- पोषण का अच्छा स्तर बनाये रखना।
- पोषण की अपर्याप्त मात्रा को सही करना।
- आहार की तरलता में संशोधन करना।
- शारीरिक वजन में आवश्यकतानुसार कमी करना।
- रोगी को ऐसा महसूस न हो कि उसे परिवार के अन्य सदस्यों से एकदम भिन्न आहार दिया जा रहा है।
- रोगी की रुचि के अनुसार भोजन हो
- आहार को आकर्षक ठंग से परोसा जाये ताकि रोगी को खाने की इच्छा हो।
उपचारात्मक आहार संशोधन के प्रकार
- आहार की तरलता में संशोधन - कई बार रोगी कुछ बीमारियों में ठोस भोजन नही ले पाता जैसे ज्वर, दस्त, वमन। ऐसे समय मे तरल आहार देना लाभदायक होता है। स्थिति सामान्य होने पर अर्द्धठोस या ठोस।
- पोषक तत्वों में परिवर्तन- रोग के हिसाब से पोषक तत्वों में परिवर्तन किया जाना चाहिए जैसे उच्च रक्त चाप में नमक की कमी, दस्त में तरल पदार्थो की अधिकता, पीलया में कम वसा।
- भोजन की बारम्बारता में परिर्वतन- बीमारी की अवस्था में व्यक्ति एक बार में अधिक भोजन नही ले पाता और इस समय सही मात्रा में पोषक तत्व मिलना भी आवश्यक होता है।
उपचारात्मक आहार संशोधन तरलता में पोषक तत्व में भोजन की बारंबातरता में विभिन्न रोगों में आहार दस्त - कम रेशेयुक्त, अर्धठोस ज्वर - अधिक ऊर्जा, अधिक प्रोटीन युक्त मधुमेह - बिना शक्कर सामान्य आहार उच्च रक्तचाप - कम ऊर्जा, कम कॉलेस्ट्राल व कम नमक पीलिया - कम वसा कब्ज़ - अधिक रेशेयुक्त
आहार के प्रति गलत धारणायें
लोगों कही आहार के प्रति कुछ गलत धारणायें है। जो इस प्रकार है।- गलत-मधुमेह के रोगी को चावल या आलू बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। सही- थोड़ी मात्रा में दोनों खाये जा सकते है।
- गलत-पीलिया के मरीज के आहार में ‘हल्दी व वसा नहीं देना चाहिए। सही- वसा कुछ समय तक नहीं देना चाहिए बहुत हल्दी से कोई नुकसान नहीं होता।
- गलत-खाना एकदम कम खाने से वजन कम हो जाता है। सही- खाना एकदम करना शरीर के लिये नुकसान दायक होता है।
- गलत-दस्त में खाना बंद कर देना चाहिए। सही- तरल आहार लेना चाहिए क्योंकि इस समय पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है।
- गलत-ज्वर में गर्म आहार नही लेना चाहिए। सही- भोजन को ठंडा या गर्म मानना गलत है।