बाल्कन युद्ध (1912-13 ई.) के कारण एवं परिणाम

बाल्कन युद्ध 1878 ई. के बर्लिन सम्मेलन के उपरांत बाल्कन राज्यों के संघ के निर्माण के लिये कई बार प्रयत्न किया गया, किन्तु प्रत्येक समय संघ के निर्माण-कार्य में कोई न कोई बाधा अवश्य उपस्थित हो जाती थी। सन् 1885 ई. मे बल्गारिया में पूर्वी रूमानिया को अपने राज्य में सम्मिलित किया जिसको सर्बिया का राज्य सहन नहीं कर सका। उसने बल्गारिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर 14 नवम्बर सन् 1885 ई. को उस पर आक्रमण किया। इस युद्ध ने संघ के निर्माण-कार्य को समाप्त कर दिया। 

सन् 1891 ई. में इस और पुन: कदम उठाया गया जब ग्रीस के प्रधानमंत्री ट्रिकोपीज ने सर्बिया की राजधारी बैलग्रेड और बल्गारिया की राजधानी सोफिया की यात्रा की। दोनों राज्यों ने उसका भव्य स्वागत किया। सर्बिया ने तो संघ निर्माण को स्वीकार किया, किन्तु बल्गारिया ने उसकी बातों को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि इस समय उसके संबंध आस्ट्रिया, जर्मनी और तुर्क साम्राज्य से अच्छे थे।

बाल्कन युद्ध (1912-13 ई.)

बाल्कन संघ का निर्माण

इसी समय इटली ने टर्की साम्राज्य के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की और उसकी सेनाओं को कई स्थानों पर परास्त कर ट्रिपोली को अपने अधिकार में किया। बाल्कन राज्यों ने टर्की की उक्त पराजय से लाभ उठाने का स्वर्ण अवसर समझा। उन्होंने मैसिडोनिया को मुक्त करने के अभिप्राय से अपने पारस्परिक भेदों का अंत कर आपस में समझौते करने प्रारंभ किए। 

मई 1912 ई. कि ग्रीस, मोन्टोनीग्रो तथा बल्गारिया ने आपस में एक दूसरे से संधि की और टर्की के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिये संघ का निर्माण किया। उन्होंने युद्ध की तैयारी करना आरंभ किया और इसके साथ-साथ उन्होंने टर्की के सुल्तान से मेि सडोनिया ने आवश्यक सुधार करने की मांग की। सुल्तान भी इन राज्यों के कार्य से अनभिज्ञ नहीं था। उसने भी युद्ध की तैयारी करना आरंभ किया। कुछ दिनों तक तो यूरोपीय सत्तायें चुप रहीं, परन्तु अब आग को सुलगती हुई देखकर उसे शांत करने की दृष्टि से उन्होंने टर्की को सुविधायें देने तथा बाल्कन राष्ट्रों से धैर्य रखने का अनुरोध किया, परन्तु सब व्यर्थ गया। इस पर उन्होंने टर्की पर दबाव डालने के स्थान पर चारों राज्यों को पत्र भेजे, जिनमें उन्होंने टर्की पर बर्लिन की संधि के अनुसार कार्य करने के लिये जारे डालने का वचन दिया और साथ ही उन्होनें युद्ध न छेड़ने का आग्रह किया। 

अंत में, उन्होंने यह भी धमकी दी कि यदि उन्होंने युद्ध छेड़ा तो उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। बाल्कन राज्यों ने इस धमकी की बिल्कुल परवाह नहीं की और अक्टूबर 1912 ई. में सुल्तान के सुधार न करने पर टर्की के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया।

