संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ अपने समय की अद्वितीय संस्था हैं, इसकी सदस्यता सार्वभौमिक है। 24 अक्टूबर सन् 1945 का दिन विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना का दिन माना जायेगा क्योंकि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र संघ नामक विश्व संस्था की स्थापना की गयी थी। प्रारंभ में केवल 51 राष्ट्र ही इसके सदस्य देशों परन्तु वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 192 हो गयी हैं। इसका मुख्यालय न्यूर्याक में हैं वर्तमान में इसका नाम ‘संयुक्त राष्ट्र हैं।’ संघ शब्द को महासभा द्वारा अपने एक प्रस्ताव के तहत नाम से हटा दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के कारण
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के प्रमुख कारण है -
2. द्वितीय विश्व युद्ध में होने वाला विध्वंस-
द्वितीय विश्व युद्ध में करोड़ों लोग मारे गये थें, अरबों की सपंत्ति नष्ट हो गई
थी। देशों ने अपार धन संपदा हथियारों के निर्माण पर खर्च की थी। लोग यह
सोचने पर मजबूर हो गये कि इसी शक्ति आरै धन को यदि रचनात्मक कार्यों पर
खर्च किया जाय, तो एक तरफ विध्वंस को रोका जा सकता है एवं दूसरी तरफ
वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास भी किया जा सकता है।
3. नाभिकीय युद्ध का भय-
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के दो नगरों पर परमाणु बम का प्रयोग किया
गया, जिसके कारण हुए विनाश को पूरी दुनिया ने देखा और यह महसूस किया कि
यदि भविष्य में मानवता की रक्षा करनी है तो नाभिकीय युद्ध को रोकना होगा ।
4. राष्ट्र संघ की असफलता-
राष्ट्र संघ अपनी अंतर्निहित कमजोरियों के कारण द्वितीय विश्व युद्ध को
रोकने में असफल रहा। अत: यह आवश्यकता महसूस की गई की पुरानी गल्तियों
को सुधारते हुयें भविष्य में युद्धों को रोकने हेतु सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिये।
5. सामाजिक एवं आर्थिक विकास का उद्देश्य-
विकसित एवं औद्योगीकृत देशों ने उपनिवेशों का लंबे समय से शोषण किया
था, अत: इन उपनिवेशों के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ एक
श्रेष्ठ मंच का कार्य कर सकता था।
6. सामूहिक सुरक्षा की भावना-
संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से छोटे एवं नवोदित राष्ट्रों को सुरक्षा
उपलब्ध कराकर, उन्हें बडे़ राष्ट्रों के आक्रमणों एवं अत्याचारों से बचाया जा सकता
था।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य sanyukt rashtra sangh ke uddeshy संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य है -
- मानव जाति की सन्तति को युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को स्थायी रूप प्रदान करना और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शान्ति-विरोधी तत्वों को दण्डित करना।
- समान अधिकार तथा आत्म-निर्णय के सिद्धांतों को मान्यता देते हुए इन सिद्धांतों को आधार पर के आधार पर विभिन्न राष्ट्रों के मध्य संबंधों एवं सहयागे में वृद्धि करने के लिए उचित उपाय करना।
- विश्व की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आदि मानवीय समस्याओं के समाधान हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
- शान्ति पूर्ण उपायों से अन्त राष्ट्रीय विवादों को सुलझाना ।
- इस सामान्य उदे्श्यों की पूर्ति में लगें हुए विभिन्न राष्ट्रों के कार्यों में समन्वयकारी केन्द्र के रूप में कार्य करना ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांत
संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांत sanyukt rashtra sangh ke uddeshy संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख सिद्धांत है -
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र प्रभुत्व सम्पन्न और समान हैं।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, संघ के घोषणा-पत्र में वर्णित अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह निष्ठापूर्वक और पूरी ईमानदारी से करेंगे।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय संबन्धो के संचालन में किसी राज्य की अखण्डता तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरूद्ध धमकी अथवा शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विवाद का समाधान शान्तिपूर्ण उपायों से करेंगे, जिससे विश्व-शान्ति, सुरक्षा एवं न्याय की रक्षा हो सके।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, संघ के घोषणा-पत्र में वर्णित संघ के सभी कार्यों में संघ को सहायता प्रदान करेगें तथा वे किसी भी एसे राज्यों को किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करेंगे, जिसके विरूद्ध संघ द्वारा कोई कार्यवाही की जा रही हो।
