मजदूरी एवं वेतन का अर्थ, परिभाषा, लक्षण अथवा विशेषताएं

मजदूरी - मजदूरी से आशय उस भुगतान से है जो कर्मचारियों को कार्य के पारिश्रमिक के रूप में दिया जाता है। जो साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक होता है। मजदूरी की राशि में अन्तर कार्य के घण्टों में परिवर्तन के अनुरूप होता है। मजदूरी प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की श्रेणी में सामान्यतः कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिक तथा अपर्यवेक्षकीय कर्मचारियांे को सम्मिलत किया जाता है। 

वेतन - वेतन का अर्थ मजदूरी से भिन्न है। वेतन वह भुगतान है जो कार्यानुसार नहीं दिया जाता है। वरन् एक निश्चित समय के लिए निश्चित राशि के रूप में दिया जाता है। वेतनभोगी व्यक्तियों में समस्त कार्यालय के कर्मचारी, शासकीय अधिकारी प्रबन्धक तथा अन्य पेशेवर व्यक्ति सम्मिलत किए जाते है। श्रमिक का भुगतान इस श्रेणी में नहीं आता है। 

योडर एवं हैनमन के अनुसार, ’’मजदूरी उन श्रमिकों तथा कर्मचारियों को दी गई गई क्षतिपूर्ति है, जो अपने नियोक्ता के लिए वस्तुएं एवं सेवाएं उपलब्ध कराते हैं तथा उत्पादन कार्याे के लिए नियोक्ता के उपकरणों का प्रयोग करते हैं।‘‘ 

बेन्हम के अनुसार, ’’मजदूरी एक संविदा के अन्र्तगत दी गई वह राशि है जो नियोक्ता द्वारा श्रमिक को उनकी सेवाओं के बदले में दी जाती है।‘‘ मजदूरी वह आर्थिक क्षतिपूर्ति है जो समय प्रतिदिन, प्रतिघण्टा आदि के आधार पर श्रमिकों को उनके कार्य एवं सेवाओं के प्रतिफल में दी जाती है। जिसके अन्र्तगत परिवार भत्ते, राहत, वेतन, वित्तीय सहायता तथा अन्य सामाजिक लाभ सम्मिलत किए जाते हैं। 

मजदूरी शब्द का अर्थ भारत में निम्नलिखित विभिन्न अधिनियमों के अन्र्तगत परिभाषित किया गया हैः 
  1. मजदूरी भुगतान अधिनियम,1936
  2. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 
  3. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम,1948
  4. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923
इन सभी अधिनियमों में मजदूरी के दो मुख्य भाग किए गए है मूल मजदूरी तथा अन्य भुगतान है। इन परिभाषाओं के प्रथम भाग में सभी प्रकार के पुरूष्कार सम्मिलत किए गए है। चाहे वे किसी भी रूप में दिए जाते हो- मूल मजदूरी अथवा भत्ते या अन्य कोई पुरूस्कार जो श्रमिक तथा नियोक्ता के मध्य हुए संविदा के आधार पर दिए जातें है अथवा देय हैं। द्वितीय भाग में अन्य प्रकार के भुगतान सम्मिलित किए जाते है। जैसे विभिन्न प्रकार के वेतन भत्ते व मजदूरी के अतिरिक्त दिए जाते हैं तथा समय विशेष के लिए ही होते हैं। अतः यह एक रूप में मजदूरी के ही अंग हैं । अवकाश मजदूरी, अतिरिक्त समय कार्य भृत्ति, बोनस सामाजिक सुरक्षा लाभ आदि इस श्रेणी में सम्मिलित नही है। अतः इन्हें पृथक् रखा गया है। 

