1776 ई. अमेरिकी क्रांति के 3 मुख्य कारण

1776 ई. अमेरिकी क्रांति के कारण


सोवियत संघ के विखण्डन के पश्चात् विश्व की प्रथम शक्ति के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका की पहचान निर्विवाद है परन्तु यही देश अठारहवी सदी के पूर्वार्द्ध में ग्रेट ब्रिटेन के अधीन था। यह अधीनता अठारहवीं शताब्दी में यूरोप एवं अमेरिका में उभरे दो आदर्शों स्वतंत्रता एवं समानता के सामने बनी न रह सकी। 1775 ई. से 1783 ई. के मध्य घटित घटनाओं और जन्में विचारों ने एक नव राष्ट्र को जन्म दिया। क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व के बड़े राज्यों में है। जिस समय इसकी स्थापना हुई थी उस समय इसका क्षेत्रफल 315065 वर्गमील था और इसमें 13 राज्य थे। आज इसमें 50 राज्य है और इसका क्षेत्रफल 3615522 वर्गमील है। इस प्रभुत्वशाली देश के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास इंग्लैण्ड के अधिपत्य से मुक्ति का संघर्षपूर्ण इतिहास है।

विश्व इतिहास में अमेरिका की क्रान्ति एक विशिष्ट घटना है। अमेरिकी की क्रान्ति का तात्कालिक कारण उपनिवेश वासियों पर कुछ अनुचित करों का लगाया जाना था। लेकिन इसके मूल कारण कुछ और ही थे।

अमेरिका की आजादी की लड़ाई विश्व की एक महान् घटना थी। विद्वानों के अनुसार क्रांति इसकी मांगों के संदर्भ में रूढि़वादी एवं सुरक्षात्मक थी तथा ये मांगें अंग्रेजों के दृष्टिकोण से परम्परागत उदारता की परिचायक थी। अमेरिकन अंगें्रजों के विरूद्ध संगठित थे अन्यथा वे संतुष्ट लोग थे। अन्य विद्वानों के मत में अमेरिकन क्रांति उग्र सुधारवादी थी। इसने लोगों को देशभक्त एवं वफादार दो पक्षों में बांट दिया और इस आधार पर देश को विभक्त कर दिया। क्रांति ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर लिया।

यह तो परिवर्तन विरोधी तथा निवारक आन्दोलन मात्र थी अपनी स्थापना के समय से ही उपनिवेश जिस स्वतंत्रता एवं अधिकारों का उपयोग करते आ रहे थे, उस पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया तो उपनिवेश उसके निवारण के लिए उठ खड़े हुए। 

जे.एफजेमसन ने इसे एक सामाजिक आन्दोलन बताया है। 1800 ई. में फ्रेडरिक जेनटेन ने बर्लिन से प्रकाशित अपनी एक पत्रिका में यह मत प्रकट किया कि अमेरिका का विद्रोह तो केवल अंग्रेजों द्वारा उनके स्वीकृत अधिकारों पर लिये जाने वाले अतिक्रमण के विरूद्ध एक संघर्ष मात्र था। 

अमेरिका की इस क्रांति में मुख्य योगदान मध्यमवर्ग का था। अमेरिका के मध्यमवर्गीय लोग अत्यंत उदार एवं प्रगतिशील थे। यह जाग्रत वर्ग था। जिसमें राजनीतिक चेतना का अभाव नहीं था। यह वर्ग उपनिवेशी शासकों के विशेष अधिकारों और सुविधाओं से घृणा करता था। यह वर्ग सामाजिक समानता की मांग करता था और अपने राजनीतिक अधिकारों को मान्य बनना चाहता था। इस वर्ग में निराशा व असंतोष की भावना थी जिसे वह संघर्ष करके मिटाना चाहता था। इतना ही नहीं इस संघर्स में स्त्रियों ने भी अपना योगदान दिया। संघर्ष के समय स्त्रियों ने गुप्तचरों का कार्य किया इस योगदान के लिए अंग्रेज सेनानायक कार्नवालिस ने कटाक्ष करते हुए कहा ‘‘यदि हम लोग उत्तरी अमेरिका के सभी पुरूषों को भी खत्म कर दें तो औरतों को जीतने के लिये हमें बहुत लडना पडेगा।’’ मध्यम वर्ग के योगदान का स्पष्ट प्रमाण यह है कि स्वतंत्रता के घोषणा-पत्र पर जितने लोगों ने हस्ताक्षर किये थे उनमें अधिकांश लोग मध्यम वर्ग के ही थे। जिनमें आधे वकील थे। संविधान के निर्माण के पश्चात जनसाधारण को मताधिकार से वंचित रखा गया। स्त्रियों नीग्रों तथा बहुत से श्वेतों को भी मताधिकार नहीं मिला। 