- संघ उन राष्ट्रों से भी, जो संघ के सदस्य नहीं हैं, घोषणा-पत्र में वर्णित अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा वाले सिद्धांतों का पालन कराने प्रयास करेगा।
- संघ किसी सदस्य- राष्ट्र के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश
संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश sanyukt rashtra sangh ke sadasy desh संयुक्त राष्ट्र संघ सदस्य देश है -
देश | वर्ष |
---|---|
अफगानिस्तान अल्बानिया अल्जीरिया एंडोरा अंगोला एंटिगुआ एवं बारबूडा अर्जेंटीना आमोनिया आस्टे्रलिया आस्ट्रिया अजरबैजान बहामास बहरीन बांग्लादेश बारबाडोस बेलारूस बेल्जियम बेलिज बेनिन भूटान बोलीविया बोस्निया-हर्जे्रोविना बोत्सवाना ब्राजील बुन्नी बुल्गारिया बुरकिना फांसो बुरूडी कंबोडिया कैमरून कनाडा केप वर्डे सेन्ट्रलअफ्रीकन चाड चिली चीन कोलबिया कोमोरेस कागो(प्रजा,गण) कांगो(गण,) कोटे-डी-आइवरी कोस्टारिका कोएशिया क्यूबा साइपस्र चेक(गणराज्य) डेनमार्क जिबूती डोमिनिकन डोमिनिकन इकडे वर इजिप्ट अल सल्वाडोर इक्वेटोरियल इिस्ट्रीया एस्टोनिया इथियोपिया ईस्ट तिमोर फिजी फिनलैण्ड फ्रांस गैबन गैम्बिया जॉर्जिया जर्मनी घाना ग्रीस ग्रनेडा ग्वाटेमाला गिनी गिनी-बिसाउ गुयाना हैती होंडूरास हंगरी आइसलैंड इंडिया इंडोनेशिया ईरान इराक आयरलैंड इजराइल इटली जमैका जापान जॉर्डन कजाकिस्तान केन्या किरबाती कोरिया(उ.) कोरिया(द) कुवैत किर्गिस्तान लाओस लाटविया लेबनान लेसोथो लाअबेरिया लीबिया लिक्टेंस्टीन लिथुआनिया लक्जेमबर्ग मेसिडोनिया मेडागास्कर मलावी मलेशिया मालदीव माली माल्टा मार्शल आइलैंड मॉरिटानिया मॉरिशस मैक्सिको माइक्रोनेशिया माल्डोवा मोनाको मंगोलिया मोरक्को मोजांबिक म्यांमार नामीबिया नारूै नेपाल नीदरलैंड न्यूजीलैंड निकारागुआ नाइजर नाइजीरिया नार्वे ओमान पाकिस्तान पलाउ पनामा पापुआ न्यू गिनी परागुए पेरू फिलीपींस पोलैंड पुर्तगाल कतर रोमानिया रूस रवांडा सेंट किट्स नेविन सेंट लुसिया सेंट विसेंट ग्रेनेडिंस समोआ सैन मैरिनो साओ टाम प्रिंसिप सउदी अरब सेनेगल सशेल्स सियरा लियाने सिंगापुर स्लोवाकिया स्लोवेनिया सोलोमन आइलैंड सोमालिया साउथ अफ्रीका स्पेन श्रीलंका सूडान सूरीनाम स्वाजीलैंड स्वीडन सीरिया स्विट्जरलैंड तजिकिस्तान तंजानिया थाइलैंड टोगो टोगा ट्रिनीडाड-टोबैगो टॅयूनीशिया तुर्की तुर्कमेनिस्तान टुवालू युगांडा यूक्रने यूनाइटेड अरब अमीरत यूनाइटेड किंगडम यू.एस.ए. उरूग्वे उज्बेकिस्तान वनाटू वेनेजुएला वियतनाम यमन युगोस्लाविया जामबिया जांबिया मोंटेनग्रो | 1946 1955 1962 1993 1976 1981 1945 1992 1945 1955 1992 1930 1971 1974 1966 1945 1945 1981 1960 1971 1945 1992 1966 1945 1984 1955 1960 1962 1955 1960 1945 1975 1960 1960 1945 1945 1945 1975 1960 1960 1960 1945 1992 1945 1960 1993 1945 1977 1978 1945 1945 1945 1945 1968 1993 1991 1945 2002 1970 1955 1945 1960 1965 1992 1973 1957 1945 1974 1945 1958 1974 1966 1945 1945 1955 1946 1945 1950 1945 1945 1955 1949 1955 1962 1956 1955 1995 1963 1999 1991 1991 1963 1992 1955 1991 1945 1966 1945 1955 1990 1991 1945 1993 1960 1964 1957 1965 1960 1964 1991 1961 1968 1945 1991 1992 1993 1961 1956 1975 1948 1990 1999 1955 1945 1945 1945 1960 1960 1945 1971 1947 1994 1945 1975 1945 1945 1945 1945 1955 1971 1955 1945 1962 1983 1979 1980 1976 1992 1975 1945 1960 1976 1961 1965 1993 1992 1978 1960 1945 1955 1955 1956 1956 1968 1946 1945 2002 1992 1961 1946 1960 1999 1956 1956 1945 1992 2000 1962 1945 1971 1945 1945 1945 1992 1981 1945 1977 1947 1945 1964 1980 2006 |
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग sanyukt rashtra sangh ke ang संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग है -
- महासभा (साधारण सभा)
- सुरक्षा परिषद
- आर्थिक व सामाजिक परिषद
- संरक्षण या न्यास परिषद