भारत में परिभाषित मजदूरी में मूल मजदूरी, महंगाई भत्ते, मकान किराया भत्ते नगरीय क्षतिपूर्ति भत्ते आदि सम्मिलित किए जाते हैं। अवकाश काल की मजदूरी, छुट्टियों का वेतन, अतिरिक्त समय काम करने की मजदूरी बोनस, अच्छे व्यवहार एवं चरित्र का पुरूस्कार कर्मचारी क्षतिपूर्ति क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अन्र्तगत मजदूरी के भाग हैं। 

किसी निर्णय अथवा कानूनी आज्ञा के अन्र्तगत काम के बदले दी जाने वाली राशि, मजदूरी भुगतान अधिनियम् 1936 तथा कर्मचारी बीमा अधिनियम, 1948, द्वारा मजदूरी की श्रेणी में सम्मिलत की गई हैं। यदि भुगतान के समय में दो माह से अधिक का अन्तर न हो। सेवा छंटनी क्षतिपूर्ति, नोटिस काल अथवा ग्रेच्युइटी के स्थान पर दिया गया भुगतान, मजदूरी भुगतान अधिनियम के अन्र्तगत मजदूरी की श्रेणी में आता है। 

भुगतान जो मजदूरी नहीं है - निम्न भुगतान मजदूरी के अन्र्तगत किसी भी नियम द्वारा सम्मिलत नहीं किए गए हैं। जैसे- 
  1. सरकार द्वारा निर्धारित अन्य विशिष्ट सुविधाएं जो किसी विशेष आदेश द्वारा मजदूरी गणना में पृथक् रखी गयी हों। 
  2. किसी कर्मचारी द्वारा किए गए विशिष्ट व्यय का भुगतान जो कर्मचारी द्वारा उसके पद एवं स्थिति की दृष्टि से उपक्रम में हित किया जाना आवश्यक हो। 
  3. सामाजिक बीमा एवं बीमा लाभ के लिए अथवा सेवा निवृत्ति या भविष्य निधि के निमित्त दिया गया भाग जो नियोक्ता द्वारा दिया जाता है।
  4. लाभ भागिता योजना के अन्र्तगत दिया गया बोनस अथवा अतिरिक्त भुगतान, जो किसी प्रकार से संविदा का भाग नहीं है।

मजदूरी के लक्षण अथवा विशेषताएं

  1. मजदूरी श्रम की सेवाओं का प्रतिफल है।
  2. मजदूरी प्रति इकाई, प्रति घण्टा, दैनिक साप्ताहिक, पाक्षिक अथवा मासिक हो
  3. सकती है।
  4. मजदूरी समय अथवा कार्यानुसार दोनों प्रकार से निर्धारित की जा सकती है।
  5. मजदूरी में सामान्य मजदूरी, अधि-समय मजदूरी, बोनस तथा अतिरिक्त मजदूरी भी सम्मिलित होती है।
  6. प्रमापित मजदूरी के लिए प्रमापित उत्पादन निर्धारित किया जा सकता है।
  7. मजदूरी नकद अथवा वास्तविक हो सकती है।
  8. मजदूरी, मजदूरी दर से भिन्न है।
  9. मजदूरी दर का निर्धारण कार्य मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है।
  10. मजदूरी उपयोगिता सृजन का कार्य करती है।
  11. मजदूरी का भुगतान श्रमिक एवं नियोक्ता के बीच हुए अनुबन्ध के अधीन होता है।

न्यूनतम मजदूरी, उचित मजदूरी एवं निर्वाह मजदूरी 

1. न्यूनतम मजदूरी - अखिल भारतीय सेवायोजक संगठन के अनुसार ’’न्यूनतम मजदूरी वह मजदूरी हैं जो श्रमिक तथा उसके परिवार की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करे।‘‘ निःसन्देह न्यूनतम मजदूरी मौद्रिक रूप से मिलने वाली वह राशि है जिससे श्रमिक स्वयं का तथा अपने परिवार का पालन पोषण कर सकता है तथा अपनी कार्यकुशलता बनाए रख सकता है। 

