स्मृति किसे कहते हैं? परिभाषा सहित स्मृति का अर्थ

प्राय: हम यह सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति की स्मृति बहुत अच्छी है। अमुक व्यक्ति बार-बार भूल जाता है। कई व्यक्ति अपनी स्मृति में कई सूचनाओं को एक साथ रख लेते हैं। कई बार हम बचपन की बातों को स्मृति में ले आते हैं तो कई बार हम वर्तमान की बातों को भी भूल जाते हैं। कई घटनाओं को हम जीवनभर याद रखते हैं तो कई बार हम अपने निकटस्थ मित्रों के नाम भी भूल जाते हैं। यह सब स्मृति का खेल है।

स्मृति और विस्मृति हमारे दैनिक जीवन में नित्य प्रतिदिन होने वाले अनुभव के विषय हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब हम किसी विषय को समझ लेते हैं और सीख लेते हैं तब मस्तिष्क इनकी सूचनाओं का भण्डारण कर लेता है और इन सूचनाओं का पुनरूद्धार सामान्यत: प्रत्याह्वान (Recall) के रूप में होता है। एक प्रकार से सूचनाओं का पुनरूद्धार ही स्मृति है।

स्मरण या स्मृति चिंतन, कल्पना, संवेदना आदि की तरह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने किसी अतीतानुभव या शिक्षण को वर्तमान चेतना में लाते हैं और पहचानते हैं। अत: स्मरण प्रक्रिया के लिए पूर्व के अनुभव या पूर्व से सीखना आवश्यक है। कालान्तर में जब हम उन अनुभवों या शिक्षण को अपनी चेतना में लाते हैं या पुनव्र्यक्त करते हैं तो चेतना में लाने और पहचानने की मानसिक प्रक्रिया ही स्मरण कहलाती है। 

स्मरण एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है और इसे कल्पना, चिंतन, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि प्रक्रियाओं से भिन्न करना सरल नहीं है। स्मरण क्रिया में चार प्रक्रियाएं होती हैं या चार तत्त्व विद्यमान रहते हैं-
  1. स्थिरीकरण या अधिगम 
  2. धारणा 
  3. प्रत्याह्वान या पुन: स्मरण 
  4. प्रतिभिज्ञा। 
स्थिरीकरण में किसी विषय का अनुभव और शिक्षण आवश्यक है। अत: अनुभव या शिक्षण स्मरण की पहली प्रक्रिया है जो स्थिरीकरण के अन्तर्गत आती है। अनुभव में आए हुए या सीखे हुए विषय को संजोने की प्रक्रिया धारणा में आती है जो कि स्मरण की दूसरी प्रक्रिया है। धारणा में संजोये विषय को चेतना में लाना प्रत्याàान (Recall) कहलाता है जो कि स्मरण की तीसरी प्रक्रिया है। जब हम प्रत्यावाहित अनुभव या शिक्षण को पहचानते हैं तो यह प्रतिभिज्ञा (Recognition) की प्रक्रिया कहलाती है जो कि स्मरण की चौथी प्रक्रिया है।

स्मृति किसे कहते हैं

स्मृति एक मानसिक क्रिया है। इसकी सहायता से हम गत अनुभवों को जो कि मानसिक संस्कार के  रूप में हमारे अचेतन मन में विद्यमान रहते हैं, अपनी वर्तमान चेतना में लाते हैं। हमारे व्यावहारिक जीवन में अनेक प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं या हम किसी स्थान या वस्तु को देखते हैं तो उनसे कुछ अनुभव प्राप्त होते हैं जो कि सदा चेतन मन में नहीं रहते किन्तु अचेतन मन में बने रहते हैं। इन अनुभवों की छाप मस्तिष्क में अंकित हो जाती है। अचेतन मन में संचित इन्हीं अनुभवों के चेतन मन में आने की क्रिया को स्मृति कहते हैं। 

उदाहरणार्थ-आगरा के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों में ताजमहल विशेष रूप से दर्शनीय है। इसे मैंने वर्षों पूर्व देखा था। उसे प्रत्यक्ष देखकर मस्तिष्क में जो प्रतिमा अंकित हो गई है, वह मेरे अचेतन स्तर पर थी। आज छोटी बहन के सामने ताजमहल का वर्णन करने में पूर्व अनुभव जो अचेतन स्तर पर संचित थे, चेतन मन में आ गये। यही स्मृति है।

