भारत में औद्योगीकरण के विकास के साथ विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक
स्वास्थ्य एवं सुरक्षा समस्या उत्पन्न हुई है। प्रत्येक वर्ष, औद्योगिक दुर्घटना के मामले
लाखों में दिखाई देते है, जिनमें वृहद, दुर्घटना, आंशिक नि:शक्तता, पूर्ण नि:शक्तता
विभिन्न कारखानों, रेलवे, पत्रों, गोदी, तथा खानों में देखने को मिलती है। हमारे
सांख्यिकीय कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार 1000 श्रमिकों में 60 श्रमिक दुर्घटना ग्रस्त
हो जो है जिनमें वृहद दुर्घटना अधिसंख्य होती है। यह दर औद्योगिक देशों से आठ
गुना है। दुर्घटना की दर पिछले तीन दशकों में ज्यादा हुई है।
कारखानों में कुल दुर्घटनायें औद्योगिक दुर्घटनाओं का वृहद भाग होता है। दुर्घटनाओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है। जिनमें, वृहद, गम्भीर व सुक्ष्म दुर्घटनायें आती है, दुर्घटनाओं के लिए सांख्यिकीय मापन दो तरह से होता है -
- दुर्घटनाओं की आवृति दर
- दुर्घटनाओं की गम्भीरता दर।
औद्योगिक दुर्घटना के कारण
- तकनीकी कारण - मशीनों की खराबी, खराब रखरखाव, मशीनों का उचित घेराबन्दी, अतिभीड़ इत्यादि कारणों से कर्मकार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
- वैयक्तिक कारण - अनुचित भर्ती, मर्ती तथा स्थानान्तरण में असावधानी, उपेक्षा, अनुचित माध्यम का चुनाव, अपर्याप्त निपुणता, अपर्याप्त पर्यवेक्षण, अन्य लोगों के असमायोजन इत्यादि के द्वारा दुर्घटना घटित होती है।
- मनोवैज्ञानिक कारण - दुर्घटनायें मनोवैज्ञानिक कारणों से भी होती है जिनमें कर्मकारों का मनोबल उच्च न होना, उनको उचित दालाह का न मिलना आते है।
- सुरक्षा नियमों की उपेक्षा - कर्मकार कभी-कभी सुरक्षा नियमों की उपेक्षा कर जाते हैं जिसका परिणाम दुर्घटना का होना पाया जाता है।
- अन्य कारण - अन्य कारणों में दुर्घटनायें निम्न के अनुपालन में कमी के आधार पर पायी जाती है जैसे -
- दुर्घटनाओं को रोकने हेतु विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं के कर्मचारी अपनाने में असफल होने पर
- कर्मचारियों द्वारा सुरक्षा के नियमों का पालन न करने पर
- ई.एस.आई. डाक्टरों की सुविधाजनक अभिवृत्ति के कारण आदि।
औद्योगिक दुर्घटनाओं की रोकथाम
- कारखानों में सुरक्षा निरीक्षण के द्वारा।
- नौकरी सुरक्षा विश्लेशण के द्वारा।
- प्रबंध तंत्र के द्वारा।
- दुर्घटना जांच द्वारा।
- पर्यावरणीय कारणों को नियंत्रित करके।
- व्यावहारिक कारणों पर नियंत्रण करके।
- पूरक क्रिया विधि द्वारा।
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