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
- सचिवालय
महासभा
संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश महासभा के सदस्य होते हैं, प्रत्येक सदस्य देशों को अधिक से अधिक 5 सदस्यों का प्रतिनिधि मण्डल महासभा के लिए भेज सकता हैं, परन्तु प्रत्येक सदस्य देशों का एक ही वोट माना जाएगा। महासभा संयुक्त राष्ट्र की विधायनी संस्था हैं। इसकी बैठक वर्ष में एक बार एवं विशेष सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संरक्षण या न्याय परिषद सचिवालय आर्थिक और सामाजिक परिषद महासभा परिस्थितियों में सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर विशेष बैठक बुलायें जाने का प्रावधान है। शांति, सुरक्षा और मानव अधिकारों से संबंधित संभी मामलों पर विचार करना महासभा का मुख्य कार्य हैं।महासभा सुरक्षा परिषद के गैर स्थायी सदस्यों,
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों व महा सचिव आदि की नियुक्ति करता है।
महासभा प्रत्येक अधिवेशन के लिए एक अध्यक्ष एवं 07 उपाध्यक्षों का चुनाव करती है।
महासभा अपने कार्य चलाने के लिए 07 समितियों का गठन करती हैं।
प्रत्येक सदस्य राष्ट्र अपना एक प्रतिनिधि प्रत्येक समिति में भेज सकता हैं।
1. अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा पर विचार-
‘विश्व-शांति एवं सुरक्षा संबंधी’ दायित्व यद्यपि सुरक्षा परिषद पर हैं,
परन्तु महासभा भी इन समस्याओं पर विचार कर सकती है। नि:शस्त्रीकरण
तथा शस्त्रों के नियम संबंधी मामलों पर विचार करना तथा अपने सुझाव आरै
सिफारिशें सुरक्षा परिषद को भेजनी हैं वास्तव में परिषद ही महासभा से
प्रार्थना करती हैं कि इस विषय पर विचार करें। सदस्य राष्ट्रों को भी यह
अधिकार दिया जाता है कि वे अपने प्रतिनिधियों द्वारा शांति एवं सुरक्षा
सबंधीं प्रस्ताव रखें। ऐसा एक प्रस्ताव 3 नवम्बर सन् 1950 में शांति के लिये
एकता प्रस्ताव उसके पास भेंजा गया था।
- राजनीतिक एवं सुरक्षा समिति।
- आर्थिक एवं वित्तीय समिति।
- सामाजिक एवं मानवीय समिति।
- संरक्षण समिति।
- प्रशासनिक एवं बजट संबंधी समिति।
- कानूनी समिति।
- विशेष राजनीतिक समिति।
महासभा के कार्य एवं शक्तियाँ-
महासभा की शक्तियों का वर्णन चाटर्र की धारा 10 से लेकर 17 तक में
किया गया हैं। इन धाराओं के अनुसार महासभा की कार्य एवं शक्तियॉ हैं-
2. बजट तैयार करना-
संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक व्यवस्था का संचालन भी महासभा ही
करती है। इसके लिए वाषिर्क आय-व्यय का ब्यौरा (बजट) महासभा द्वारा
तैयार किया जाता हें और महासभा ही व्यय का बॅटवारा सदस्य के मध्य
करती हैं।
3. नियुक्तियां करना-
महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करने का अधिकार भी महासभा को होता
हें, जैसे-
- सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी सदस्य।
- आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के 8 सदस्य।
- संरक्षण परिषद के निर्वाचित होने वाले सदस्य।
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन में भाग लेना।
- सुरक्षा परिषद की सिफारिश से महा सचिव की नियुक्ति करना।
सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद के महत्व के संबध में प्रकाश डालते हुए ई पी.चजे ने सुरक्षा परिषद को ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ का हृदय कहा हैं।’’ सुरक्षा परिषद की स्थापना विश्व शांति के मुख्य संरक्षक के रूप में की गई थी। सुरक्षा परिषद् एक छोटी सी संस्था हैं, किंतु इसे संयुक्त राष्ट्र की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था माना जाता हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल चार्टर में सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या 11 थी, किन्तु बाद में संशोधन कर उसकी सदस्य संख्या 15 कर दी गइर्। पूर्व में 5 स्थायी सदस्य आरै 6 अस्थायी सदस्य होते थें, किंतु संशोधन के बाद अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी गई।विश्व की तत्कालीन 5 महाशक्तियों
अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, फ्रांस और चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता
मिली। सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य 2 वर्षों पर परिवर्तित होते रहते है। सुरक्षा
परिषद के अस्थायी सदस्यों में से 5 सदस्य एशिया और अफ्रीका महाद्वीप से, 2
