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चिंता वस्तुत: एक दु:खद भावनात्मक स्थिति होती है। जिसके कारण व्यक्ति एक प्रकार के अनजाने भय से ग्रस्त रहता है, बेचैन एवं अप्रसन्न रहता है। चिंता वस्तुत: व्यक्ति को भविष्य में आने या होने वाली किसी भयावह समस्या के प्रति चेतावनी देने वाला संकेत होता है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिन-प्रतिदिन की जिन्दगी में अलग-अलग ढंग से चिंता का अनुभव करता है। कुछ लोग छोटी सी समस्या को भी अत्यधिक तनावपूर्ण ढंग से लेते हैं और अत्यधिक चिंताग्रस्त हो जाते है। जबकि कुछ लोग जीवन की अत्यधिक कठिन परिस्थितियों को भी सहजता से लेते है और शान्त भाव से विवेकपूर्ण ढंग से समस्याओं का समाधान करते हैं।वस्तुत: चिंताग्रस्त होना किसी भी व्यक्ति के अपने दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
चिंता से न केवल हमारे दैनिक जीवन के क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं, वरन् हमारे निष्पादन, बुद्धिमत्ता, सर्जनात्मकता इत्यादि भी नकारात्मक ढंग से प्रभावित होते है। यह कहा जा सकता है कि अत्यधिक चिंताग्रस्त होने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व बुरी तरह प्रभावित हो पाता है तथा वह किसी भी कार्य को ठीक ढंग से करने में सक्षम नहीं हो पाता है।
चिंता से न केवल हमारे दैनिक जीवन के क्रियाकलाप प्रभावित होते हैं, वरन् हमारे निष्पादन, बुद्धिमत्ता, सर्जनात्मकता इत्यादि भी नकारात्मक ढंग से प्रभावित होते है। यह कहा जा सकता है कि अत्यधिक चिंताग्रस्त होने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व बुरी तरह प्रभावित हो पाता है तथा वह किसी भी कार्य को ठीक ढंग से करने में सक्षम नहीं हो पाता है।
चिंता की परिभाषा
चिंता को अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। जिसमें से कुछ प्रमुख निम्न है-- ‘‘चिंता एक ऐसी भावनात्मक एवं दु:खद अवस्था होती है, जो व्यक्ति के अहं को आलंबित खतरा से सतर्क करता है, ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके।’’
- ‘‘प्रसन्नता अनुभूति के प्रति संभावित खतरे के कारण उत्पन्न अति सजगता की स्थिति ही चिंता कहलाती है।’’
- ‘‘चिंता एक ऐसी मनोदशा है, जिसकी पहचान चििन्ह्त नकारात्मक प्रभाव से, तनाव के शारीरिक लक्षणों लांभवित्य के प्रति भय से की जाती है।’’
- ‘‘चिंता का अवसाद से भी घनिष्ठ संबंध है।’’
- ‘‘चिंता एवं अवसाद दोनों ही तनाव के क्रमिक सांवेगिक प्रभाव है। अति गंभीर तनाव कालान्तर में चिंता में परिवर्तित हो जाता है तथा दीर्घ स्थायी चिंता अवसाद का रूप ले लेती है।’’
चिंता के प्रकार
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड ने चिंता के निम्न तीन प्रमुख प्रकार बताये हैं-- वास्तविक चिंता
- तंत्रिकातापी चिंता
- नैतिक चिंता
- शीलगुण चिंता
- परिस्थितिगत चिंता
चिंता के लक्षण
चिंता के लक्षणों का विवेचन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-- दैहिक लक्षण
- सांवेगिक लक्षण
- संज्ञानात्मक लक्षण
- व्यवहारात्मक लक्षण
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