क्रांति पूर्व अमेरिका की स्थिति

उत्तर में मेन से दक्षिण में जार्जिया तक कुल तेरह अंग्रेजी बस्तियाँ थी। इन उपनिवेशों में 1713 ई. में से 1763 ई. के बीच जनसंख्या में चार गुना वृद्धि हुई। इसकी तुलना में क्षेत्रफल में तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई जो कि बस्तीवासियों के पश्चिम की ओर अग्रसर होने से हुई। 1713 ई. से 1763 ई. के बीच बड़ी संख्या में अंग्रेज, स्काॅट, जर्मन तथा फ्रेंच आप्रवासी अमेरिका की बस्तियों में जाकर बसे। ये वाणिज्यवाद के महत्वपूर्ण वर्ष थे। अमेरिका के सभी उत्पादनों तथा लकड़ी, चमड़ा, तम्बाकू, चीनी, तांबा, मछली आदि की कीमतें इंग्लैण्ड तथा यूरोप में तेजी से बढ़ी जिससे अमेरिकी लोग समृद्ध हुए, यद्यपि इंग्लैण्ड की व्यापारिक नीति लगातार बाधाएँ खड़ी करती रहीं। 50 वर्षो की लगातार खुशहाली के कारण ही अमेरिकी तत्कालीन विश्व में ऊँचा जीवन स्तर बना पायें। इंग्लैण्ड की यात्रा पर जाना अब एक आम बात बन गई थी। विदेशों से पुस्तकों का आयाता बहुत बड़े स्तर पर किया जाने लगा था और कई पत्र-पत्रिकायें अमेरिका में भी छपने लगी थीं। पत्रकारिता से अमेरीकियों का लगाव पैदा हो चुका था। बोस्टन व अनापोलीस जैसे नगरों में इंग्लैण्ड की तुलना में अधिक सुन्दर भवनों का निर्माण किया गया। कई प्रसिद्ध अमेरिकी विश्वविद्यालय जैसे प्रिंस्टन, येल, डार्टमाउथ, ब्राउन इत्यादि क्रांति से पूर्व स्थापित हो चुके थे। क्रांति काल के महत्वपूर्ण अमेरिकी नगर-बोस्टन, न्यूयार्क, जेम्स टाउन, चाल्र्स टाउन, सवानाह, फिलोडल-फिया आदि थे। नगरों ने इस क्रांति में प्रमुख भूमिका निभाई।

1776 ई. अमेरिकी क्रांति के कारण

1776 ई. में तथा इससे पूर्व ऐसी घटनयें घटित हुई जिन्होंने क्रांति को जन्म दिया। अमेरिका की क्रांति निःसंदेह उपनिवेशों और मातृ राज्य में मौलिक मतभेदों के कारण हुई। वास्तव में अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम मुख्यतः ग्रेट ब्रिटेन तथा उसके उपनिवेशों के बीच आर्थिक हितों का संघर्ष था, किन्तु कई तरीकों में यह उस सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के विरूद्ध भी विद्रोह था जिसकी उपयोगिता अमेरिका में कभी की समाप्त हो गई थी। दूसरे शब्दों में, अमेरिकी क्रांति एक ही साथ आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक अनेक शक्तियों का परिणाम थी। यूं तो अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम 4 जुलाई 1776 ई. को आरम्भ हुआ, किन्तु जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वितीय राष्ट्रपति जाॅन एडम्स का कहना है, ‘‘क्रांति का आरम्भ युद्ध के पूर्व ही हो चुका था क्रांति तो लोगों के मस्तिष्क एवं हृदय में विद्यमान थी।’’ अर्थात् क्रांति की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार हो चुकी थी। यह स्मरणीय है कि उपनिवेशवासियों में पर्याप्त भिन्नता थी और उनमें से बहुत को इंग्लैण्ड से कोई विशेष शिकायत भी न थी फिर भी पारिस्थितियों ने उन्हें एकता सूत्र में कैसे आबद्ध कर दिया? वे शक्तिशाली इंग्लैण्ड के विरूद्ध कैसे एकजुट हो गये और अंत में उन्हें इंग्लैण्ड के निरंकुश शासन से किस प्रकार मुक्ति मिली? 

