तनाव क्या है इसके कारण और लक्षण?

तनाव एक मानसिक रोग न होकर मानसिक रोगों का मूल कारण है। तनाव को यदि हम कुछ सटीक शब्दों में स्पष्ट करना चाहें तो कह सकते हैं कि मन:स्थिति एवं परिस्थिति के बीच संतुलन का अभाव ही तनाव की अवस्था है।
 
कहने का तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति के सामने कोई ऐसी समस्या या परिस्थिति आ जाती है। जब उसे लगे कि यह समस्या या परिस्थिति उसकी क्षमताओं के नियंत्रण से बाहर है अर्थात् उस परेशानी परिस्थिति से निपटने में उसकी सामर्थ्य कम पड़ रहीं है। स्वयं को निर्बल एवं असमर्थ पा रही है तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। 

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के शरीर एवं मन को समय-समय पर मिलने वाली चुनौतियाँ, जिनका सामना करने में वह स्वयं को असहाय एवं असमर्थ मानता है। उसमें तनाव को जन्म देता है।

तनाव की परिभाषा

बेरोन- ‘‘तनाव एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है जो हम लोग में वैसी घटनाओं के प्रति अनुक्रियाओं के रूप में उत्पन्न होती है, जो हमारे दैहिक एवं मनोवैज्ञानिक कार्यो को विघटित करता है या विघटित करने की धमकी देता है।’’  

माॅर्गन ‘‘हम लोग तनाव को एक आन्तरिक अवस्था के रूप में परिभाषित करते हैं, जो शरीर की दैहिक माँगों (बीमारी की अवस्थायें, व्यायाम, अत्यधिक तापक्रम इत्यादि) या वैसे पर्यावरणी एवं सामाजिक परिस्थितियाँ जिसे सचमुच में हानिकारक, अनियंत्रण योग्य तथा निबटने के मौजूद साधनों को चुनौती देने वाला के रूप में मूल्यांकित किया जाता है। से उत्पन्न होता है।’’

हेन्स शैली ‘‘तनाव से तात्पर्य शरीर द्वारा आवश्यकतानुसार किये गये अविशिष्ट अनुक्रिया से होता है।’’ 

तनाव की प्रमुख विशेषताएँ

  1. तनाव एक अनुक्रिया है। 
  2. तनाव उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते हैं। अत: यह एक बहुआयामी प्रक्रिया है। 
  3. तनाव में परिस्थितियाँ व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर होती है। 
  4. तनाव उत्पन्न होने पर व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 
  5. तनाव की स्थिति की कोई निश्चित समया विधि नहीं है। यह थोड़े समय के लिये भी रह सकता है और लम्बे समय तक भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तनाव किस कारण से उत्पन्न हुआ है। 
इस प्रकार स्पष्ट है कि तनाव एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है, जो तनाव उत्पन्न करने वाली घटना होती है, जिससे व्यक्ति के न केवल शारीरिक वरन् मानसिक कार्य भी विघटित हो जाते हैं।

तनाव के प्रकार 

तनाव ‘यूस्ट्रेस’ और ‘डिस्ट्रेस‘ दो प्रकार का होता है। यूस्ट्रेस सकारात्मक जबकि डिस्ट्रेस नकारात्मक तनाव है। यूस्टेªस के अन्तर्गत किसी कार्य विशेष के दौरान तनाव तथा दबाव की थोड़ी मात्रा बनी रहती है जो कार्य को बेहतर ढ़ग से सम्पादित करने के लिए प्रेरित करती है। 

यूस्ट्रेस मन में उत्साह का संचार करता है। डिस्ट्रेस में तनाव अत्यधिक या अनियन्त्रित होता है। तनाव के मुख्यत: दो भेद किये जा सकते हैं -
  1. सकारात्मक तनाव 
  2. नकारात्मक तनाव
1. सकारात्मक तनाव - इस तनाव की स्थिति में व्यक्ति तनावजनक घटना से परेशासन एवं चिन्तित नहीं होता वरन् साधन के साथ उसका सामना करने के लिये उठ खड़ा होता है तथा उस परिस्थिति को एक चुनौती के रूप में लेता है, जिससे तनाव के क्षणों का भी वह सदुपयोग कर पाता है। उसकी सोच सकारात्मक बनी रहती है तथा वह अपेक्षाकृत अधिक सजग एवं जागरूक होकर अपने क्षमताओं के बलबूते उस घटना से निपटता है। इस प्रकार सकारात्मक तनाव की स्पिति में व्यक्ति कार्य करने के लिये सामान्य से अधिक सक्रिय हो जाता है। 

