औरंगजेब की धार्मिक नीति और औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

शाहजहां के चार पुत्र थे । दारा शिकोह, भुजा, औरंगजेब और थे । शाहजहां की तीन पुत्रियां भी थी । जहांआरा, रोशनआरा, गौहरआरा । मुसलमान शासकों में उत्तराधिकार के नियमों का आभाव था तलवार के बल पर शासन प्राप्त किया जा सकता था । शेष भाइर्यों की कत्ल कर दिये जाते थे । जीते जी सभी पुत्रों में बंटवारा कर दिया था।

शाहजहां के चारों पुत्रों की अलग-अलग रूचियां थी । दारा पंजाब का सुबेदार था । शाहजहां और जहांआरा से अनुकम्पा प्राप्त कर हमेशा शाहजहां के नजदीक में रहना चाहते थे । विद्यानुरागी धार्मिक उदारता के गुण विद्यमान था । सुलहएकुल की नीति का समर्थक था । शुजा शिया महत्वाकांक्षी था। उसे बंगाल की सुबेदारी प्रदान की गई । वह वीर साहसी कुशल प्रशासक थे । आराम तलब एवं विषय वासना प्रिय शासक हुआ । औंरगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान थे । मुराद एक वीर सैनिक यौद्धा थे सैनिक मिलन सारिता उदार हृदय विद्यमान थे । शराब की लत लगी हुई थी । उसे गुजरात की सुबेदारी दी गई थी ।

सन 1657 में शाहजहां बीमार पड़ा । वह स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने आगरा आ गया और अफवाह फैल गई की शाहजहां का निधन हो गया ।