1. अमेरिकी उपनिवेशों का विद्रोह व तत्जनित अमेरिकी स्वतंत्र-युद्ध उन परिस्थितियों का परिणाम था जो सप्तवर्षीय युद्ध के कारण उपस्थित हुई। 1763 ई. में सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति होने पर इंग्लैण्ड एक विस्तृत औपनिवेिशक साम्राज्य का अधिपति था। अमेरिका के 13 उपनिवेशों में अंग्रेजों की प्रधानता थी व वहाँ इंग्लैण्ड जैसी राजनीतिक संस्थाएँ व परंपराएँ प्रचलित थीं। अठारहवीं सदी के मध्य तक, इंग्लैण्ड की भाँति ही, अमेरिकी उपनिवेशों में अनुकूल वातावरण होने के कारण उपनिवेश वालों ने इंग्लैण्ड की अपेक्षा काफी महत्वपूर्ण व प्रगतिशील प्रयागे किये। अमेरिकी उपनिवेशों में क्रांतिकारी राजनीतिक प्रयोग व परिवर्तन इसलिए संभव हो सके क्योंकि अमेरिका में बहुसंख्यक प्यूरिटन होने से धार्मिक स्थिति अनुकूल थी; अमेरिका की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति भी बड़ी सहायक सिद्ध हुई व भौगोलिक परिस्थितियों ने भी राजनीतिक परिवर्तनों में काफी योगदान दिया। 

इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा सुदूरस्थ अमेरिकी उपनिवेशों पर नियंत्रण स्थापित करना सरल न था। इंग्लैण्ड की सरकार अमेरिकी उपनिवेशों के व्यापार-वाणिज्य के प्रति हस्तक्षेप और नियंत्रण की नीति इस उद्देश्य से अपनाती थी कि इंग्लैण्ड के आर्थिक, औद्योगिक व व्यापारिक हितों की वृद्धि हो सके। यद्यपि इंग्लैण्ड की सरकार की नीति अमेरिकी हितों के प्रतिकूल थी, परंतु कई कारणों से अमेरिकी उपनिवेशों ने काफी समय तक इसे सहन किया क्योंकि काफी समय तक इंग्लैण्ड के नियंत्रण की नीति को पूर्ण रूप से कार्यान्वित नहीं किया गया; संभावित फ्रांसीसी आक्रमण के विरूद्ध इंग्लैण्ड की सहायता प्राप्त होने के कारण अमेरिकी उपनिवेशों ने आर्थिक नियंत्रण को सहन किया व काफी समय तक अमेरिकी उपनिवेश अशक्त होने के कारण इंग्लैण्ड के आश्रित रहे। 

किन्तु सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति होने पर 1763 ई. की पेरिस की संधि से अमेरिकी परिस्थितियाँ पूर्णतया बदल गयीं। अब अमेरिकी उपनिवेशों को फ्रासं ीसियों की ओर से काइेर् भय न रहा। अत: उन्हें गृह-सरकार पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं रह गयी। सप्तवर्षीय युद्ध के काल में अमेरिकी उपनिवेश न केवल धन संपnn व लोकसंख्या में भी संपन्न हो गये थे, वरन् वे काफी आत्म-निर्भर भी हो गये थे। अत: अब उनहें गृह-सरकार का नियंत्रण असह्य हो गया।

