गोबर की खाद |
गोबर की खाद फार्म पशुओं, गाय, घोड़ा कभी-कभी सुअरों के ठोस एवं द्रव मल-मूत्र का एक सड़ा हुआ मिश्रण है। जिसमें साधारणतया भूसा, बुरादा, छीलन अथवा अन्य कोई शोषक पदार्थ जो पशुओं के बाॅधने के स्थान पर प्रयोग किया गया हो गोबर की खाद कहते हैं। गोबर की खाद पोषक तत्वों को पौधों के लिए धीरे-धीरे प्रदान करता है और इस खाद का प्रभाव कई वर्षों तक बना रहता है।
गोबर की खाद में नाईट्रोजन, पोटाश व फाॅस्फोरस के साथ-साथ अन्य आवश्यक
तत्व भी पाए जाते हैं। यह खाद मृदा में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाती है और इस
प्रकार भौतिक गुणों को सुधारने में सहायक होती है।
कम से कम मात्रा में गोबर का उपयोग करके अधिकाधिक मात्रा में
खाद बनाने हेतु नाडेप विधि एक उत्तम विधि है। इस विधि में मात्र एक
गाय के वार्षिक गोबर से
80 से 100 टन (लगभग
150 बैलगाड़ी) खाद प्राप्त
होता है जिसमें 0.5 से 1.5
प्रतिशत तक नाइट्रोजन 0.
5 प्रतिशत से 0.9 प्रतिशत
तक फासफोरस तथा 1.2
से 1.4 प्रतिशत तक पोटाश
रहता है। इस विधि में सर्वप्रथम जमीन के ऊपर ईट का एक
आयताकार कमरेनुमा बना लिया जाता है जिसकी दीवारें 9 इंच चौड़ी होती
हैं। इस टांके का फर्श ईट, पत्थर के टुकड़े डालकर पक्का कर दिया
जाता है।
गोबर से खाद बनाने की विधि
गोबर से खाद बनाने की कई विधियाँ प्रचलन में हैं जिनमें सर्वाधिक लोकप्रिय है- इन्दौर विधि, बंगलौर विधि, श्री पुरुषोत्तम राव विधि, श्री प्रदीप तापस विधि, तथा नाडेप विधि। इनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय तथा उपयोगी विधि नाडेप विधि हैं । नाडेप कम्पोस्ट विधि के जन्मदाता नाडेप विधि द्वारा भरे गये टांके महाराष्ट्र राज्य के यवतमाल जिले के कृषक श्री नारायण देवराव पंडरीपांडे हैं जिनके नाम के प्रथम अक्षरों को लेकर इस विधि को ‘नाडेप’’ का नाम दिया गया है।
इस टांके के अंदर की लम्बाई 12 फीट, चौड़ाई 5 फीट तथा ऊँचाई
3 फीट अथवा 10×5×3 (कुल आयतन 180 घन फीट) रखा जाता है। ईटों
की जुड़ाई यूं तो मिट्टी से भी की जा सकती है परन्तु आखिरी रद्दा
सीमेन्ट का होना चाहिए ताकि टांका गिरने का डर नहीं रहे। टांका हवादार
होना चाहिए। क्योंकि खाद सामग्री को पकने के लिए कुछ भाग में हवा
आवश्यक होती है इसीलिए टांका बांधते समय चारों ओर की दीवारों में छेद
रखे जाते है। इसके लिए ईटों के हर दो रद्दों की जुड़ाई करते समय एक
ईट जुड़ाई के बाद 7 इंच का छेद छोड़कर जुडाई करें। छेद इस प्रकार बनाए
जाने चाहिए कि पहली लाइन के दो छेदों के मध्य दूसरी लाईन के छेद आएं
तथा दूसरी लाइन के छेदों के मध्य में तीसरी लाइन के छेद आएं इस प्रकार
तीसरे, छठे एवं नवें रद्दे में छेद बनेंगे। छेदों की संख्या बढ़ाने से खाद जल्दी
पक सकती है परन्तु इस स्थिति में पानी की मात्रा अधिक लगेगी। इस टांके
के अंदर की दीवारों तथा फर्श को गोबर मिट्टी से लीप दिया जाना चाहिए।
1. गोबर : एक 180 वर्ग फीट का टांका भरने हेतु 8 से 10 टोकरी
(लगभग 100 किग्रा) गोबर की आवश्यकता होगी। इस कार्य हेतु गोबर गैस
संयंत्र से निकली स्लरी का उपयोग भी किया जा सकता है ऐसी स्थिति में
स्लरी की मात्रा साधारण गोबर से दुगुनी करनी होगी।
गोबर से खाद बनाने हेतु आवश्यक सामग्री
2. वनस्पतिक व्यर्थ पदार्थ : टांका भरने हेतु विभिन्न वनस्पतिक
व्यर्थ पदार्थों जैसे सूखे पत्ते, छिलके, डंठल, मुलायम टहनियां, गोमूत्र से
सनी बिछावन अथवा जड़ों का भी उपयोग किया जा सकता है। इनकी मात्रा
प्रति टांका लगभग 1400 कि.ग्रा. होगी। इस पदार्थ में कांच, पत्थर अथवा
प्लास्टिक आदि नहीं होना चाहिए।
3. सूखी छनी मिट्टी : इसके लिए खेत अथवा नाले आदि की
छनी हुई मिट्टी लें। इस मिट्टी की मात्रा लगभग 1500-1600 कि.ग्रा.