सदस्य दक्षिण अमेरिका से, 2 सदस्य पश्चिमी यूरोप से तथा एक सदस्य पूर्वी यूरोप
से चुने जाते हैं। सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार हैं।
अतंराष्ट्रीय न्यायालय - यह संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख न्यायिक अंग है। इसका मुख्यालय नीदरलैण्ड
के नगर हेग में हे। इस न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते है और उनका चुनाव सुरक्षा
परिषद तथा महासभा में अलग-अलग किये गये मतदान द्वारा होता है। न्यायाधीश
का चुनाव राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर योग्यता के आधार पर करने का
प्रावधान हैं। प्रत्येक न्यायाधीश का कार्यकाल 9 वर्षों का होता हैं और 1/3
न्यायाधीश 3 वर्षों में पदमुक्त होते है। इस न्यायालय में किसी भी राष्ट्र से एक से
अधिक न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जा सकती है। न्यायालय अपने अध्यक्ष,
उपाध्यक्ष एवं रजिस्ट्रार की नियुक्ति स्वयं करता हैं जिस देश के विवाद के विषय में
न्यायालय विचार कर रहा हो, उस देश का न्यायाधीश उस मामले में भाग नहीं ले
सकता हैं।
इस परिषद में लंबित किसी भी प्रस्ताव पर निर्णय के लिये मतदान होता हैं और
प्रस्ताव की स्वीकृति के लिये कम से कम 15 मतों में से 9 मतो का पक्ष में होना
आवश्यक हैं। कार्यप्रणाली संबंधी मामलों में तो किसी भी (अस्थायी + स्थायी) 9
मतों की आवश्यकता होती है।, किंतु मौलिक विषयों के निर्णयों में सुरक्षा परिषद के
5, स्थायी सदस्यों के मतों की भी आवश्यक होती है। सुरक्षा परिषद के स्थायी
सदस्यों को ‘वीटोपावॅर’ या निषेधाधिकार प्राप्त है। अपने इस अधिकार का प्रयोग
करते हुये कोई भी स्थायी सदस्य किसी भी मामले को अधर में लटका सकते है।
सुरक्षा परिषद के निर्णयों को मानना सभी सदस्य राष्टों के लिये अपरिहार्य एवं
अनिवार्य है।
सुरक्षा परिषद के मुख्य कार्य व अधिकार -
सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाये रखना है।
इसके लिए वह उन मामलों व परिस्थितियों पर तुरंत विचार करती है जो शांति हते ु
खतरा पैदा कर रही है। चार्टर की धारा 33 से 38 तक धाराए अंतर्राष्ट्रीय झगड़ो के
शांतिपूर्ण निपटारे के संबंध में 39 से 51 तक की धाराएं शांति को संकट में डालने,
भंग करने एवं आक्रमण को राके ने की कार्यवाही के बारे में विस्तार से वर्णन करती
है।
संक्षेप में सुरक्षा परिषद के कार्य इस प्रकार बतलाये जा सकते हें।
- केवल सुरक्षा परिषद ही शांति भंग करने वाले के विरूद्ध कठोर कार्यवाही कर सकती हैं। यदि सुरक्षा परिषद इस निर्णय पर पहुंचती हैं कि किसी परिस्थिति से विश्व शांति एवं सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है।, तो उसे कुटनीतिक, आर्थिक एवं सैनिक कार्यवाही करने का अधिकार हैं। सदस्य राष्ट्र चार्टर की इच्छानुसार उक्त निर्णय को मानने एवं लागू करने के लिये बाध्य हैं।
- सुरक्षा परिषद के महासभा की अपेक्षा नये सदस्यों को सदस्यता प्रदान करने के क्षेत्र में निर्णयात्मक अधिकार प्राप्त हैं। सुरक्षा परिषद सदस्यता प्रदान करने से संबंधित अपनी समिति की राय पर स्वयं उक्त देश की सदस्यता की पात्रता पर विचार करती है जिसमें बहुत ही विशिष्ट परिस्थितियों में संतुष्ट होकर महासभा के पास अपनी सिफारिश भेज देती हैं।
- राष्ट्र संघ के महा सचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर की जाती हैं।
- सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों के निर्वाचन का कार्य भी करती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के विषय में कई धाराएँ हैं। जब कोई विवाद सुरक्षा परिषद् के समक्ष निपटाने के लिये आता हैं तो परिषद विवादित राज्यों को यह परामर्श देती हैं कि वे अपने विवादों को बिना शक्ति प्रयोग के शांतिपूर्ण ढंग से निपटा लें।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद द्वारा कुछ पयर्वेक्षयणात्मक कार्य भी सम्पन्न किये जाते हें। लेकिन सुरक्षा परिषद के पर्यवेक्षणात्मक कार्य महासभा के समान व्यापक नही हैं। सुरक्षा परिषद अप्रत्यक्ष रूप से संयुक्त राष्ट्र के इस प्रकार के कार्यों का सम्पादन करती है। चार्टर के अनुच्छेद 108 के अनुसार चार्टर में संशोधन के लिये यह जरूरी हैं कि महासभा के दो तिहाई सदस्य इसे स्वीकार करें तथा तत्पश्चात इन सदस्यों की सरकारें इसक अनुसमर्थन करें, किंतु यह आवश्यक है कि इन दो तिहाई सदस्यों में सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्य भी शामिल हों