2. 1763 ई. में जॉर्ज ग्रेनविल ने जिस मंत्रिमण्डल की रचना की, उसके विचारानुसार अमेरिकी उपनिवेशों को गत युद्ध के आर्थिक बाझे व राष्ट्रीय सुरक्षा के दायित्व के भार अपने ऊपर लेना थे क्योंकि इंग्लैण्ड ने फ्रासीसी आक्रमणों के विरूद्ध अमेरिकी उपनिवेशों की रक्षा की थी, अत: अमेरिकी उपनिवेशों पर नये कर लगाये जाने चाहिए और इस प्रकार इंग्लैण्ड की भयंकर आर्थिक समस्या का समाधान होना चाहिए। अत: इंग्लैण्ड के रिक्त कोष की पूर्ति व आर्थिक संकट का सामना करने के उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने दो महत्वपूर्ण एक्ट पास किये। पहला शुगर एक्ट-1764 ई. व दूसरा स्टाम्प एक्ट-1765 ई. था, परंतु शीघ्र ही अमेरिकी उपनिवेशों ने इन दोनो एक्टों के विरूद्ध अपना असंतोष प्रकट किया। उन्होंने वह नारा बुलंद किया कि ‘‘बिना प्रतिनिधित्व के करारोपण अन्याय व अत्याचार हैं’’ व ‘‘बिना प्रतिनिधित्व के करारोपण नहीं हो सकता।’’ क्योंकि स्टाम्प एक्ट ने सभी उपनिवेशों में भयकं र चिनगारी भर दी अत: अमेरिकी लोगों ने ‘अधिकार की घोषणा’ की, जिनसे दंगे आरंभ हो गये तथा ब्रिटिश मालों का बहिष्कार किया गया। अत: विविश होकर 1766 ई. में गृह-सरकार ने स्टाम्प एक्ट को रद्द कर दिया।

3. 1767 ई. में गृह-सरकार ने उपनिवेशों के आयात की कई चीजों पर, जैसे काँच, सीसा, रंग, कागज, चाय, इत्यादि पर चुँगी लगा दी। इससे तुरंत ही अमेरिकी उपनिवेशों में भयंकर विरोध आरंभ हो गये और 1770 ई. में बास्े टन नगर में हत्याकाण्ड हो गया। इन घटनाओं से प्रभावित होकर यद्यपि गृह-सरकार ने अन्य चीजों पर से चुँगी हटा दी, परंतु चार पर चुँगी पूर्ववत् बनी रही। अत: अमेरिकी उपनिवेशों ने क्रोध में आकर बास्े टन के बंदरगाह पर चाय से लदे हुए एक जहाज में प्रविष्ट होकर चाय की पेिटयाँ उठा-उठाकर समुद्र में फेंक दी। यह घटना इतिहास में बोस्टन टी पार्टी के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना के प्रत्युत्तर में 1774 ई. में गृह-सरकार ने पाँच एक्ट पास किये। इनके द्वारा बोस्टन के बंदरगाह को व्यापार के लिए बिल्कुल बंद कर दिया गया और मैसाचुसेट्स की प्रतिनिधि-संस्थायें तोड़ दी गयी। 1774 ई. में ही फिलाडेलफिया में महाद्वीपीय काग्रेस की बठै क हुई व इसने सम्राट जाजॅर् तृतीय के पास अपना आवेदन भेजा, परंतु इसका कोई फल न हुआ। अब सम्राट जॉर्ज तृतीय, ब्रिटिश संसद व अमेरिकी उपनिवेश अपनी-अपनी नीति पर कटिबद्ध हो गये। अब इंग्लैण्ड तथा अमेरिकी उपनिवेशिकों के बीच समझौते की कोई संभावना नहीं रह गयी। प्रारंभ में करों के विरूद्ध जो विरोध आरंभ हुआ था, अब वह राजनीतिक विप्लव में परिणत हो गया।

4. इंग्लैण्ड की दमन-नीति से तंग आकर 1779 ई. की 4 जुलाई के दिन अमेरिकी कांग्रेस ने बड़ी क्रांतिकारी कायर्व ाही आरंभ की अर्थात इसने अमेरिकी उपनिवेशों की स्वतंत्रता घोषित कर दी, जिसका अमेरिकी देशभक्तों ने सहर्ष ही स्वागत किया। इंग्लैण्ड में राजा और संसद दोनों ने ही इस स्वतंत्रता की घोषणा की निंदा व विरोधी उपनिवेशिकों को राजद्रोही की संज्ञा प्रदान की।

