भूकंप की उत्पत्ति के संबंध में विचारधाराएं भूकंप से बचने के उपाय तथा सावधानियाँ

भूकंप अत्यन्त विनाशक और विध्वंशकारी, प्राकृतिक आपदा है। इसका पुनर्वनुमान नहीं हो पाता है। क्योंकि इसमें कम समय में पृथ्वी के अन्तरिक भाग से अधिक मात्रा में उर्जा का निकास होता है और पृथ्वी की पपटी हिलने और कांपने लगती है जिससे जनजीवन का अधिक विनाश और हानि होती है। भूकंप पृथ्वी का कंपन होते है। इसे ही पृथ्वी का हिलना या डोलना कहते हैं। 

भूकंप विशिष्ट व आकस्मिक अन्तर्जात शक्ति है। इसके प्रभाव दूरगामी एवं विनाशकारी रहते हैं। इसके प्रभाव से पृथ्वी का क्षेत्र विशेष हिलने लगता है और वहाँ पर कुछ ही सेकंड में अपार जन-धन की हानि हो जाती है। भूकंप सीधे-सीधे मानव जीवन की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।


भूकंप

भूकंप की परिभाषा

भूकंप को अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अपने ढंग से अलग-अलग परिभाषित किया है। 

सेलिसबरी के अनुसार, “प्राकृतिक कारणों से जब पृथ्वी की सतह कांपने लगती है तो उसे भूकंप कहते हैं।” 

होम्स ने भूकंप की परिभाषा समझाते हुए लिखा है, “भूकंप से अर्थ है पृथ्वी की सतह का हिलना या कंपित होना। भूतल पर या भू-गर्भ में चट्टानों में लचीलापन बढ़ने या गुरुत्व संबंधी संतुलन बिगड़ जाने से ऐसा होने लगता है।” अर्थात् जब भी प्राकृतिक कारणों से भूतल के नीचे चट्टानों में किसी-न-किसी प्रकार की विसंगति पैदा होने लगती है तो भूतल पर भूकंप महसूस किया जाता है।

भूकंप की उत्पत्ति के कारण

भूकंप की उत्पत्ति के संबंध में कई विचारधाराएं प्रचलित हैं। 

1. पृथ्वी की गहराइयों में जब दरारों एवं अन्य कारणों से पानी काफी नीचे पहुँचने लगता है तो वह तेजी से गरम होकर वाष्प में बदलता जाता है। उच्च दबाव वाली वाष्प चट्टानों में मौजूद गैस मिश्रित होकर वहाँ पर एकत्र होती है। यह वाष्प और गैस का मिश्रण अस्थिर व गतिशील होता है। उच्च दाब वाला यह मिश्रण हमेशा पृथ्वी की बाहरी सतह की तरफ आने का मार्ग ढूंढ़ता रहता है। ये कभी-कभी पृथ्वी की पपड़ी या दरार से बड़ी तेजी से उच्च दबाव के साथ ऊपर आने लगता है तो पृथ्वी जोर-जोर से हिलने लगती है अर्थात् पृथ्वी पर भूकंप आ जाता है।

2. पृथ्वी के असंतुलित भागों में ज्वालामुखी क्रिया के साथ या बिना ज्वालामुखी फटे भी भूकंप आते रहते हैं। भूगर्भ से गैसें एवं मेग्मा के तेजी से पृथ्वी की सतह की ओर बढ़ने से चट्टानों की व्यवस्था बिगड़ जाती है। भूगर्भ में मेग्मा भंडारण क्षेत्र के ऊपर की चट्टानों में कई बार दरारें या पपड़ी पड़ जाती हैं। इस कारण भूतल पर खिंचाव या भिंचाव (संपीड़न अथवा दबाव) की स्थिति बनने से भूकंप आ सकते हैं।

3. पृथ्वी की सतह पर अनेकों कारणों से भ्रंश एवं दबाव क्रियाएं लगातार होती रहती हैं। परिणामस्वरूप पृथ्वी की चट्टानें भ्रंश के कारण टूटती या खिसकती रहती हैं। संबंधित क्षेत्रों में तेजी से चट्टानों के विचलन से भूकंप आते हैं। 

4. चट्टानों में कभी-कभी क्षमता से अधिक तेज दबाव या तनाव आ जाता है और चट्टानें टूट जाती हैं। ये टूटी हुई चट्टानें, पुनः पुरानी अवस्था में आने लगती हैं। चट्टानों में लचीलापन होने के कारण धीमी गति से दबाव व भिंचाव के कारण चट्टानें दब या मुड़ (बलन) जाती हैं, फलस्वरूप, चट्टानों के बीच खाली स्थान बन जाते हैं। इस वजह से भी भूकंप आ सकते हैं।