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के कार्य आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के कार्य 2 प्रकार के होते हैं- (अ) सामान्य कार्य । (ब) विशिष्ट कार्य ।आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के सामान्य कार्य
- विश्व का एक बडा भाग आर्थिक दृष्टि से पिछडा हुआ हैं, जहाँ न ठीक से खेती हो पाती हैं और न ही उद्योग-धन्धों की स्थापना। वहाँ सर्वत्र गरीबी, बेकारी तथा भुखमरी फैली हुई हैं। साम्राज्यवादी शक्तियाँ इन क्षेत्रों का भरपूर शोषण कर रही हैं। इन क्षेत्रों के संबंध में इस परिषद को यह कार्य सोपा गया हैं कि इन पिछडे़ क्षेत्रों के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठायें तथा गरीबी और बेकारी का निवारण कर लोगों की दशा को उन्नत बनाए। कृषि का विकास एवं उधोग-धंधो की स्थापना कर वहौ स्वस्थ हाथों को काम दिलवाये।
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक तथा स्वास्थ्य सबंधीं समस्याओं का अध्ययन करना तथा उनका समाधान करने का प्रयास करना। शिक्षा एवं संस्कृति के विकास के लिये आपस में सहयोग को प्रोत्साहन देना तथा राष्ट्रों के मध्य सहानुभूति उत्पन्न करना आदि।
- विश्व के सभी मानवों में जाति. रंग, भाषा, धर्म, वंश तथा लिंग के भेद को मिटाकर समानता स्थापित करना। समस्त मानवों को मानव अधिकार, मौलिक स्वतंत्रता समानताएं प्राप्त हों इसके लिये प्रयत्न करना।
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के विशिष्ट कार्य -
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक तथा सम्बधीं समस्याओं का अध्ययन करना तथा इस संबंध में सदस्य राष्ट्रों को एवं समितियों को परामर्श देना ताकि समस्या का समाधान हो सकें।
- सुरक्षा परिषद की प्रर्थना पर उसे सबंधित विषयों की सहायता प्रदान करना।
- विभिन्न समस्याओं के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बलु ाना।
- अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण विषयों पर प्रतिवेदन तैयार कर महासभा के सामने प्रस्तुत करना।
- न्याय क्षेत्रों के विकास में सहयोग देना।
- महासभा की स्वीकृति से सदस्यों के अनुरोध पर उन्हें अपनी सेवाओं से सहायता प्रदान करना।
- आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों की उन्नति के लिये आयोग नियुक्त करना।
इसके महत्व को बताते हुए डॉ. आशीर्वाद ने कहा है। कि, ‘‘यदि
सुरक्षा परिषद का लक्ष्य संसार को भय से मुक्त करना है तो आर्थिक एवं
सामाजिक परिषद का लक्ष्य परिषद का लक्ष्य विश्व को अभाव से मुक्त
करना हैं।’’
संरक्षण परिषद (न्यास परिषद) -
न्यास परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे छोटा अंग है और उसके मात्र 5
सदस्य हैं-
अमेरिका, बिट्रेन, रूस, फा्रस और चीन। 24 अक्तूबर 1945 ई की जब संयुक्त
राष्ट्र संघ ने अपना कार्य शुरू किया था, उस समय विश्व में लगभग 11 एसे क्षेत्र
थे, जहॉ सरकारों की गठन नही हुआ था और ऐसे क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र संघ का
संरक्षण प्रदान करने के लिए न्यास परिषद (संरक्षण परिषद) का गठन किया गया।
1994 में सबसे अंतिम राष्ट्र पलाउ, (प्रशांत महासागर में स्थित) संयुक्त राष्ट्र संघ का
सदस्य बना, वही भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना करवा दी ।
न्यास परिषद् के सभी सदस्यों को एक मत देने का अधिकार हैं और कोई भी निर्णय
साधारण बहुमत से लिया जाता है।
न्यास परिषद के उद्देश्य-
न्यास परिषद् का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की वृद्धि में
सहयोग करना तथा न्यास क्षेत्र के लोगों को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं
शैक्षणिक दृष्टि से विकसित कर उनमें स्वशासन एवं स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता
उत्पन्न करना न्याय परिषद का मूल उद्देश्य है।
न्यास परिषद के कार्य एवं शक्तियाँ-
यह सामान्यत: न्यास प्रदेशों के संबध में
महासभा के आदेशानुसार कार्य करती है, इसके मुख्य कार्य इस प्रकार है-
- प्रशासनिक अधिकारी द्वारा प्रषित प्रतिवेदनों पर विचार करना। प्रशासी अधिकारी प्रति वर्ष अपना प्रतिवेदन परिषद् के सामने प्रस्तुत, करते है। जिंन पर आवश्यक विचार-विमर्श करने पश्चात महासभा तथा सुरक्षा परिषद् को अपनी सिफारिशें भेजती हैं।
