श्रम-कल्याण क्या है ? इसकी क्या विशेषताएं हैं ? इसकी आवश्यकता क्यों है ?

कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के कल्याण, उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न पहलुओं को नियमित करने का दायित्व सरकार अपने ऊपर लेती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने कारखाना अधिनियम, 1948 (Factory Act, 1948) प्रतिपादित किया। इसका उद्देश्य श्रमिकों को औद्योगिक और व्यावसायिक खतरों से सुरक्षा प्रदान करना था। केन्द्रशासित प्रदेश और विभिन्न राज्य सरकारें इस अधिनियम के तहत अपने प्रावधान और नियम बनाती है। और निरीक्षणालयों की मदद से इन्है। कार्यान्वित करती है।

श्रम-कल्याण सामूहिक सौदेबाजी का एक प्रमुख तत्त्व कैसे बन गया, इसको जानने से पहले हम यह जान लें कि श्रम-कल्याण क्या है ? इसकी क्या विशेषताएं हैं ? इसकी आवश्यकता क्यों है ? तथा इस दिशा में भारत में लिए गए ठोस कदम कितने सफल हुए हैं ?

श्रम कल्याण की परिभाषा 

कैली - ‘‘श्रम-कल्याण कार्य का अर्थ किसी फर्म द्वारा श्रमिकों के व्यवहार और कार्य के लिए अपनायें जाने वाले कुछ सिद्धान्तों से है।’’
 
सामाजिक विज्ञान का विश्वकोष - ‘‘श्रम-कल्याण से अर्थ, कानून, औद्योगिक व्यवस्था और बाजार की आवश्यकताओं के अतिरिक्त मालिकों द्वारा वर्तमान औद्योगिक व्यवस्था के अन्तर्गत श्रमिकों के काम करने और कभी-कभी जीवन निर्वाह और सांस्कृतिक दशाओं के उपलब्ध करने के ऐच्छिक प्रयासों से हैं।’’
 
पेन्टन - ‘‘श्रम-कल्याण कार्यो से अर्थ श्रम से सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपलब्ध की जाने वाली दशाओं से है।’’
 
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन - ‘‘श्रम-कल्याण से ऐसी सेवाओं और सुविधाओं को समझा जाना चाहिए जो कारखाने के अन्दर या निकटवर्ती स्थानों में स्थापित की गई हो ताकि उनमें काम करने वाले श्रमिक स्वस्थ और शान्तिपूर्ण परिस्थितियों में अपना काम कर सकें तथा अपने स्वास्थ्य और नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।’’
 
ग्राउण्ड - ‘‘श्रम-कल्याण से तात्पर्य विद्यमान औद्योगिक प्रणाली तथा अपनी फैक्ट्रियों में रोजगार की दशाओं का उन्नत करने के लिए मालिकों द्वारा किये जाने वाले ऐच्छिक प्रयासों से है।’’
 
आर्थर जेम्स टोड ने इस सम्बन्ध में उचित ही कहा है, ‘‘औद्योगिक कल्याण के सम्बन्ध में कार्य की प्रेरणा एवं औचित्य सम्बन्धी विभिन्न विचारधाराओं की श्रंृखला ही उपलब्ध है।’’ कुछ लोग श्रम-कल्याण कार्य को कारखानों के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यो तक सीमित बताते है।, यद्यपि यह परिभाषा बहुत ही संकुचित है। श्रमिक कल्याण की प्रगति के लिए सुविधाओं की व्यवस्था पर।
 
श्रम अन्वेषण समिति, 1943 के अनुसार, ‘‘अपनी दिशा में, हम श्रम-कार्यो के अन्तर्गत श्रमिकों के बौद्धिक, शारीरिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति के लिए किए गए किसी भी कार्य को सम्मिलित करने को प्राथमिकता देते हैं। चाहे यह मालिकों अथवा सरकार अथवा किसी अन्य संस्था द्वारा किए गए हों। इसके अतिरिक्त जो कानून द्वारा निश्चित कर दिया गया है अथवा वह सब जिसे श्रमिकों के संविद्-जनित लाभों के अंश के रूप में, जिसके लिए श्रमिक स्वयं सादै ा कर सकते है।, साधारणतया अपेक्षित समझा जाता ह ै वह भी श्रम-कल्याण के अन्तर्गत माना जाता है।

श्रम कल्याण की विशेषताएं 

  1. श्रम-कल्याण कार्य का अर्थ कुछ विशेष सुविधाओं से है जो श्रमिकों को प्रदान की जाती है, 
  2. इन विशेष सुविधाओं का सम्बन्ध कार्य करने की उन्नत दशाओं से है। 
  3. विशेष सुविधाओं का उद्देश्य श्रमिकों के शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक जीवन की उन्नति है,
  4. इससे श्रमिकों का जीवन-स्तर ऊँचा होता है और उनका दृष्टिकोण विस्तृत होता है, 
  5. श्रम-कल्याण कार्य सिर्फ मालिकों से ही सम्बन्धित न होकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन से भी सम्बन्धित है, 
  6. इन कार्यों का उद्देश्य सामाजिक असन्तोष और क्रान्ति को समाप्त करना है, 
  7. ये कल्याण कार्य ऐच्छिक संस्थाओं द्वारा भी किये जा सकते हैं।

