सामूहिक सौदेबाजी का अर्थ स्पष्ट करते हुए भारत में सामूहिक सौदेबाजी की स्थिति का वर्णन

किसी उद्योग में कार्यरत कर्मचारियों की किसी समस्या के निराकरण हेतु नियोक्ता वर्ग तथा श्रमिक संघ के मध्य पारस्परिक विचार विमर्श कर जो अनुबंध या समझौता किया जाता है, उसे सामूहिक सौदेबाजी कहा जाता है। जब किसी औद्योगिक संस्थान के कर्मचारियों अथवा प्रबन्ध वर्ग के बीच किसी विवाद, समस्या का समाधान निकालना आवश्यक हो, उस स्थिति में सामूहिक सौदेबाजी की आवश्यकता होती है ताकि औद्योगिक शान्ति स्थापित हो। 

सौदेबाजी की प्रक्रिया को कुल छः चरणों में व्यक्त किया जा सकता है - प्रारम्भिक चरण - वार्ताकारों का चयन - सौदेबाजी की व्यूह रचना - सौदेबाजी की युक्तियां - अनुबंध - अनुबंध का क्रियान्वयन। सामूहिक सौदेबाजी की विशय वस्तु के अन्तर्गत वेतन/मजदूरी की दर या मात्रा का निर्धारण, वेतन सहित अवकाष तथा बीमारी अवकाष, पदोन्नति के आधार, जबरी छुट्टी तथा छंटनी की दषाएं निर्धारित करना, दुर्घटना पर क्षतिपूर्ति, षिकायत निवारण तथा कार्य दशाओं से सम्बन्धित अन्य विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासों को सम्मिलित किया जाता है। 

सामूहिक समझौते के सिद्वान्तों में प्रबन्धक वर्ग को श्रम संघों के प्रति सम्मान, श्रम नीति का अनुसरण एवं पुनरावलोकन एवं समस्या निवारण के प्रयास करने चाहिए। जबकि श्रम संघ को सहयोग की भावना, सदस्यों के मनोबल को बढाना, परिवेदनाओं (षिकायतों) को आगे बढने से रोकना तथा हड़ताल को अन्तिम अस्त्र के रुप में प्रयोग करना चाहिए। 

भारत में सामूहिक सौदेबाजी का प्रारम्भ 1947 से है। यद्यपि सरकारी हस्तक्षेप के कारण सामूहिक सौदेबाजी का विकास हुआ है। अनेक वैधानिक कानून व प्रावधान भी बनाये गये हैं। विभिन्न सरकारी योजनाएं भी इस व्यवस्था के विकास में सहायक सिद्व हुई। भारत में श्रम संघों की अधिकता है। साथ ही अधिकांश श्रम संघ राजनैतिक दलों से संबंधित है। एक श्रमसंघ के समझौते का दूसरे श्रम संघ विरोध करते हैं। समझौते में प्रायः विलम्ब होता है। नियोक्ता की मनोवृति प्रायः पक्षपातपूर्ण तथा उदासीन होती है। समझौते की अवहेलना करना भी इसकी असफलता का एक कारण है। सामूहिक समझौते को प्रभावी बनाने हेतु श्रम संघों को सुदृढ़ बनाना चाहिए। विवाद से संबंधित दोनों पक्षों को अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर पारस्परिक सहयोग एवं मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। 

तानाषाही प्रवृति के स्थान पर प्रजातान्त्रिक कार्यविधि अपनानी चाहिए। सामूहिक समझौते का आधार सरकारी नीतियां होनी चाहिए।

सामूहिक सौदेबाजी का अर्थ

‘सामूहिक सौदेबाजी’ दो शब्दों से मिलकर बना है - सामूहिक और सौदेबाजी। ‘सामूहिक’ शब्द से तात्पर्य किन्हीं सम्बन्धित व्यक्तियों के विशेष समूह से है (यहाँ इसका आशय श्रमिक एवं नियोक्ता वर्ग से है) ‘सौदेबाजी’ से तात्पर्य दो पक्षों द्वारा एक दूसरे के साथ मोल-भाव (सौदा) करने की प्रक्रिया से है। इस प्रकार सामूहिक सौदेबाजी वह प्रक्रिया है जिसमें श्रमिक एवं नियोक्ता सेवा की शर्तों एवं कार्य की दशाओं के संबंध में पारस्परिक विचार विमर्श द्वारा कोई निश्चित अनुबंध या समझौता करते हैं। 

