स्कन्ध प्रबंध (Inventory Management) क्या है ?

स्कन्ध का आशय स्कन्ध के भौतिक सत्यापन से होता है जिसमें गणना प्रधान क्रिया मानी जाती है। परन्तु आजकल इसका अर्थ व्यापक रूप से लगाया जाता है। स्कन्ध में विभिन्न वस्तुओं की रखी गयी मात्रा से होता है अर्थात यदि तैयार माल का स्कन्ध उचित है तो ग्राहकों की सेवा उचित ढंग से की जा सकेगी। स्कन्ध अथवा रहतिया किसी भी संस्था के उत्पादन तथा विक्रय के मध् य सम्पर्क सेतु का कार्य करता है और इसीलिए यह चालू सम्पत्तियों में सर्वात्तिाक अहम होता है। कार्यशील पूंजी में स्कन्ध का अनुपात 30 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक हुआ करता है और इसमें पर्याप्त पूंजी का निवेश होता है। संस्था के परिचालन में लाभदायकता और निरन्तरता बनाये रखने के लिए स्कन्ध का उचित नियोजन नियन्त्रण एवं प्रबंधन अति आवश्यक है। इसी कारण से यह कहा जाता है कि यदि प्रबंधनक को धन की आवश्यकता हो तो सर्वप्रथम रहतिया को देखना चाहिए। स्कन्ध प्रबंधन (Inventory Management) शब्द दो शब्दों स्कन्ध और प्रबंधन से मिलाकर बना है।

स्कन्ध का आशय ऐसे समस्त माल से होता है जो किसी व्यावसायिक या औद्योगिक उपक्रम के द्वारा अपने सामान्य संचालन हेतु अपने पास रखा जाता है जिसका उद्देश्य उसका विक्रय करना अथवा विक्रय के लिए उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं के निर्माण में उसका प्रयोग करना होता है। स्कन्ध की प्रवृत्ति स्थायी न हो करके परिवर्तनशील होती है। स्कन्ध में बहुधा निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है कच्ची सामग्री (Raw Materials), निर्माणाधीन माल (Work in process), निर्मित माल (Finished goods), अन्य माल (Other goods) इसके अन्तर्गत उचित गुणवत्ता वाली सामग्री का न्यूनतम लागत पर अनुकूलतम स्तर बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। यह एक ऐसी प्रणाली है जिसमें वित्तीय कार्याधिकारी उचित गुण की, उचित मात्रा में सामग्री की उचित समय व न्यूनतम लागत पर आपूर्ति सुनिश्चित करता है जिससे कि संस्था की लार्भाजन क्षमता और सम्पत्ति को अधिकतम किया जा सके।

स्कन्ध प्रबंधन के उद्देश्य 

  1. बिक्री खो जाने की संभावना को दूर रखना।
  2. मात्रा छूट का लाभ लेना।
  3. आदेश लागत में कमी ।
  4. कुशल उत्पादन की प्राप्ति ।
  5. उत्पादन की जोखिम को कम करना।
  6. फर्म का स्कन्ध में विनियोजन न्यूनतम करना।
  7. स्कन्ध के असामान्य क्षयों तथा चोरी को रोकना।
  8. निर्मित माल को खत्म हो जाने की सम्भावनाओं की समाप्ति।
  9. क्रय में मितव्ययिता लाना।
  10. ग्राहकों को श्रेष्ठ सेवा प्रदान करना।
  11. कन्धविहीनता से बचना और सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  12. संस्था की निर्माण कुशलता में वृद्धि लाना।
  13. सामग्री के कम प्रयोग में आने वाली व अप्रचलित मदों व स्पष्ट करना।

स्कन्ध प्रबन्ध की आवश्यकता 

स्कन्ध-प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। व्यवसाय के तीन महत्वपूर्ण क्रियात्मक पहलुओं का प्रत्यक्ष सम्पर्क स्कन्ध-प्रबन्ध से होता है और ये क्रियात्मक प्रबन्ध हैं- उत्पादन-प्रबन्ध, विक्रय-प्रबन्ध और वित्तीय-प्रबन्ध। उत्पादन-प्रबन्ध व विक्रय-प्रबन्ध का सम्बन्ध स्कन्ध-प्रबन्ध के भौतिक पहलू से है, वित्तीय-प्रबन्ध का सम्बन्ध स्कन्ध-प्रबन्ध के वित्तीय पहलू से होता है। उत्पादन-प्रबन्ध की यह चेष्टा होगी कि अच्छे किस्म का कच्चा माल इतनी मात्रा में सदैव स्कन्ध में बना रहे, ताकि उत्पादन-कार्य का संचालन अबाध गति से होता रहे। इसी प्रकार विक्रय-प्रबन्ध यह कोशिश करता है कि तैयार माल की एक गति मात्रा स्कन्ध में बनी रहे, ताकि ग्राहकों को माल की सुपुर्दगी निश्चित समय पर की जा सके और साथ ही साथ उस माल का विक्रय नियमितता के साथ होता रहे। 

वित्तीय-प्रबन्ध का यह प्रयत्न होगा कि विभिन्न प्रकार के माल के स्कन्ध में लगी हुई पूॅजी की मात्रा ऐसी हो, ताकि संस्था को कुछ प्रत्याय-दर अधिकतम रूप में प्राप्त हो। यह कहना आवश्यक नहीं है, कि विभिन्न प्रकार के माल के स्कन्ध मात्रा में निहित वित्तीय पहलू को उत्पादन-प्रबन्ध या विक्रय-प्रबन्ध नजर-अन्दाज नहीं कर सकता है। वस्तुतः सम्पूर्ण व्यवसाय के उद्देश्य को ध्यान में रखकर एक सुनिश्चित समन्वय की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए सामान्यतः बजटरी नियन्त्रण का सहारा लिया जाता है।

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