1776 ई. अमेरिकी क्रांति की घटनाएं

अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध 1774 ई. से 1783 ई. तक चला व प्राय: प्रत्येक उपनिवेश में लड़ाई हुई। अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध में भाग लेने वालों को सौभाग्य से जॉर्ज वाशिगं टन जैसे दृढ़-संकल्प, शातं और गंभीर स्वभाव के महान व्यक्ति का कुशल नेतृत्व प्राप्त हुआ। जॉर्ज वाशिगंटन में संतुलित उत्साह व शक्ति थी, उसमें दृढ़-निश्चय, स्थिरता व एकाग्रता थी। इस युद्ध में फ्रांसीसियों ने गत सप्तवषीर्य युद्ध की पराजय का प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से ग्रेट ब्रिटेन के विरूद्ध अमेरिकी उपनिवेशों की बड़ी सहायता की। वस्तुत: फ्रांसीसी सहायता ही अमेरिकी सफलता का प्रमुख कारण सिद्ध हुई। स्वतंत्रता की घोषणा व युद्ध के प्रारंभ होने के पश्चात् उपनिवेशों को शुरू में महान विफलताओं या पराजयों का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों ने न्यूयार्क ओर फिलाडेलफिया पर अधिकार कर लिया, परंतु 1777 ई. के अंत में स्टे्रटोगा के युद्ध में अमेरिकी उपनिवेशिकों को महान विजय प्राप्त हुई और अंग्रेज सेनापति बुरगोनी को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस ब्रिटिश पराजय से प्रोत्साहित होकर फ्रांस व स्पने भी अमेरिकी उपनिवेशों के सहायतार्थ युद्ध में आ कूदे। 

परिणामस्वरूप, यह स्वतंत्रता युद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय युद्ध के रूप में परिणत हो गया। अब हॉलैण्ड ने भी इंग्लैण्ड के विरूद्ध युद्ध घोषित कर दिया। इसी समय से इंग्लैण्ड को स्थल युद्धों व जल युद्धों में निरंतर भयानक कठिनाइयो व पराजयों का सामना करना पड़ा। 1778 ई. में अंग्रेजों ने फिलाडेलफिया खाली कर दिया और 1781 ई. में अंग्रेज सेनापति ने यॉर्क टाउन में हथियार डाल दिये। इस प्रकार युद्ध बंद हो गया। 1783 ई. की वर्साई की संधि के अनुसार इंग्लैण्ड ने अमेरिकी उपनिवेशों की स्वतंत्रता स्वीकार कर ली और फ्रासं को उसके उपनिवेश वापस कर दिये।