श्रम कल्याण कार्य का उद्देश्य 

  1. श्रमिकों को कार्य की मानवीय दशाएं उपलब्ध करना,
  2. कार्यक्षमता में वृद्धि करना, 
  3. नागरिकता की भावना का ज्ञान कराना,
  4. श्रमिकों, मालिकों और सरकार के बीच स्वस्थ सम्बन्धों का निर्माण करना, 
  5. राष्ट्रीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना, तथा 
  6. अनुकूल सामाजिक परिस्थितियां निर्मित करना। 

श्रम कल्याण कार्य के अंग 

श्रम-कल्याण कार्य के प्रमुख अंग क्या हैं? श्रम-कल्याण कार्यो के अन्तर्गत कौन-कौन से तत्वों का समावेश होता है। संक्षेप में श्रम-कल्याण कार्यक्रम के अंग होते हैं -
  1. श्रमिकों की भर्ती के वैज्ञानिक तरीके, 
  2. वातावरण जहां श्रमिक काम करते हैं - की समुचित व्यवस्था। वहां स्वच्छता, वायु और प्रकाश का उचित प्रबंन्ध, 
  3. प्रौद्योगिकी तथा सामान्य शिक्षा की व्यवस्था,
  4. दुर्घटनाओं की रोक-थाम की उचित व्यवस्था,
  5. साफ-सुधरे मकानों का निर्माण, 
  6. चिकित्सा, स्वास्थ्य और पोषण की पर्याप्त सुविधाएं, 
  7. मनोरंजन की व्यवस्थाएं 
  8. भोजन की उचित व्यवस्था, 
  9. काम के सन्तोषजनक और वैज्ञानिक घण्टे, 
  10. पर्याप्त मजदूरी की दरें, 
  11. उत्तम मजदूरी और यन्त्र, 
  12. मितव्ययी जीवन की शिक्षा, 
  13.  श्रमिक केन्द्रों को आकर्शक बनाना।

श्रम कल्याण कार्य की आवश्यकता 

श्रमिकों के कल्याण, अधिक उत्पादन तथा राष्ट्रीय आर्थिक प्रगति के लिए श्रमिकों के लिए कल्याण कार्यो की आवश्यकता है। भारत में श्रम-कल्याण कार्य की आवश्यकता के सम्बन्ध में तर्क दिए जा सकते हैं -

1. औद्योगिक शान्ति की स्थापना - भारत में श्रम-कल्याण कार्यों की पहली आवश्यकता औद्योगिक शान्ति को स्थापित करने की दृष्टि से है। औद्योगिक शान्ति के अभाव में न तो पर्याप्त उत्पादन ही हो सकेगा और न ही औद्योगिक विकास तथा प्रगति ही सम्भव है। श्रम-कल्याण कार्यो का श्रमिकों के मन पर यह प्रभाव पड़ता है और वे मानसिक दृष्टि से ऐसा अनुभव करने लगते हैं कि उद्योगपति और राज्य उनके कल्याण कार्यों के प्रति जागरूक हैं। इससे स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है और औद्योगिक शान्ति की स्थापना हो सकती है।

2. सामाजिक गुणों का विकास - कल्याण कार्यों का दूसरा प्रभाव यह पड़ता है कि इससे श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। कैण्टीन, मनोरंजन और स्वास्थ्य सुविधाओं का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। 

3. उत्तरदायित्व की भावना - श्रम-कल्याण कार्यों का परिणाम यह होता है कि इससे श्रमिकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है। इससे वे औद्योगिक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। 

4. मानसिक शान्ति - श्रम-कल्याण कार्य औद्योगिक शान्ति की स्थापना करते है।। साथ ही श्रमिकों के सामाजिक गुणों का विकास और उत्तरदायित्व की भावना को जाग्रत करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि श्रमिकों में मानसिक शान्ति की भावना विकसित होती है। 

5. कार्यक्षमता में वृद्धि - श्रम-कल्याण कार्यो से श्रमिकों में अनेक सामाजिक गुणों का विकास होता है। उन्हें अनेक प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती है। इन सुविधाओं का परिणाम यह होता है कि श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। 