किसी समस्या के निराकरण के लिए नियोक्ता एवं श्रमिकों के मध्य होने वाली वार्तालाप की प्रक्रिया को सामूहिक सौदेबाजी कहा जाता है। यह एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा दोनों पक्ष अच्छे कर्मचारी संबंधों के निर्माण हेतु समझौता करते हैं। इस समझौता प्रणाली के माध्यम से श्रमिकों के हितों में वृद्धि का प्रयत्न किया जाता है।

सामूहिक सौदेबाजी की परिभाषा

विभिन्न संगठनों, विशेषज्ञों व विद्वानों ने सामूहिक सौदेबाजी को विभिन्न ढंगो से परिभाषित किया है, कुछ प्रमुख परिभाषा है।

निर्माताओं का राष्ट्रीय संघ के अनुसार -’’सामूहिक सौदेबाजी की प्रक्रिया एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा प्रबन्ध एवं श्रमिक एक दूसरे की समस्याओं एवं दृष्टिकोण को सामने ला सकते है तथा सेवा सम्बन्धों की रूप रेखा का विकास करते है दोनों पक्ष परस्पर सहयोग, प्रतिष्ठा तथा लाभ की दृष्टि से काम करते है’’ 

एडविन फिलापों -’’सामूहिक सौदेवाजी से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत श्रम संगठनो के प्रतिनिधि तथा व्यावसायिक संगठन के प्रतिनिधि मिलते है तथा एक समझौता या अनुबन्ध करने का प्रयास करते है जो कर्मचारियों एवं सेवायोजक संघ के सम्बन्धों की प्रकृति का निर्धारण करता है’’ 

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से सामूहिक सौदेबाजी की प्रकृति को स्पष्ट किया जा सकता है -
  1. सामूहिक सौदेबाजी दो पक्षकारों के मध्य विवादों को सुलझाने की एक विधि है। 
  2. यह प्रंबध की एक प्रणाली है। 
  3. औद्योगिक प्रशासन का यह एक प्रारूप है। 
  4. श्रम को बेचने के लिए यह अनुबन्ध करने का एक साधन है। 
  5. यह कि सामूहिक समानता व वैधानिक सौदेबाजी का विकल्प है। 
  6. सामूहिक सौदेबाजी नियम बनाने वाली प्रक्रिया है। 
  7. सौदेबाजी में दोनो पक्ष भाग लेते है तृतीय पक्ष नहीं। 
  8. यह कि सामूहिक प्रक्रिया है। जिसमें श्रमिकों व सेवायोजकों के प्रतिनिधि भाग लेते है। 
  9. यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती रहती है क्योंकि व्यवसाय में प्रतिदिन नवीन चुनौतियां व समस्यायें आती रहती है एवं उनके समाधान हेतु यह प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। 
  10. समूहिक सौदेबाजी से व्यावहारिक रूप से औद्योगिक जनतंत्र की भावना जागृत होती है। 
  11. यह अन्तर अनुशासन था स्वशासन का एक सुन्दर रूप है जो औद्योगिक संस्थाओं में पाया जाता है। 
  12. यह एक लोचपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें कोई भी पक्ष अधिक कठोर रूप नहीं अपना सकता। 
  13. इस प्रक्रिया में अनेक गतिविधियों को शामिल किया जाता है एडविन फिलापों के मतानुसार, ‘‘सामूहिक सौदेबाजी होने, मांग प्रस्तुत करने, विचार विमर्श करने, समीक्षा करने, प्रति-प्रस्ताव करने, मोलभाव करने, फुसलाने, धमकाने एवं ऐसी अनेक गतिविधियों की प्रक्रिया है’’ 
  14. इस प्रक्रिया का परिणाम श्रम अनुबन्ध नहीं, वरन एक व्यापार अनुबन्ध है। 
  15. इसमें बाहय हस्तक्षेप नहीं होता 
  16. समझौता दोनों पक्षकारों के सामूहिक सहयोग प्रतिष्ठा एवं लाभ की वृद्वि से किया जाता है। 
  17. सामूहिक सौदेबाजी दो सामान्य एवं परस्पर प्रतिकूल हित रखने वाले पक्षकारों के मध्य एकता समन्वय की प्रक्रिया है। 