शाहजहां के जीवित अवस्था में चारों पुत्रों में उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष छिड़ गया । उसके निम्नलिखि कारण थे-
  1. उत्तराधिकारी के लिए सुनिश्चित नियमों अभाव- मुगलकाल मे उत्राधिकार के कोई सुनिश्चित नियम नहीं थे । इसलिए संभावित उत्तराधिकारी अवसर पाते ही उत्तराधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ कर देते थे । शाहजहां के अन्तिम समय में भी यही हुआ, उसके चारों पुत्रों में संघर्ष छिड़ गया । 
  2. चरित्रगत विभिन्नताएं- शाहजहां के चारों पुत्र भिन्न-भिन्न स्वभाव के थे । उनमें चारित्रिक विभिन्नता के कारण कोई किसी को पसन्द नहीं करता था । इसी के परिणामस्वरूप वे संघर्ष के लिए प्रेरित हुए ।
  3. साधन सम्पन्नता- शाहजहां के चारों राजकुमार सुबदेार थे तथा साधन सम्पन्न थे आर्थिक तथा सैनिक स्वतंत्रता ने उसकी महत्वाकांक्षा को बढ़ा दिया था । 
  4. शाहजहां की रूग्णावस्था- शाहजहां एक बार बीमार पड़ा । इस सामाचार को सुनकर उसके पुत्रों ने उत्तराधिकार की तैयारी कर ली । यहां तक अफवाह फैला दी कि दाराशिकोह शाहजहां की मृत्यु के खबर को छिपा रहा है तथा मुगल साम्राज्य का स्वामी बनना चाहता है ।
  5. दाराशिकोह को शाहजहां द्वारा उत्तराधिकारी नियुक्त करना- शाहजहां दाराशिकोह को बहुत चाहता था, उसने उसे उत्तराधिकारी नियुक्त करने हेतु अपने विश्वसनीय सरदारो के सामने प्रस्ताव रखा । उसने उसकी मनसवदारी 40,000 से बढ़ाकर 60,000 कर दी थी तथा यह घोषणा कर दी गई कि दाराशिकोह को सम्राट का सम्मान दिया जाए । इसे पक्षपातपूर्ण मानकर शेष राजकुमारों ने अपने-अपने अधिकारों के पक्ष प्रस्तुत किए । 
  6. दाराशिकोह के प्र्रयत्न- दाराशिकोह, शाहजहां का प्रेम तथा पक्ष पाकर मनमानी करने लगा था । उसके इस प्रकार के व्यवहार ने ही भाइयों में पारस्परिक संघर्ष को जन्म दिया। उसने बंगाल, गुजरात तथा दक्षिण में बीजापुर जाने के सारे मार्ग बंद कर दिए ताकि उसके भाइयों के पास कोई सूचना न पहुंच सके । परिणाम में उसके भाइयों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया ।
  7. अमीरों तथा सरदारों की स्वार्थता- अमीर तथा सरदार अपने स्वार्थ की पूिर्त के लिए पारस्परिक गुटबन्दी के आधार पर संघर्ष की स्थिति पैदा कर देते थे । कट्टर सुन्नी मुसलमान एक ओर औरंगजेब को भड़काते तो उदारवादी लोग दाराशिकोह को समर्थन देते । शिया, शुजा को ऊपर उछालते थे । इससे संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई थी । 
1657 ई. में शाहजहां अस्वस्थ हो गया । उसने पूर्व में ही दाराशिकोह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था, फलत: दाराशिकोह अपने अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने लगा । वह चाहता था कि आगरा की कोई सूचना उसके भाइयों तक न पहुंच सके, परन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका । उसके भाइयों को उसके भीतरी प्रयत्नों की जानकारी मिल गई तथा वे भी इस दिशा में प्रयत्नशील हो गए ।
  1. बहादुगढ़ का युद्ध- सर्वपथ््राम शुजाशाह ने स्वयं को सम्राट घाेिषत किया तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए । उसने एक विशाल सेना लेकर आगरा की ओर कूच किया । दाराशिकोह ने उसे रोकने के लिए अपने पुत्र सुलेमानशिकोह के साथ जयसिंह को भेजा, शुजाशाह की पराजय हुई तथा वह बंगाल की ओर लौट गया ।
  2. धरमत का युद्ध - औरगंजेब में कूटनीति चतुराई थी । उसने इस संघर्ष में मुराद को अपनी ओर मिला लिया । उसने कहा कि पंजाब, सिंध, काबुल तथा कश्मीर मुराद का होगा तथा साम्राज्य का अधिकारी वह स्वयं होगा । औरंगजेब इस समझौते के बाद आगरा की ओर बढ़ा तथा दीपालपुर के पास मुराद उसे आकर मिल गया । दारा को आक्रमण की सूचना मिलते ही औरंगजेब तथा मुराद की सम्मिलित सेना आगरा की ओर चला उसका रास्ता रोकने का प्रयास किया और धरमत के पास दोनों सेनाओं के मध्य मुठभेड हुई ।
  3. सामूगढ का युद्ध- औरंगजेब धरमत के युद्ध में सफल होते ही आगरा की ओर बढ़ने लगा। दाराशाही सेना ही हार के बाद स्वयं औरंगजेब का सामना करने का निश्चय कर लिया । औरंगजेब और मुराद की विजय सेना सामूगढ़ पहुंची जहां दारा शिकोह विशाल सेना के साथ सामना करने का इंतजार कर रहे थे । 29 मई 1658 ई. को युद्ध हुआ । भीषण युद्ध में दारा पराजित हुआ और युद्ध क्षेत्र से भाग गया । औरंगजेब सेना जून 1658 को आगरा पहुंची और आगरा किले को घेर लिया और किले पर अधिकार कर लिया । शाहजहां को किले में कैद कर लिया गया और उससे बादशाह के समस्त अधिकार छीन लिए गए ।
  4. मुराद का वध- आगरा को कब्जे में लने के बाद औरंगजेब दिल्ली की आरे आग बढ़ा मार्ग में उसने मथुरा के पास मुराद को दावत के लिए बुलाया । खुब शराब पिलाई तथा उसे बेहोशी की दशा में बन्दी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर लिया कुछ दिनों पश्चात 4 दिसम्बर 1661 ईको औरंगजेब ने उसका वध कर दिया और लाश को किले के अंदर दफना दिय गया । सौमूगढ़ के युद्ध ने औरंगजेब के पक्ष में निर्णय कर दिया था । अब मुगल साम्राज्य की बागडोर औरंगजेब के हाथ में आ गई थी । वह केवल उत्तराधिकारी के लिए युद्ध ही नहीं था बल्कि सारे साम्राज्य में फलै गया जिसके परिणाम स्वरूप साम्राज्य में अराजकता फैली इस युद्ध में जन धन की भी अपार हानि हुई ।
  5. खजवा युद्ध- शुजा तथा औरंगजेब खजवा के पास भिड़ गये । दोनो सेनाओं के मध्य भी भीषण युद्ध हुआ जिसमें शुजा परास्त हुआ, और जान बचा अराकान की ओर भाग गया परन्तु 1660 ई. में मारा गया । सामूगढ़ युद्ध के पश्चात दारा शिकोह दिल्ली, लाहौर होता हुआ गुजरात पहुंचा। वहां औरंगजेब ने उसका पीछा करने के लिए बहादुर खां को भेजा । उसने खलील खां को पंजाब का गवर्नर नियुक्त करके बहादुर खां की सहायता के लिए भेजा यहां भी भाग्य ने साथ नहीं दिया और वह हार गया । उसने भाग कर जीवन नामक सरदार के यहां शरण ली परन्तु व विश्वास घाती हुआ उसने उसे औरंगजेब के हवाले कर दिया । औरंगजेब ने दारा को गन्दे हाथी पर बिठाकर उसका जुलूस निकाला तथा अपमानित किया । उस पर काफिर होने का आरोप लगाकर उसे मृत्यु दण्ड दे दिया गया । उसके बाद भी वह शान्त न हुआ । दारा के बेटे सुलेमान को कैद कर (1662 ई.) में उसका वध करवा दिया । इस प्रकार गद्दी का कोई हकदार नहीं बचा । औरंगजेब निश्चित होकर साम्राज्य करने लगा ।