(120 टोकरियां) होनी चाहिए। यह मिट्टी यदि गौमूत्र से सनी हुई हो तो
ज्यादा प्रभावी तथा उपयोगी होगी।
4. पानी : एक टांके के लिए लगभग 1500 से 2000 लीटर पानी
(सूखे वनस्पतिक पदार्थ के वजन के बराबर + 25 प्रतिशत वाष्पीकरण के
लिए पानी ) की आवश्यकता होगी। पानी की मात्रा ऋतु के मान से कम या
अधिक हो सकती है, उदाहरणतया वर्षा ऋतु में कम पानी की आवश्यकता
होगी जबकि ग्रीष्म ऋतु में ज्यादा पानी लगेगा। यदि गौमूत्र अथवा अन्य
पशुओं का मूत्र अथवा उससे युक्त मिट्टी उपलब्ध हो जाए तो उसका
उपयोग करने से खाद की गुणवत्ता और अधिक बढ़ेगी।
5. टांका भरने की विधि - उपरोक्त समस्त पदार्थ तैयार हो जाने पर एक ही दिन में (अधिकतम
48 घंटों में) टांका भरना आवश्यक होता है। टांका भरने के लिए अपनाई
जाने वाली प्रक्रिया अनिवार्यत: निम्नानुसार होनी चाहिए, तथा इसमें किसी
प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए-
- सर्वप्रथम टांके के अंदर की दीवार एवं फर्श पर गोबर-पानी का घोल छिड़ककर इसे अच्छी प्रकार गीला कर लें।
- टांके के तल में छ: इंच की ऊंचाई तक वनस्पतिक पदार्थ भर दें। इस 30 घनफीट के क्षेत्र में लगभग 100-110 कि.ग्रा. पदार्थ आएगा। इस वनस्पतिक पदार्थ के साथ कड़वा नीम अथवा पलाश की पत्ती मिला दी जाए तो यह दीमक को भी नियन्त्रित करेगा।
- वनस्पतिक पदार्थ की परत पर साफ, सूखी तथा छनी हुई 50 से 60 कि.ग्रा. मिट्टी समतल बिछा दें तथा तदुपरान्त इस पर थोड़ा पानी छींट दें।
- वनस्पतिक पदार्थ भर लेने के उपरान्त 4 कि.ग्रा. गोबर 125-150 लीटर पानी में घोल कर वनस्पतिक पदार्थ के ऊपर इस प्रकार छिड़क दें कि यह पूरा पदार्थ इस घोल में भंग जाए। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा अधिक रखनी होगी। गोबर की जगह गोबर गैस प्लांट से निकली स्लरी भी प्रयुक्त की जा सकती है परन्तु उस स्थिति में पानी की मात्रा मात्र दो से ढाई गुने (10 लीटर) ही रखें।
- इसी क्रम में (वनस्पतिक पदार्थ, गोबर तथा मिट्टी के क्रम में) टांके को भरते जाएं। टांके को उसके मुंह के 1.5 फीट की ऊचाई तक झोपड़ीनुमा आकार में भरा जा सकता है। प्राय: 11-12 तहों में यह टांका भर जाएगा।
- टांका भर जाने पर उसे सील कर दें। इसके लिए भरी हुई सामग्री के ऊपर 3 इंच की मिट्टी की तह जमा करके उसे गोबर के मिश्रण से लीप दें। यदि इसमें दरारें पड़ें तो उन्हें पुन: लीप दें।
- 15-20 दिन में उपरोक्त भरी हुई खाद सामग्री सिकुड़ने लगती है तथा सिकुड़ कर यह टांके के मुंह से 8-9 इंच अंदर (नीचे) आ जाती है। तदुपरान्त पूर्व की तरह लगाई गई परतों-वनस्पतिक पदार्थ, गोबर घोल तथा छनी हुई मिट्टी की परतों से 1.5 फीट की ऊँचाई तक टांके को भर कर लीप कर सील कर दिया जाता है।
नाडेप कम्पोस्ट को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु उपाय
नाडेप कम्पोस्ट की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु टांका भरने के 80-95 दिन
के उपरान्त टांके में ऊपर से सब्बल से 15-20 छेद करके उनमें राइजोबियम,
पी.एस.बी. तथा एजेटोबेक्टर की एक-एक कि.ग्रा. मात्रा पानी में घोल कर
छिद्रों में डालें। इससे कम्पोस्ट की गुणवत्ता और भी अधिक बढ़ जाएगी।
एजेटोबेक्टर एवं राइजोबियम के उपयोग से खाद में नाइट्रोजन स्थिरीकरण
भी अधिक होगा और इससे नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में भी सहायता
मिलेगी। इसी प्रकार टांका भरते समय प्रति टन 50 कि.ग्रा. राक फॉस्फेट(प्रति टांका 150 कि.ग्रा.) का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे पी.एस.
एम. जीवाणु से रॉक फॉस्फेट को घुलनशील बनाकर खाद में स्फुर का
प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है।
कुछ तो खुले खाद के बारे मे
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