व्यसन किसे कहते हैं ? नशीले पदार्थों का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

व्यसन एक द्रव्य सम्बन्धी विकृति है, जिसमें व्यक्ति अत्यधिक मात्रा में विभिन्न प्रकार के रसायन द्रव्यों का सेवन करता है और इन द्रव्यों पर इतनी अधिक निर्भरता बढ़ जाती है कि इनके दुष्प्रभावों से परिचत होते हुए भी वह इनको लेने के लिये विवश हो जाता है, क्योंकि न लेने पर उसके शरीर और मन को अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

व्यसन के प्रमुख कारण

1. वंशानुगतता - मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार के प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता या उसके परिवार या पीढ़ी में किसी व्यक्ति को व्यन की आदत है या थी, तो उस व्यक्ति में भी व्यसन से ग्रसित होने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। 

2. जीन्स - जीन्स को भी व्यसन के प्रमुख कारणों में से एक माना गया है। मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग के आधार पर अनेक ऐसे जीन्स खोज निकाले हैं, जो व्यसन को उत्पन्न करने के लिये जिम्मेदार हैं। 

अगर बचपन में किसी बच्चे को समुचित देखभाल, माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों का पर्याप्त प्यार एवं स्नेह न मिला हो या उसके शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक पोषण में यदि किसी प्रकार की कमी रह जाती है अर्थात उसका बाल्यावस्था में समुचित विकास नहीं हुआ होता है तो उसमें उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है और दूसरों पर निर्भरता का यह रूप यदि औषध या द्रव्यों पर निर्भरता के रूप में होता है तो फिर वह ‘‘व्यसन’’ को जन्म देता है।

व्यसनी द्रव्य व्यक्तियों में कुछ समय के लिये अत्यधिक प्रसन्नता, उत्साह, स्फूर्ति एवं आनन्द को उत्पन्न कर देते हैं जिससे व्यक्ति स्वयं को तनावमुक्त एवं हल्का तरोताजा महसूस करता है। औषधों यह प्रभाव व्यक्ति को इन द्रव्यों को लेने के लिये प्रेरित करता है। इन द्रव्यों का प्रयोग अधिकतर तनावपूर्ण स्थिति में किया जाता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तनावमुक्त और खुश रहना चाहता है किन्तु औषध लेने वाला यह नहीं जानता कि कुछ पल के सुख के लिये वह अपनी जिन्दगी को दांव पर लगा रहा है और ये व्यसनी द्रव्य अन्तत: उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिये एक प्रकार का जहर है। 

जिन परिवारों या समाज का महौल तनाव को पैदा करने वाला होता है, एक तो उनमें व्यसन की विकृति अधिक पायी जाती है और दूसरी ओर उन परिवारों में जिनमें ऐसे व्यसनी औषधों का सेवन करना मूल्यवान समझा जाता है तथा इस प्रवृत्ति को आदर के साथ देखा जाता है। तो स्पष्ट है कि व्यसन के जैविक, मनोगतिक, व्यावहारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक इत्यादि अनेक कारण हैं। 

व्यसन के लक्षण 

1. व्यसन में व्यक्ति पहले की तुलना में अत्यधिक मात्रा में व्यसनी द्रव्य का सेवन करता है या पहले से ही यदि वह वह अत्यधिक द्रव्य लेता है, तो उसका प्रभाव पहले की तुलना में कम होने लगता है। 

2. व्यसन में जब व्यक्ति लागतार खाये जाने वाले द्रव्य को लेना बन्द कर देता है तो उसे मानसिक रूप से बैचेनी, अशान्ति तथा शारीरिक रूप से अत्यधिक पीड़ा, तनाव, कंपन होने लगता है और कर्इ बार तो व्यक्ति की मृत्यु भी होती है। यदि व्यसनी को वह द्रव्य विशेष नहीं मिल पाता है तो उसकी पूर्ति के लिये वह अन्य औषध का सेवन भी करने लग सकता है। 

3. व्यसन में व्यक्ति उस द्रव्य का अत्यधिक सेवन करता है या एक विशेष अवधि तक उसका उपयोग न करके लम्बे समय तक करता है। 