2. नकारात्मक तनाव - यह सकारात्मक तनाव के ठीक विपरीत है। इसमें व्यक्ति का दृष्टिकोण उसका नजरिया नकारात्मक हो जाता है। नकारात्मक सोने के कारण वह तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति से निपटने में स्वयं को असमर्थ और असहाय पाता है जिससे उसमें दुश्चिन्ता उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।

तनाव के कारण

व्यक्ति में किन-किन कारकों से तनाव उत्पन्न होता है, इस विषय पर मनोवैज्ञानिकों द्वारा अत्यधिक गहन अध्ययन किया गया। इस अध्ययन के आधार पर तनाव उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारण हैं -

1. जीवन की तनावपूर्ण घटनायें - व्यक्ति की दिन - प्रतिदनि की उलझनें तथा जिन्दगी में दु:खद घटनाओं का घटित होना तनाव का एक प्रमुख कारण है।

2. सकारात्मक दृष्टिकोण का अभाव - आज का व्यक्ति आत्मबल एवं प्राणशक्ति की दृष्टि से अत्यधिक दुर्बल हो गया है, जिसके कारण जब उसके सामने कोई भी समस्या आती है तो वह बहुत जल्दी हैरान-परेशान हो जाता है और विवेकपूर्ण ढंग से न सोच पाने के कारण उसमें नकारात्मक विचार उत्पन्न होने लगते हैं। परिणामस्वरूप वह कुछ प्रयास करने से पहले ही स्वयं को असमर्थ महसूस कर परिस्थितियों के सामने अपने हथियार डाल देता है।

3. अपनी क्षमताओं का ठीक-ठीक मूल्यांकन न कर पाना - आज की भागदौड़ की जिन्दगी में प्रय: अधिकांश व्यक्तियों के पास स्वंय के लिये सुकून के दो पल भी नहीं है, जिसमें शांति से बैठकर वह स्वयं के बारे में गहराई से सोच सके। व्यक्ति को यह ही नहीं माूलम होता कि वह क्या-क्या कर सकता है और उसमें क्या-क्या कमियां हैं, जिससे कि वह स्वयं का सुधार कर सके। अत: आत्म-मूल्यांकन का अभाव भी तनाव का एक प्रमुख कारण है।

4. दूसरों पर निर्भर रहने की आदत - जीवन में तनावयुक्त एवं खुश रहने का सबसे अच्छा उपाय है - आत्म निर्भर रहना एवं दूसरों से किसी भी प्रकार की अच्छा करने या होने की अपेक्षा न करना लेकिन यथार्थ जिन्दगी में ऐसा हो नहीं पाता। आज व्यक्तियों पर स्वयं पर कम और अपने काम के लिये दूसरों पर निर्भर होने की प्रबृद्धि बढ़ती जा रही है। अत: जब दूसरों से अपनी अपेक्षा के अनुरूप परिणाम प्राप्त नहीं होता है तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है।

5. स्वार्थ एवं अहंकार की भावना - वर्तमान समय में व्यक्तियों में बढ़ती हुयी स्वार्थ एवं अहंकार की भावना ने भी तनाव को बढ़ावा दिया है।

6. भगवान पर श्रद्धा एवं विश्वास न होना - आज व्यक्ति प्रत्येक कार्य एवं घटना के लिये कर्ता स्वयं को ही मानता है। अत: इसके कारण एक तो उसमें अहंकार एवं कत्र्तापन का भाव बढ़ता जा रहा है, दूसरी ओर वह उस सवर्वोच्च परमात्यसत्ता पर विश्वास ही नहीं करता है। अत: जैसे ही कोई भी विपरीत परिस्थिति उसके सामने आती है तो इसका दोषारोपण या तो दूसरों पर या स्वयं पर करता है और उसमें इतनी सहनशक्ति होती नहीं है कि वह उस घटना के दबाव को झेल पाये। परिणामस्वरूप तनाव उत्पन्न हो जाता है।

7. आत्म संवेदनाओं की कमी - वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यक्ति सुबह से लेकर रातभार तक पैसे और नाम की अन्धी दौड़ में एक मशीन की भांति काम कर रहा है। ये धन की अन्धी दौड़ पता नहीं उसे कहां लेकर जायेगी। परिणामस्वरूप व्यक्ति इतना स्वाथ्र्ाी हो गया है कि स्वयं के हित के लिये वह किसी भी हद तक जाकर दूसरों की खुशियों का गला घोंट सकता है, क्योंकि इसमें इतनी संवेदना ही नहीं रह गयी है कि वह अपने या दूसरों के भांवों को समझकर उन संवेदनाओं का सम्मान कर सकें। परिणामत: स्वयं भी तनावग्रस्त रहता है और दूसरों के लिये भी तनाव का कारण बनता है।