प्रथम बाल्कन युद्ध

उक्त पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि यूरोप के बड़े राष्ट्रों ने बाल्कन राज्यों को टर्की के विरूद्ध कार्यवाही न करने की चेतावनी दी थी, किन्तु उन्होंने इस ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। अक्टूबर 1922 ई. में इन राज्यों ने टर्की के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की। तुर्क साम्राज्य पर चारों और से आक्रमण आरंभ हुये। यूरोप के समस्त राष्ट्रों का यह विचार था कि युद्ध में बाल्कन राज्यों की पराजय होगी और टर्की साम्राज्य की विजय होगी, किन्तु वास्तविकता इससे भिन्न रही। बल्गारिया की सेना को आशातीत सफलता प्राप्त हुई। 

22 अक्टूबर को बल्गारिया ने सिर्थ किलेसे नामक स्थान पर टर्की की सेना को बुरी तरह परास्त किया। 8 नवम्बर को ग्रीस की सेना ने टर्की की सेना को सेलोनिका के स्थान पर परास्त कर अपना अधिकार स्थापित किया और मेसिडोनिया के तुर्क साम्राज्य का अंत कर दिया। इस प्रकार डेढ़ महीने के अंदर ही टर्की को बाल्कन राज्यों से बुरी तरह परास्त होना पड़ा और उसके पास यूरोप का बहुत कम भाग शेष रहा। 

बाल्कन राज्यों की इस विजय पर इंगलैंड के प्रधानमंत्री ऐसक्विथ ने घोषणा की कि ‘‘बाल्कन संघ ने अपने पूर्व त्याग, बलिदान और रक्तपात द्वारा जो प्रादेशिक परिवर्तन किये हैं वे उन्है। महान् शक्तियाँ प्रदान करेगें।’’ टर्की के मित्र टर्की की इस पराजय को सहन नहीं कर सके। इंगलैंड और फ्रांस भी युद्ध के रोकने के लिये उत्सुक थे। अत: यूरोप के सब राष्ट्रों ने सम्मिलित रूप से युद्ध बन्द करवाया और लंदन नगर में एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें बाल्कन राज्यों के प्रतिनिधि भी आमंत्रित किए गए।

विराम सन्धि - मई 1913 ई. लंदन की संधि हुई जिसके अनुसार यह निर्णय हुआ कि विजित पद्रेशों पर विजेताओं का अधिकार रहै। दाबे ्रुजा रूमानिया को प्रदान किया गया और टर्की के पास एड्रियानोपिल के दुर्ग के अतिरिक्त शेष दोनों दुर्ग रहे। इसी समय तुर्की सरकार में परिवर्तन हुआ और युद्ध पुन: आरंभ हो गया। टर्की ने खोए हुए प्रदेशों को पुन: प्राप्त करने का प्रयत्न किया, किन्तु उसके अपने प्रदेश भी उसके हाथ से निकल गए। टर्की संधि करने को तयै ार हो गया। लंदन में फिर एक सभा हुई और 30 मई 1913 ई. को संधि हुई जो लंदन की संधि के नाम से प्रसिद्ध है।

लंदन की संधि की शर्तें - इस संधि द्वारा निम्न बातें तय की गई-
  1. कुस्तुनतुनिया के चारों और के प्रदेश के अतिरिक्त टर्की का यूरोपीय साम्राज्य स्थापित हो गया। 
  2. अल्बानिया का स्वतंत्र राज्य घोषित किया गया। वीड का राजकुमार वहां का शासक घोषित किया गया।
  3. क्रीट पर यूनान का अधिकार स्वीकार किया गया।