स्मृति की परिभाषा

स्मृति की परिभाषा मनोवैज्ञानिकों ने स्मरण को भिन्न भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। 

1. हिलगार्ड तथा एटकिन्स के अनुसार - “पूर्ववत सीखी गयी प्रतिक्रियाओं को वर्तमान समय में व्यक्त करना ही स्मरण है।” 

2. मैक्डूगल - “स्मृति का तात्पर्य भूतकालीन घटनाओं के अनुभवों की कल्पना करना एवं पहचान लेना है कि वे स्वयं के ही भूतकालीन अनुभव है।”

3. डॉ. एस.एन. शर्मा ने विलियम जेम्स की परिभाषा को इस प्रकार परिभाषित किया है ‘‘स्मरण किसी घटना अथवा तथ्य का ज्ञान है जिसके अतिरिक्त किसी अन्य चेतना के बारे में विचार नहीं कर रहे हैं, जैसाकि हम पहले विचार अथवा अनुभव कर सके हैं।’’

4. वुडवर्थ के अनुसार, ‘‘पूर्व में एक बार सीखी गयी क्रिया का पुन: स्मरण ही स्मृति है।’’

5. हिलगार्ड और ऐटकिन्सन के अनुसार, ‘‘स्मृति का अर्थ है कि वर्तमान में उन अनुक्रियाओं या प्रतिक्रियाओं को प्रदर्शित करना जिनको हमने पहले सीखा था।’’ 

6. लेहमैन, लेहमैन एवं बटरफिल्ड के अनुसार विषेश कालावधि के लिये सूचनाओं को संपोशित रखना ही स्मृति है।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि स्मृति का स्वरूप शारीरिक और मानसिक जटिल स्वरूप है जिसमें तीन प्रकार की मानसिक प्रक्रियाएं होती हैं। मनोविज्ञान में स्मृति के स्वरूप का विवेचन दो प्रकार से किया गया हैं- 
  1. कई मनोवैज्ञानिक स्मृति को एक ही स्थिति वाली ऐसी व्यवस्था मानते हैं जिसमें सूचनाओं की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न स्तर पर होती है, 
  2. दूसरे अनेक मनोवैज्ञानिक स्मृति को बहु अवस्था प्रक्रिया की रचना के रूप में मानते हैं।

स्मृति के प्रकार 

ऐटकिन्सन तथा शिफरिंग ने स्मृति के स्वरूप की व्याख्या करने के लिए एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने स्मृति को तीन वर्गों में रखा-
  1. सांवेदिक स्मृति 
  2. अल्पकालिक स्मृति 
  3. दीर्घकालिक स्मृति 

1. सांवेदिक स्मृति

इस प्रकार स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर कुछ क्षणों के लिए भण्डारित रहती है। सांवेदिक स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के अनुसार रहती है। जितनी ज्ञानेन्द्रियां हैं उतनी प्रकार की सांवेदिक स्मृतियों की कल्पना की जा सकती है। ज्ञानेन्द्रियां अपने स्तर पर किसी उद्दीपन या उत्तेजना की सूचनाओं को प्राप्त करती है और ये सूचनाएं कुछ क्षणों के लिए ही बनी रहती हैं। जैसे चक्षुओं से देखे गये कुछ दृश्यों के संवेदना की स्मृति, नाक से ली गई गंध के संवेदना की स्मृति, जिàा से प्राप्त रस संवेदना की स्मृति, श्रवणेन्द्रिय से शब्द संवेदना की स्मृति और त्वचा से स्पर्श संवेदना की स्मृति। यदि ज्ञानेन्द्रियों के समक्ष उद्दीपन तीव्र है तो सम्भवत: उसकी स्मृति अल्पकालिक या दीर्घकालिक भी हो सकती है।

मनोवैज्ञानिक स्पर्लिग (1960) एवं नाइस्सेर (1967) ने चाक्षुष सांवेदिक स्मृति (Visual sensory memory) और श्रवणात्मक सांवेदिक (Auditory sensory memory) पर प्रयोगात्मक शोध अध्ययन किये हैं। उनके अनुसार नेत्रों के सामने से उपस्थित उद्दीपक हट जाने के बाद भी नेत्रों के अक्षपटल पर उद्दीपक का प्रतिचित्र कुछ क्षणों के लिए बना रहता है। अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि उद्दीपक के हटने के बाद भी उद्दीपक का प्रतिचित्र नेत्रपटल में भण्डारित रहता है और स्मृति पटल पर लाया जा सकता है।