औरंगजेब के विजय के कारण

  1. शाहजहां की दुर्बलता- शाहजहां की बिमारी तथा दुर्बलता के कारण औरंगजेब उत्राधिकारी के संघर्ष में विजयी रहे ।
  2. दाराशिकोह की कार्य प्रणाली- दाराशिकोह अपनी पराजय आरै औरंगजेब की विजय के लिए स्वयं जिम्मेदार है । दारा को अपने शत्रु की शक्ति का अनुमान था जसवन्त सिंह को बागीयों सेनाओं केवल भगाने का आदेश था, युद्ध का नहीं । जिससे औंरगजेब की सेना का मनोबल बढ़ा । दारा की अकुशलता पूर्ण सेना का संचालन हुआ । 
  3. औरंगजेब एक कुशल योग्य सेनापति- औरगंजेब स्वयं एक कुशल योग्य सेेेनापति था । अपने लाभ के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था । मुराद को मिलकार उनका वध कर देना उसके कुटनीति था । 
  4. कुटनीतिज्ञता- औरगंजेब एक चतुर कटनीतिज्ञ थे । कुटनीतिक चालों से मुराद को मिलाकर अपनी सैन्य शक्ति दुगुनी कर लेना और दाराशिकोह के उपर आक्रमण करके परास्त करना । मुराद विचार करने का अवसर न देकर बन्दी बना लेना और उसकी हत्या कर देना ।
  5. राजपूतों द्वारा औंरगजेब को समर्थन- राजपतू राजाओं के द्वारा दारा शिकोह को सहयोग नहीं मिला । जसवन्त सिंह ने धरमत की लड़ाई में दारा शिकोह के महत्वपूर्ण आदेश की अवहेलना कर युद्ध प्रारंभ कर दिया । वह पराजित होकर जोधपुर चला गया । उदयपुर के राणा ने भी समय पर दाराशिकोह की सहायता करने से इंकार कर दिया । 
  6. औरंगजेब में झुठा आश्वासन के गुण- औरगंजेब राजपतूों व अन्य को धामिर्क स्वतंत्रता का झूठा आश्वासन दिया तथा दाराशिकोह की ओर से उसका ध्यान हटाकर अपनी ओर कर लिया । 

