High Court - उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार व शक्तियाँ

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के द्वारा भारतीय संघ के प्रत्येक राज्य के लिये एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गयी है। परंतु संविधान के अनुच्छेद 231 के अनुसार यदि संसद चाहे तो कानून के द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों के लिये एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है। 

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या

प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश होता है। और अन्य न्यायाधीशों की संख्या आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति द्वारा बढायी जा सकती है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति

संविधान के अनुच्छेद 217(1) की व्यवस्था के अनुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आरै संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाती है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं उस राज्य के राज्यपाल एव राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेता है। 

संविधान के अनुच्छेद 219 के अनुसार उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश को अपने पद ग्रहण करने के पूर्व राज्यपाल के समक्ष अपने पद की गोपनीयता, गरिमा, कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी की शपथ लेनी पडती है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं

संविधान के अनुच्छेद 217(2) के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वही व्यक्ति हो सकता है।
  1. जो भारत का नागरिक हो। 
  2. जो भारत के राज्य क्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक किसी न्यायिक पद पर कार्य कर चुका हो। 
  3. जो किसी राज्य के उच्च न्यायालय या ऐसे दो या दो से अधिक न्यायालयों में निरंतर दस वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। 
  4. जो किसी न्यायाधिकरण के सदस्य के रूप में 10 वर्ष तक कार्य कर चुका हो 
  5. राष्ट्रपति के विचार में ख्याति प्राप्त न्याय शास्त्री हो। 

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल

एक बार उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद वे 62 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते है। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें या तो सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता है या वे उच्चतम न्यायालय या किसी ऐसे उच्च न्यायालय में वकालत कर सकते हैं जिस में वे न्यायाधीश न रह हों। किसी भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को 62 वर्ष की आयु से पहले भी हटाया जा सकता है यदि वह असक्षम है अथवा उसका दुव्यर्वहार सिद्ध हो जायें। यदि संसद के दोनों सदन अलग अलग एक ही सत्र में कुल सदस्य संख्या के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे तो न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। ऐसा प्रस्ताव राष्ट्रपति को पेश किया जाता है और फिर राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को हटा देता है। यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही जिसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाता है।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का मासिक वेतन 30,000 (तीस हजार) रुपये 500 पाँच सौ रुपये भत्ता एवं अन्य न्यायाधीशों को 26,000 (छब्बीस हजार) रुपये मासिक वेतन एवं 300 तीन सौ रूपये भत्ता प्राप्त होता है। इसके अलावा उन्हें निशुल्क सरकारी आवास मिलता है। साथ ही अन्य सुविधाएं एवं सेवानिवृत्ति पर आनुतोषिकी और पेंशन मिलती है। न्यायाधीशों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिये उन्हें वेतन आदि भारत की संचित निधि से दिये जाते है। वित्तीय संकट को छोडकर किसी भी परिस्थिति में उनके सेवाकाल में संसद या राज्य विधान मण्डल द्वारा उनके वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।

उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय के पास कुछ मामलों में सीधी सुनवाई और फैसले का अधिकार है, इसे प्रारंभिक क्षेत्राधिकार कहते है जब किसी न्यायालय के फैसले के विरूद्ध सुनवाई उच्च न्यायालय में होती है तो उसे अपीलीय क्षेत्राधिकार कहते है। उच्च न्यायालय अपील करने का न्यायालय है। निचले स्तर के न्यायालयों के फैसले के विरूद्ध सिविल और फौजदारी मामले उच्च न्यायालय में लाये जा सकते है। संविधान के अनुच्छेद 225 के अनुसार उच्च न्यायालय की शक्तियों एवं कर्तव्यों को विभाजित किया जा सकता है। 
  1. उच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार
  2. उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार
  3. उच्च न्यायालय के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार
  4. अभिलेख न्यायालय

1. उच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में  विषयों से संबंधित विवाद आते है। 

1. संविधान से संबंधित विवाद (Constitutional Controversy)- संविधान के किसी अनुच्छेद को लेकर उत्पन्न हुए विवाद से संबंधित अभियोग उच्च न्यायालय में ही प्रस्तुत किये जा सकते है।