- याचिकाएॅ स्वीकार करके प्रशासी अधिकारी के साथ विचार-विमर्श करते हुए उनका परीक्षण करना।
- प्रशासी अधिकारी के साथ तिथि निश्चित करके समय-समय पर न्यास प्रदेशों का भ्रमण करना तथा वहॉ की स्थिति का जायजा लेना।
- न्यास समझौता के अनुसार उपयुक्त तथा अन्य कार्य करना।
क्षेत्राधिकार -
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार को 3 भागों में विभक्त किया
जा सकता हैं। प्रथम ऐच्छिक क्षेत्राधिकार, द्वितीय अनिवार्य क्षेत्राधिकार एवं तृतीय
परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार।
1. एच्छिक क्षेत्राधिकार- के अंतर्गत न्यायालय अपनी संविधि की धारा 36 के
अंतर्गत उन सभी मामलों पर विचार कर सकता है जो कि संबंधित राष्ट्र
द्वारा उसके सामने रखे गये हों। राज्य ही न्यायालय के विचारणीय पक्ष होते
हैं, व्यक्ति नहीं।
2. अनिवार्य क्षेत्राधिकार- के अंतर्गत संविधि को स्वीकार करने वाला कोई भी
राष्ट्र यह नहीं कह सकता है कि वह प्रस्तुत विवाद को अनिवार्य न्याय क्षेत्र
में मानता हैं, परन्तु इसके लिये दोनों पक्षों की स्वीकृति अनिवार्य हैं। किसी
की संधि की व्याख्या, अंतर्राष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में संबंधित सभी मामले
न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते है। किसी भी राष्ट्र की इच्छा के विरूद्ध
न्यायालय में कोई अभियोग नहीं लगाया जा सकता। इसलिए माना जाता
है कि इसका राष्ट्रों पर अनिवार्य क्षेत्राधिकार नहीं हैं।
3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार- के अंतर्गत साधारण सभा, सुरक्षा परिषद तथा अन्य
मान्यता प्राप्त संस्थाओं द्वारा सौंपे गये प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अपनी
राय दे सकता हैं। परन्तु इस राय को मानने के लिए वे बाध्य नहीं हैं।
- अंतरराष्ट्रीय परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज जिन्हें प्राय: कानून के रूप में व्यवहार में लाया जाता हैं।
- न्यायिक निर्णयों तथा विद्वानों की टीकाए, ?
- सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत कानून के सामान्य सिद्धांत,
- सामान्य अथवा विशेष अंतर्राष्ट्रीय अभियान जिससे उन नियमों की स्थापना होती हैं, जिन्हें विवादी राष्ट्र स्पष्ट रूप से स्वीकार कर चुके है।
6. मूल्यांकन-
यद्यपि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना संस्थापकों ने बडी उम्मीदों के साथ
किया था, परंतु वह उनके आशाओं के अनुरूप नहीं बन पाया हैं। ‘‘यह भी अस्थिरता तथा
पाशविक शक्ति के शक्ति का विकल्प नहीं बन पाया है। ‘‘यह राष्ट्रों में इस भावना का संचार
करने में असमर्थ रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान सम्भव हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों की कई आधारों पर आलोचना की गई हैं जैसे- (1) इसके पास अपने
निर्णयों को लागू करवाने की शक्ति का अभाव हैं। (2) इसका क्षेत्राधिकार राष्ट्रों की सहमति
पर निर्भर करता है।
सचिवालय
सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बडा अंग है। इसमें
लगभग 25,000 लोग कार्यरत हैं। सचिवालय का मुख्यालय अमेरिका के
न्यूयार्क शहर में है तथा इसकी अन्य अनेक शाखाएँ विश्व की विभिन्न क्षेत्रों
में स्थापित है सचिवाल का प्रधान महासचिव होता है, संयुक्त राष्ट्र का
सर्वोच्च पदाधिकारी महासचिव होता है। महासचिव के कार्यों को पूरा करने
में संयुक्त राष्ट्र सचिवालय महत्वपूर्ण भूि मका निभाता है। महासचिव की
नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है और
उसका कार्यकाल दर्बों का होता है।
सचिवालय को सुविधा की दृष्टि से आठ
विभागों में बाँटा गया है। (1) सुरक्षा परिषद से संबद्ध विषयों का विभाग, (2)
सम्मेलन एवं सामान्य सेवाएँ, (3) प्रशासकीय एवं वित्तीय सेवाएँ, (4) आर्थिक
विषयों से संबंधित विभाग, (5) न्याय विभाग, (6) लोक सूचना विभाग, (7)
सामाजिक विषयों से संबंधित विभाग एवं (8) ट्रस्टीशिप विभाग।
सचिवालय के कार्य -
- संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों, अभिकरणों एवं एजेन्सियों द्वारा लिये गये निर्णयों को कार्यान्वित करना
- संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न समितियों की बैठकों का आयोजन करना।
- सुरक्षा परिषद् को विभिन्न जानकारी एवं सूचनाएँ उपलब्ध कराना।