1776 ई. अमेरिकी क्रांति का प्रभाव

  1. अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध की वास्तविक महत्ता न तो स्पेन या फ्रांस के प्रादेशिक लाभों, न हॉलैण्ड की व्यापारिक क्षतियों तथा इंग्लैण्ड के साम्राज्य की अवनति में ही थी, वरन् इसकी वास्तविक महत्ता अमेरिकी क्रांति के सफल संपादन में पायी जाती है। इसने दैवी अधिकार पर आधारित राजतंत्र तथा कुलीनतंत्रीय एकाधिकार पर घातक प्रहार किया। 
  2. अमेरिकी स्वतंत्रता के युद्ध द्वारा इंग्लैण्ड में ‘रक्तहीन राज्यक्रांति’ द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत का और अधिक विकास हुआ। इसने संसद, प्रतिनिधि संस्था, जनता की प्रभुसत्ता व जनतंत्र की प्रतिष्ठा स्थापित की, अर्थात् इसने ब्रिटिश जनंतत्र की नींव डाली। 
  3. इस युद्ध का फ्रासं पर भयानक प्रभाव पड़ा। जिन फ्रासीसी सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया था, वे अमेरिकी रहन-सहन व शासन पद्धति से बड़े प्रभावित हुए। अत: स्वदेश लौटने पर उन्होंने फ्रांस में अमेरिकी संस्थाओं जैसी व्यवस्थाओं की माँग की। इसके फलस्वरूप 1789 ई. में फ्रासीसी राज्य क्रांति का प्रारंभ हुआ। इस युद्ध के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गयी। इस आर्थिक स्थिति के कारण ही फ्रांस का दिवाला निकल गया और राज्य क्रांति का विस्फोट हुआ। 
  4. इस युद्ध के परिणामस्वरूप एग्लो- सैक्सन साम्राज्य के दो टुकड़े हो गये जिसके फलस्वरूप इंग्लैण्ड तथा अमेरिका के बीच मनमुटाव उत्पन्न हो गया। यह मनमुटाव काफी समय तक चलता रहा। 
  5. यूरोप की राजनीति पर अमेरिकी युद्ध का बड़ा महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। अमेरिकी लोगों के हृदय में स्वतंत्रता की जो ज्योति जागतृ हइुर् ओर उन्होने जिस प्रकार इंग्लैण्ड से स्वतंत्र होकर एक प्रजातंत्र की स्थापना कर ली, इसका फ्रांसीसियों के विचारों और कल्पना पर गहरा प्रभाव पड़ा। अत: फ्रांसीसियों ने भी एक प्रजातंत्र की कल्पना कर डाली और फलस्वरूप शीघ्र ही फ्रांस में राज्यक्रांति आरंभ हुई। 
  6. आयरलैण्ड पर भी अमेरिकी युद्ध की सफलता का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। अमेरिका में अपनी पराजय से ब्रिटिश सरकार भयभीत हो गयी थी, अत: उसने आयरिश जनता की माँग पूरी कर दी। इस प्रकार 1800 ई. में यंगर पिट ने एक्ट ऑफ यूनियन पास कर ब्रिटिश संसद के साथ आयरिश संसद को मिला दिया और इस प्रकार आयरलैण्ड की समस्या का समाधान हो गया। 
  7. अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के कारण ब्रिटिश साम्राज्य के विभिन्न भागों में अनेक प्रशासकीय तथा वैधानिक सुधार किये गये। भारतवर्ष में स्थित ईस्ट इण्डिया कंपनी के कायोर्ं पर विभिन्न प्रकार के नियंत्रण रखे गये, जिससे कहीं भारतवर्ष भी अमेरिका की भाँति स्वतंत्रता न प्राप्त कर ले। 
  8. अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के परिणामस्वरूप ही ब्रिटिश सरकार को कई आर्थिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ा।

1776 अमेरिकी क्रांति का महत्व

इस क्रांति का महत्व कई दृष्टि से आंका जा सकता है। क्रांति के बाद जन्मे नये अमेरिका ने गणतंत्रवाद जनतंत्र संघवाद और सुविधानवाद इन चार राजनीतिक आदर्शो के दुनिया के समक्ष रखा । ऐसा नही कह सकते की पहले कभी दुनिया इन शब्दों से परिचित नहीं थी परन्तु अमेरिका ने एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया। गणतंत्र जैसी राजनीतिक शब्दावली को अमेरिका ने जीवतंता प्रदान की। नये संविधान ने गणतंत्र की स्थापना ने यह विश्वास दिला दिया कि राजाओं के दिन लद चुके है। यधपि प्रारम्भ में मताधिकार सीमित था किन्तु बाद में तेजी से मताधिकार के लिए सम्पत्ति योग्यता और धार्मिक असमर्थता को एक के बाद दूसरे राज्य में समाप्त कर दिया गया।

क्रांति ने अमेरिका के सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की भी कायापलट कर दी। क्रांतिं के द्वारा अमेरिका को एक परिवर्तित सामाजिक अवस्था प्राप्त हुई जिसमें परम्परा धन और विशेषाधिकारों का महत्व कम था। और मानवीय समानता का महत्व अधिक 1786ई. में वर्जीनिया में धार्मिक स्वेच्छा अधिनियम पास हुआ। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को चर्च जाने के लिए बाध्य  नहीं किया जा सकता था। प्रत्येक व्यक्ति को पूजा और आराधना की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई। संघीय संविधान में भी फेडरल कर्मचारियों के लिए किसी धार्मिक योग्यता की आवश्यकता न रही। कई राज्यों में अभी भी विधानों में धार्मिक बंधन विधमान थे। अब पहले से अधिक शिक्षा का महत्व समाज ने समझा। 