2. मौलिक अधिकारों से संबंधित विवाद (Fundamental Rights Disputes)- संविधान के अनुच्छेद 226 द्वारा उच्च न्यायालय केा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिये प्रारंभिक रूप में समुचित कार्यवाही करने की शक्ति प्रदान की गई है। मौलिक अधिकारों के अतिक्रमण से संबंधित अभियोग उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये जाते है और उच्च न्यायालय- 
  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख 
  2. परमा देश लेख 
  3. प्रतिशेध लेख 
  4. उत्प्रेषण लेख 
  5. अधिकार पृच्छा लेख जारी करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है। 
3. अन्य विषयों से संबंधित विवाद (Controversies related to other subjects)- इसके अंर्तगत उच्च न्यायालय वसीयत, विवाह विच्छेद, विधि कपंनी कानून व न्यायालय की अवमानना आदि से संबंधित विवादों को सुनता है।

4. चुनाव याचिकाओं से संबंधित विवाद (Controversy related to election petitions)- सीधे उच्च न्यायालय में ही सुने जाते है। उच्च न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत किसी भी सांसद या विधायक के चुनाव विरूद्ध की गयी याचिका पर सुनवाई कर सकता है। उच्च न्यायालय यदि पाता है कि उस सांसद या विधायक ने भ्रष्ट प्रकार से चुनाव जीता है तो वह उस चुनाव को रद्द कर सकता है। 

2. उच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरूद्ध अपीलें सुनने का अधिकार है। 

1. दीवानी अपीले (Civil appeal)- दीवानी अभियोगों में पाँच हजार रुपये से अधिक और अधिक से अधिक और कुछ दशाओ में बीस हजार रुपये से अधिक की धनराशि से संबंधित अभियोगों में जिला न्यायाधीशों द्वारा दिये गये निर्णय के विरूद्ध अपीले उच्च न्यायालय में की जा सकती है। 

2. फौजदारी अपीलें (criminal appeals) - (i) यदि सत्र न्यायाधीश ने किसी अपराधी को मत्युदंड दिया हो तो उसकी पुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा होनी चाहिए। (ii) यदि निचले न्यायालय ने किसी अपराधी को 4 वर्ष या इससे अधिक की सजा दी हो तो उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। ( iii) किसी प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट के निर्णय के विरूद्ध अपील की जा सकती है। 

अन्य अपीले (other appeals)- बिक्रीकर, आयकर, शासकीय कर, भूमि प्राप्ति, उत्तराधिकारी, दिवालियापन, पेटेण्ट व डिजाइन आदि विषयों से संबंधित निर्णयों तथा श्रम न्यायालयों, राजस्व न्यायालयों के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है। 

3. उच्च न्यायालय के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार

संविधान के अनुच्छेद 227 की व्यवस्था के अनुसार उच्च न्यायालयों को न्याय संबंधी अधिकारों के अलावा निम्नाकित प्रशासकीय अधिकार प्राप्त है। जिसके द्वारा वह अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण रखता है। 
  1. वह अपने अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यप्रणाली से संबंधित नियम बना सकता है। 
  2. अधीनस्थ न्यायालयों में अभिलेख रखने हेतु नियम बना सकता है। 
  3. उनके आवश्यक कागजातों documents को मँगाकर जाँच कर सकती है। 
  4. वह जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदावनति, पदोन्नति, अवकाश से संबंधित नियम बना सकता है। वह किसी विवाद को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में भेज सकता है। 
  5. अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण कर सकता है। 

4. अभिलेख न्यायालय

संविधान के अनुच्छेद 215 के अनुसार उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय भी है। उसके फैसले व आदेश अभिलेख (रिकार्ड) के रूप में सुरक्षित रखे जाते है। उन्हें किसी भी अदालत में प्रमाण के रूप में पेश किया जा सकता है। अथवा जिन्हें ध्यान में रखकर ही समस्त अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीश निर्णय देते है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

2 Comments

  1. Very old update like 21 high court in india but now 24 high court in india

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