श्रम कल्याण कार्य का वर्गीकरण 

भारत में श्रम-कल्याण कार्यो में अनेक सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का योग है। भारत में श्रमिकों के कल्याण-कार्य से सम्बन्धित भावना का विकास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था। अनियोजित नगरीकरण और औद्योगीकरण का परिणाम यह हुआ कि अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हुआ। इन समस्याओं के कारण श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी आने लगी और उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ने लगा। ऐसी परिस्थिति में उद्योगपति, सरकार तथा अन्य संस्थाओं ने श्रमिकों के कल्याण कार्यो की ओर ध्यान दिया। भारत में निम्न संस्थाओं ने श्रम-कल्याण सम्बन्धी कार्यो का सम्पादन किया है -
  1. केन्द्र सरकार, 
  2. राज्य सरकारें, 
  3. उद्योगपति, 
  4. श्रमिक संघ, 
  5. समाज सेवी संस्थाएं, और 
  6. नगरपालिकाएं। 
इन संस्थाओं द्वारा श्रमिकों के लिए किये गए कल्याण कार्यों का विवरण इस प्रकार है - 

1. केन्द्र सरकार - भारत सरकार ने श्रमिकों के कल्याण की दृष्टि से अनेक अधिनियमों का निर्माण किया है। इन अधिनियमों का विवरण इस प्रकार है -
  1. मीटर परिवहन कर्मचारी अधिनियम 1961 
  2. अभ्रक खान श्रम-कल्याण निधि 
  3. कोयला खान श्रम-कल्याण निधि 
  4. बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 
  5. लोहा खान श्रम-कल्याण सेस अधिनियम, 1961 
  6. खानों में सुरक्षात्मक उपाय 
  7. श्रम-कल्याण केन्द्र 
  8. राष्ट्रीय सुरक्षा पुरस्कार योजना 
  9. श्रम दशाओं का सर्वेक्षण 
  10. श्रम-कल्याण निधियाँ 
2. राज्य सरकार - केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी इस सम्बन्ध में अधिनियमों का निर्माण किया है। ये अधिनियम राज्य की परिस्थितियों के अनुसार होते हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रम-कल्याण विभाग की स्थापना भी की है।

3. उद्योगपति - जहां तक श्रमिकों के कल्याण का सम्बन्ध है। इसके लिए विभिन्न उद्योगपतियों ने भी महत्त्वपूर्ण कार्य किये है। आधुनिक युग में परिस्थितियों के अनुसार होते है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने श्रमिकों के कल्याण के लिए श्रम-कल्याण विभाग की स्थापना भी की है। 
  1. चिकित्सा की व्यवस्था, 
  2. शिक्षा की व्यवस्था, 
  3. जलपान-गृहों की स्थापना, 
  4. सरकारी समितियों की स्थापना, 
  5. मनोरंजन गृह और वाचनालयों की व्यवस्था, 
  6. प्राविडेण्ट फण्ड आदि की व्यवस्था। 
4. श्रमिक संघ - श्रमिक संघों का गठन जिस उद्देश्य से किया जाता है वह श्रमिक कल्याण है। भारत में श्रमिकों के कल्याण की दृष्टि से जो श्रमिक संघ स्थापित है उनमें से कुछ के नाम हैं - 
  1. अहमदाबाद टैक्साटाइल श्रम संघ, 
  2. कानपुर मजदूर सभा, 
  3. इन्दौर मिल संघ, 
  4. रेल कर्मचारी संघ। 
5. समाज-सेवी संस्थाएँ - श्रम-कल्याण के क्षेत्र में बहुत-सी स्वयंसेवी संस्थाएँ कार्य कर रही है।। उदाहरण के लिए - 
  1. मुम्बई समाज सेवा लोग, 
  2. सेवा सदन समिति, 
  3. मुम्बई प्रेसीडेन्सी महिला मण्डल। 
6. नगरपालिकाएँ - अनेक नगरनिगमों और नगरपालिकाओं ने भी श्रम-कल्याण के सम्बन्ध में अनेक कार्य किए है। इन नगरपालिकाओं में दिल्ली, मुम्बई, अजमेर, कानपुर, चेन्नई है।। इन नगरपालिकाओं ने श्रमिकों के कल्याण के लिए जो कार्यक्रम किये, उनमें से कुछ निम्न है। - 
  1. निवास की व्यवस्था, 
  2. प्राथमिक स्कूल एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना, 
  3. रात्रि पाठशालाएँ, 
  4. प्राविडेण्ट फण्ड, आदि। 
  5. शिक्षा की व्यवस्था, 
  6. जलपान-गृहों की स्थापना, 
  7. सरकारी समितियों की स्थापना, 