जिस प्रकार से चाक्षुष सांवेदिक स्मृति भण्डार होता है उसी प्रकार श्रवणात्मक सांवेदिक स्मृति भण्डार भी होता है और दूसरी अन्य ज्ञानेन्द्रियों से सम्बंधि सांवेदिक स्मृति भण्डार होते हैं।

2. अल्पकालिक स्मृति 

अल्पकालिक स्मृति क्या है, इस प्रकार की स्मृति में प्राप्त सूचनाएं बहुत ही सीमित समय तक रहती है। इसमें प्राय: ऐसी सूचनाएं रहती हैं जो वर्तमान समय की होती हैं तथा तात्कालिक रूप से प्राप्त की गई है। 

अल्पकालिक स्मृति के प्रकार - मनोवैज्ञानिकों ने अल्पकालिक स्मृतियों को चार प्रकार की बताया है। ये हैं 
  1. सक्रिय स्मृति (Active memory), 
  2. कार्यकारी स्मृति (Working memory), 
  3. प्राथमिक स्मृति (Primary memory) एवं 
  4. तात्कालिक स्मृति (Immediate memory)।
अधिगम या सीखने (Learning) प्रक्रिया के समय विशेषकर वाचिक अधिगम के क्षेत्र में इस प्रकार की स्मृति का उपयोग होता है। 

अल्पकालिक स्मृति के बारे में मनोवैज्ञानिक हेब्ब (1949) का यह मानना है कि इसका आधार मस्तिष्क के कुछ स्नायु कोशिकाओं में क्रिया का एक जाल-सा है जिसमें एक कोशिका में होने वाली क्रिया दूसरी कोशिका को सक्रिय करती है जिससे एक अनुरणन वृत्त (Reverbratory Circuit) बन जाता है। पुन: अभ्यास के अभाव में या समय बीतने के कारण यह क्रियाएं मन्द पड़ जाती हैं और कुछ काल बाद समाप्त हो जाती हैं।

3. दीर्घकालिक स्मृति

हम सभी का यह अनुभव है कि कई घटनाएं हमें जीवनभर याद रहती हैं और कई घटनाएं हम कुछ ही दिनों में भूल जाते हैं। प्राय: हर व्यक्ति में विशाल एवं अपेक्षाकृत रूप से स्थाई स्मृति होती है। जब शब्दों का अर्थ हम एक बार अच्छी तरह समझ लेते हैं या किसी घटना की क्रिया को एक बार ठीक से समझ लेते हैं तो प्राय: उसे भुलते नहीं। फिर भी कई बार हम कुछ महिनों या वर्षों में भुल भी जाते हैं, उनकी विस्मृति हो जाती है। 

दीर्घकालिक स्मृति के प्रकार - टुलविंग (1972) ने दो प्रकार की दीर्घकालिक स्मृतियों का वर्णन किया है-
  1. वृतात्मक स्मृति तथा 
  2. शब्दार्थ विषयक स्मृति। 
प्रथम प्रकार की स्मृति अर्थात् वृतात्मक स्मृति में घटनाओं और उनके कालिक-स्थानिक (Temperal spatial) सम्बंधों को ग्रहण कर भण्डारित किया जाता है। जबकि दूसरी प्रकार की स्मृति अर्थात् शब्दार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में भाषा का उपयोग होता है। 

इसमें व्यक्तिवाचिक प्रतीकों (Verbal symbols), शब्दों एवं उनके अर्थों तथा उनके पारस्परिक सम्बंधों और सूत्रों का भण्डारण करता है और इसी स्मृति के आधार पर वह प्रतीकों एवं उनके सम्बंधों का उपयोग करता है। इस प्रकार की स्मृति में व्यक्ति में अनेक प्रतिमाएं (Image), संज्ञानात्मक मानचित्र (Cognative map) तथा स्थानिक विशेषताओं (Spatial specialities) का भण्डारण होता है। 

 उक्त दोनों प्रकार की स्मृतियां एक दूसरे से सम्बंधित है तथा एक दूसरे के लिए पूरक होती है। 

टुलविंग ने अपने आगे के शोधकार्यों (1983, 1984, 1985) में इन दोनों प्रकार की स्मृतियों में सम्बंध पाया है।

वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) एवं शब्दार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में कुछ निम्न विशेषताएं होती हैं-
  1. दोनों स्मृतियों के स्वरूप एवं संरचना में अन्तर है। वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) का सम्बंध किसी अनुभव विशेष के भण्डारण से होता है जबकि शब्दार्थ विषयक (Semantic memory) का सम्बंध शब्दों और प्रतीकों के संगठित ज्ञान के भण्डारण से होता है।
  2. विस्मरण के स्वरूप के आधार पर दोनों स्मृतियों में भिन्नता होती है। वृतात्मक स्मृति का विस्मरण शीघ्रता से होता है जबकि शब्दार्थ स्मृति का देरी से। 
  3. वृतात्मक स्मृति एवं शब्दार्थ विषय स्मृतियां एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी परस्पर अन्तर्क्रिया करती हैं। दीर्घकालिक स्मृति (Long Term Memory) में स्मृति का भण्डारण वाचिक कूट संकेतों (Verbal encoding) से ही होता है। 
मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि मूर्त्त अथवा अमूर्त्त गुणधर्मों एवं सम्प्रत्ययों का दीर्घकालिक स्मृति में भण्डारण भाषा के रूप में ही होता है। व्यक्ति जो कुछ भी स्मरण करता है, जैसे परिचित लोगों के चेहरे, वस्तुओं का रंग-रूप या कोई घटना, उनके कूट संकेत वाचिक ही होते हैं।

अच्छी स्मृति की विशेषताएं

  1. शीघ्र अधिगम- जिस वस्तु को शीघ्र देखा जाता है वह उतनी ही अच्छी तरह स्मरण हो जाती है। शीघ्र सीखने पर सीखने की विधियों, वातावरण तथा योग्यता का प्रभाव पड़ता है। 
  2. उत्तम धारण- जितनी अच्छी धारण शक्ति होगी उतनी अच्छी स्मृति समझी जायेंगी। जो व्यक्ति किसी अनुभव को अधिक समय तक धारण कर सकता है। वह अच्छी स्मृति वाला कहलाता है। जिस छात्र की ध् ाारणा शक्ति कमजोर होती है, उसकी स्मृति क्षीण होती है। 
  3. शीघ्र प्रत्यास्मरण- स्मृति की विशेषता यह है कि जो कुछ भी याद किया जाये या अनुभव प्राप्त हो, उसका प्रत्यास्मरण शीध्र हो जाये। प्राय: ऐसे व्यक्तियों का अभाव नहीं जो यह कहते सुने जाएं कि उन्हें कुछ याद आ रहा है। अच्छी स्मृति वाला व्यक्ति पूर्वानुभवों का प्रत्यास्मरण शीघ्र कर लेता है।
  4. शीघ्र अभिज्ञान- अच्छी स्मृति की एक आवश्यक विशेषता शीघ्र पहचानने की भी है। अच्छी स्मृति वाला व्यक्ति सम्बन्धित अनुभवों तथा प्रतिमाओं को शीघ्र पहचान लेता है।

स्मृति के भाग

स्मृति के भाग इसमें चार प्रमुख खण्ड सन्निहित है -

1. सीखना - स्मृति प्रक्रिया में सर्वप्रथम सीखने की क्रिया होता है। हम नित्यप्रति नवीन क्रियाओं को सीखते हैं। सीखने का क्रम जीवन पर्यन्त चलता रहता है। सीखने के पश्चात हम सीखे हुए अनुभव का स्मरण करते हैं। अर्थात अधिगम या सीखना प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूपेण स्मृति को प्रभावित करता है। 

सीखना जितना प्रभावकारी होगा, स्मृति उतनी तेज होगी।

2. धारण - वुडवर्थ तथा श्लास वर्ग के अनुसार धारण स्मृति की चार प्रक्रियाओं में से एक है। प्राप्त किये गये अनुभव मस्तिष्क पर कुछ चिन्ह छोड़ जाते हैं। ये चिन्ह नष्ट नहीं होते। कुछ समय तक तो ये चिन्ह चेतन मस्तिष्क में रहते हैं, फिर अचेतन मस्तिष्क में चले जाते हैं।

3. पुनस्मृति- पुनस्मृति स्मृति प्रक्रिया का तीसरा महत्वपूर्ण खण्ड है। यह वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें पूर्व प्राप्त अनुभवों को बिना मौलिक उद्दीपक के उपस्थित हुए वर्तमान चेतना में पुन: लाने का प्रयास किया जाता है। पुनस्र्मृति कहलाती है। जिन तथ्यों का धारणा उचित ढंग से नही हो पाता उनका पुनस्मृतिर् करने में कठिना होती है।

