अनुक्रम
प्राय: हम यह सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति की स्मृति बहुत अच्छी है। अमुक व्यक्ति बार-बार भूल जाता है। कई व्यक्ति अपनी स्मृति में कई सूचनाओं को एक साथ रख लेते हैं। कई बार हम बचपन की बातों को स्मृति में ले आते हैं तो कई बार हम वर्तमान की बातों को भी भूल जाते हैं। कई घटनाओं को हम जीवनभर याद रखते हैं तो कई बार हम अपने निकटस्थ मित्रों के नाम भी भूल जाते हैं। यह सब स्मृति का खेल है।
स्मृति और विस्मृति हमारे दैनिक जीवन में नित्य प्रतिदिन होने वाले अनुभव के विषय हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब हम किसी विषय को समझ लेते हैं और सीख लेते हैं तब मस्तिष्क इनकी सूचनाओं का भण्डारण कर लेता है और इन सूचनाओं का पुनरूद्धार सामान्यत: प्रत्याह्वान (Recall) के रूप में होता है। एक प्रकार से सूचनाओं का पुनरूद्धार ही स्मृति है।
स्मरण या स्मृति चिंतन, कल्पना, संवेदना आदि की तरह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने किसी अतीतानुभव या शिक्षण को वर्तमान चेतना में लाते हैं और पहचानते हैं। अत: स्मरण प्रक्रिया के लिए पूर्व के अनुभव या पूर्व से सीखना आवश्यक है। कालान्तर में जब हम उन अनुभवों या शिक्षण को अपनी चेतना में लाते हैं या पुनव्र्यक्त करते हैं तो चेतना में लाने और पहचानने की मानसिक प्रक्रिया ही स्मरण कहलाती है। स्मरण एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है और इसे कल्पना, चिंतन, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि प्रक्रियाओं से भिé करना सरल नहीं है। स्मरण क्रिया में चार प्रक्रियाएं होती हैं या चार तत्त्व विद्यमान रहते हैं-
मनोवैज्ञानिक स्पर्लिग (1960) एवं नाइस्सेर (1967) ने चाक्षुष सांवेदिक स्मृति (Visual sensory memory) और श्रवणात्मक सांवेदिक (Auditory sensory memory) पर प्रयोगात्मक शोध अध्ययन किये हैं। उनके अनुसार नेत्रों के सामने से उपस्थित उद्दीपक हट जाने के बाद भी नेत्रों के अक्षपटल पर उद्दीपक का प्रतिचित्र कुछ क्षणों के लिए बना रहता है। अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि उद्दीपक के हटने के बाद भी उद्दीपक का प्रतिचित्र नेत्रपटल में भण्डारित रहता है और स्मृति पटल पर लाया जा सकता है।
जिस प्रकार से चाक्षुष सांवेदिक स्मृति भण्डार होता है उसी प्रकार श्रवणात्मक सांवेदिक स्मृति भण्डार भी होता है और दूसरी अन्य ज्ञानेन्द्रियों से सम्बंधि सांवेदिक स्मृति भण्डार होते हैं।
वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) एवं शब्दार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में कुछ निम्न विशेषताएं होती हैं-
स्मृति और विस्मृति हमारे दैनिक जीवन में नित्य प्रतिदिन होने वाले अनुभव के विषय हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति सूचनाओं को संरक्षित रखता है। जब हम किसी विषय को समझ लेते हैं और सीख लेते हैं तब मस्तिष्क इनकी सूचनाओं का भण्डारण कर लेता है और इन सूचनाओं का पुनरूद्धार सामान्यत: प्रत्याह्वान (Recall) के रूप में होता है। एक प्रकार से सूचनाओं का पुनरूद्धार ही स्मृति है।