4. ऐसे व्यसनी लोग द्रव्य के सेवन से विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होने पर भी उसका सेवन करना जारी रखते हैं। 

4. व्यसन का एक प्रमुख लक्षण यह भी है क ऐसे व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों के साथ कम समय गुजारते हैं। अपने सामाजिक दायरे को भी सीमित कर लेते हैं। इनकी संगति उन लोगों के साथ ही रहती है जो व्यसन से ग्रस्त होते हैं और इनका अधिकांश समय इन्हीं के साथ व्यतीत होता है। 

6. व्यसन व्यक्ति को इतना अधिक मदहोश कर देता है कि वह अपने शरीर के प्रति संभावित खतरे से भी असावधान रहने लगता है और मदहोशी की स्थिति में ही तेज रफ्तार के साथ वाहन चलाता है या कोर्इ खतरनाक मशीन चलाता है।

नशीले पदार्थों का सेवन करने से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?

व्यसन व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता हैं यह आदत एक प्रकार से ऐसी है जिसमें व्यक्ति यह जानते समझते हुए भी कि इन द्रव्यों का सेवन उसके लिये हानिकारक है फिर भी इनके सेवन के लिये विवश हो जाता है और स्वयं ही अनेक प्रकार की समस्याओं का आमंत्रण देता है। एक व्यसनी का प्रायः किन-किन समस्याओं का सामना करना हेाता है उनका विवेचन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है - 

1. व्यसनी व्यक्ति शरीर और मन पूरी तरह से उस व्यसनी औषध पर निर्भर हो चुका होता है जिसके कारण व्यक्ति अपने पारिवारिक, सामाजिक एवं उसके अपने निजी जीवन के जो कर्तव्य हैं उनकी ओर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाता है। अतः न तो वह सामाजिक दृष्टि से एक अच्छी छवि बना पाता है, न परिवार में और न ही अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में। हर तरफ से उसे निराशा और असफलता ही हाथ लगती है। 

2. उस व्यक्ति में अनेक प्रकार की शारीरिक समस्यायें और रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे - 
  1. कैंसर 
  2. अल्सर 
  3. हृदय रोग 
  4. किडनी एवं फेफड़ों से सम्बन्धित रोग। 
  5. पाचन संस्थान से सम्बन्धित रोग। 
  6. तंत्रिका तंत्र से सम्बन्धित रोग इत्यादि। 
3. व्यसन का रोग न केवल शरीर वरन् मन को भी अनेक प्रकार से पीडि़त करता है। ऐसे व्यक्ति मानसिक तौर पर बैचेन, अंशात और एक प्रकार के अनजाने भय से भ्रमित होते हैं। इनमें आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, साहस की कमी पायी जाती है तथा अपने कार्यो के लिये दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति अधिक होती है। 

4. व्यसनी द्रव्य कुछ समय के लिये तो व्यक्ति को अत्यधिक राहत या खुशी देते हैं, किन्तु जैसे ही इनका प्रभाव समाप्त होता है, वैसे ही व्यक्ति भावनात्मक रूप से अत्यधिक कुण्ठा एवं घुटन महसूस करता है, जो उसे अत्यधिक पीड़ा देती है और किसी भी प्रकार से उसे संतुष्टि नहीं मिल पाती। 

5. व्यसनी द्रव्यों का एक जो सर्वाधिक घातक प्रभाव पड़ता है, वह यह है कि मादक पदार्थ व्यक्ति की सही ढंग से सोचने-समझने की शक्ति को क्षीण कर देते हैं। व्यक्ति न तो विवेकपूर्ण विचार कर पाता है और न ही विवेकपूर्ण व्यवहार। परिणामस्वरूप गलत निर्णय लेता है, गलत कार्य करता है और फिर उन गलत कार्यो के दुष्परिणाम उसको भुगतने पड़ते हैं। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यसन का रोग न केवल उस व्यक्ति विशेष को प्रभावित करता है। वरन् इससे वह समूचा परिवेश ही (परिवार, समाज) प्रभावित होता है। 

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