सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य का अर्थ
परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर सामूहिक सेवा कार्य के अर्थ पर प्रकाश डाला जा सकता है।- वैज्ञानिक ज्ञान, प्रविधि, सिद्धान्तों एवं कुशलता पर आधारित प्रणाली।
- समूह में व्यक्ति पर बल।
- किसी कल्याणकारी संस्था के तत्वावधान मे किया जाता है।
- व्यक्ति की सहायता समूह के माध्यम से की जाती है।
- सेवा सम्बन्धी क्रिया कलाप में समूह स्वयं एक उपकरण होता है।
- इससे प्रशिक्षित कार्यकर्ता कार्यक्रमों सम्बन्धी क्रियाकलापों में समूह के अन्दर अन्त:क्रियाओ का मार्गदर्शन करने में अपने ज्ञान नियुक्ता व अनुभव को प्रयोग करता है।
- सामूहिक सेवाकार्य के अन्तर्गत समूह मे व्यक्ति व समुदाय के अंश स्वरूप समूह केन्द्र बिन्दु होता है।
- सामूहिक सेवाकार्य अभ्यास में केन्द्रिय या मूल तत्व सामूहिक सम्बन्धों को सचेत व निर्देशित प्रयोग है।
सामूहिक कार्य समूह के माध्यम से व्यक्ति की सहायता करता है। समूह द्वारा ही व्यक्ति में शारीरिक, बौद्धिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं को उत्पन्न कर समायोजन के योग्य बनाया जाता हैं।
सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य की परिभाषा
सामाजिक सामूहिक कार्य को व्यवस्थित ढ़ंग से समझने के
लिए हम यहां पर कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं को उल्लेख कर रहे है।
कोनोष्का:- सामूहिक अनुभव द्वारा सामाजिक कार्यात्मकता में बृद्धि करना।
बीसवीं शताब्दी के आरम्भ मे स्काउट्स और इसी प्रकार के अन्य समूह लड़कों एवं लड़कियों के लिए बने। इन समूहों ने केवल अभावग्रस्त समूहों की ओर ही ध्यान नही दिया बल्कि वे मध्य एवं उच्च आर्थिक वर्ग के बच्चों की रूचि भी अपनी ओर आकर्षित करने लगे। बढ़ते हुऐ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण वैयक्तिक सम्बन्धों को पुन: स्थापित करने एवं अपनत्व की भावना या हम की भावना के विकास की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। इन दो कारकों ने सामूहिक कार्य की प्रणलियों एवं उद्देश्यों मे परिवर्तन कर दिया।
विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के विकास ने यह बात स्पष्ट कर दी कि व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति की सामूहिक जीवन सम्बन्धी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि आवश्यक है। यह समझा जाने लगा कि व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए आश्यक है कि व्यक्ति में सामूहिक जीवन में भाग लेने, अपनत्व की भावना का अनुभव करने, अन्य व्यक्तियों के साथ परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने, मतभेदों को सहनशीलता की दृष्टि से देखने तथा सामान्य कार्यक्रमों में भाग लेने और समूह के हितों और अपने हितों में अनुरूपता उत्पन्न करने की योग्यता हो। इस विचारधारा ने सामूहिक सेवाकार्य को एक महत्वपूर्ण (Tool) साधन बना दिया। सामूहिक सेवाकार्य अब केवल निर्धन व्यक्तियों को लिए ही नही था अपितु मध्य एवं उच्च वर्ग के व्यक्ति भी इससे लाभाविन्त हुए। सामूहिक सेवाकार्य में सामूहिक क्रियाओं द्वारा व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयास किया जाता है।
