संप्रेषण ही वह साधन है जिसके द्वारा व्यवहार को क्रियान्वित
किया जाता है, परिवर्तनों को लागू किया जाता है, सूचनाओं को
उत्पादक बनाया जाता है एवं व्यावसायिक लक्ष्यों को प्राप्त किया
जाता है। संप्रेषण में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सूचनाओं का आदान-प्रदान
शामिल होता है। आधुनिक संचार क्रान्ति के युग में समस्त व्यावसायिक उपक्रमों
की सफलता काफी सीमा तक प्रभावी संप्रेषण प्रक्रिया पर निर्भर करती है।
संप्रेषण (Communication) शब्द अंग्रेजी के 'Common' शब्द से बना है जिसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द 'Communis' से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है एक समान। संप्रेषण वह साधन हे जिसमें संगठित क्रिया द्वारा तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, विकल्पों एवं निर्णयों का दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अथवा व्यावसायिक उपक्रमों के मध्य आदान-प्रदान होता है।
संप्रेषण (Communication) शब्द अंग्रेजी के 'Common' शब्द से बना है जिसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द 'Communis' से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है एक समान। संप्रेषण वह साधन हे जिसमें संगठित क्रिया द्वारा तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, विकल्पों एवं निर्णयों का दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अथवा व्यावसायिक उपक्रमों के मध्य आदान-प्रदान होता है।
सन्देशों
का आदान-प्रदान लिखित, मौखिक अथवा सांकेतिक हो सकता है। माध्यम
बातचीत, विज्ञापन, रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र, ई-मेल, पत्राचार आदि
कुछ भी हो सकता हे। संप्रेषण को सन्देशवाहन, संचार अथवा संवहन आदि
समानार्थी शब्दों से पुकारा जाता है।
व्यावसायिक संप्रेषण की परिभाषा
संप्रेषण की कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषा निम्नांकित हैं:- आंग्ल शब्द Communication को हिन्दी में संचार, संवादवाहन, संप्रेषण, सन्देशवाहन नामों से जाना जाता है।वेब्स्टर शब्दकोष के अनुसार, संप्रेषण से आशय- ‘‘शब्दो पत्रों अथवा सन्देशों द्वारा समागम:, विचारों एवं सम्मतियों के विनिमय से है।’’
कीथ डेविस के अनुसार, ‘‘संप्रेषण वह प्रक्रिया हैं जिसमें सन्देश और समझ को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है।’’
लुई ए0 एलेन के अनुसार, ‘‘संप्रेषण में वे सभी चीजें शामिल हैं जिनके माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बात दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में डालता है। यह अर्थ का पुल है। इसके अन्तर्गत कहने, सुनने और समझने की व्यवस्थित तथा निरन्तर प्रक्रिया सम्मिलित होती है।’’
न्यूमैन तथा समर के अनुसार,’’संप्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों, सम्मतियों अथवा भावनाओं का विनिमय है।’’
मेयर के अनुुसार ‘‘संप्रेषण से आशय एक व्यक्ति के विचारों और सम्मतियों से दूसरे व्यक्ति को अवगत कराने से हैं।’’
कार्टिर्ययर एव हारवर्ड के अनुसार, ‘‘संप्रेषण स्मरण शक्तियों के दोहराने (Replication) के लिये एक प्रक्रिया है।’’
मैक्फारलैण्ड के अनुसार, ‘‘संप्रेषण को विस्ततृ रूप में मानवीय पहलुओं के मध्य अर्थपूर्ण बातों का विनिमय करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। विशिष्टतया यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानवों के मध्य समझ को पहुँचाया जाता है तथा अथोर्ं को समझा जाता है।
स्ट्रॉस के अनुसार, ‘‘संप्रेषण को विस्ततृ रूप में मानवो के मध् य अर्थपूर्ण बातों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।’’
व्यावसायिक संप्रेषण के उद्देश्य
व्यवसाय करने में संप्रेषण की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक व्यवसाय नहीं कर सकता जब तक कि उसके पास व्यवसाय से सम्बन्धित सूचना के आदान-प्रदान की व्यवस्था न हो। यदि किसी व्यक्ति को रूपया देकर ताले में बन्द करके बिठा दिया जाये तो वह व्यवसाय नहीं कर सकता, ठीक उसी प्रकार व्यवसाय में संप्रेषण के मुख्य उद्देश्य हैंं:-