4. पहचान - पहचानना स्मृति का चौथा अंग है। पहचान से तात्पर्य उस वस्तु को जानने से है जिसे पूर्व समय में धारण किया गया है। अत: पहचान से तात्पर्य पुन: स्मरण में किसी प्रकार की त्रुटि न करना है। सामान्यत: पुन: स्मरण तथा पहचान की क्रियाएं साथ-साथ चलती हैं।

स्मृति को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व 

स्मृति का शिक्षा में अत्यधिक महत्व है। यह सर्वविदित है कि अर्जित शैक्षणिक उपलब्धियों का आधार ही स्मृति है। स्मृति के आधार पर ही बालक का मूल्यांकन किया जाता है। जो बालक क्षीण स्मृति के कारण परीक्षा के प्रश्नों का उत्तर भली-भांति नहीं दे पाते, वे भले ही अन्य योग्यताओं में निष्पात हों, उनकी सफलता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संदिग्ध समझी जाती है। स्मृति को प्रभावित करने वाले तत्व प्रमुख है -

1. मानसिक स्थिति- किसी अनुभव को उस समय तक स्मृति जन्य नहीं बनाया जा सकता जब तक छात्रों को मानसिक रूप से किसी तथ्य को स्मरण योग्य नहीं बना लिया जाता।

2. प्रेरणा- किसी ज्ञान या अनुभव को बहुत समय तक स्मरण करने के लिए या उसे ग्रहण करने के लिए आवश्यक है कि छात्रों में उस विषय के प्रति प्रेरणा उत्पन्न हो।

3. सार्थक सामग्री - स्मरण की जाने योग्य सामग्री यदि सार्थक सामग्री नहीं हैं तो उसे वे याद करने के पश्चात भी भूल जायेंगे।

4. दोहराना- छात्रों को याद की जाने वाली वस्तुओं का अभ्यास बार-बार कराया जाना चाहिए। यदि दोहराने की प्रक्रिया में कहीं पर कमी रहेगी तो स्मरण उतना ही क्षीण हो जायेगा।

5. शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य- जो बालक शारीरिक या मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते वे किसी बात को स्मरण करने में सुविधा अनुभव नहीं करते। इसके विपरीत शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से स्वस्थ बालक किसी भी तथ्य को सहज ही स्मरण कर लेते हैं। 

6. अधिगम की विधियाँ- स्मृति पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि किसी तथ्य को किस विधि से पढ़ाया गया है। विधि का प्रयोग यदि उचित आयु समूह के बालकों पर होता है। तो पाठ्य विषय निश्चित रूप से अच्छा याद हो जायेगा। 

7.  पाठ्य सामग्री- स्मृति इस बात से भी प्रभावित होती है कि पाठ्य सामग्री की प्रकृति किस प्रकार की है। मनोवैज्ञानिकों ने अच्छी पाठ्य सामग्री के विषय में कहा है-
  1. पाठ्य सामग्री नवीन होनी चाहिए। नवीन पाठ्य सामग्री छात्रों में प्रेरणा तथा कौतूहल उत्पन्न करती है। नवीन पाठ्य सामग्री को पूर्वज्ञान के आधार पर विकसित किया जाये। 
  2. पाठ्य सामग्री में उत्तेजना की तीव्रता का होना आवश्यक है। यदि पाठ्य सामग्री का प्रभाव उत्तेजक है तो उसका प्रभाव स्मृति पर पड़ेगा। 
  3. पाठ्य सामग्री में विषय स्पष्ट होना चाहिए। अस्पष्ट विषय छात्रों को याद नहीं रह पाते। 
8. परीक्षण- समय-समय पर सम्बन्धित विषयों का परीक्षण करके छात्रों की स्मृति को विकसित किया जा सकता है। परीक्षणों से छात्रों को स्मरण का अभ्यास होता है। 

9. स्मरण की इच्छा- यदि बालक किन्हीं तथ्यों को स्मरण न रखना चाहे तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता। अत: सिखाये जाने वाले अनुभवों के प्रति छात्र की इच्छा तथा रुचि को जागृत करना आवश्यक है। यदि छात्र किसी चीज को सीखना नहीं चाहता है तो उसके साथ जबरदस्ती नहीं की जा सकती। सीखने के लिए सीखने वाले की इच्छा शक्ति का होना आवश्यक है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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