अपक्षय एक स्थानीय प्रक्रिया हैं, इसमें शैलों का विघटन और अपघटन मूल स्थान
पर ही होता है विघटन तापमान में परिवर्तन और पाले के प्रभाव से होता हैं। इस प्रक्रिया
में शैल टुकड़ों में बिखर जाते हैं अपघटन की प्रक्रिया में शैलों के अन्दर रासायनिक
परिवर्तन होते है शैलों में विभिन्न प्रकार के खनिज कण एक दूसरे से दृढ़ता के साथ जुडें
रहते हैं, लेकिन पानी के साथ मिलकर कुछ खनिज कण अलग हो जाते है कुछ खनिजों
का स्वरूप बदल जाता है प्रकृति में विघटन और अपघटन की प्रक्रियाएं साथ-साथ चलती
रहती है अपक्षय की क्रिया जीव जन्तुओ का बिल बनाना भी शामिल हैं। यह बात सदैव
याद रखना है कि अपक्षय किया में पदार्थ अपने मूल स्थान पर ही पड़े रहते हैं।
अपक्षय के प्रकार
अपक्षय के विभिन्न प्रकारों के नाम इस प्रकार है -
- भौतिक अपक्षय (Physical weathering)
- रासायनिक अपक्षय (Chemical weathering)
- जैविक अपक्षय (Biological weathering)
- भार विहीनीकरण
- तापक्रम में परिवर्तन
- हिमकरण एवं तुषार वेजिंग
- लवण अपक्षय
- जैविक अपक्षय
- विलयन :- चट्टानों में मौजूद कई प्रकार के खनिज जल में घुल जाते है जैसे नाइट्रटे सल्पफेट एवं पौटेशियम। इस तरह अधिक वर्षा की जलवायु में ऐसे खनिजों से युक्त शैले अपक्षयित हो जाती है।
- काबोर्नेशन :- वर्षा के जल में घुली कार्बन डाइऑक्साइड से काबोनिक अम्ल का निर्माण होता है यह अम्ल चूना युक्त चट्टानों का घुला देता है।
- जलयोजन :-कुछ चट्टानें जैसे कैल्शियम सल्पफेट जल को सोख लेती है और फैल कर कमजोर हो जाती हे और बाद में टूट जाती है।
- आक्सीकरण :- लोहे पर जंग लगना आक्सीकरण का अच्छा उदाहरण है। चट्टानों के आक्सीजन गैस के सम्पर्क में आने से यह प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया वायुमंडल एवं आक्सीजन युक्त जल के मिलने से होती है।
- वनस्पति :- पेड़ पौधों के द्वारा शैलों में भौतिक व रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय होते है पेड़ पौधों की जडे शैलों के बीच अन्दर तक प्रवेश कर उनके जड़ों तक पहुंच जाती है तथा वहां पर इन पौधों की जडे समय के साथ लम्बी व मोटी होती हैं। व शैलों को छोटे छोटे टुकडों मे तोड़ने लगती है। शैलों के जोडां़े में निस्तर दबाव बढने से वे टूटकर छोटे छोटे टुकडो में बिखर जाती हैं।
- जीव जन्तु :- जीव जन्तु जैसे चूहें खरगोश केंचुआ दीमक चींटियां आदि भी शैलों को तोड़ते फोड़ते है। विघटित शैल आसानी से अपरदित हो जाती हैें। और पवनें इन्हें उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती हैं। जानवरों के खुरों से मििट्यॉ उखड़ जाती हैं इसे मृदा अपरदन मे तेजी आ जाती हैं केंचुए व दीमक का कार्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। विद्वानों के अनुमान के अनुसार एक एकड़ में करीब डेढ़ लाख केचुऐं हो सकते है ये कंचुऐं एक वर्ष में 10-15 टन शैलो को उपजाऊ मृदा मे बदलने की शक्ति रखते हैं।
- मनुष्य :- मानव का विभिन्न प्रकार को शैलों के अपक्षय में बहुत बडा हाथ होता है सड़क कृषि व भवन निर्माण जैसी क्रियाओं में मानव के द्वारा काफी तोड़ फोड़ होता हैं मानव के द्वारा जो खनन की क्रियाये होती है उनके फलस्वरूप शैले कमजोर होकर ढीली पड जाती हैं और अन्त में टूट जाती हैं।
Apkshyan ki shakti btaiye
ReplyDeleteTnx
ReplyDeleteThanqqq so much sir .....😊😊
ReplyDeleteMy pleasure
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks for sharing information regarding weathering.
ReplyDeleteMukesh thakur
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