सन् 1937 मे ग्रेस क्वायल ने लिखा कि ‘‘सामाजिक सामूहिक कार्य का उद्देश्य सामूहिक स्थितियों में व्यक्तियों की पारस्परिक क्रिया द्वारा व्यक्तियों का विकास करना तथा ऐसी सामूहिक स्थितियों को उत्पन्न करना जिससे समान उद्देश्यों के लिए एकीकृत, सहयोगिक, सामूहिक क्रिया हो सकें।’’
हार्टफोर्ड का विचार है कि समूह कार्य के तीन प्रमुख क्षे़त्र थे-
सामूहिक जीवन का आधार सामाजिक सम्बन्ध है। मान्टैग्यू ने यह विचार स्पष्ट किया कि सामाजिक सम्बन्धों का तरीका जैविकीय निरन्तरता पर आधारित है। जिस प्रकार से जीव की उत्पत्ति होती है। उसी प्रकार से सामाजिक अभिलाषा भी उत्पन्न होती है। जीव के प्रकोष्ठ एक दूसरे से उत्पन्न होते है उनके लिए और किसी प्रकार से उत्पन्न होना सम्भव नही है प्रत्येक प्रकोष्ठ अपनी कार्य प्रक्रिया के ठीक होने के लिए दूसरे प्रकोष्ठों की अन्त: क्रिया पर निर्भर है। अर्थात प्रत्येक अवयव सम्पूर्ण में कार्य करता हैं। सामाजिक अभिलाषा भी उसका अंग है। यह मनुष्य का प्रवृत्तियात्मक गुण है। जिसे उसने जैविकीय वृद्धि प्रक्रिया से तथा उसकी दृढ़ता से प्राप्त किया है। अत: सामूहिक जीवन व्यक्ति के लिए उतना महत्वपूर्ण है जितना उसकी भौतिक आवश्यकतायें महत्वपूर्ण है।
- न्यूज टेट्र (1935) - ‘‘स्वैच्छिक संघ द्वारा व्यक्ति के विकास तथा सामाजिक समायोजन पर बल देते हुऐ तथा एक साधन के रूप इस संघ का उपयोग सामाजिक इच्छित उदद्ेश्यों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा प्रक्रिया के रूप मे सामूहिक कार्य को परिभाषित किया जा सकता है।’’
- क्वायल, ग्रेस (1939) - ‘‘सामाजिक सामूहिक कार्य का उददेश्य सामूहिक स्थितियों में व्यक्तियो की अन्त: क्रियाओं द्वारा व्यक्तियों का विकास करना तथा ऐसी सामूहिक स्थितियों को उत्पन्न करना जिससे समान उद्देश्यों के लिए एकीकृत, सहयोगिक सामूहिक क्रिया हो सके।’’
- विल्सन एण्ड राइलैण्ड (1949) - ‘‘सामाजिक सामूहिक सेवाकार्य एक प्रक्रिया और एक प्रणाली है, जिसके द्वारा सामूहिक जीवन एक कार्यकत्र्ता द्वारा प्रभावित होता है जो समूह की परस्पर सग्बन्धी प्रक्रिया को उद्देश्य प्राप्ति के लिए सचेत रूप से निदेर्शित करता है। जिससे प्रजातान्त्रिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।’’
- हैमिल्टन (1949) - ‘‘ सामाजिक सामूहिक कार्य एक मनोसामाजिक प्रक्रिया है, जो नेतृत्व की योग्यता और सहकारिता के विकास से उतनी ही सम्बन्धित है, जितनी सामाजिक उद्देश्य के लिए सामूहिक अभिरूचियों के निर्माण से है।’’
- कर्ले, आड्म (1950) - ‘‘ सामूहिक कार्य के एक पक्ष के रूप मे, सामूहिक सेवा कार्य का उद्देश्य, समूह के अपने सदस्यों के व्यक्तित्व परिधि का विस्तार करना और उनके मानवीय सम्पर्को को बढ़ाना है। यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके माध्यम् से व्यक्ति के अन्दर ऐसी क्षमताओं का निमोर्चन किया जाता है, जो उसके अन्य व्यक्तियों के साथ सम्पर्क बढ़ने की ओर निदेर्शित होती है।’’