2. उचित मजदूरी - सामाजिक ज्ञान शब्दकोष के अनुसार, ‘‘उचित मजदूरी वह मजदूरी है, जो श्रमिकों को समान कुशलता, कठिन व अरूचिकर कार्यो के लिए प्राप्त होती है। यह मजदूरी संस्था द्वारा किसी प्रमाणिक स्तर पर निर्धारित की जाती है।’’ 

पीगू के अनुसार, उचित मजदूरी वह है जो श्रमिकों को कार्यकुशलता के अनुपात में दी जाती है। कार्यकुशलता की माप श्रमिक की सीमान्त उत्पादकता के आधार पर की जाती है। यदि श्रमिक की मजदूरी वस्तु की सीमान्त उत्पादकता से कम है तो उसे उचित मजदूरी नहीं कहा जा सकता है। अधिकांश वि़द्वानांे की राय है कि उचित मजदूरी न्यूनतम मजदूरी की उच्चतम सीमा व निर्वाह मजदूरी की निम्नतम सीमा के समकक्ष होती है। 

3 निर्वाह मजदूरी- भारतीय संविधान के नीति निर्धारक तत्वों (राज्य) की धारा 43 के अनुसार ’’राज्य सभी कर्मचारियों को निर्वाह मजदूरी प्रदान करेगा।‘‘

मजदूरी एवं वेतन प्रशासन के उद्देश्य 

मजदूरी एवं वेतन प्रशासन के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है :
  1. समान कार्यो के लिए समान पारिश्रमिक के भुगतान को प्रदान करते हुए एक निष्पक्ष एवं न्यायसंगत पारिश्रमिक की व्यवस्था को विहित करना। 
  2. योग्य एवं सक्षम लोगों को संगठन के प्रति आकर्षित करना तथा उन्हें सेवायोजित करना। 
  3. कर्मचारियों के प्रतिस्पध्र्ाी समूहों के साथ मजदूरी एवं वेतन स्तरों में सामंजस्य बनाये रखने के द्वारा वर्तमान कर्मचारियों को संगठन में बनाये रखना।
  4. संगठन की भुगतान करने की क्षमता की सीमा के अनुसार श्रम एवं प्रबन्धकीय लागतों को नियन्त्रित करना। 
  5. कर्मचारियों के अभिप्रेरण एवं मनोबल में सुधार करना तथा श्रम प्रबन्ध सम्बन्धों में सुधार करना। 
  6. संगठन की समाज में एक अच्छी छवि को बनाने का प्रयास करना तथा मजदूरियों एवं वेतनों से सम्बन्धित वैधानिक आवश्यकताओं का अनुपालन करना। 

मजदूरी एवं वेतन प्रशासन के सिद्धांत

मजदूरी एवं वेतन प्रशासन की योजनाओं, नीतियों तथा अभ्यास के अनेक सिद्धांत है।। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित प्रकार से हैं :
  1. मजदूरी एवं वेतन की योजनायें तथा नीतियां पर्याप्त रूप से लचीली होनी चाहिये। 
  2. कार्य मूल्यांकन वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिये। 
  3. मजदूरी एवं वेतन प्रशासन की योजनायें सदैव सम्पूर्ण संगठनात्मक योजनाओं एवं कार्यक्रमों के अनुकूल होनी चाहिये। 
  4. मजदूरी एवं वेतन प्रशासन की योजनायें एवं कार्यक्रम देश के सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों, जैसे - आय के वितरण की समानता की प्राप्ति तथा मुद्रा स्फीति सम्बन्धी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण के अनुसार होनी चाहिये। 
  5. मजदूरी एवं वेतन प्रशासन की योजनायें एवं कार्यक्रम स्थानीय तथा राष्ट्रीय दशाओं के परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होनी चाहिये। 
  6. ये योजनायें अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने तथा शीघ्र निपटाने वाली होनी चाहिये। 

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