राष्ट्रभाषा और राजभाषा किसे कहते हैं?

हिन्दी ग्यारहवीं सदी से ही अक्षुण्ण रूप से इस देश की राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही है, भले ही राजकीय प्रशासन के स्तर पर कभी संस्कृत, कभी फारसी और अंग्रजी की मान्यता रही हो, लेकिन समूचे राष्ट्र के जन-समुदाय के आपसी सम्पर्क, संवाद-संचार विचार-विमर्श, सांस्कृतिक ऐक्य और जीवन-व्यवहार का माध्यम हिन्दी ही रही। वस्तुतः आदिकाल मंे लोक स्तर से लेकर शासन स्तर तक और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र से लेकर साहित्यिक क्षेत्र तक हिन्दी राष्ट्रभाषा की कोटि की ओर अग्रसर हो रही थी। मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन के प्रभाव से हिन्दी भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक जनभाषा बन गई। आधुनिक काल में विदेशी अंग्रेजी शासकों को समूचे भारत राष्ट्र में जिस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग, प्रसार अैार प्रभाव दिखाई दिया, वह हिन्दी ही थी, जिसे वे लोग हिन्दुस्तानी कहते थे।

स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी भारत की राजभाषा घोषित की गई तथा उसका प्रयोग न्यूनाधिक रूप में कार्यालायों में होने लगा तो क्रमशः उसका एक राजभाषा रूप विकसित हो गया। राजभाषा भाषा के उस रूप को कहते हैं, जो राजकाज में प्रयुक्त होता है। भारत की आजादी के बाद एक राजभाषा आयोग की स्थापना की गई थी। उसी आयोग ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाई जाए। तदनुसार, संविधान में इसे राजभाषा घोषित किया गया था। प्रादेशिक प्रशासन में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, बिहार, झारखण्ड राजभाषा हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं।

राष्ट्रभाषा किसे कहते है 

राष्ट्रभाषा का सीधा अर्थ है राष्ट्र की वह भाषा, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में विचार विनिमय एवं सम्पर्क किया जा सके। जब किसी देश में कोई भाषा अपने क्षेत्र की सीमा को लाँघकर अन्य भाषा के क्षेत्रों में प्रवेश करके वहाँ के जन मानस के भाव और विचारों का माध्यम बन जाती है तब वह राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान प्राप्त करती है। वही भाषा सच्ची राष्ट्रभाषा हो सकती है जिसकी प्रवृत्ति सारे राष्ट्र की प्रवृत्ति हों जिस पर समस्त राष्ट्र का प्रेम हो। राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने वाली तथा समझी जाने वाली भाषा ही राष्ट्रभाषा कहलाती है।

राजभाषा किसे कहते है 

जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है उसे राजभाषा कहते हैं। राजभाषा जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की उसकी अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान का प्रतीक होती है। विश्व के अधिकांश राष्ट्रों की अपनी स्थानीय भाषाएँ राजभाषा हैं। आज हिन्दी हमारी राजभाषा है। 

राजभाषा के संवैधानिक प्रावधान

भारत के संविधान के 5वें, 6वें तथा 17वें, इन तीन भागों में राजभाषा सम्बन्धी प्रावधान है। इनमें भाग-5 के अनुच्छेद 120 में ‘संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा’ तथा भाग-6 के अनुच्छेद 210 में ‘राज्य के विधान मण्डलों में प्रयुक्त होनेवाली भाषा’ के सम्बन्ध में निर्देश है। 17वें भाग के चार अध्यायों में राजभाषा सम्बन्धी उपबंध प्रस्तुत किए गए हैं। 
इनमें प्रथम अध्याय में संघ की राजभाषा के रूप में 343 और 344 अनुच्छेद हैं। 

द्वितीय अध्याय में 345, 346, 347 अनुच्छेदों में राजभाषा के रूप में प्रान्तीय भाषाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में निर्देश दिए गए हैं। 

तृतीय अध्याय के अनुच्छेद 348, 349 में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की भाषा के सम्बन्ध में निर्देश किया गया है। 

चौथे अध्याय के अनुच्छेद 350 में अन्याय निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयुक्त भाषा का निर्देश है जबकि 351 में हिन्दी भाषा के विकास के सम्बन्ध में विशेष निर्देश दिए गए हैं।

संघ की भाषा 

अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा  - संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। 

खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था : परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी भाषा का और भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।

इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा- 
  • (अंग्रेजी भाषा का, या 
  • अंकों के देवनागरी रूप का, ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएँ। 
इस प्रकार अनुच्छेद 343 के प्रावधानों के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखि हिन्दी संघ की राजभाषा स्वीकृत हुई तथा भारतीय अंकों के स्थान पर उनके अंतर्राष्ट्रीय रूप का प्रयोग होगा अर्थात् 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के स्थान पर 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 लिखा जाएगा ।

अनुच्छेद 344. राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति 

1. राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारम्भ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात् ऐसे प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा जो एक अध्यक्ष और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति नियुक्त करे और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी। 

2. आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को- 
  1. संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग; 
  2. संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बन्धनों; 
  3. अनुच्छेद 348 में उल्लिखित सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा; 
  4. संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप; 
  5. संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा और उनके प्रयोग के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्देशित किए गए किसी अन्य विषय, के बारे में सिफारिश करे। 
3. खंड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में, आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक् ध्यान रखेगा। 