- ट्रैकर - ‘‘सामाजिक सामूहिक कार्य एक प्रणाली है। जिसके द्वारा व्यक्तियों की सामाजिक संस्थाओं के अन्तर्गत समूहों में एक कार्यकत्र्ता द्वारा सहायता की जाती है। यह कार्यकत्र्ता कार्यक्रम सम्बन्धी क्रियाओं में व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्ध प्रक्रिया का मार्ग दर्शन करता है: जिससे वे एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित कर सके और वैयक्तिक, सामूहिक एवं सामुदायिक विकास की दृष्टि से अपनी आवश्यकताओं एवं क्षमताओं के अनुसार विकास के सुअवसरों को अनुभव कर सकें।’’
- कोनोप्का - सामाजिक सामूहिक कार्य समाजकार्य की एक प्रणाली है जो व्यक्तियों की सामाजिक कार्यात्मकता बढ़ाने मे सहायता प्रदान करती है, उददेश्यपूर्ण सामूहिक अनुभव द्वारा व्यक्तिगत, सामूहिक और सामुदायिक समस्याओं की ओर प्रभावकारी ढ़ंग से सुलझानें मे सहायता प्रदान करती है।’’
सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य का उद्देश्य
सामूहिक कार्य का उद्देश्य समूह द्वारा व्यक्तियों मे आत्मविश्वास आत्म निर्भरता एवं आत्मनिर्देषन का विकास करना है। सामाजिक कार्यकर्ता व्यथ्तयों मे सामजस्य को बढ़ाने और सामूहिक उत्तरदायित्व एवं चेतना का विकास करने में सहायता देता है। सामूहिक कार्य द्वारा व्यक्तियों में इस प्रकार की चेतना उत्पन्न की जाती है तथा क्षमता का विकास किया जाता है जिससे वे समूह और समुदायों के क्रियाकलापों में, जिसके वे अंग है, बुद्धिमतापूर्वक भाग ले सकते हैं उन्हे अपनी इच्छाओं, आकाक्षाओं, भावनाओं, संधियों आदि की अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।विभिन्न विद्वानो द्वारा सामूहिक कार्य के उद्देश्य
गे्रस, क्वायल:-- व्यक्तियों की आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुसार विकास के अवसर प्रदान करना।
- व्यक्ति को अन्य व्यक्तियो, समूहों और समुदाय से समायोजन प्राप्त करने मे सहायता देना।
- समाज के विकास हेतु व्यक्तियों को प्रेरित करना।
- व्यक्तियों को अपने अधिकारों, सीमाओ और योग्यताओं के साथ-2 अन्य व्यक्तियों के अधिकारों, योग्यताओं एवं अन्तरों को पहचानने मे सहायता देना।
- परिपक्वता प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों की सहायता करना।
- पूरक, सांवेगिक तथा सामाजिक खुराक प्रदान करना।
- नागरिकता तथा जनतांत्रिक भागीकरण को बढ़ावा देना।
- असमायोजन व वैयक्तिक तथा सामाजिक विघटन उपचार करना।
- समूह के माध्यम से व्यक्तियों के सावेगिक संतुलन को बनाना तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना।
- समह की उन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करना जो आर्थिक राजनैतिक एवं सामाजिक जनतंन्त्र के लिए आवश्यक है।
- मानव व्यक्तित्व का सम्भव उच्चतम विकास करना।
- जनंतान्त्रिक आदर्शो के प्रति समर्पित तथा अनुरक्त।
कोनोष्का:- सामूहिक अनुभव द्वारा सामाजिक कार्यात्मकता में बृद्धि करना।
उद्देश्यों का वर्णन
- जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की पूर्ति करना:- सामूहिक कार्य का प्रारम्भ आर्थिक समस्याओं का समाधान करने से हुआ है। परन्तु कालक्रम के साथ-2 यह अनुभव किया गया कि आर्थिक आवश्यकता का समाधान सभी समस्याओ का समाधान नही है। स्वीकृति, प्रेम, भागीकरण, सामूहिक अनुभव, सुरक्षा आदि ऐसी आवश्यकताएं है जिनको भी पूरा करना आवश्यक है इस आधार पर अनेक संस्थाओं का विकास हुआ जिन्होने इन आवश्यकताओं की पूर्ति का कार्य प्रारम्भ किया। आज सामूहिक कार्यकर्ता समूह में व्यक्तियों को एकत्रित करके उनके एकाकीपन कीसमस्या का समाधान करता है, भागीकरण को प्रोत्साहन देता है तथा सुरक्षा की भावना का विकास करता हैं
- सदस्यों को महत्व प्रदान करना:- आधुनिक युग में भौतिकवादी युग होने के कारयण व्यक्ति का कोई महत्व ने होकर धन, मशीन तथा यन्त्रों को महत्व हो गया है। इसके कारण व्यक्ति में निराशा तथा हीनता के लक्षण अधिक प्रकट होने लगे है। प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि उसका कुछ महत्व हो तथा समाज में सम्मान हों यदि हम मानव विकास के स्तरों को सूक्ष्म अवलोकन करें तो ऐसा कोई भी सतर नही है जहॉ पर व्यक्ति अपना सम्मान प्राप्त करने की इच्छा ने रखता हो। सामूहिक कार्यकर्ता समूह के सभी व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करता है तथा उन्हें उचित स्थान व स्वीकृति देता है।
- सांमजस्य स्थापित करने की शक्ति का विकास करना:- व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता सामंजस्य प्राप्त करने की होती है। व्यक्ति इससे जीवन रक्षा के अवसर प्राप्त करता है। तथा बाह्य पर्यावरण को समझ कर अपनी आवश्यकताओुं की संन्तुष्टि करता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति जब तक जीवित रहता है तब तक अनेकानेक समस्यायें उसकों घेरे रहती है। और समायोजन स्थापित करने के लिए बाह्य करती है। सामूहिक कार्यकर्ता सामूहिक अनुभव द्वारा व्यक्ति की सामंजस्य स्थापित करने की कुशलता प्रदान करता है। व्यक्ति में शासन करने, वास्तविक स्थिति को अस्वीकार करने की, उत्तरदायित्व पूरा न करने की।
सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य का विकास
सामाजिक सामूहिक सेवाकार्य समाजकार्य की दूसरी महत्वपूर्ण प्रणाली है। इसकी उत्पत्ति उन्नीसवी शताब्दी के अन्त में सेटलमेंट हाउस आन्दोलन से हुई आरम्भ में इस आन्दोलन का उद्देश्य असहाय व्यक्तियों के लिए शिक्षा और मनोरेजन के सााधन उपलब्ध कराना था सेटलमेन्ट हाउस आन्दोलन ने गृह-अभाव अस्वच्छ वातावरण, एवं न्यून पारिश्रमिक की समस्या को सुलझाने के लिए सामाजिक सुधार का प्रयास किया। सेटलमेन्ट हाउसेज में व्यक्तियों के समूहों की सहायता की जाती थी। पृथक-2 व्यक्तियों की व्यक्तिगत समस्याओं पर इनमें ध्यान नही दिया जाता था क्योकि उसके लिए अन्य संस्थायें थी।बीसवीं शताब्दी के आरम्भ मे स्काउट्स और इसी प्रकार के अन्य समूह लड़कों एवं लड़कियों के लिए बने। इन समूहों ने केवल अभावग्रस्त समूहों की ओर ही ध्यान नही दिया बल्कि वे मध्य एवं उच्च आर्थिक वर्ग के बच्चों की रूचि भी अपनी ओर आकर्षित करने लगे। बढ़ते हुऐ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण वैयक्तिक सम्बन्धों को पुन: स्थापित करने एवं अपनत्व की भावना या हम की भावना के विकास की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। इन दो कारकों ने सामूहिक कार्य की प्रणलियों एवं उद्देश्यों मे परिवर्तन कर दिया।
विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के विकास ने यह बात स्पष्ट कर दी कि व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति की सामूहिक जीवन सम्बन्धी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि आवश्यक है। यह समझा जाने लगा कि व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए आश्यक है कि व्यक्ति में सामूहिक जीवन में भाग लेने, अपनत्व की भावना का अनुभव करने, अन्य व्यक्तियों के साथ परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने, मतभेदों को सहनशीलता की दृष्टि से देखने तथा सामान्य कार्यक्रमों में भाग लेने और समूह के हितों और अपने हितों में अनुरूपता उत्पन्न करने की योग्यता हो। इस विचारधारा ने सामूहिक सेवाकार्य को एक महत्वपूर्ण (Tool) साधन बना दिया। सामूहिक सेवाकार्य अब केवल निर्धन व्यक्तियों को लिए ही नही था अपितु मध्य एवं उच्च वर्ग के व्यक्ति भी इससे लाभाविन्त हुए। सामूहिक सेवाकार्य में सामूहिक क्रियाओं द्वारा व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयास किया जाता है।
व्यावसायिक सामूहिक कार्य का विकास
सन् 1935 मे सामूहिक कार्यकताओं मे व्यावसायिक चेतना जागृत हुई इस वर्ष समाज कार्य की राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में सामाजिक सामूहिक कार्य को एक भाग के रूप में अलग से एक अनुभाग बनाया गया इसी वर्ष सोशल वर्क ईयर बुक में सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य पर अलग से एक खण्ड के रूप में कई लेख प्रकाशित किये गये। इन दो कार्यो से सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य व्यावसायिक समाजकार्य का एक अंग बना। सन् 1935 मे सामूहिक कार्य के उद्देश्यों को एक लेख के रूप मे समाजकार्य की राष्ट्रीय कान्फे्रन्स मे प्रस्तुत किया गया। ‘‘स्वैच्छिक संघ द्वारा व्यक्ति के विकास तथा सामाजिक समायोजन पर बल देते हुये तथा एक साधन के रूप में इस संघ का उपयोग सामाजिक इच्छित उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा प्रक्रिया के रूप में समूह कार्य को परिभाषित किया जा सकता है।’’सन् 1937 मे ग्रेस क्वायल ने लिखा कि ‘‘सामाजिक सामूहिक कार्य का उद्देश्य सामूहिक स्थितियों में व्यक्तियों की पारस्परिक क्रिया द्वारा व्यक्तियों का विकास करना तथा ऐसी सामूहिक स्थितियों को उत्पन्न करना जिससे समान उद्देश्यों के लिए एकीकृत, सहयोगिक, सामूहिक क्रिया हो सकें।’’
हार्टफोर्ड का विचार है कि समूह कार्य के तीन प्रमुख क्षे़त्र थे-
- व्यक्ति का मनुष्य के रूप में विकास तथा सामाजिक समायोजन करना।
- ज्ञान तथा निपुणता में वृद्धि द्वारा व्यक्तियों की रूचि में बढ़ोत्तरी करना।
- समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना।
सामाजिक सामूहिक कार्य के प्रारूप
सन् 1950 के बाद से समूह कार्य की स्थिति में काफी परिवर्तन आये है। सामाजिक बौद्विक, आर्थिक, प्रौद्योगिक परिवर्तनों ने समूह कार्य व्यवहार को प्रभावित किया हैं। इसलिए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समूहकार्य के तीन प्रारूप (models) तैयार किये है:-- उपचारात्मक प्रारूप (Rededial Model) विटंर
