संघीय सरकार (Federal Government) किसे कहते हैं

संघवाद के अंग्रेजी रूपांतर Federalism का विकास लेटिन भाषा के शब्द ‘फोइडस’ (Foedus) से हुआ है जिसका अर्थ है संधि अथवा समझौता। किसी भी संघीय व्यवस्था की स्थापना के लिए कुछ स्वतंत्र राज्य अपने-आपको अलग-अलग रखते हुए भी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक संघ के रूप में संयुक्त कर लेते है। ये राज्य अपने कुछ सामान्य हितों के विषयों को उस केन्द्रीय सत्ता के सुपुर्द कर देते हैं जिसकी जिम्मेदारी संपूर्ण देश के शासन की होती है। इसी केंद्रीय अथवा नई सरकार को संघीय सरकार (Federal Government) कहते हैं। संघीय सरकार की स्थापना से संघीय राज्यों की शक्तियों का पूर्ण लोप नहीं होता, क्योंकि संघीय सरकार उन्हीं दो कार्यों को करती है जिनका संबंध सम्पूर्ण देश से होता है। इस शक्ति-वितरण की दो प्रणालियां प्रचलित है पहली प्रशासन में कुछ विशेष अधिकार संघीय सरकार को दे दिए जाते हैं और शेष सभी कार्यों की जिम्मेदारी संघ के अंतर्गत अपने-अपने क्षत्रे में राज्यों पर होती है। दूसरी राज्यों के अधिकार निश्चित कर दिए जाते हैं और बचे हुए विषयों पर केन्द्रीय सरकार का अधिकार होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में शक्ति-वितरण की पहली प्रणाली को अपनाया गया है। वहां केन्द्रीय सरकार के अधिकार निश्चित कर दिए गए है और शेष शक्ति राज्यों को दे दी गई है।

भारतीय संघ व्यवस्था में केन्द्र राज्य संबंध

केन्द्र एवं राज्यों के बीच सरकारों के बीच सामन्जस्य पूर्ण संबंधों की स्थापना करने वाली संघ प्रणाली को सहकारी संघवाद की संज्ञा दी जाती है। दोनों ही सरकारों की एक दूसरों पर निर्भरिता इस व्यवस्था का मुख्य लक्षण होता है। भारत से संविधान ने केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण की एक अधिक निश्चित योजना अपनायी है। संविधान के आधार पर संघ तथा राज्यों के संबंधों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
  1. केन्द्र तथा राज्यों के विधायी संबंध 
  2. केन्द्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंध 
  3. केन्द्र तथा राज्यों के वित्तीय संबंध 

1. भारतीय संघ में केन्द्र व राज्यों के विधायी संबंध

संघ व राज्यों के विधायी संबंधों का संचालन तीन सूचियों के आधार पर होता है-
  1. संधीय सूची - इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के ऐसे विषयों को रखा गया है जिनके संबंध में सम्पूर्ण देश में एक ही प्रकार की नीति का अनुकरण आवश्यक कहा जा सकाता है। इस सूची के सभी विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार संघीय संसद को प्राप्त है। इस सूची में कुल 97 विषय है जिसमें से कुछ प्रमुख है- रक्षा, वैदेशिक मामले, विदेशियों का आनाजाना, रेल्वे बन्दरगाह, डाकतार, टेलीफोन, मुद्रानिर्माण आदि।
  2. राज्य सूची - इस सूची में साधारणतया वे विषय रखे गये है जो क्षेत्रीय महत्व के है इस सूची के विषय पर विधि निर्माण का अधिकार राज्यों की व्यवस्थाओं को ही प्राप्त है। इस सूची में 66 विषय है जिनमें कुछ प्रमुख है- पुलिस, न्याय, जेल, स्थानीय स्वशासन, सार्वाजनिक स्थास्थ्य, कृषि, सिंचाई और सड़के आदि। 
  3. समवर्ती सूची - इस सूची में वे विषय रखे गये है जिनका महत्व क्षेत्रीय व संधीय दोनों ही दृष्टियों से है। इस सूची के विषयों पर संघ तथा राज्य दोनों को ही विधियां बनाने का अधिकार प्राप्त है। इस सूची के विषय पर संघीय तथा राज्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानून परस्पर विरोधी हो तो समान्यत: संघ का कानून मान्य होगा। इस सूची में 47 विषय है जिसमें से कुछ प्रमुख है- विवाह और विवाह विच्छेद, दत्तक औ उत्तराधिकारी, कारखाने, श्रमिक संघ आदि। 
अवशेष विषय - जिन विषयों पर किसी भी सूची में उल्लेख नहीं मिलता उनके संबंध में कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त है। राज्य सूची के विषयों पर संसद को व्यवस्थापिका की शक्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद उन विषयों में कानून बना सकती है। जो राज्य सूची में शामिल है-
  1. राज्य सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का होने पर - यदि राज्यसभा अपने दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है कि राज्य सूची में उल्लेखित कोई विषय राष्ट्रीय महत्व का हो गया है तो संसद को उस विषय पर विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो सकता है।
  2. राज्यो के विधानमण्डल द्वारा इच्छा प्रकट करने पर - यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधान मण्डल प्रस्ताव पास कर यह इच्छा व्यक्त करते है कि राज्य सूची के किसी विषय पर संसद द्वारा कानून निर्माण किया जाय ता े उन विषयों पर काननू बनाने का अधिकार संसद को पा्र प्त हा े जाता है। 
  3. संकटकालीन घोषणा होने पर - संकटकालीन धोषणा की स्थिति में राज्य की समस्त विधायिनी शक्ति पर संसद का अधिकार हो जाता है।
  4. राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था भंग होने पर - यदि किसी राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाय तो राष्ट्रपति राज्य विधान मण्डल के समस्त अधिकार भारतीय संसद को प्रदान कर सकता है। 