8. आत्मसम्मान एवं आत्मविश्वास का अभाव - जब व्यक्ति में स्वयं के प्रति अर्थात अपने अस्तित्व के प्रति सम्मान का भाव नहीं होता तथा विश्वास की कमी होती हे तो वह तनावग्रस्त रहात है। स्पष्ट है कि तनाव के अनेक कारण है।

तनाव के लक्षण 

तनाव के दौरान व्यक्ति में दैहिक एवं मानसिक दोनों ही प्रकार का विघटन होता है अर्थात् इसमें न केवल शरीर वरन् मन भी बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। अत: तनाव के लक्षणों का दो बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है -
  1. तनाव के शारीरिक लक्षण 
  2. तनाव के मानसिक लक्षण 
1. तनाव के शारीरिक लक्षण
  1. उच्च रक्तचाप 
  2. हृदय गति का बढ़ जाना 
  3. नाड़ी गति एवं श्वास की गति का बढ़ना 
  4. कब्ज, अजीर्ण 
  5. सिर दर्द 
  6. सम्पूर्ण शरीर में तनाव 
  7. शारीरिक थकान 
  8. नींद न आना 
  9. भूख न लगना 
  10. वजन घटना 
  11. रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी इत्यादि। 
2. तनाव के मानसिक लक्षण
  1. मानसिक असंतुलन 
  2. बैचेनी एवं चिड़चिड़ापन 
  3. आत्मविश्वास एवं आत्म सम्मान का अभाव 
  4. नकारात्म सोच 
  5. भय 
  6. चिन्ता 
  7. स्वयं को निर्बल मानना। 
  8. दूसरों के साथ संतोषजनक सम्बन्ध न बनाये रख पानां। 
  9. समायोजन की कमी इत्यादि। 
इस प्रकार स्पष्ट है कि तनाव को नकारात्मक ढंग से लेने पर यह शरीर एवं मन को बुरी तरह तोड़कर रख देता है तथा चिन्ता एवं अवसाद तथा अनेक प्रकार के गंभीर मनोकायिक रोगों को जन्म देता है।

तनाव दूर करने के उपाय

तनाव की बढ़ती हुयी समस्या के कारण आज प्रत्येक व्यक्ति हैरान परेशान है ताकि इसके समाधान की दिशा में बहुत प्रयासरत है। आधुनिक एलोपैथी चिकित्सा के पास तनाव को दूर करने के कोई स्थायी समााधान नहीं है। किन्तु यौगिक जीवन शैली के कुछ ऐसे सूत्र एवं विधियां हैं, जिनको यदि अपने जीवन में उतारने की कोशिश की जाये तो बहुत कुछ हद तक तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ प्रमुख यौगिक उपाय हैं -

1. स्वयं को परम सत्ता परमात्मा का अभिन्न अंग समझना - तनाव को दूर करने का सबसे कारगर उपाय है स्वयं को दीन-हीन न समझकर भगवान का अभिन्न अंश समझना और इस सत्य पर विश्वास करना कि वह सर्वसमर्थ सत्ता हर पल हमारा ध्यान रख रहा है। हम अकेले नहीं, उनके सान्निध्य में हैं। उनकी नजर हर पल हम पर है। हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, वह भगवान् के संरक्षण में हो रहा है और वे हमारे साथ बुरा नहीं होने देंगे।

2. समय की मर्यादा का पालन - इसके साथ ही यदि हम समय की महत्ता को समझते हुए जिस समय पर जो कार्य करना है, प्राथमिकता के आधार पर तय करके, उसे समय पर पूरा करने की आदत डालें तो हमसे भी हम बहुत कुछ हत तक तनाव को नियंत्रित कर सकते हैं।

3. सकारात्मक दृष्टिकोण - तनाव को दूर करने के लिये हम घटनाओं के सकारात्मक ढंग से लेने की आदत डालती चाहिये, क्योंकि कोई भी कार्य या घटना भगवान की इच्छा से ही होती है। किन्तु साथ ही हमें उचित समय पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी करना चाहिए।

4. भविष्य की चिन्ता न करना - अक्सर भविष्य की व्यर्थ की चिन्ता के कारण भी व्यक्ति तनावग्रस्त रहता है। अत: हमें भविष्य की चिन्ता को छोड़कर वर्तमान में जीने की आदत डालनी चाहिये।

5. प्रार्थना - तनाव मुक्त रहने का एक अत्यन्त प्रभावी उपाय है सुख एवं दुख दोनों ही स्थितियों में तड़पकर उस परमात्मा को पुकारना।

6. प्रात:कालीन भ्रमण - प्रात:काल वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा अधिक रहती है। अत: तनावमुक्त रहने के लिये नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्ण प्रात:काल भ्रमण की आदत डालनी चाहिये।

Post a Comment

Previous Post Next Post