लाखों लोगों को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करवाना संयुक्त राष्ट्र की एेितहासिक
उपलब्धि हैं। संयुक्त राष्ट्र के लिए उपनिवेशवाद की समाप्ति के दो पहलू थे। एक तो ऐसे
देश जो प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी देशें द्वारा शासित थे- जैसे- भारत। दूसरे न्यास क्षेत्र
जिनकी जिम्मेदारी स्वयं संयुक्त राष्ट्र की थी। 11 देश/क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र के न्यास परिषद
के तहत आ गए। कैमरून, नौरू, न्यू गुइनिया, प्रशांत महाद्वीप, रूआंडा, बरूंडी, सोमालिया,
तन्जानिया, टोगोलडैं आदि उनमें से कुछ है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र को धन्यवाद दिया
जाना चाहिए कि अब कोई भी न्यास क्षेत्र नही है। 11 में से सात देश स्वतत्रं हो गए व चार
का स्वेच्छा से पडोसी उपनिवेशवाद विरोधी समूह के पय्र ुक्त दबाव से 60 प्रदेश स्वतत्रं किए
जा चुके है। इरिट्रिया, पूर्वी तिमारे की स्वतत्रं ता उपनिवेशवाद के विरूद्ध एक सफल उदाहरण है।
दक्षिण अफ्रिका के रंगभेद की नीति का विरोध संयुक्त राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण
उपलब्धि हैं। इसकी शुरूवात 1946 से हुइर्। दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र
के सुझावों को नकार दिया। बाद में अखेतो (काले लोगों) से भेदभाव के विरूद्ध दबाव बढ़ने
लगा। खेलों में दक्षिण अफ्रीकी टीम पर प्रतिबंध लगे। सुरक्षा परिषद ने शस्त्रों की बिक्री पर
रोक लगाया। इसके परिणाम 1993 तक दिखने लगे। सम्मानित अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला
को 27 वर्षो के बाद जेल से मुक्त किया गया। रंगभेद कानूनों को समाप्त किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय देख-रेख में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराए गए और 1994 में नलेसन मंडेला
राष्टप्रति बने। इसके तुरंत बाद संयुक्त राष्ट्र ने सभी पूर्व प्रतिबंधों को हटाकर विश्व में दक्षिण
अफ्रीका की सही स्थान दिलाया।
संयुक्त राष्ट्र की कमियाँ
संयुक्त राष्ट्र को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में उतनी सफलता नहीं मिली है
जितनी की आशा की जाती थी। अंतरराष्ट्रीय जगत में अनेक एसी समस्याएं हैं, जिनका
समाधान संयुक्त राष्ट्र नहीं कर सका। इस विफलता के निम्न कारण है।
1. महाशक्तियों की गुटबंदी-
संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के बाद ही विश्व दो गुटों में बट गया था एक
पूंजीवादी गुट जिसका नेता अमेरिका का और दूसरा समाजवादी गुट जिसका नेता
सोवियत संघ का दोनों ही गुटों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु संघ के हितों की ओर
ध्यान नहीं दिया।
2. बाध्यकारी सत्ता का अभाव-
संघ के पास कोई बाह्यकारी सत्ता नही हैं। यदि कोई सदस्य राष्ट्र संयुक्त
राष्ट्र के आदेशों की अवहेलना करता हैं तो उस आदेशों की पालन करने के लिये
संयुक्त राष्ट्र बाध्य नही कर सकता। उदाहरण के लिये वियत नाम में अनेक वर्षो
तक भयंकर बमबारी करके अमेरिका ने मानवता के साथ भयकंर अपराध किया
जबकि संयुक्त राष्ट्र मूकदर्शक बनी रही।
3. संघ की सदस्यता सभी राष्ट्रों के लिये अनिववार्य नही-
संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता सभी राष्ट्रों के लिये अनिवार्य न होने के कारण
बहुत से राष्ट्र इसके सदस्य नही बने है। एवं कुछ सदस्य राष्ट्रो ने इसकी सदस्यता
त्याग भी दिया हैं जैसे:- मलेशिया के प्रश्न पर इण्डोनेशिया संयुक्त राष्ट्र से पृथक
हो गया।
4. वीटो का अधिकार-
संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी सदस्यों (अमेरिका, रूस, फं्रास, ब्रिटेन एवं चीन)
को संघ में किसी भी प्रस्ताव पर वीटों करने का अधिकर हैं। अर्थात किसी प्रस्ताव
के पारित होने के लिये प्रत्येक स्थायी सदस्य की राय एक होना आवश्यक हैं। इस
कारण से कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं हो सकता। कोई न कोई सदस्य उसे वीटों
कर देता हैं।
5. संयुक्त राष्ट्र के पास स्वयं की सेना नहीं है-
संयुक्त राष्ट्र के पास स्वयं की कोई सेना नहीं है इसलिये किसी भी राष्ट्र की
मनमानी पर राके नहीं लगायी जा सकती।
6. घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं-
संयुक्त राष्ट्र किसी के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नही कर सकता- उदाहरण