1. सूचना का आदान-प्रदान - संप्रेषण प्रक्रिया का प्रयोग इसलिये
किया जाता है ताकि व्यवसाय से सम्बन्धित समस्त सूचनाओं का विनिमय
अथवा आदान-प्रदान किया जा सके। इसके माध्यम से क्रय-विक्रय, ग्राहक,
पूर्तिकर्ता तथा अन्य पक्षों के बारे में सभी प्रकार की सूचनायें प्राप्त की जा
सकती हैं अथवा भेजी जा सकती हैं।
2. कार्यवाही - संप्रेषण इस उद्देश्य से किया जाता है कि
निश्चित किये गये लक्ष्यों के बारे में क्या कार्यवाही हो रही है, इसका पता
लग सके। इसी कारण प्रबन्धक समय-समय पर अनेक प्रकार के विवरण
मॅगवाते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक स्तर पर कार्यवाही
हो रही है।
3. निष्पादन- संप्रेषण के माध्यम से वास्तव में किये
गये कार्य की प्रगति का मूल्याकन हो सकता है। यदि कोई कमी हो तो
इसे सुधारा जा सकता है। यदि किसी स्थान पर कोई कार्य नहीं हो रहा
है तो उचित कार्यवाही की जा सकती है।
4. समन्वय - सभी व्यावसायिक क्रियाओं को सचु ारू
रूप से चलाने के लिये यह आवश्यक है कि विभिन्न विभागों तथा अनुभागों
में समन्वय स्थापित किया जाये और इस कार्य के लिये संप्रेषण का सहारा
लिया जाता है। संप्रेषण का प्रयोग सभी स्तरों पर सूचनायें भेजने, नीतियों
को अपनाने तथा श्रमिकों के मनोबल को बढ़ाने आदि में भी प्रयोजित किया
जाता है। अत: संप्रेषण समन्वय के लिए बहुत सहायक है।
5. प्रबन्धकीय कायोर्ं का आधार - किसी भी व्यावसायिक संगठन में
प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों से कार्य कराया जाता है।
प्रबन्ध के मुख्य कार्य हैं- नियोजन, संगठन, मानवीय संसाधनों को जुटाना,
नियुक्ति, अभिप्रेरणा आदि। इन सभी कायोर्ं के लिये सूचना का आदान-
प्रदान आवश्यक है जो कि संप्रेषण द्वारा किया जाता है। यहॉ तक कि
प्रबन्धकीय निर्णय भी सूचना के आधार पर लिये जाते हैं। अत: संप्रेषण
की अत्यधिक आवश्यकता है।
6. अभिप्रेरणा - कमर्चारियों को कार्य के लिये पा्रेत्साहित
करने हेतु उन्हें सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी देना आवश्यक है और
यह कार्य संप्रेषण की सहायता से किया जाता है। यदि कर्मचारियों को
इस बात का पूर्ण ज्ञान हो कि अच्छा कार्य करने पर उनकी तरक्की होगी
अथवा पारितोषिक प्राप्त होगा तो वे निश्चय रूप से ही अच्छा कार्य करेंगे।
7. शिक्षा- व्यावसायिक सगंठनों में कामिर्कों के शिक्षण तथा
प्रशिक्षण हेतु संप्रेषण की अत्यधिक आवश्यकता है। संप्रेषण के माध्यम से
समस्त कर्मचारियों और अधिकारियों का ज्ञान वर्धन किया जाता है, ताकि
वह अपने कार्य को अधिक निपुणता से कर सकें।
व्यावसायिक संप्रेषण के आवश्यक तत्व
संप्रेषण के परम्परागत स्वरूप में पांच तत्व :- सन्देशवाहक, वक्ता अथवा लेखक,
- विचार जो सन्देश, आदेश या अन्य रूप में हैं,
- संवाहन कहने, लिखने अथवा जारी करने के रूप में,
- सन्देश प्राप्त करने वाला,
- सन्देश प्राप्तकर्ता की प्रतिपुष्टि या प्रतिक्रिया आदि तत्व होते हैं।
1. संप्रेषण एक सतत प्रक्रिया -
व्यावसायिक संप्रेषण निरन्तर (सतत्) चलने वाली प्रक्रिया है। क्योंकि
ग्राहकों, कर्मचारियों, सरकार आदि बाºय एवं आन्तरिक पक्षों के मध्य सन्देशों
के आदान-प्रदान की प्रक्रिया व्यवसाय में निरन्तर बनी रहती है। संप्रेषण
में सूचना आदेश, निर्देश, सुझाव, सलाह, क्रियान्वयन, शिक्षा,
चेतावनी, अभिप्रेरणा, ऊँचा मनोबल उठाने वाले संदेशों का आदान प्रदान
निर्बाध रूप से सतत प्रक्रिया में चलता रहता है।
2. संप्रेषण अर्थ सम्प्रेषित करने का माध्यम - संप्रेषण का आशय सूचनाओं एवं सन्देशों को एक व्यक्ति (समूह) से दूसरे व्यक्ति (समूह) को भेजना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके लिए यह भी आवश्यक है कि सूचना अथवा सन्देश प्राप्तकर्ता उसे उसी भाव (अर्थ) में समझे जिस भाव से उसे सूचना दी गई है। इसलिए संप्रेषण प्रक्रिया में सूचना प्रेषण करने वाले को 'Encoder' तथा सूचना प्राप्त करने वाले को 'Decoder' कहा जाता है। इस प्रक्रिया को निम्न ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है :
Hhu
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