4. एक समिति गठित की जाएगी जो तीस सदस्यों से मिलकर बनेगी जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे और दस राज्य सभा के सदस्य होंगे जो क्रमश: लोक सभा के सदस्यों और राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
  1. समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह खंड (1)के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करे और राष्ट्रपति को उन पर अपनी राय के बारे में प्रतिवेदन दे। 
  2. अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति खंड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस सम्पूर्ण प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश दे सकेगा। 
इस प्रकार अनुच्छेद 344 के प्रावधानों के अनुसार संविधान के प्रारम्भ होने के पाँच वर्ष बाद और उसके दस वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनायेंगे। यह आयोग अन्य बातों के साथ-साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में संघ के राजकीय प्रयोजनों में सब या किसी एक के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खण्ड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई है।

प्रादेशिक भाषाएँ 

अनुच्छेद 345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ - अनुच्छेद 346 और अनुच्छेद 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा : परन्तु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।

इस प्रकार अनुच्छेद 345 के अनुसार राज्य का विधान मण्डल विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा या राजभाषाएँ स्वीकार कर सकता है। उदाहरण के लिए इस व्यवस्था के द्वारा ही ओड़िशा और आन्ध्र प्रदेश की सीमा से लगते हुए जिलों में ओड़िआ या तेलुगु को कुछ शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार किया जा सकता है। इसी तरह महाराष्ट्र के कुछ जिलों में, जो कर्नाटक की सीमा से लगते हैं, कन्नड़ को किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार किया जा सकता है।

अनुच्छेद 346. एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा -संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी : परन्तु यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।

इस प्रकार अनुच्छेद 346 के अनुसार दो राज्यों के बीच पत्र-व्यवहार अथवा किसी राज्य और संघ के बीच पत्र-व्यवहार उसी भाषा में होगा जो संघ सरकार के शासकीय प्रयोजनों के लिए राजभाषा के रूप में प्राधिकृत हो।

अनुच्छेद 347. किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबंध - यदि इस निमित्त माँग किए जाने पर राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए। इस प्रकार अनुच्छेद 347 के अनुसार किसी राज्य के किसी विशेष जन समुदाय की भाषा को शासकीय मान्यता दी जा सकती है।

उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा 

अनुच्छेद 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा -

1. इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक- 
  1. उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होंगी, 
  2. (i) संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुर:स्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के, (ii) संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के, और (iii) इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। 
2. खंड(1) के उपखंड (क) में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा : परन्तु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी। 

3. खंड(1) के उपखंड(ख) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी राज्य के विधान-मंडल ने, उस विधान-मंडल में पुर:स्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा (iii) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है, वहाँ उस राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा। 

इस प्रकार अनुच्छेद 348 के अनुसार उच्चतम न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय की सारी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी तथा संसद के किसी भी सदन या राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन में प्रस्तुत विधेयकों या उनके प्रस्तावित संशोधनों की भाषा अंग्रेजी होगी। साथ ही संसद या राज्य विधान- मंडल द्वारा पारित सभी कानूनों और राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा जारी किए गए सभी अध्यादेशों और सभी आधिकारिक आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी में होंगे। किन्तु यह व्यवस्था स्थायी न होकर संक्रमणशील व्यवस्था है, क्योंकि यह तब तक लागू रहेगी जब तक संसद कानून बना कर अन्य कोई व्यवस्था न करे। राष्ट्रपति की सहमति से राज्यपाल हिन्दी या राज्य की राज्यपाल का इस्तेमाल उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों के लिए प्राधिकृत कर सकते हैं किन्तु उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेजी में ही होंगे।

अनुच्छेद 349. भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया - इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि के दौरान, अनुच्छेद 348 के खंड (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबंध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुर:स्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा और राष्ट्रपति किसी ऐसे विधेयक को पुर:स्थापित या किसी ऐसे संशोधन को प्रस्तावित किए जाने की मंजूरी अनुच्छेद 344 के खंड(1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर और उस अनुच्छेद के खंड(4) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही देगा, अन्यथा नहीं। 

इस प्रकार अनुच्छेद 349 के अनुसार संविधान के लागू होने के पन्द्रह वर्ष की कालावधि के भीतर सिर्फ अंग्रेजी भाषा का पाठ ही प्राधिकृत पाठ माना जाएगा। अन्य किसी भाषा के प्राधिकृत पाठ के लिए राष्ट्रपति भाषा आयोग की संस्तुतियों एवं संसदीय समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के बाद स्वीकृति दे सकते हैं।

विशेष निदेश 

अनुच्छेद 350. व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा - प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।

(क) प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ- प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।

(ख) भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए विशेष अधिकारी- (1) भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए एक विशेष अधिकारी होगा, जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा। (2) विशेष अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वगोर्ं के लिए उपबंधित रक्षोपायों से सम्बन्धित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन विषयों के सम्बन्ध में ऐसे अन्तरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा। इस प्रकार अनुच्छेद 350 के प्रावधानों के अनुसार कोई भी व्यक्ति संघ अथवा राज्य की किसी भी भाषा में अपना अभ्यावेदन दे सकता है।

अनुच्छेद 351. हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश - संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।

इस प्रकार अनुच्छेद 351 के अनुसार हिन्दी के विकास का महत्त्वपूर्ण दायित्व केन्द्र सरकार को दिया गया है। केन्द्र हिन्दी भाषा को इस रूप में विकसित करे कि उसमें मुख्यत: संस्कृत के तथा गौण रूप में अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द आएँ, वह भारत की मिश्रित संस्कृति की झाँकी प्रस्तुत करे तथा उसका प्रयोग पूरे राष्ट्र में किया जा सके।

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