स्मरण या स्मृति चिंतन, कल्पना, संवेदना आदि की तरह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने किसी अतीतानुभव या शिक्षण को वर्तमान चेतना में लाते हैं और पहचानते हैं। अत: स्मरण प्रक्रिया के लिए पूर्व के अनुभव या पूर्व से सीखना आवश्यक है। कालान्तर में जब हम उन अनुभवों या शिक्षण को अपनी चेतना में लाते हैं या पुनव्र्यक्त करते हैं तो चेतना में लाने और पहचानने की मानसिक प्रक्रिया ही स्मरण कहलाती है। स्मरण एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है और इसे कल्पना, चिंतन, संवेदना, प्रत्यक्षीकरण आदि प्रक्रियाओं से भिé करना सरल नहीं है। स्मरण क्रिया में चार प्रक्रियाएं होती हैं या चार तत्त्व विद्यमान रहते हैं-
- स्थिरीकरण या अधिगम
- धारणा
- प्रत्याह्वान या पुन: स्मरण
- प्रतिभिज्ञा।
स्मृति की परिभाषाएं
कई मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति या स्मरण को विभिé प्रकार से परिभाषित किया है। इनमें विलियम जेम्स, वुडवर्थ और हिलगार्ड तथा ऐटकिन्सन एवं लेहमैन, लेहमैन एवं बटरफिल्ड प्रमुख है। डॉ. एस.एन. शर्मा ने विलियम जेम्स की परिभाषा को इस प्रकार परिभाषित किया है ‘‘स्मरण किसी घटना अथवा तथ्य का ज्ञान है जिसके अतिरिक्त किसी अन्य चेतना के बारे में विचार नहीं कर रहे हैं, जैसाकि हम पहले विचार अथवा अनुभव कर सके हैं।’’- वुडवर्थ के अनुसार, ‘‘पूर्व में एक बार सीखी गयी क्रिया का पुन: स्मरण ही स्मृति है।’’
- हिलगार्ड और ऐटकिन्सन के अनुसार, ‘‘स्मृति का अर्थ है कि वर्तमान में उन अनुक्रियाओं या प्रतिक्रियाओं को प्रदर्शित करना जिनको हमने पहले सीखा था।’’ लेहमैन, लेहमैन एवं बटरफिल्ड के अनुसार विषेश कालावधि के लिये सूचनाओं को संपोशित रखना ही स्मृति है।
स्मृति के प्रकार
ऐटकिन्सन तथा शिफरिंग ने स्मृति के स्वरूप की व्याख्या करने के लिए एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उन्होंने स्मृति को तीन वर्गों में रखा-- सांवेदिक स्मृति
- अल्पकालिक स्मृति
- दीर्घकालिक स्मृति
सांवेदिक स्मृति
इस प्रकार स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के स्तर पर कुछ क्षणों के लिए भण्डारित रहती है। सांवेदिक स्मृति ज्ञानेन्द्रियों के अनुसार रहती है। जितनी ज्ञानेन्द्रियां हैं उतनी प्रकार की सांवेदिक स्मृतियों की कल्पना की जा सकती है। ज्ञानेन्द्रियां अपने स्तर पर किसी उद्दीपन या उत्तेजना की सूचनाओं को प्राप्त करती है और ये सूचनाएं कुछ क्षणों के लिए ही बनी रहती हैं। जैसे चक्षुओं से देखे गये कुछ दृश्यों के संवेदना की स्मृति, नाक से ली गई गंध के संवेदना की स्मृति, जिàा से प्राप्त रस संवेदना की स्मृति, श्रवणेन्द्रिय से शब्द संवेदना की स्मृति और त्वचा से स्पर्श संवेदना की स्मृति। यदि ज्ञानेन्द्रियों के समक्ष उद्दीपन तीव्र है तो सम्भवत: उसकी स्मृति अल्पकालिक या दीर्घकालिक भी हो सकती है।मनोवैज्ञानिक स्पर्लिग (1960) एवं नाइस्सेर (1967) ने चाक्षुष सांवेदिक स्मृति (Visual sensory memory) और श्रवणात्मक सांवेदिक (Auditory sensory memory) पर प्रयोगात्मक शोध अध्ययन किये हैं। उनके अनुसार नेत्रों के सामने से उपस्थित उद्दीपक हट जाने के बाद भी नेत्रों के अक्षपटल पर उद्दीपक का प्रतिचित्र कुछ क्षणों के लिए बना रहता है। अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि उद्दीपक के हटने के बाद भी उद्दीपक का प्रतिचित्र नेत्रपटल में भण्डारित रहता है और स्मृति पटल पर लाया जा सकता है।