के लिये बांगला देश में परिस्तानी सेना ने लाखों बेगुनाहो का कात्ल किया लेकिन
अपने को मानवता का सरं क्षण कहलाने वाला संयुक्त राष्ट्र मौन रूप में यह सब कुछ
देखता रहा।
7. अस्त्र शस्त्रों की होड़-
अस्त्र शस्त्रों की निरतं र वृद्धि होने से संयुक्त तनाव बढ़ा है। वर्तमान
समय में परमाणु शस्त्रों की हाडे चल रही है। इससे ससं ार में भय और आतंक का
वातावरण छाया हुआ हैं छोटे राष्ट्र विशेष रूप से भयभीत हैं। संयुक्त राष्ट्र इस
शस्त्रों की होड़ को रोक नहीं पाया हैं।
8. राष्ट्रों में अतंराष्ट्रीयता की भावना की कमी-
कभी भी संयुक्त संगठन तभी सफल हो सकता है। जबकि उनके सदस्यों
में अंत राष्ट्रीयता की भावना हो आज विश्व के अधिकांश देश अपने राष्ट्रीय स्वार्थो
को ध्यान में रखकर काम करते हैं, इससे भी संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों में सफल
नहीं हो सका हैं।
9. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अनिवार्य क्षेत्राधिकार प्राप्त न होना-
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की अनिवार्य क्षेत्राधिकार प्राप्त न होने के कारण यह
प्रभावहीन हो गया हैं।
संयुक्त राष्ट्र के पुनर्गठन की आवश्यकता
यद्यपि संयुक्त राष्ट्र ने एक उत्तरदायी भूमिका का निर्वाहन किया हैं परंतु कुछ
अवरोधों के कारण यह प्रभावित भी हुआ हें। उदाहरणार्थ, संयुक्त राष्ट्र के कुछ अगे नहीं
बदले है। जो कि वांछनीय हैं। आइए, हम सुरक्षा परिषद पर विचार करे। सुरक्षा परिषद में
सदस्यों की संख्या 15 तक सीमित है इनमें से 5 (चीन, फा्रंस , रूस, यूनाइटेड किंगंडम और
अमेरिका) स्थायी सदस्य हैं। किन्हीं ऐतिहासिक और राजनैतिक कारण से 1945 में उन्हें
स्थायी बनाया गया। शेष 10 सदस्यों को 2 वर्ष के लिए महासभा द्वारा चुना जाता हैं।
यह
पिछले साठ वर्षों से चलता आ रहा है जब अधिकांश अफ्रीकी और एशियाई देश संयुक्त
राष्ट्र के सदस्य नहीं थे। अब जबकि सदस्यों की संख्या करीब चार गुना हो गई है तो इसके
स्वरूप में बदलाव की आवश्यकता हैं। कुछ देश जैसे भारत आदि को स्थायी सदस्य बनाने
का मजबूत कारण हैं। अस्थायी सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए जिससे कि उन्हें
भी लग ें कि उनके भविष्य के संबंध में भी सुरक्षा परिषद काम कर रही हैं।
तृतीय विश्व के
देश संयुक्त राष्ट्र को पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका का एजेन्ट मानते हैं। इस भ्रांति को
दूर करने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ानी होगी । जापान, भारत, जर्मनी, ब्राजील
और नाइजीरिया इसके दावेदार हैं। जापान और जर्मनी अब शत्रु नही हैं तथा उनकी आर्थिक
स्थिति और संयुक्त राष्ट्र को उनके सहयोग के कारण वे सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता
के सबसे प्रबल दावेदार हैं।
संयुक्त राष्ट्र के शांति कायोर्ं में भारत के सहयोग और प्रतिक्रिया
के कारण भारत की दावेदारी भी प्रबल हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र का मौलिक सदस्य रहा है।
इसके अतिरिक्त भारत दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश तथा संसार में सबसे बड़ा
पज्रातत्रं हैं।
भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बहुसंख्यक समुदाय के तानाशाही से तंग आ गए हैं.. अनू. जाती, जनजाति के सच्चे प्रतिनिधि चूने नही जाते, उन्हें हिंदू बहुसंख्यक समुदाय पर निर्भर होना पडता है... यह लोकतंत्र के नाम पर हिंदू बहुसंख्यक समुदाय की तानाशाही हैं.. इसे जल्द से जल्द खत्म कर इन समूदायोंको मानवाधिकार बहाल करे... संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहल करना चाहिए...
ReplyDeleteI need to meet you and I think world protection .air pollution is very important so need improvement in lastest case. Please don't forget about me think.
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad sir bhot help hui is jankari se itne ache se or kahi ne mila UN ka bare me bas sir isko thoda update kar do jo changes hue h unko update kar do
ReplyDeletesukran sir i am wasim sol student == insta -- wasimofficial.786
ReplyDeleteThank you so much for all
ReplyDeleteThank you so so muchh.... this helped me so much for my project work.... great👏👏👏👏👏
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