द्वितीय बाल्कन युद्ध

यूरोप की शक्तियों ने लंदन की संधि द्वारा पूर्वी समस्या का समाधान करने का प्रयत्न किया। उनकी यह धारणा थी कि इसके द्वारा वे समस्या का निराकरण करने मे सफल हुए, किन्तु वास्तव में वे उसका समाधान करने में सफल नहीं हुए। अल्बानिया के आविर्भाव के कारण सर्बिया बड़ा असंतुष्ट हुआ, क्योंकि उसके राज्य से कुछ भाग निकल गया था। सर्बिया चाहता था कि वह मोटींनीग्रो से मिलकर अल्बानिया को आपस में बांट ले, किन्तु आस्ट्रिया ने ऐसा नहीं होने दिया। उसके प्रयत्नों के कारण ही अल्बानिया के नवीन राज्य का निर्माण किया गया, जबकि इंगलैंड, फ्रांस और रूस ने सर्बिया के पक्ष का समर्थन किया। प्रथम बाल्कन युद्ध का अधिक भार बल्गारिया को सहन करना पड़ा था और उसको जो लाभ प्राप्त हुए वे उसकी अपेक्षा बहुत ही कम थे। इस कारण वह लंदन की संधि से असंतुष्ट था। 

मेि सडोनिया के प्रश्न पर बाल्कन राज्यों में बड़ा मतभदे उत्पन्न हो गया। ग्रीस उनको अपने अधिकार में करना चाहता था। सर्बिया अल्बानिया के बदले में मेसिडोनिया को मांगता था, जबकि बल्गारिया उसको अपने नियंत्रण में रखना चाहता था। वह सर्बिया को मेसिडोनिया नहीं देना चाहता था। सर्बिया और ग्रीस को बल्गारिया के आक्रमण का भय था। अत: दोनों ने एक संधि की जिसके द्वारा यह निश्चय हुआ कि युद्ध होने के अवसर पर दोनों एक दूसरे को सहायता प्रदान करेगेंं रूस ने इस झगड़े का अंत करने के लिये मध्यस्थ का कार्य करने का प्रस्ताव रखा, किन्तु बल्गारिया ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उस पर आस्ट्रिया का हाथ था और वह प्रथम बाल्कन युद्ध की विजय के कारण अपनी शक्ति को ग्रीस और सर्बिया की शक्ति से बहुत अधिक समझने लगा था। 

वास्तव में वह अपनी इच्छा से बटवारे का कार्य सम्पन्न करना चाहता था। बल्गारिया विजय के नशे में इतना चूर हो गया कि उसने सेलोनिका तथा मेसिडोनिया के विवाद-ग्रस्त क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। बल्गारिया की सेना ने सेलोनिका पर आक्रमण किया तो ग्रीस के राजा ने बल्गारिया की सेना को बन्दी बनाकर स्टूर्मा की घाटी में स्थित यूनानी सेना पर आक्रमण किया, किन्तु बल्गारिया की सेना ने उसको घेर लिया। इसी समय बर्लिन की सेना ने वहां आकर ग्रीस की सेना को मुक्त किया। तुर्की ने भी बल्गारिया के विरूद्ध सर्बिया का पक्ष लिया। उसने उसकी राजधानी सोफियो को चारों ओर से घेर लिया। बाध्य होकर बल्गारिया को संधि की प्रार्थना करनी पड़ी। 10 अगस्त 1913 ई. को बुखारेस्ट की संधि हुई।

बुखारेस्ट की संधि की शर्ते - द्वितीय बाल्कन युद्ध का अंत बुखारेस्ट की संधि के द्वारा हुआ। बल्गारिया ने यह संधि ग्रीस, सर्बिया, रूमानिया और टर्की के साथ की। इस संधि में निम्न बातों का निश्चय हुआ-
  1. रूमानिया को डेन्यूब नदी के तट पर स्थित सिलिस्ट्रिया का दुर्ग और दोबरूजा का दक्षिण प्रदेश प्राप्त हुआ। 
  2. सर्बिया को सम्पूर्ण उत्तरी मेसिडोनिया और मीनास्टर प्राप्त हुआ। 
  3. ग्रीस को फ्लोरिना से थे्रस तक का मेसिडोनिया का सम्पूर्ण दक्षिणी प्रदेश और ईजियन सागर का तटवर्ती बन्दरगाह कबाला तथा उनका पृष्ठ प्रदेश प्राप्त हुआ। 
  4. बल्गारिया के पास पश्चिमी थे्रेस का प्रदेश रहा। 
  5. टर्की को एड्रियानोपिल और उसके आसपास का प्रदेश प्राप्त हुआ। आस्ट्रिया और इटली ने सर्ब्रिया तथा मोटी नीग्रो को अल्बानिया का स्वतंत्र राज्य खड़ा करके एड्रियाटिक सागर से दूर रखा। 
इसी कारण सर्बिया ने मेसिडोनिया में उसकी क्षति-पूर्ति करने के लिये प्रयत्न किया, जिसके फलस्वरूप बल्गारिया से उसका झगड़ा हुआ और आपस में युद्ध हो गया।

