सर्पगंधा में सर्पेन्टाइन समूह के एल्केलाइड अधिक पाए जाते हैं।
सर्पगंधा का नाम ‘‘सर्पगंधा’’ क्यों पड़ा होगा, इसके पीछे कई मत हैं।
ऐसा माना जाता है कि क्योंकि प्राचीन समय से ही सर्पगंधा का उपयोग
सांप काटे के इलाज के लिए किया जाता रहा है। इसलिए इसका नाम
सर्पगंधा पड़ा होगा।
सर्पगंधा का उपयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है। चिकित्सा पद्धतियों में इसका उपयोग सांप अथवा अन्य कीड़ों के काटने के इलाज हेतु, पागलपन एवं उन्माद की चिकित्सा हेतु तथा कई अन्य रोगों के निदान हेतु किया जाता रहा है परन्तु वर्ष 1952 में जब सीबा फार्मेस्यूटिकल्स स्विटजरलैण्ड के शिलर तथा मुलर नामक वैज्ञानिकों ने सर्पगंधा की जड़ों में ‘‘रिसरपिन’’ नामक एल्कोलाइड उपस्थित होने की खोज की तो यह पौधा सम्पूर्ण विश्व की नज़रों में आ गया। उच्च रक्तचाप की अचूक दवाई माने जाने वाले इस पौधे का जंगलों से अंधाधुंध विदोहन प्रारंभ हो गया जिससे शीघ्र ही यह पौधा लुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आ गया।
सर्पगंधा लगभग 2 से 3 फीट तक उंचाई प्राप्त करने वाला एक अत्यधिक सुन्दर दिखने वाला बहुवर्षीय पौधा है जिसे कई लोगों द्वारा घरों में सजावट कार्य हेतु भी लगाया जाता है। भारतवर्ष के कई प्रदेशों में ‘‘पागलपन की बूटी’’ अथवा ‘‘पागलों की दवाई’’ के नाम से जाने जाने वाले इस पौधों का औषधीय दृष्टि से प्रमुख उपयोगी भाग इसकी जड़ होती है जो 2 वर्ष की आयु के पौधे में 30 से 50 से0मी0 तक विकसित हो जाती है लगभग छ: माह की आयु प्राप्त कर लेने पर पौधों में हल्के गुलाबी रंग के अति सुन्दर फूल आते हैं तथा उन पर मटर के दाने के आकार के फल आते हैं जो कच्ची अवस्था में हरे रहते हैं तथा पकने पर ऊपर से काले दिखते हैं। इन फलों को मसलने पर अंदर से सफेद भूरे रंग के चिरौंजी के दानों जैसे बीज निकलते हैं।
सर्पगंधा का उपयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है। चिकित्सा पद्धतियों में इसका उपयोग सांप अथवा अन्य कीड़ों के काटने के इलाज हेतु, पागलपन एवं उन्माद की चिकित्सा हेतु तथा कई अन्य रोगों के निदान हेतु किया जाता रहा है परन्तु वर्ष 1952 में जब सीबा फार्मेस्यूटिकल्स स्विटजरलैण्ड के शिलर तथा मुलर नामक वैज्ञानिकों ने सर्पगंधा की जड़ों में ‘‘रिसरपिन’’ नामक एल्कोलाइड उपस्थित होने की खोज की तो यह पौधा सम्पूर्ण विश्व की नज़रों में आ गया। उच्च रक्तचाप की अचूक दवाई माने जाने वाले इस पौधे का जंगलों से अंधाधुंध विदोहन प्रारंभ हो गया जिससे शीघ्र ही यह पौधा लुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आ गया।
सर्पगंधा लगभग 2 से 3 फीट तक उंचाई प्राप्त करने वाला एक अत्यधिक सुन्दर दिखने वाला बहुवर्षीय पौधा है जिसे कई लोगों द्वारा घरों में सजावट कार्य हेतु भी लगाया जाता है। भारतवर्ष के कई प्रदेशों में ‘‘पागलपन की बूटी’’ अथवा ‘‘पागलों की दवाई’’ के नाम से जाने जाने वाले इस पौधों का औषधीय दृष्टि से प्रमुख उपयोगी भाग इसकी जड़ होती है जो 2 वर्ष की आयु के पौधे में 30 से 50 से0मी0 तक विकसित हो जाती है लगभग छ: माह की आयु प्राप्त कर लेने पर पौधों में हल्के गुलाबी रंग के अति सुन्दर फूल आते हैं तथा उन पर मटर के दाने के आकार के फल आते हैं जो कच्ची अवस्था में हरे रहते हैं तथा पकने पर ऊपर से काले दिखते हैं। इन फलों को मसलने पर अंदर से सफेद भूरे रंग के चिरौंजी के दानों जैसे बीज निकलते हैं।
सर्पगंधा की प्रजातियां
सर्पगंधा की कई प्रजातियां जैसे -
- राबोल्फिया,
- वोमीटोरिया,
- रावोल्फिया,
- कैफरा,
- रावोल्फिया
- टैट्रफाइला रावोल्फिया,
- कैनोन्सिस
सर्पगंधा के औषधीय उपयोग
- उच्च रक्त चाप के निवारण हेतु - उच्च रक्त चाप अथवा हाई ब्लडप्रेशर के उपचार हेतु सर्पगंधा सम्पूर्ण विश्व भर में सर्वोत्तम औषधि मानी जाती है। इसके उपयोग से उच्च रक्तचाप में उल्लेखनीय कमी आती है, नींद भी अच्छी आती है तथा भ्रम आदि मानसिक विकार भी शांत होते हैं। उच्च रक्तचाप में इसकी जड़ के चूर्ण का आधा छोटा चम्मच (एक ग्राम की मात्रा में) दिन में दो या तीन बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप से सामान्यता आती है।
- अनिद्रा के उपचार हेतु - अनिद्रा की स्थिति में नींद लाने हेतु सर्पगंधा काफी उपयोगी औषधि है। खांसी वाले रोगियों की अनिद्रा के निदान में भी यह अत्यधिक प्रभावी हैं अनिद्रा की स्थिति में निद्रा लाने हेतु इसकी जड़ का 0.60 से 1. 25 ग्राम चूर्ण किसी सुगंधीय द्रव्य के साथ मिलाकर देना प्रभावी रहता है। वैसे रात को सोते समय इसके 0.25 ग्राम पावडर का सेवन घी के साथ करने से बहुत जल्दी नीद आ जाती हैं वैसे चिकित्सक के परामर्श पर ही इसका उपयोग करना हितकर है।
- उन्माद के उपचार हेतु - परम्परागत चिकित्सा में सर्पगंधा बहुधा ‘‘पागल बूटी’’ अथवा पागलपन की दवा के रूप में भी जानी जाती हैं उन्माद और अपस्मार में जब रोगी बहुत अधिक उत्तेजित रहता है तो मन को शांत करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है इससे मन शांत रहता है तथा धीरे-धीरे मस्तिष्क के विकार दूर हो जाते हैं। इस विकार के उपचार हेतु सर्पगंधा की जड़ का एक ग्राम चूर्ण, 250 मि.ली. बकरी के दूध के साथ (साथ में गुड़ मिलाकर) दिन में दो बार दिया जाना उपयोगी रहता हैं परन्तु यह केवल उन्हीं मरीजों को दिया जाना चाहिए जो शारीरिक रूप से हष्ट पुष्ट हों। शारीरिक रूप से कमजोर मरीजों तथा ऐसे मरीज़ जिनका रक्तचाप पहले से असामान्य रूप में नीचा हो (लो ब्लड प्रेशर वाले), को यह नहीं दिया जाना चाहिए।
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