2. भारतीय संघ में केन्द्र और राज्यों के प्रशासनिक संबंध 

प्रशासनिक क्षेत्र में केन्द्र और राज्यों के बीच पूरा सहयोग बना रहे तथा उसमें संधर्ष की स्थिति उत्पन्न न हो इसलिए कई अनुच्छेदों द्वारा केन्द्र को राज्यों के प्रशासन पर नियंत्रण रखने की शक्ति प्रदान की गई है-
  1. केन्द्र सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है - केन्द्र को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्यों को निर्देश दे सके कि उन्हें अपनी कार्यशक्ति का उपयोग किस प्रकार करना चाहिए। 
  2. राज्यों का एजेन्ट के रूप में उपयोग - राष्ट्रपति राज्य सरकारों को अपने एजेन्ट के रूप में कोई भी कार्य करने की जिम्मेदारी सौंप सकता है। 
  3. नदियों के जल संबंधी विवाद - संसद को यह अधिकार है कि नदियों के जल के बंटवारे से संबंधित किसी विवाद को निबटाने के लिए उचित कानून बनाये। 
  4. अन्तर्राज्यीय परिषद का स्थापना - केन्द्र व राज्यों के बीच सहयोग उत्पन्न करने के लिए यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति यदि चाहे तो एक अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकते है। 
  5. राज्यों में राष्ट्रपति शासन - जब राष्ट्रपति आपात काल की धोषणा करते है तो राज्यों पर संघीय सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाता है। 

3. भारतीय संघ में केन्द्र और राज्यों के वित्तीय संबंध 

संघ और राज्यों के वित्तीय संबंधों को इस प्रकार समझाया जा सकता हैं।
  1. कर निर्धारण तथा करो से प्राप्त आय का विभाजन - संघ के प्रमुख राजस्व श्रोत - निगम कर, सीमाशुल्क, नियतिशुल्क, विदेशी़ ण, रेल्वे, रिजर्व बैंक आदि। राज्य के राजस्व श्रोत प्रतिव्यक्ति कर, कृषिभूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, उत्पादन शुल्क आदि। 
  2. वे कर जो भारत सरकार लगाएगी पर जिन्हें राज्यों को सौंप दिया जाएगा - कुछ कर जो केन्द्र द्वारा एकत्रित किए जायेंगे, उनकी आय केन्द्र सरकार अपने पास न रखकर राज्यों में बाटं देगी। इस प्रकार के कर है- सम्पदा कर, रेलभाड़ों पर कर रेल, जलमार्ग और वायुमार्ग से जाने वाले माल व यात्रियों सीमा कर आदि। 
  3. वे कर जो भारत सरकार लगाएगी परन्तु जो केन्द्र और राज्य के बीच बांटे जायेंगे - कुछ कर ऐसे है जो केन्द्र द्वारा उगाहे जाते है पर जिनकी आय केन्द्र और राज्यों के बीच बांट दी जाती है इस प्रकार के कर है- उत्पादन शुल्क, रेलयात्री किराये पर लगाये गये कर। 
  4. सहायक अनुदान तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए अनुदान - केन्द्र द्वारा राज्यों को चार तरह से सहायक अनुदान दिए जाते है। प्रथम - पटसन तथा उससे बनी वस्तुओं के निर्मात से जो शुल्क प्राप्त होता है उसमें कुछ भाग जूट पैदा करने वाले राज्य- बिहार, बंगाल, असम और उड़ीसा को भी दिया जाए। द्वितीय - भूकम्प और सूखाग्रस्त क्षेत्रों की सहायता के लिए। तृतीय - आदिम जातियों और कबीलों की उन्नति के लिए। चतुर्थ राज्यों को आर्थिक कठिनाईयों से उबारने के लिए भी कंन्द्र राज्यों की वित्तीय सहायता कर सकता है। 
  5. ऋण लेना - संविधान केन्द्र को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह विदेशी सरकारों से ऋण ले सके। राज्यों को केन्द्र से ऋण लेने का अधिकार प्राप्त है।

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