औरंगजेब की धार्मिक नीति

औरंगजेब ने एक शुद्ध इस्लामी राज्य की स्थापना करने का प्रयत्न किया, वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था । उसने अकबर तथा जहांगीर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को त्याग दिया था, और एक कट्टर सुन्नी मुसलमान की तरह धार्मिक सिद्धान्तों के आधार पर शासन किया । इस्लाम धर्म उसके शासन के नीतियों का मुख्य आधार था और इसका प्रचार करना ही उसके जीवन का लक्ष्य बन गया ।

1. इस्लाम समर्थक नीति

  1. संगीत, नृत्य, चित्रकला और काव्य इस्लाम में मान्य नहीं है, इसलिए औरंगजेब ने अपने राजत्व में उक्त विधाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । 
  2. व्यक्ति पूजा का इस्लाम में निषेध है, अत: उसने झरोखा दर्शन प्रथा को वर्जित कर दिया।
  3. वेश्यालय तथा जुए के अड्डे बन्द करवा दिए गए थे, वे भी इस्लाम में ग्राह्य नहीं है।
  4. फैशन तथा नशीले पदार्थो के सेवन पर प्रतिबन्ध था, इसके लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था थी, भांग की खेती बंद करवा दी । 
  5. तुलादान की प्रथा समाप्त कर दी गयी, ज्योतिषियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 
  6. लोगों को शरीयत के अनुसार जीवन बिताने की प्रेरणा देने 8 के लिए उसने मुहतसिबों की नियुक्ति की । उनका काम समाज में नैतिकता की स्थापना करना था । 
  7. उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बन्द करवा दिया, ताकि इस्लामी नियमों का अपमान न हो, क्योंकि सिक्कों के जमीन पर गिरने तथा पैरों तले आ जाने की सम्भावनाएं रहती थी ।
  8. नौरोज त्यौहार फारसी रीति-रिवाज पर आधारित था, इसलिए उसे बन्द करवा दिया गया । 
  9. राजदरबार को सामान्य रूप से सजाया जाता था । आडम्बर युक्त साज-सज्जा बन्द कर दी गयी ।
  10. मुसलमान व्यापारियों को कर मुक्त किया गया था, परन्तु मुस्लिम व्यापारियों ने हिन्दू व्यापारियों के माल को अपना माल बताकर जब भ्रष्टाचार प्रारम्भ किया, तो मुसलमानों पर हिन्दुओं की तुलना में आधा कर लगाया गया । 
  11. कुछ पद ऐसे थे, जो मुसलमानों के लिए ही सुरक्षित थे । पेशकर तथा करोडियों के पद इसी प्रकार के थे । 
  12. दासों का खरीद फरोख्त बंद कर दिया गया ।
  13. नयी मस्जिदों का निर्माण करवाया गया । नये मन्दिरों को तोड़ा गया पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार भी नहीं करवाया गया । 
  14. फैशन परस्ती, अवांछनीय खेल-तमाशों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । 
  15. धर्म यात्राएं, पीरों मजारों में महिलाओं के प्रवेश निषिद्ध करवा दिये । 
  16. इस्लाम धर्म के नियमों को लागू करने के लिए मुहतसिब नाम के विशेष अधिकारी नियुक्त किये गये इनका काम जनता को कुरान के नियमों के अनुसार चलने के लिए ओदश देना था । 