- परस्परात्मक प्रारूप (Reciprocal Model) स्क्दारत
- विकासात्मक प्रारूप (Developmental Model) बेरस्टीन
सामूहिक जीवन का आधार सामाजिक सम्बन्ध है। मान्टैग्यू ने यह विचार स्पष्ट किया कि सामाजिक सम्बन्धों का तरीका जैविकीय निरन्तरता पर आधारित है। जिस प्रकार से जीव की उत्पत्ति होती है। उसी प्रकार से सामाजिक अभिलाषा भी उत्पन्न होती है। जीव के प्रकोष्ठ एक दूसरे से उत्पन्न होते है उनके लिए और किसी प्रकार से उत्पन्न होना सम्भव नही है प्रत्येक प्रकोष्ठ अपनी कार्य प्रक्रिया के ठीक होने के लिए दूसरे प्रकोष्ठों की अन्त: क्रिया पर निर्भर है। अर्थात प्रत्येक अवयव सम्पूर्ण में कार्य करता हैं। सामाजिक अभिलाषा भी उसका अंग है। यह मनुष्य का प्रवृत्तियात्मक गुण है। जिसे उसने जैविकीय वृद्धि प्रक्रिया से तथा उसकी दृढ़ता से प्राप्त किया है। अत: सामूहिक जीवन व्यक्ति के लिए उतना महत्वपूर्ण है जितना उसकी भौतिक आवश्यकतायें महत्वपूर्ण है।
सामाजिक सामूहिक सेवा कार्य के अंग (तत्व)
सामाजिक सेवाकार्य एक प्रणाली है जिसके द्वारा कार्यकत्र्ता व्यक्ति को समूह के माध्यम से किसी संस्था अथवा सामुदायिक केन्द्र में सेवा प्रदान करता है, जिससे उसके व्यक्तित्व का सन्तमुलित विकसा संभव होता है। इस प्रकार सामूहिक सेवाकार्य की तीन अंग निम्न है।कार्यकर्ता
सामाजिक सामूहिक कार्य में कार्यकर्ता एक ऐसा व्यक्ति होता है। जो उस समूह का सदस्य नही होता है। जिसके साथ वह कार्य करता है। इस कार्यकर्ता में कुछ निपुणतायें होती है, जा व्यक्तियों की संधियों, व्यवहारों तथा भावनाओ के ज्ञान पर आधिरित होती है। उससे समूह के साथ कार्य करने की क्षमता होती है। तथा सामूहिक स्थिति से निपटने की शक्ति एवं सहनशीलता होती है। उसका उद्देश्य समूह को आत्म निर्देशित तथा आत्म सेंचालित करना होता है तथा वह ऐसे उपाय करता है जिसे समूह का नियंत्रण समूह-सदस्यों के हाथ में रहता है वह सामूहिक अनफभव द्वारा व्यक्ति में परिवर्तन एवं विकास लाता है। कार्यकर्ता की निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।- सामुदायिक स्थापना।
- संस्था के कार्य तथा उद्देश्य।
- संस्था के कार्यक्रम तथा सुविधायें।
- समूह की विशेषतायें।
- सदस्यों की संधियॉ आवश्यकतायें तथा योग्यतायें।
- अपनी स्वंय की निपुणतायें तथा क्षमतायें।
- समूह की कार्यकर्ता से सहायता प्राप्त करने की इच्छा।
समूह
सामाजिक सामूहिक कार्यकर्ता अपने कार्य का प्रारम्भ समूह साथ काय्र करता है। और ससमूह के माध्यम से ही उद्देश्य की ओर अग्रसर होता है, वह व्यक्ति को समूह के सदस्य के रूप में जानता है तथा विशेषताओं को पहचानता है। समूह एक आवश्यक साधन तथा यन्त्र होता है, जिसको उपयोग में लाकर सदस्य अपनी उद्देश्यों की पूर्ति करते है। जिस प्रकार का समूह होता है कार्यकर्ता को उसी प्रकार की भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। सामान्य गति से काम करने के लिए समूह सदस्यों में कुछ सीमा तक संधियों, उद्देश्यों, बौद्धिक स्तर, आयु तथा पसन्दो