5. जलीय भार विषम धरातलीय क्षेत्र में जहाँ कि भ्रंश एवं तीव्र संपीड़न की क्रियाएँ हो रही हों, वहाँ पर विशाल बाँध बनाकर बड़ी झील का निर्माण होने पर भी कभी-कभी भूकंप आ सकते हैं क्योंकि कृत्रिम बाँध निर्माण के समय भयंकर विस्फोट, पूर्ववर्ती भ्रंश के किनारों से जल का भूगर्भ में प्रवेश एवं भारी मात्रा में एकत्रित जल का भार, सभी क्रियाएँ एक साथ मिलकर, वहाँ भूकंप की स्थिति पैदा कर देती हैं।

6. पूरी धरती, सतह से लगभग 30-50 कि.मी. नीचे टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित हैं। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है वास्तव में प्लेटें बेहद धीरे-धीरे घूमती हैं। इस प्रकार ये हर वर्ष 4-5 मिमी. अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट आती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं फलस्वरूप जो भूकंप का कारण बनती हैं।

उपर्युक्त कारणों के अलावा निम्न क्रियाओं से भी भूकंप पैदा होते हैं भूस्खलन, हिमधाव, समुद्रीय भागों में मृगुओं का टूटना, कंदराओं की छतों का टूटना आदि।

6. प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त, मानव क्रिया-कलापों से भी कृत्रिम भूकंप पैदा होते हैं। वैसे तो ये प्राकृतिक भूकंप की अपेक्षा कम तीव्रता वाले होते हैं और इनका स्थानीय प्रभाव ही होता है। फिर भी स्थानीय स्तर पर कुछ कृत्रिम भूकंप काफी विनाशकारी होते हैं। नीचे दी गई मानव क्रियाओं को कृत्रिम भूकंप के लिए जिम्मेदार माना जाता हैः
  1. आणविक विस्फोट
  2. खनन क्षेत्रों में विस्फोटकों का प्रयोग
  3. गहरे छिद्रण
  4. भूमिगत रेलगाडि़यों का परिचालन

भूकंप के प्रभाव

  1. मानव निर्मित वस्तुओं या सांस्कृतिक भू-दृश्यों का नाश 
  2. नगरों का नष्ट होना 
  3. नदियों द्वारा मार्ग परिवर्तन एवं भयंकर बाढ़ें
  4. भतू ल पर दरार, धसाव एवं उभार का घातक प्रभाव
  5. सागर में भयंकर लहरें उठना

भूकंप से बचाव

भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है। इस पर मानव का नियंत्रण सम्भव नहीं है और न ही अनुमान संभव है। फिर भी इनके प्रभाव से बचने अथवा कम करने के प्रयास अवश्य करने चाहिएं। यदि हम ये उपाय करें तथा सावधानियाँ बरतें तो भूकंप के प्रभाव कम किए जा सकते हैंः

(क) यदि अंदर हैं तो

  1. बाहर की ओर न भागें।
  2. जमीन पर बैठें या लेट जाएं और अपने सिर को दोनों हाथों से ढकते हुए घर/कार्यालय में मेज के नीचे बैठ जाएं।
  3. यदि अंदर कुछ न हो तो अपने सिर को हाथों से ढकते हुए कमरे के किसी कोने में खड़े हो जाएं। 
  4. काँच, खिड़की, बाहरी दरवाजों, दीवारों तथा अन्य गिरने वाली चीजों से दूर रहें। 
  5. यदि बिस्तर पर हैं तो वहीं रहें और अपना सिर तकिये या गद्दे से ढक लें।
  6. जमीन हिलने तक अंदर ही रहें।

(ख) यदि बाहर हैं तो

  1. बाहर ही रहें। 
  2. इमारतों, बिजली के खंभों व पेड़ों से दूर चले जाएं। 
  3. जमीन हिलने तक नीचे बैठे रहें।

(ग) यदि कार में हैं तो

  1. इमारतों, बिजली के खंभों व पेड़ों से कार को दूर खड़ा करें।
  2. आपातकालीन फ्लेश लाईट को शुरू कर दें। 
  3. कार की चाबी स्टार्टर से बाहर निकालें। 
  4. जमीन हिलने तक कार में बैठे रहें।

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