शारीरिक या मानसिक रुप से किया गया कोई भी कार्य श्रम ही है, जिसके बदले में मजदूरी की प्राप्ति होती है। यदि कोई प्राणी अगर किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मानसिक या शारीरिक कार्य किया जाता है, तो वह श्रम कहलाता हैं।
श्रम की परिभाषा
थामस के अनुसार :- “श्रम से मानव के उन सभी शारीरिक या मानसिक
प्रयास का बोध होता है। जो किसी फल की आशा से किया जाता है”।
मार्शल के अनुसार :- “श्रम से हमारा आशय मस्तिष्क या शरीर के किसी भी ऐसे
प्रयास से है, जो पूर्णत: या अंशत: कार्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होने वाले
आनंद के परे किसी लाभ की दृष्टि से किया जाए”।
श्रम को इन तत्वों के रूप में समावेश कर सकते है-
- श्रम में केवल उन प्रयासों को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिसमें पूंजी की प्राप्ति होती है।
- यह प्रयास शारीरिक एवं मानसिक दोनों हो सकता है।
- श्रम के द्वारा उपयोगी वस्तुओं का निर्माण कर सकते है।
- वे सभी प्रयास जो अपनी इच्छा अथवा मजबूर होकर किये जाते है। यदि उनके द्वारा उपयोगिता का सृजन भौतिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन या वितरण होता है। श्रम के अंतर्गत सम्मिलित होते है।
श्रम के प्रकार
श्रम को मुख्यत: तीन प्रकार से बांटा जा सकता है।- उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम :- जो प्रयत्न, उपयोगिता का सृजन करता है, और इस उद्देश्य में सफल होता है, वह उत्पादक श्रम है, तथा अनुत्पादक श्रम इसके ठीक विपरीत होता है।
- कुशल एवं अकुशल श्रम :- कुशल श्रम वह है, जिसके लिए किसी विशिष्ट ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। जबकि अकुशल श्रम वह है, जिसके लिए इन विशिष्टताओं की आवश्यकता नहीं होती।
- मानसिक व शारीरिक श्रम :- मानसिक श्रम वह है, जिसमें शरीर की अपेक्षा बुद्धि तथा मानसिक शक्ति का प्रयोग अधिक किया जाता है, जबकि शारीरिक श्रम वह है जिसमें शारीरिक शक्ति अधिक प्रयोग में लाई जाती है। यह सत्य है कि आर्थिक एवं सामाजिक विकास में मूलभूत वस्तुओं की आवश्यकता होती है, इन मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जिस कुशलता, सार्थक प्रयास, बुद्धि की आवश्यकता होती है, वह मनुष्य के श्रम से ही प्राप्त होती है।
श्रम की विशेषताएँ
- श्रम का तात्पर्य मानवीय प्रयासों से है। ये मानवीय प्रयास दो भागों में विभाजित हो सकते हैं - शारीरिक, और मानसिक
- श्रम का श्रमिक से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन्हें प्रथक नहीं किया जा सकता। इस प्रकार श्रम और श्रमिक एक ही सिक्के के दो पहलू है।
- श्रम बेचा जा सकता है। किन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि श्रमिक अपने गुणों को बेचता है, वह तो सिर्फ अपने श्रम को ही बेचता है।
- श्रम नाशवान है। इसे संचित करके नहीं रखा जा सकता। इसका कारण यह है कि बीता हुआ दिन वापस नहीं आता।
- श्रम में गतिशीलता का तत्व भी पाया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि श्रम का एक स्थान से दूसरे स्थान को हस्तान्तरण किया जा सकता है। यह कोई स्थिर तत्व नहीं है।
- श्रम उत्पत्ति का आधार है। श्रम के अभाव में उत्पत्ति की कल्पना नहीं की जा सकती।
- श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि की जा सकती है।
- श्रम में सौदा करने की शक्ति अत्यन्त न्यूनमात्रा में होती है। श्रमिकों की सौदा करने की दुर्बल शक्ति के निम्न कारण हैं -
- श्रम नश्वर होने के कारण श्रमिक इसका संचय न करके तुरन्त बेचता है।
- श्रमिकों में व्याप्त निर्धनता और दरिद्रता।
- श्रमिकों की अज्ञानता, अशिक्षा और अनुभवहीनता।
- श्रम संगठनों का अभाव और इनकी शिथिलता।
- बेरोजगारी।
- श्रमिकों की कार्यकुशलता एक ही प्रकार की न होकर इसमें भिन्नता होती है।
- श्रमिक उत्पादन का साधन ही नहीं है अपितु साध्य भी है। श्रमिक केवल उत्पादन ही नहीं करता, अपितु उपभोग में भी हिस्सा बँटाता है।
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8817833006
ReplyDelete8817833006
ReplyDeleteNice
ReplyDeletenot that nice
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