मे समानता होनी आवश्यक होती है। इसी समानता पर यह निश्चित होता है कि सदस्य समूह में समान अवसर कहॉ तक पा सकेगें तथा कहा तक उद्देश्य पूर्ण तथा सप्रगाढ सम्बन्ध स्थापित हो सकेगां समूह तथा कार्यकर्ता सामाजिक मनोरंजन तथा शिक्षात्मक क्रियाओं को सदस्यों के साथ सम्पन्न करते तथा इसके द्वारा वे निपुणताओं का विकास करते है। लेकिन सामूहिक कार्य इस बात में विश्वास रखता है कि समूह का कार्य कनपुणता प्राप्त करना नही है बल्कि प्राथमिक उद्देश्य प्रत्येक सदस्य का समूह में अच्छी प्रकार से समायोजन करना है। व्यक्ति समूह के माध्यम से अनेक प्रकार के समूह अनुभवों को प्राप्त करता है, जो उसके लिए आवश्यक होते हैं समूह द्वारा वह मित्रों तथा संधियों का भाव सदस्यों में उत्पन्न करता है, जिससे सदस्यों की महत्पपूर्ण आवश्यकता है ‘‘मित्रों के साथ रहने की’’ पूर्ति होती है। वे माता पिता के नियंत्रण से अलग होकर अन्य लोगों के सामाजस्य करना सीखते है, तथा निपुणता व विशेषीकरण प्राप्त करते है, स्वीकृती की इच्छा पूरी होती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यक्ति के विकास के लिए समूह आवश्यक होता है।अभिकरण (संस्था)
सामाजिक सामूहिक कार्य में संस्था का विशेष महत्व होता है क्योकि सामूहिक कार्य की उत्पत्ति ही संस्थाओं के माध्यम से हुई है। संस्था की प्रकृति एवं कार्य कार्यकर्ता की भूमिका को निश्चित करता है। सामूहिक कार्यकर्ता अपनी निपुणताओं का उपयोग एजेन्सी के प्रतिनिधि के रूप में करता है। क्योकि समुदाय एजेन्सी के महत्व को समझता है तथा कार्य करने की स्वीकृति देता है। अत: कार्यकर्ता के लिए आवश्यक होता है कि वह संस्था के कार्यो से भलीभांति परिचित हो। समूह के साथ कार्य प्रारम्भ करने से पहले कार्यकर्ता को संस्था की निम्न बातों को भली भॉति समझना चाहिए।- कार्यकर्ता को संस्था के उद्देश्यों तथा कार्यो का ज्ञान होना चाहिए अपनी रूचियों की उन कार्यो से तुलना करके कार्य करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
- संस्था की सामान्य विशेषताओं से अवगत होना तथा उसके कार्य क्षेत्र का ज्ञान होना चाहिए।
- उसकों इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रकार संस्था समूह की सहायता करती है तथा सहायता के क्या-2 साधन व श्रोत है।
- संस्था में सामूहिक संबन्ध स्थापना की दशााओं का ज्ञान होना चाहिए।
- संस्था के कर्मचारियों से अपने सम्बन्ध के प्रकारें की जानकारी होनी चाहिए ।
- उसको जानकारी होनी चाहिए कि ऐसी संस्थायें तथा समूह कितने है जिनमें किसी समस्याग्रस्त व्यक्ति को सन्दर्भित किया जा सकता है।
- संस्था द्वारा समूह के मूल्यांकन की पद्वति का ज्ञान होना चाहिए।
BAKWAS
ReplyDeleteBAKWAS
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteVery nice knowledge
ReplyDeleteUseful
ReplyDeleteआपकी जानकारी बहुत ही सराहनीय है । पर मैं आपकी और हेल्प चाहता हूं cmcldp की जो बुक है एमएसडब्ल्यू मैं उसमे सब्जेक्ट है सामाजिक सामूहिक कार्य उस बुक से सबंधित आपके पास कोई भी जानकारी हो तो आप शेयर करे भाई।
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