श्रम कल्याण कार्य का महत्व 

श्रमिकों के लिए कल्याण-कार्य के महत्त्व पर बल देने की कोई आवश्यकता विशेषकर भारत में नहीं प्रतीत होती। यदि हम अपने देश में श्रमिक वर्ग की दशा को ध्यान से देखें तो हमें मालूम होगा कि उन्हें अस्वस्थ वातावरण में बहुत लम्बे समय तक काम करना पड़ता है और अपने खाली समय में अपने जीवन की परेषानियों को दूर करने के लिए उसके पास कोई साधन नहीं है। ग्रामीण समुदाय से दूर हटाए जाने के कारण तथा एक अनजान एवं अस्वस्थ शहरी समुदाय के शिकार बन जाते हैं जो उन्हें अनैतिकता और विनाश की ओर उन्मुख कर देती है। भारतीय श्रमिक औद्योगिक रोजगार को एक बुराई की दृष्टि से देखते हैं, जिससे वे यथासम्भव शीघ्र से शीघ्र बच निकलने का प्रयास करते हैं। अत: औद्योगिक केन्द्रों में श्रमिकों के जीवन तथा काम करने की दशाओं में सुधार किए बिना सन्तुष्ट, स्थायी और कुशल श्रम-शक्ति नहीं प्राप्त की जा सकती। इसलिए कल्याण-कार्य का महत्त्व पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में अधिक है। कल्याण-कार्य से होने वाले लाभदायक प्रभावों के सम्बन्ध में श्रम अन्वेषण समिति ने तीन आवश्यक लाभों की ओर विचार किया है -

1. कल्याण सुविधाएँ-  जैसे शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ, खेल-कूद, मनोविनोद आदि-कारखाने में भावनात्मक वातावरण पर लाभपूर्ण प्रभाव रखती है।, साथ ही साथ औ़द्योगिक शान्ति को कायम रखने में भी सहायता करती हैं। जब श्रमिक यह अनुभव करने लगते हैं कि मालिक तथा राज्य-सरकारें उनके दैनिक जीवन में रुचि रखते है। तथा प्रत्येक सम्भव तरीके से उनके भाग्य को खुशहाल बनाना चाहते हैं, तब उनकी असन्तोष एवं विशाद की प्रवृत्ति स्वयं धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।

2. उत्तम गृह- व्यवस्था, सहकारी समितियाँ, जलपान-गृह, बीमारी तथा प्रसूति-सुविधाएँ, प्राविडेण्ड फण्ड, ग्रेचुटी एवं पेंशन और इसी तरह की अन्य बातें श्रमिकों में यह भावना आवश्यक रूप से उत्पन्न करती है कि वे उद्योगों में अन्य लोगों की भाँति की महत्त्व रखते हैं। आधुनिक स्थिति के अन्तर्गत श्रम-पलटाव तथा गरै हाजरी अधिक व्यापक है। और सामाजिक सुरक्षा तथा मनोविनोद की खोज में श्रमिक अपने गाँवों की ओर नियमित रूप से जाते नजर आते हैं। कल्याण-कार्यो के द्वारा नई स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें श्रमिक वर्ग अधिक स्थायी तथा आर्थिक दृष्टि से अधिक कुशल हो जाता है।

मानवता के मूल्य के अतिरिक्त यहाँ तक सामाजिक लाभ भी होता है। जलपान-गृहों की व्यवस्था से, जहाँ श्रमिकों को सस्ता, तथा संतुलित आहार उपलब्ध होता है, उनकी शारीरिक उन्नति होती है। मनोविनोद के साधनों से उनकी बुराइयों को कम करना चाहिए, चिकित्सा सहायता तथा प्रसूति एवं शिशु-कल्याण से श्रमिकों तथा उनके परिवारों का स्वास्थ्य सुधारना चाहिए और सामान्य मातृ तथा शिशु मृत्युओं की दर कम करनी चाहिए। शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं द्वारा उनकी मानसिक कुशलता तथा आर्थिक उत्पादन शक्ति को बढ़ाया जाना चाहिए। 

भारतीय औद्योगिक मजदूर को सदैव आलसी तथा अकुशल मानकर उसकी अवहेलना की गई है परन्तु बम्बई की कपड़ा श्रम जाँच समिति का यह निराकरण उचित ही है कि ‘‘यह स्वत: सिद्ध-सिद्धान्त है कि सभी बातों में कुशलता के एक उच्च स्तर की अपेक्षा उन व्यक्तियों से की जा सकती है जो शारीरिक दृष्टि से योग्य तथा मानसिक परेशानियों और चिन्ताओं से मुक्त है।। ऐसा उन्हीं मनुष्यों से सम्भव है जो कायदे से प्रशिक्षित किए गए हैं, जिनकी गृह-व्यवस्था ठीक और आहार उचित है तथा जिनके वस्त्रों की व्यवस्था सन्तोषपूर्ण है।’’ कल्याण-कार्यो से मजदूरों की उत्पादन कुशलता में वृद्धि होती है और उनमें स्वानुभूति और चेतना की एक नई भावना का प्रादुर्भाव होता है। 

1 Comments

  1. भारत मे श्रम कल्याण के प्रमुख बिन्दु

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