज के पिछड़े समुदाय के लोगों की आय अर्जन क्षमता बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा व्यावसायिक इकाइयाँ मेधवी विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रावृत्ति प्रदान करके भी ऐसा कर सकती है।

राष्ट्रीय उद्देश्य

व्यवसाय, देश का एक महत्वपूर्ण अंग होता है अत: राष्ट्रीय लक्ष्यों और आकांक्षाओं की प्राप्ति प्रत्येक व्यवसाय का उद्देश्य होना चाहिए। व्यवसाय के राष्ट्रीय उद्देश्य हैं:

1. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना - व्यवसाय के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय लक्ष्य है, लोगों को लाभपूर्ण रोजगार के अवसर उपलब्ध् कराना। इस लक्ष्य की पूर्ति नर्इ व्यावसायिक इकार्इयाँ स्थापित करके, बाजार का विस्तार करके तथा वितरण प्रणाली को और अध्कि व्यापक बनाकर की जा सकती है।

2. सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना - एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में एक व्यवसायी से यह आशा की जाती है कि जिन लोगों के साथ वह लेनदेन करता है उन सभी को समान अवसर प्रदान करे। यह भी आशा की जाती है कि वह सभी कर्मचारियों को कार्य करने तथा उन्नति करने के समान अवसर उपलब्ध् कराए। इस उद्देश्य के अंतर्गत वह समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गो के लोगों पर विशेष ध्यान दें।

3. राष्ट्रीय प्राथमिकता के अनुसार उत्पादन करना - व्यावसायिक इकाइयों को सरकार की नीतियों तथा योजनाओं की प्राथमिकता को देखते हुए उन्हीं के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन तथा आपूर्ति करनी चाहिए। हमारे देश में व्यवसाय के राष्ट्रीय उद्देश्यों में से एक उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाकर उचित दर पर उपलब्ध कराना होना चाहिए।

4. देश के राजस्व में योगदान - व्यवसाय के स्वामियों को करों और बकाया राशि का भुगतान ईमानदारी के साथ करना चाहिए। इससे सरकार का राजस्व बढ़ता है, जिसका उपयोग राष्ट्र के विकास के लिए किया जा सकता है।

5. आत्मनिर्भरता तथा निर्यात को बढ़ावा - देश को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिए व्यावसायिक इकाइयों की एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है कि वे वस्तुओं के आयात को रोकें। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यावसायिक इकाई को निर्यात बढ़ाने तथा अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा देश के कोष में लाने को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए।

वैश्विक उद्देश्य

पहले भारत के अन्य देशों के साथ बहुत ही सीमित व्यापारिक संबंध् थे। तब वस्तुओं की आयात और निर्यात संबंधी नीतियाँ बहुत कठोर थीं, लेकिन आजकल उदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण कापफी हद तक विदेशी निवेश पर प्रतिबंध् समाप्त हो चुका है, तथा आयातित वस्तुओं पर लगने वाला शुल्क भी काफी कम हो गया है। इन परिवर्तनों से बाजार में प्रतियोगिता काफी बढ़ गई है। आज वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया एक बड़े बाजार के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। आज एक देश में तैयार माल दूसरे देश में आसानी से उपलब्ध है। 

इस प्रकार विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से प्रत्येक व्यवसाय अपने मस्तिष्क में कुछ उद्देश्य रखकर काम करने लगा है, जिसे वैश्विक उद्देश्य कहा जा सकता है। आइए उन उद्देश्यों का अध्ययन करें।

1. सामान्य जीवन स्तर में वृद्धि : व्यावसायिक गतिविधियों के विकास के कारण अब दुनिया भर में उचित मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध् हैं। इस प्रकार एक देश का व्यक्ति दूसरे देश के व्यक्ति द्वारा उपयोग किए जा रहे उसी प्रकार के सामान का उपयोग कर सकता है। इससे लोगों के सामान्य जीवन स्तर में वृद्धि होती है।

2. विभिन्न देशों के बीच असमानताओं को कम करना : व्यवसाय को अपनी गतिविधियों का विस्तार कर अमीर और गरीब राष्ट्रों के बीच की असमानता को कम करना चाहिए। विकासशील तथा अविकसित देशों में पूंजी विनियोजित करके ये औद्योगिक तथा आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

3. विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा वस्तुओं तथा सेवाओं की उपलब्धता : व्यवसाय को उन वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करनी चाहिए, जिनकी विश्व बाजार में माँग तथा प्रतिस्पर्धा अधिक है। इससे निर्यातक देश की छवि में सुधार आता है और देश को अधिक विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।

व्यवसाय का महत्व

आधुनिक युग में व्यवसाय किसी भी राष्ट्र की प्रगति का आधार माना जाता है। व्यवसाय आधुनिक समाज का एक अभिन्न अंग है। वाणिज्यशास्त्री व्हीलर के शब्दों में आज व्यवसाय का जीवन से इतना घनिष्ठ संबधं है कि मौसम की तरह व्यवसाय भी सदैव हमारे साथ रहता है।
  1. जीवन स्तर में सुधार- व्यवसाय उचित समय और उचित स्थान पर श्रेष्ठत्तर गुणवत्ता वाली विविध वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराके लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाता है।
  2. रोजगार की प्राप्ति- यह कार्य करने और जीविकोपार्जन करने के अवसर प्रदान करता है। इस तरह इससे देश में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं जिससे गरीबी दूर होती है। 
  3. प्राकृतिक संसाधनोंं का विदोहन- इससे राष्ट्र के सीमित संसाधनों का उपयोग होता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिक से अधिक उत्पादन में सहायता मिलती है.
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेंं वृद्धि- यह उत्तम किस्म की वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन तथा निर्यात द्वारा राष्ट्रीय छवि में सुधार लाता है. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मेलों तथा प्रदर्शनियों में भाग लेकर यह बाहर के देशों में हमारी प्रगति और उपलब्धियों का प्रदर्षन भी करता हैं।
  5. श्रेष्ठ वस्तुओं का उत्पादन-इससे देश के लोगों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वाली वस्तुएं प्रयोग करने का अवसर मिलता है। ऐसा विदेशो से वस्तुए आयात करके अथवा अपन े ही देश में आधुनिक तकनीक के उपयोग से श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तुओं के उत्पादन द्वारा संभव है।
  6. पूंंजी निवेश को प्रोत्साहन-इससे निवेशकों को उनके पूँजी निवेश पर अच्छा प्रतिफल मिलता है और व्यवसाय को विकास तथा विस्तार के श्रेष्ठ अवसर प्राप्त होते हैं।
  7. सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता को बढ़ा़वा- पर्यटन सेवाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रायोजन, व्यापार प्रदर्षनी आदि के माध्यम से यह देश में सामाजिक हितों को बढ़ावा देता है। इससे देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग एक दूसरे के साथ अपनी संस्कृति, परम्परा तथा आचार-विचारों का आदान-प्रदान कर पाते हैं। इस तरह इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है
  8. अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों मेंं मधुरता- यह भिन्न-भिन्न देशों के लोगों को अपनी संस्कृति के आदान प्रदान के अवसर भी प्रदान करता है। इस प्रकार यह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति को बनाए रखने में मदद करता है।
  9. नवीन उत्पाद एवं सेवाओंं का विकास- यह विज्ञान तथा तकनीक के विकास में भी सहायक होता है। यह नए उत्पादों एवं सेवाओं की खोज में शोध एवं विकास कार्यो पर बहुत अधिक धन व्यय करता है। इस प्रकार औद्योगिक शोधों के परिणामस्वरूप अनके नवीन उत्पादों तथा सेवाओं का विकास होता है।

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