2. हिन्दू विरोधी नीति 

  1. नये बने हिन्दू मन्दिर औरंगजेब की आज्ञा से गिराए गए तथा पुराने जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों की मरम्मत की आज्ञा भी नहीं थी । धार्मिक कट्टरता के कारण हिन्दूओं के पूजा स्थलों को वह शत्रुता की दृष्टि से देखता था । 
  2. औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया कर वसूल करने का फरमान जारी किया था । सर जदूनाथ सरकार के अनुसार- ‘‘जजिया कर का भाग निर्धनों पर ही अधिक पड़ा उन्हें धामिर्क स्वतंत्रता के लिये अपने एक वर्ष के भोजन के मूल्य का कर देना पड़ता था ।’’
  3. औरंगजेब ने ऐसा प्रयत्न किया कि उच्च पदों पर मुसलमान ही नियुक्त किए जाएं । हिन्दू कर्मचारियों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था ।
  4. औरंगजेब ने हिन्दू तथा गैर-मुसलमानों को उपहार, अनुदान तथा पदवियां देकर उनमें इस्लाम धर्म ग्रहण करने की भावना को जागृत किया । वह चाहता था कि अधिक से अधिक हिन्दू, मुसलमान बन जाएं । 1661 ई. में उसने हिन्दुओं को शासकीय पद से पृथक कर दिया । अनेक पदों पर मुसलमानों को नियुक्त कर दिया ।
  5. हिन्दुओं को अपने त्यौहार मनाने की मनाही थी । इस संकीर्णता ने राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक एकता को गहरी चोट पहुंचाई । होली के त्यौहार में पाबन्दी लगाई गयी । 
  6. औरंगजेब ने हिन्दुओं को जिस प्रकार परेशान किया, ठीक उसी तरह शिया मुसलमान भी उससे त्रस्त थे । उसने दक्षिण के शिया राज्य गोलकुण्डा तथा बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । इसके अतिरिक्त उसने अनेक शिया सम्प्रदाय के लोगों की हत्या करवायी, परन्तु उसकी औरंगजेब को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । वह जीवन भर युद्ध की आग में जलता रहा। एक क्षण के लिए भी शान्ति से सांस नहीं ले सका ।
  7. हिन्दुओं की पाठशालाओं को नष्ट कर दिया, वाराणसी में विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा में केशवदेव का मन्दिर, गुजरात में सोमनाथ का मन्दिर, अयोध्या व हरिद्वार के मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर नष्ट कर दिया मन्दिरों से प्राप्त अनके मूर्तियों को अपमानित करने के लिए आगरा के जामा मस्जिद के सीढ़ियों के नीचे जड़वा दिया ताकि मुसलमान उन मूर्तियों व उसके टुकड़ों पर पैर रखकर ऊपर जा सके । मन्दिरों के भग्नावशेषों से मस्जिदों के निर्माण करवाये । 

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

  1. इस्लाम समर्थक नीति के कारण हिन्दू, शिया तथा गैर मुसलमान औरंगजेब के शत्रु बन गए । उनको वह जीवन भर दबाने में लगा रहा तथा खजाने का धन पानी के तरह बहाता रहा। 90 वर्ष की आयु में मरणासन्न होने पर भी औरंगजेब के हृदय में इस्लाम धर्म के प्रचार का धार्मिक उत्सान अग्नि के समान धधक रहा था । 
  2. औरंगजेब अपनी संकीर्ण धार्मिक नीति के परिणामस्वरूप वीर राजपूत जाति के सहयोग से वंचित हो गया । 
  3. उसकी कला विरोधी नीति ने कला के विकास के मार्ग पर पूर्णविराम लगा दिया । इससे जन असन्तोष में वृद्धि हुई ।
  4. धार्मिक कट्टरता के कारण धीरे-धीरे औरंगजेब के विशाल साम्राज्य की नींव के पत्थर उखड़ते गए । एक दिन ऐसा आया कि मुगल साम्राज्य चरमराकर ढह गया । 

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