न्यूयार्क के गवर्नर जार्ज क्लिंटन ने 1782ई. में कहा था कि ‘‘जहाँ सर्वोच्च नोकरियां प्रत्येक स्थिति के नागरिक के लिए उपलब्ध हैं उस स्वाधिन राज्य की सरकार का यह विशेष कर्तव्य है कि उस स्तर के साहित्य का विघालयों
तथा विशेष संस्थाओं दवारा प्रचार चाहिए जो जन संस्थाओं की स्थापना के लिए आवश्यक है।’’ अमेरिका क्रांति के आर्थिक परिणाम भी इसके सामाजिक एवं राजनीतिक परिणामों की भांति अत्यधिक महत्वपूर्ण थे। आर्थिक क्षेत्र में क्रांति ने मूलतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त कर इसके विकास को प्रोत्साहन किय।

अमेरिकी क्रांति का वहां की कृषि पर बहुत अधिक प्रभाव पडा। क्रांतिकाल में बड़े-बड़े भूमिपति उपनिवेशकों को छोडकर कनाडा आदि देशों को चले गये जिससे उनकी बड़ी-बड़ी भू सम्पदाओं को तोडकर छोटे-छोटे टुकडों में इनका वितरण निम्न तथा मध्यम वर्गो के हाथ में किया गया। क्रांति ने कृषि के विकास को प्रोत्साहित किया। कृषि की अपेक्षा उघोग धन्धों पर क्रांति का प्रभाव अधिक पडा उघोगो को दो तरह से लाभ हुआ प्रथम अमेरिकी उघोग अंगे्रजों द्वारा लगाये गये व्यापारवादी प्रतिबंधों से मुक्त हो गये दूसरे युध्दकाल में इंग्लैण्ड से वस्तुओं का आयात बंद हो जाने के कारण देषी वस्त्र की मांग बहुत बढ़ गई सूत कातने और वस्त्र बुनने का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर किया जाने लगा।

इस क्रांति ने पूरे यूरोप में उपनिवेशवाद विरोधी क्रान्तिकारियों को नया जीवन दिया। स्वयं इंग्लैण्ड में व्हिग दल ने क्रांति को खुला समर्थन दिया तथा हार्न ट्रक ने संसद सदस्यों तक से आव्हान किया कि वे अमेरिकी क्राति को समर्थन दें अन्यथा अमेरिकियों के असफल हो जाने से अंग्रेजों की स्वतंत्रता भी समाप्त हो जायेगी। इस संघर्स की प्रेरणा से दक्षिण अमेरिका के लोग भी स्पेन तथा पुर्तगाल के शासन से मुक्त होने में सफल रहे। अमेरिकी क्रांति ने दैवीय अधिकार पर आधारित राजतंत्र तथा कुलीनतन्त्रीय एकाधिकार पर घातक प्रहार किया युध्द के बाद इंग्लैण्ड की संसद में राजा के अधिकारों को कम करने की जोरदार मांग उठने लगी।

फ्रांस भी क्रांति के प्रभाव में आ गया। अमेरिका से लौटकर आने वाले फ्रांसीसी अधिकारियों ने अमेरिका के अनुभवों को लिखा। लाफायत ने विशेष रूप से अमेरिकी क्रांति की भावना फ्रांसीसी जनमानस तक पहुंचाई। फ्रांसीसी समाज में अमेरिकी लेखक एवं दार्शनिक फ्रैकलिन का विशेष प्रभाव था।

अमेरिकी क्रांति का महत्व इसलिए भी है कि इग्लैण्ड के उपनिवेशों के हाथ से निकल जाने से वाणिज्यवादी सिद्धान्तों को आघात पहुंचा। स्वयं इंग्लैण्ड ने भी वाणिज्यवादी नीती को त्याग दिया।

अमेरिकी क्रांति का महत्व क्रांति से पूर्व स्वतंत्रता की घोषणा (4 जुलाई 1776ई.) में निहित हैं। स्वतंत्रता की घोषणा न केवल एक राष्ट्र की स्वतंत्रता की उद्घोषणा थी अपितु उन्नीसवीं सदी में यूरोप के इतिहास में राजनीतिक दर्शन तथा क्रांतिकारी विचारों की भूमिका थी। इस घोषणा की पृष्ठभूमि पर 1789ई की फ्रासीसी क्रांति की आधारशिला रखी गई। अमेरिकी क्रांति ने दमनकारी सरकार को उखाड फेंकने के लोगों के अधिकार की संकल्पना पर मोहर लगा दी और भविष्य मे अन्य देशों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया।

संदर्भ -
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  8. Foster Rhea Dulles : The United States since 1865
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