सींग खाद बनाने विधि और फायदे

गाय के सींग के खोल गोबर का असर बढ़ाने के लिए उत्तम पात्र होते हैं। जीवाणुओं की जांच के अनुसार सींग में उपस्थित गोबर बनाने वाले जीवाणु कम होकर ह्यमस बनाने वाले जीवाणुओं की संख्या अधिक हो जाती है जबकि गोबर को किसी अन्य पात्र में रखकर गाड़ा जाए तो उसका वह प्रभाव नहीं होता।

सींग खाद बनाने की विधि

सींग खाद बनाने की विधि - सींग खाद बनाने के लिए मुख्यतया दो वस्तुओं की आवश्यकता होती है- मृत गाय के सींग का खोल तथा दूध देती गाय का गोबर।

1. सीग खाद बनाने के लिए प्रमुख आवश्यकताएं - सींग खाद बनाने के लिए प्रमुख आवश्यकता होगी- 
  1. ऐसी मृत गाय के सींग जो कम से कम एक-दो बार ब्याही हुई हो; 
  2. सीग पर रंग न हो तथा इसमें दरारें न हों; तथा 
  3. दुधारू गाय का गोबर। यह गोबर ऐसी गाय का ही होना चाहिए जो स्वस्थ हों तथा गोबर प्राप्त करने से 15 दिन पूर्व तक इस गाय को कोई औषधि न दी गई हो। सींग के खोल में भरने के लिए सदा ताजा गोबर ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए।
2. सींग खोल गाड़ने के लिए गड्ढा -सींग खोल गाड़ने के लिए अच्छी उपजाऊ जमीन में गड्ढा बना लिया जाना चाहिए। सींग गाड़ने के लिए एक से सवा फीट गहरा गड्ढा किसी ऐसी जगह पर खोद लिया जाना चाहिए जहां जल भराव न होता हो। गड्ढे की लंबाई-चौड़ाई उतनी होनी चाहिए जितनी मात्रा में इसमें सींग रखे जाने प्रस्तावित हों।

3. सींग खाद बनाने का समय - सींग खाद बनाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय अक्टूबर का महीना होगा। भारतीय पंचांग के अनुसार कुंवार महीने की नवरात्रि में या शरदपूर्णिमा तक का समय सींग खाद बनाने के लिए सर्वाधिक उत्तम होता है। इस समय सींग खाद में चन्द्रमा की शक्तियों को काम करने का समय मिलता है। ठण्ड के दिनों में दिन छोटे होते हैं तथा सूर्य की गरमी भी कम होती है अत: चन्द्रमा की शक्तियों को अपना असर बढ़ाने के लिए काफी समय मिलता है। बायोडायनामिक पंचांग के अनुसार अक्टूबर माह में जब चन्द्रमा दक्षिणायन हो तो सींग खाद बनाया जाना चाहिए। अत: इस समय दूध दे रही गाय का गोबर नर्म करके सींग में अच्छी प्रकार से भरकर गड्ढे में गाड़ दिया जाना चाहिए। सींग इस प्रकार गाड़े जाने चाहिए कि उनका नुकीला सिरा ऊपर रहे।

गोबर से भरे सींग के खोलों को सामान्यतया छ: माह तक गड्ढे में रखा जाता है। चैत्र नवरात्रि में या मार्च-अप्रैल महीने में जब चन्द्रमा दक्षिणायन हो तो सींगों को जमीन से निकाल करके उनके ऊपर लगी मिट्टी को साफ कर लिया जाता है। तदुपरान्त एक पौलीथीन की शीट अथवा अखबार पर इन सींगों को झाड़ करके इनमें से पका हुआ गोबर (खाद) एकत्रित कर लिया जाता है।

4. खाद का भण्डारण - सींगों से खाद निकाल लिए जाने के उपरान्त मिट्टी में उसके ढेले आदि तोड़कर अथवा मसलकर एक मिट्टी के मटके में संग्रहित कर लिया जाता है। मटके में नमी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि यह सूखे नहीं। इस घड़े को किसी ठंडे स्थान पर रखा जाता है तथा इसका ढक्कन थोड़ा ढीला रखा जाता है ताकि उसके अंदर हवा का आवागमन हो सके। इस समय जीवाणुओं के प्रभाव से सींग में से निकले हुए खाद बारीक खाद में परिवर्तित हो जाती हैं। इ. सींग खाद के उपयोग का समय सींग खाद का उपयोग फसल पर तीन बार करना चाहिए। पहली बार बोनी से एक दिन पहले सायंकाल में, दूसरी बार जब फसल बीस दिन की हो जाए तथा तीसरी बार तब जब फसल 50-60 दिन की हो जाए। क्योंकि इस खाद में चन्द्रमा का प्रभाव होता है अत: बेहतर परिणाम प्राप्त करने हेतु इसे शुक्ल पक्ष में पंचमी से पूर्णिमा के बीच प्रयुक्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार जब भी चन्द्रमा दक्षिणायन हो तब इसका उपयोग किया जा सकता है। अमावस के आस-पास किया गया इसका उपयोग चन्द्रवल की कमी के कारण लाभप्रद नहीं रहता।

5. उपयोग की विधि - 30 ग्राम सींग खाद 13 लीटर पानी में मिलाएं पानी कुएं अथवा ट्यूबवेल का होना चाहिए नल का नहीं। इस मिश्रण को एक बाल्टी में निकाल कर एक डंडे की मदद से गोल घुमाया जाता है ताकि उसमें भंवर पड़ जायें। एक बार भंवर पड़ जाने पर उसे उल्टी दिशा में घुमाया जाता है तथा तदुपरान्त पुन: उसे दिशा पलट कर घुमाया जाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया एक घंटे तक जारी रखी जाती है। पूरी तरह घुल जाने पर झाड़ू की मदद से इस मिश्रण को खेत में छिड़क दिया जाता है। इस मिश्रण का उपयोग एक घंटे के भीतर हो जाना चाहिए तथा इसका उपयोग शाम में ही किया जाना चाहिए जब भूमि में नमी हो। घोल अधिक हो तो बड़े बर्तन तथा स्प्रे पम्प का उपयोग भी किया जा सकता है। ऐसा स्प्रे पम्प साफ होना चाहिए ताकि इसमें किसी प्रकार का रासायनिक अवशेष नहीं होना चाहिए।

सींग खाद के लाभ 

सींग खाद का दो-तीन साल तक नियमित उपयोग करने से जमीन में गुणात्मक सुधार आ जाते हैं। इससे जमीन में जीवाणुओं की संख्या के साथ-साथ केंचुओं तथा ह्यूमस बनाने वाले जीवों की संख्या भी बढ़ जाती है। इससे जमीन भुरभुरी हो जाती है, जड़ें ज्यादा गहरार्इ तक जाती हैं तथा मिट्टी अधिक समय तक नम रहती है इससे भूमि की नमी धारण की क्षमता चार गुना बढ़ जाती है तथा दलहनी फसलों की जड़ों में नोड्यूल्स की संख्या बढ़ जाने से जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है।

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