परिवेदना का अर्थ, परिभाषा, शिकायत एवं परिवेदना में अन्तर

परिवेदना का अर्थ असन्तोष को व्यक्त करने का मौखिक या लिखित माध्यम है। परिवेदना, व्यक्ति के असन्तोष का परिणाम है।

परिवेदना का अर्थ

आमतौर पर हम परिवेदना, शिकायत एवं असन्तोष को एक ही अर्थ में लेते हैं, परन्तु इन तीनों शब्दों में व्यापक अन्तर है।

प्रो0 पिगर्स एवं मेयर्स (Prof. Pigors and Myres) के अनुसार असन्तोष (Dissatisfaction) शिकायत (Complaint) एवं परिवेदना (Grievance) तीनों ही स्पष्ट रूप से असन्तोष की प्रकृति को दर्शाते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसी कोई भी बात जो व्यक्ति की शान्ति को भंग करती है, असन्तोष कहलाती है, चाहे व्यक्ति अपनी अशान्ति को शब्दों द्वारा व्यक्त करे अथवा न करे। शिकायत मौखिक या लिखित रूप में व्यक्त किया गया वह असन्तोष है जिसकी ओर सेवा-नियोजक या फोरमैन का ध्यान आकर्षित किया गया हो।’’ 

परिवेदना साधारणतया एक शिकायत है जो प्रबन्ध के दृष्टिकोण से श्रम सम्बन्धों की भाषा में प्रबन्ध प्रतिनिधि या संघ अधिकारी को लिखित रूप में औपचारिक ढंग से प्रस्तुत की जाती है।’’ 

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि शिकायत भी एक प्रकार का असन्तोष है जिसे प्राय: अनौपचारिक रूप में अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। शिकायत परिवेदना का रूप उस समय धारण कर लेती है जब व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है और अधिकारियों द्वारा उसके हितों के साथ कुठाराघात किया गया है। 

इस तरह परिवेदना भी मूलत: एक शिकायत है जिसे व्यक्ति औपचारिक रूप से लिखित रूप में अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

परिवेदना की परिभाषा

रिचर्ड पी0 केल्हून (Richard P. Calhoon) के अनुसार, ‘‘कोई भी ऐसी वस्तु जिसे व्यक्ति सोचता है या अनुभव करता है वह गलत है जो सामान्यत: सक्रिय रूप से शान्ति भंग करने वाली भावना के साथ चलती है चाहे वह सही हो या गलत, परिवेदना कहलाती है।’’ 

कीथ डेविस (Keith Davis) के अनुसार, ‘‘परिवेदना व्यक्तिगत अन्याय की वास्तविक अथवा काल्पनिक अनुभूति है जो किसी व्यक्ति के रोजगार सम्बन्धों से सम्बन्धित होती है।’’ 

बीच (Beach) के अनुसार, ‘‘परिवेदना एक व्यक्ति की रोजगार स्थिति के सम्बन्ध में ऐसा असन्तोष या अन्याय की भावना है जो प्रबन्धकों का ध्यान उस ओर आकर्षित करता है।’’ 

राष्ट्रीय श्रम आयोग (National Commission on Labour) के अनुसार ‘‘शिकायतें जो एक या अधिक व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप में उनके वेतन भुगतान, अधिसमय, अवकाश, स्थानान्तरण, पदोन्नति, वरिष्ठता, कार्य सौंपना, कार्य की दशायें, सेवा समझौते का अर्थ, पदमुक्ति तथा कार्य से निष्काषित आदि के रूप में प्रभावित करती है, परिवेदना का निर्माण करेगी। जहां विवाद सामान्य क्रियान्वयन सम्बन्धी या वृहदस्तरीय हो तो वे परिवेदना निवारण पद्धति के क्षेत्र के बाहर होगा।’’ 

जूसियस (Jucius) के अनुसार, ‘‘परिवेदना किसी प्रकार की असन्तुष्टि या असन्तोष हो सकता है, चाहे उसे व्यक्त किया गया है अथवा नहीं और वह वैधानिक हो अथवा नहीं, जो कम्पनी से सम्बन्धित किसी तथ्य से उत्पन्न हुआ है जिसे व्यक्ति अनुचित, अन्यायपूर्ण या असमान सोचता है, विश्वास करता है और यहां तक कि महसूस करता है।’’

असंतोष, शिकायत एवं परिवेदना में अन्तर 

पीगर्स एवं मायर्स ने असंतोष, शिकायत एवं परिवेदना में अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखा है कि वस्तुत: ये परिवेदना के विभिन्न चरण हैं।

1. असंतोष : व्यक्ति की कार्य के प्रति अथवा कार्य की शर्तों व दशाओं के प्रति अनुभूति है जो वह कार्यस्थल पर अपनी भूमिकाअें के निर्वहन के दौरान अनुभव करता है। कार्य की विभिन्न दशाएं व परिस्थितियाँ, कार्मिक की रूचि अथवा अपेक्षाओं अथवा प्रबन्धकों द्वारा पूर्व में दिए गये आश्वासनों के अनुरूप न होने पर असंतोष उत्पन्न होता है। यह परिवेदना का प्रथम चरण है। असंतोष जब तक व्यक्ति के द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जाता तब तक वह व्यक्ति-केन्द्रित ही रहता है व उसे व्यक्तिगत असंतोष के रूप में ही लिया जाता है।

2, शिकायत : असंतोष की अभिव्यक्ति का साधन है। जब व्यक्ति अपने असंतोष को मौखिक अथवा लिखित रूप में समुचित रूप से अधिकारियों व प्रबन्धकों के सम्मुख व्यक्त करता है तो वह शिकायत कहलाती है। शिकायत परिवेदना का द्वितीय चरण है। शिकायत मनगढ़न्त हो सकती है और वास्तविक भी। शिकायत कार्य की अवस्थाओं, व्यवस्थाओं या परिस्थितियों के प्रति हो सकती है तथा किसी व्यक्ति विशेष के प्रति भी।

3. परिवेदनाएं: अंतिम चरण है। असंतोष की भाँति परिवेदना भी प्रकट अथवा अप्रकट हो सकती है। अप्रकट परिवेदनाओं का निवारण सम्प्रेषण के अभाव में सम्भव नहीं हो पाता, जिससे व्यक्तियों में कार्य असंतोष बढ़ता है व उनका मनोबल गिरता है। परिवेदनाओं का सम्यक् निवारण न होने पर औद्योगिक विवादों का जन्म होता है, जो औद्योगिक शांति के लिए घातक सिद्ध होता है।
अत: ऐसी प्रणाली अथवा व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है कि व्यक्ति बिना किसी भय के अपने असंतोष, शिकायत व परिवेदनाओं का समय से प्रकटन कर सकें, ताकि इनका त्वरित समाधान खोजा जा सके।

3 Comments

  1. Mera provident fund. B
    ABSLI or HDFC life banca channel ka abhi tak nhi mila HR wale meri puri KYC update k bad bhi nhi milne de rahe he branch manager or staff milke kya mail kikin job bhi nhi milne de rahe he age limit cross hoga to CRM ki post milegi bole or milne k bad bhi meri post muze hand oohar nhi kie. Solution kya hoga aage .......

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  2. Muze reply chahie meri badi post hone k bawjud milne nhi die sf para.... K javan se jam karwae or abhi marcoss k jaise pratikiya kaha jau vaha job nhi multi or room rent se vaha baju me jake muze nikalne k lie pratikiya karwae log mere mob. No. Pr address show he mera 204room no

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