जिस प्रकार से चाक्षुष सांवेदिक स्मृति भण्डार होता है उसी प्रकार श्रवणात्मक सांवेदिक स्मृति भण्डार भी होता है और दूसरी अन्य ज्ञानेन्द्रियों से सम्बंधि सांवेदिक स्मृति भण्डार होते हैं।
अल्पकालिक स्मृति या स्मरण
इस प्रकार की स्मृति में प्राप्त सूचनाएं बहुत ही सीमित समय तक रहती है। इसमें प्राय: ऐसी सूचनाएं रहती हैं जो वर्तमान समय की होती हैं तथा तात्कालिक रूप से प्राप्त की गई है। मनोवैज्ञानिकों ने अल्पकालिक स्मृतियों को चार प्रकार की बताया है। ये हैं सक्रिय स्मृति (Active memory), कार्यकारी स्मृति (Working memory), प्राथमिक स्मृति (Primary memory) एवं तात्कालिक स्मृति (Immediate memory)। अधिगम या सीखने (Learning) प्रक्रिया के समय विशेषकर वाचिक अधिगम के क्षेत्र में इस प्रकार की स्मृति का उपयोग होता है। अल्पकालिक स्मृति के बारे में मनोवैज्ञानिक हेब्ब (1949) का यह मानना है कि इसका आधार मस्तिष्क के कुछ स्नायु कोशिकाओं में क्रिया का एक जाल-सा है जिसमें एक कोशिका में होने वाली क्रिया दूसरी कोशिका को सक्रिय करती है जिससे एक अनुरणन वृत्त (Reverbratory Circuit) बन जाता है। पुन: अभ्यास के अभाव में या समय बीतने के कारण यह क्रियाएं मन्द पड़ जाती हैं और कुछ काल बाद समाप्त हो जाती हैं।दीर्घकालिक स्मृति
हम सभी का यह अनुभव है कि कई घटनाएं हमें जीवनभर याद रहती हैं और कई घटनाएं हम कुछ ही दिनों में भूल जाते हैं। प्राय: हर व्यक्ति में विशाल एवं अपेक्षाकृत रूप से स्थाई स्मृति होती है। जब शब्दों का अर्थ हम एक बार अच्छी तरह समझ लेते हैं या किसी घटना की क्रिया को एक बार ठीक से समझ लेते हैं तो प्राय: उसे भुलते नहीं। फिर भी कई बार हम कुछ महिनों या वर्षों में भुल भी जाते हैं, उनकी विस्मृति हो जाती है। टुलविंग (1972) ने दो प्रकार की दीर्घकालिक स्मृतियों का वर्णन किया है-- वृतात्मक स्मृति तथा
- शब्दार्थ विषयक स्मृति।
वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) एवं शब्दार्थ विषयक स्मृति (Semantic memory) में कुछ निम्न विशेषताएं होती हैं-
- दोनों स्मृतियों के स्वरूप एवं संरचना में अन्तर है। वृतात्मक स्मृति (Episodic memory) का सम्बंध किसी अनुभव विशेष के भण्डारण से होता है जबकि शब्दार्थ विषयक (Semantic memory) का सम्बंध शब्दों और प्रतीकों के संगठित ज्ञान के भण्डारण से होता है।
- विस्मरण के स्वरूप के आधार पर दोनों स्मृतियों में भिéता होती है। वृतात्मक स्मृति का विस्मरण शीघ्रता से होता है जबकि शब्दार्थ स्मृति का देरी से।
- वृतात्मक स्मृति एवं शब्दार्थ विषय स्मृतियां एक दूसरे से भिé होते हुए भी परस्पर अन्तर्क्रिया करती हैं। दीर्घकालिक स्मृति (Long Term Memory) में स्मृति का भण्डारण वाचिक कूट संकेतों (Verbal encoding) से ही होता है।
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