सामूहिक सौदेबाजी की विषय सूची 

यद्यपि ऐसी कोई खास व्यवस्था नहीं है कि सामूहिक सौदेबाजी में कौन-सी मदें शामिल की जाये और कौन सी इसके बाहर रहैं।, फिर भी मूल रूप में कुछ समस्यायें जैसे- प्रबन्धकीय निर्णय और नीतियां इसके क्षेत्र के बाहर रहती है। सामूहिक सौदेबाजी में श्रमिक संघो की सुरक्षा, मजदूरी प्रमोषन, ट्रांस्फर, काम के घंटे, काम की दशायें, छुटिटयां, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, आदि से सम्बन्धित समस्याएं शामिल की जाती है। इसमें श्रमिकों ओर सेवायोजकों के बीच बढ़ते हुए विवादों को दूर करने के ढंगों में सुधार की भी व्यवस्था है इस तरह सामूहिक सौदेबाजी के अन्तर्गत विविध विषयों को शामिल किया जा सकता है।

मुद्दे : प्रारम्भिक काल में सामूहिक सौदेबाजी का प्रयोग मजदूरी कार्य के घंटे एवं रोजगार से सम्बन्धित शर्तों से सम्बन्धित था किन्तु आजकल सामान्यत: सवेतन अवकाश, छुटिटयां, अधिक समय कार्य के लिये वेतन, जबरी छुट्टी का नियमन, सवेतन बीमारी अवकाश, उत्पादन प्रमाव, पेंषन, वरिश्ठता, पदोन्नतियों, स्थानान्तरण तथा अन्य मुददे सामूहिक सौदेबाजी में सम्मिलित किये जाते हैं। इसमें आनुवंषिक लाभ, बीमारी व मातृत्व लाभ आदि मुददे भी सम्मिलित किए जाते है। सामूहिक सौदेबाजी अव संस्थागत हो चुकी है द्वितीय विश्व युद्व के उपरान्त सामूहिक सौदेबाजी काफी विकसित है। 

डेबी के अनुसार ‘‘सामूहिक सौदेबाजी में समझौता, प्रशासन निर्वचन, लिखित समझौता के अनुसार कार्य करना तथा उन्हें लागू करने और सामूहिक समन्वय क्रियायें सम्मिलित है। इनके अतिरिक्त , मजदूरी और वेतन दर का निर्धारण, कार्य के घंटे तथा नियोजन की दशाएं आदि समस्याएं भी सामूहिक सौदेबाजी के मुददों में सम्मिलित है।

सामूहिक सौदेबाजी सम्बन्धी मुद्दों की संक्षिप्त सूची - 
समझौता तथा इसका प्रशासन :-
  • प्रबन्धकीय अधिकार एवं दायित्व
  • संघीय सुरक्षा एवं स्थिति
  • इकरार को लागू करना
  • शिकायत प्रक्रिया । 
  • मध्यस्थता तथा पंच फैसला 
काम की सुरक्षा, पदोन्नति तथा छंटनी :
  • वरीयता का प्रावधान
  • भाड़ा तथा छंटनी प्रक्रिया 
  • प्रषिक्षण एवं पुन: परीक्षण 
  • विच्छेद भुगतान 
  • ओवर टाइम कार्य का आवंटन 
मजदूरी का निर्धारण : 
  • मूल मजदूरी की दरें एवं मजदूरी की संरचना । 
  • पेर्र णा व्यवस्था 
  • ओवर टाइम काम के लिए मजदूरी की दर
  • दो षिफ्टों में अन्तराल 
  • जीवन-निर्वाह सम्बन्धी समायोजन 
सीमावर्ती लाभ : 
  • पेंषन योजना 
  • स्वास्थ्य एवं बीमा योजना 
  • बीमारी पर छुटटी 
  • छुटिटयां एवं अवकाश 
  • लाभ में भागीदारी 
कम्पनी की क्रियायें :
  • काम के नियम
  • अनुशासन प्रक्रिया 
  • उत्पादन दर एवं मानक 
  •  सुरक्षा एवं स्वास्थ्य 
  • अवकाश की अवधि 
  • तकनीकी परिवर्तन

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