बाल्कन युद्ध के परिणाम

1. टर्की के यूरोपीय राज्य का विनाश- इन युद्धों के कारण टर्की के यूरोपीयन राज्यों का विनाश हुआ। यद्यपि यूरोप में टर्की के पास कुस्तुनतुनिया तथा एड्रियानोपिल के मध्य का प्रदेश ही शेष रहा, किन्तु वह अब केवल एशियाई राज्य रह गया। उसके अधिकार से उसके यूरोपीय भाग का 1/6 भाग उसके हाथों से निकल गया तथा 2/3 यूरोपीय प्रजा पर से उसके अधिकार का अंत हो गया।

2. बाल्कन राज्यों का विस्तार- इन युद्धों से बाल्कन राज्यों के विस्तार में बड़ी वृद्धि हुई। इन सब राज्यों में सबसे अधिक लाभ सर्बिया और ग्रीस को प्राप्त हुए। इनके राज्य पहले से दुगने हो गए। मोटी नीग्रो का राज्य पहले से दुगुना हो गया। रूमानिया का भी विस्तार हुआ। इन युद्धों में बल्गारिया को सबसे कम लाभ प्राप्त हुआ, यद्यपि इन युद्धों में उसने सबसे अधिक भाग लिया था और उसकी धन और जन में बहुत अधिक हानि हुई थी।’’

3. ईर्षा तथा द्वेष में वृद्धि- यद्यपि इन युद्धों के द्वारा ईसाई प्रजा को टर्की के साम्राज्य से मुक्ति मिल गई थी, किन्तु इन युद्धों के कारण इन राज्यों की शक्ति में बड़ा विस्तार हुआ और उनमें पारस्परिक ईर्षा और द्वेष में बहुत अधिक वृद्धि हुई। बल्गारिया अन्य राज्यों को ईर्षा और द्वेष को दृष्टि से देखने लगा। सर्बिया आस्ट्रिया से बड़ा असंतुष्ट हो गया, क्योंकि उसके कारण ही अल्बानिया के नये राज्य का निर्माण हुआ जिससे वह एड्रियाटिक सागर से दूर हो गया। आस्ट्रिया भी सर्बिया से नाराज था, क्योंकि उसके विस्तार से उसके ईजियन सागर तक पहुंचने के मार्ग में रूकावट उत्पन्न हो गई। आस्ट्रिया को ग्रीस व रूमानिया से भी असंताष्े ा था। 

जर्मनी भी सर्बिया को अपना शत्रु समझता था क्योंकि उनके द्वारा जर्मनी के कुस्तुनतुनिया तक पहुंचने के मार्ग में वह रूकावट हो गया। ये राष्ट्र बुखारेस्ट की संधि का अंत करना चाहते थे। उनको केवल अवसर की तलाश थी। शीघ्र ही उनको बाल्कन राज्यों के विरूद्ध कार्य करने का अवसर प्राप्त हो गया, जब आस्ट्रिया के राजकुमार फर्डिनेन्ड और उसकी पत्नी का वध सेराजीवो में दिन दहाड़े एक सर्ब द्वारा 28 जून 1914 ई. को किया गया। इसके कारण ही प्रथम विश्वयुद्ध का आरंभ हुआ।

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